Wednesday, July 14, 2010

कुँए का बच्चा यानी चहबच्चा!!

पू
र्वी हिन्दी में चहबच्चा शब्द चलता है। फारसी में चह/चाह का अर्थ है कूप या गढ़ा। संस्कृत में जिस तरह बालसूर्य या बालचंद्र जैसे पद विकसित हुए, लगता है फारसी में भी चहबच्चा यानी बालकूप विकसित हुआ होगा। जलकूप की गहराई से पानी उलीचने के बाद उसके सहज उपयोग के लिए अक्सर कुए की जगत से सटी एक नांद नुमा रचना बनाकर वहां पानी एकत्र किया जाता रहा है। इसी नांद से नहाने, धोने और सिंचाई आदि के लिए जल का निकास होता है। यूं रास्तों को इर्दगिर्द, मैदानों में बारिश के पानी से भरे गढ़ों के कई नाम हैं। चहबच्चा भी इनमें से एक है। अन्य क्षेत्रों में इन्हें डाब, डाबर, पोखरा, गड़हियां, डबरा आदि कहा जाता है।

हबच्चा का सबसे पहला पता मिलता है चौआ शब्द में। हिन्दी में चोआ या चौआ का अर्थ भी पानी से भरा गढ़ा, गढ़हियां अथवा डाब होता है। ध्यान रहे चोआ शब्द गड्ढे के अर्थ में पंजाबी ज़बान में भी बोला जाता है। पंजाब की सीमा किसी ज़माने में अफ़गानिस्तान तक थी। ध्यान रहे, चोआ में चाहे खड्ड या गढ़े का भाव है, मगर यह मूलतः जलस्रोत वाला खड्ड है अर्थात ऐसा गढ़ा जिसमें से पानी का रिसाव होता है। जल के रिसाव को बोलचाल की भाषा में चूना कहते हैं। चूना, चुआना, चोआना जैसी क्रियाओं में पानी टपकने का भाव है, रिसाव का भाव है। भूमि की खुदाई करने पर जिस गहराई पर जल का रिसाव होने लगे, बस वही चोआ है। चोआ यानी जहां पर पानी चू रहा है।

कूप या गढ़े के अर्थ में फारसी के चह शब्द के जन्मसूत्र इसी चूने की क्रिया में छिपे हैं। यह चूना, चुआना जैसी क्रियाएं संस्कृत की च्यु धातु से निकली हैं जिसमें रिसना, गिरना, टपकना जैसे भाव हैं। च्युत् शब्द इसी कड़ी मे आता है। पदच्युत जैसा समास भी इसी शब्द से बना है जिसका प्रयोग परिनिष्ठित हिन्दी में आम है। पदच्युत में अपने स्थान से हटने का भाव है। इसका प्रचलित अर्थ है बर्खास्तगी। किसी को उसके पद से हटा देना। याद रहे च्यु क्रिया में रिसाव का जो भाव है उसमें अपना स्थान छोड़ने की क्रिया स्पष्ट है। रिसन में अदृष्य होना भी है। हिम का रिसाव दरअसल हिम के अदृष्य होने की क्रिया है। च्युत में दूर करने का भाव भी है क्योंकि रिसाव में गति अंतर्निहित है। गति और दूरी की सापेक्षता प्रमाणित है।

स्पष्ट है कि भूमिगत जलस्त्रोत के लिए चोआ या चौआ शब्द के मूल में संस्कृत का च्यवन शब्द है। च्यवन से च्यावन और फिर चुआना, चौआना जैसे शब्द बने। इसमें से मध्यस्वर आ का लोप होने से बना चूना जिसका प्रयोग तरल पदार्थ के टपकने के अर्थ में होता है। जलस्रोत के अर्थ में तलैया, खाला, नाला, झिरन, सोता जैसे शब्द भी इसी कड़ी में आते हैं जिनमें बहाव और रिसाव स्पष्ट है। बरास्ता अवेस्ता, इसी च्यु की आमद फारसी में चह् के रूप में होती है। अर्थ पंजाबी, भोजपुरी वाले चोआ का ही रहा अर्थात सामान्य गढ़ा, कूप या डबरा। मगर भाव स्पष्ट है। चह उसी गढ़े को कहेंगे जिससे जल का रिसाव होता है अर्थ वह कूप जो पानी चुआता है।

