पिछली कड़ी-अजगर करे न चाकरी…
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:28 AM लेबल: god and saints, तकनीक, नामपुराण, शरीर
16.चंद्रभूषण-
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15.दिनेशराय द्विवेदी-[1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22.]
13.रंजना भाटिया-
12.अभिषेक ओझा-
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11.प्रभाकर पाण्डेय-
10.हर्षवर्धन-
9.अरुण अरोरा-
8.बेजी-
7. अफ़लातून-
6.शिवकुमार मिश्र -
5.मीनाक्षी-
4.काकेश-
3.लावण्या शाह-
1.अनिताकुमार-
मुहावरा अरबी के हौर शब्द से जन्मा है जिसके मायने हैं परस्पर वार्तालाप, संवाद।
लंबी ज़ुबान -इस बार जानते हैं ज़ुबान को जो देखते हैं कितनी लंबी है और कहां-कहा समायी है। ज़बान यूं तो मुँह में ही समायी रहती है मगर जब चलने लगती है तो मुहावरा बन जाती है । ज़बान चलाना के मायने हुए उद्दंडता के साथ बोलना। ज्यादा चलने से ज़बान पर लगाम हट जाती है और बदतमीज़ी समझी जाती है। इसी तरह जब ज़बान लंबी हो जाती है तो भी मुश्किल । ज़बान लंबी होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है ज़बान दराज़ करदन यानी लंबी जीभ होना अर्थात उद्दंडतापूर्वक बोलना।
दांत खट्टे करना- किसी को मात देने, पराजित करने के अर्थ में अक्सर इस मुहावरे का प्रयोग होता है। दांत किरकिरे होना में भी यही भाव शामिल है। दांत टूटना या दांत तोड़ना भी निरस्त्र हो जाने के अर्थ में प्रयोग होता है। दांत खट्टे होना या दांत खट्टे होना मुहावरे की मूल फारसी कहन है -दंदां तुर्श करदन
अक्ल गुम होना- हिन्दी में बुद्धि भ्रष्ट होना, या दिमाग काम न करना आदि अर्थों में अक्ल गुम होना मुहावरा खूब चलता है। अक्ल का घास चरने जाना भी दिमाग सही ठिकाने न होने की वजह से होता है। इसे ही अक्ल का ठिकाने न होना भी कहा जाता है। और जब कोई चीज़ ठिकाने न हो तो ठिकाने लगा दी जाती है। जाहिर है ठिकाने लगाने की प्रक्रिया यादगार रहती है। बहरहाल अक्ल गुम होना फारसी मूल का मुहावरा है और अक्ल गुमशुदन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
दांतों तले उंगली दबाना - इस मुहावरे का मतलब होता है आश्चर्यचकित होना। डॉ भोलानाथ तिवारी के मुताबिक इस मुहावरे की आमद हिन्दी में फारसी से हुई है फारसी में इसका रूप है- अंगुश्त ब दन्दां ।
8 कमेंट्स:
गरारा शब्द का ही गरारा हो गया गर्र..याने तर!! आभार!!
सारगर्भित जानकारी प्रस्तुत की है। पहली बार आना हुआ है आपके ब्लॉग पर... लगता है बार-बार आना पड़ेगा....
गर्ग से सांड किस तरह निकला,
अब मुझे जा के ये समझ आया,
चुन के भेजा था 'गाय' को हमने,
'अब' जो देखा तो 'गर्ग' वह निकला.
अच्छा किया गरारा की याद दिला दी । ठंड लग गयी है ।
ऋषि,गोत्र,गरारा,खर्राटा....ओह कहा से कहाँ तक...वाह !!!
लाजवाब रोमांचक विवेचना...
ज्ञानवर्धन करने हेतु बहुत बहुत आभार...
अच्छी पोस्ट ! मेरा ख्याल था कि मंसूर साहब उस 'गरारे' पर शेर कहेंगे जो पहना जाता है :)
@ अली साहब
गरारे पर तो अब क्या गुस्ताखी करू.......पाजामे को लपेट रहा हूँ...
बकौल उर्दू के एक हिन्दू शायर जनाब एन.बी.सीन नाशाद :-
"दो चार किताबे पढी, बने अल्लामा,
इस्तिंजा किया गीला रहा पाजामा."
वैसे, मैरे इस पोस्ट पर कुछ और भी तास्सुरात थे- जो अजित भाई के पास डिपोजिट है.
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