ह से चहबच्चा बनना ही शब्दों की अर्थवत्ता बढ़ने का उदाहरण है। अब चाहे इस चहबच्चा की व्याख्या छोटे कूप, बालकूप अथवा कुईंया के रूप में करें या फिर कुँए की जगत के पास बनी ऐसी रचना से करें जिसमें बच्चे नहाते हों। बच्चों को नहलाने के लिए आमतौर पर छोटी नांद का प्रयोग होता है। कई घरो में स्थाई तौर पर ये बनी रहती हैं। यह भी महत्वपूर्ण है कि बरास्ता संस्कृत, बच्चा शब्द का विकास वत्स शब्द से हुआ है। वत्सरः; बच्छरअ; बच्छड़ा जैसा क्रम रहा है। यहां वत्स में चौपाए के शिशु का भाव भी है। प्राचीनकाल से ही कुँओ के समीप पशुओं के पीने के लिए पानी की नांद बनाई जाती रही है। संभव है इसे चहबच्चा कहा जाता रहा हो। अर्थात जहां बच्चा यानी पशुधन पानी पिए। होली के मौके पर ऐसे ही छोटे पोखरो, डबरों में बच्चों को कूदते फांदते, किलोल करते देखा जा सकता है। आखिर चहबच्चा और क्या है?



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14 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

चहबच्चा -पहली बार जाना!!


चुचुआ...वो छोटे वाले डॉग ब्रीड...उनका इससे कुछ लेना देना है क्या??

उम्मतें said...

पुरबिया नें पर्सियन को सहज स्वीकार किया ! मेरे ख्याल से शब्द चर्चा में मानी खोजने के लिए इसे पुरबिया में प्रचलित शब्द की तरह पेश किया गया ,मतलब साफ़ है कि जनस्वीकृति और प्रेम में मूल सूद का भेदभाव नहीं है :)

RDS said...

बडनेरकर जी,

आपकी अबाध रचनाधर्मिता मुग्ध करती है | पढ़ने वाले चाहे विराम दे दें ; आपका शोध एवं लेखन बदस्तूर जारी रहता है किसी ऋषि की साधना के समान !! इस बार आप जो शब्द लाये हैं निस्संदेह नया सा है | मालवा में जल भण्डार के ऐसे नैसर्गिक कुण्ड को जो बावडी के जैसा प्रतीत हो, 'चोपड़ा' बोलते भी सुना है | लेकिन इसका नामकरण उसकी चतुर्भुजीय आकृति के कारण दिया प्रतीत होता है | अब ये हो सकता है इसके जल का स्त्रोत कोई नैसर्गिक रिसाव ( चुवन ) ही होता हो |

सादर,

- RDS

वाणी गीत said...

शब्द नया है ...
रोचक जानकारी ..!

निर्मला कपिला said...

अच्छा तो असली शब्द चह्बच्चा है पंजाब हिमाचल मे इसे चभचा या कुछ ऐसे ही बोलते हैं। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।

अनिल कान्त said...

मैंने चहबच्चा शब्द कई बार 'वे दिन' उपन्यास में पढ़ा था और उपन्यास में उसका शाब्दिक अर्थ अपने आप मालूम हो चलता है . आपने यहाँ विस्तार पूर्वक इतनी जानकारी दी उसके लिए शुक्रिया .

Mansoor ali Hashmi said...

'[चह]बच्चा' आदतन तो 'चुआ' करता है,
पानी से लबालब भी हुआ करता है,
'रिस-रिस' के 'च्युत' होना* भी देखा#हमने,
इस तरह से 'चूना' भी लगा करता है.

*'रिस के च्युत होना' और 'चूना लगना' का प्रयोग बतौर मुहावरा माने.
#भंडार गृहों का खाली होना.

प्रवीण पाण्डेय said...

च्यवन ऋषि ने अपना नाम इस प्रकार क्यों रखा?

Baljit Basi said...

चह्बच्चा को पंजाबी में 'चुबच्चा' बोला जाता है. लेकिन मेरे ज्ञान अनुसार 'चोआ' जिसका आम रूप 'चो' है(कई 'चोअ' भी लिखते हैं), गड्ढे का अर्थ नहीं देता. गड्ढा तो एक खुदी हुई गहरी चीज़ है जब कि 'चो' एक बरसाती नाला है. यह होशिआरपुर जैसे नीम-पहाडी इलाकों में होते हैं.इनके गांवों के नाम पर नाम भी होते हैं जैसे नसराला चोअ, महिन्ग्रोवाल चोअ, झंबो चोअ आदि. बाढ़ आने पर यह आस पास के गांवों में तबाही मचाते हैं. इन पर पुल और बांध भी बनाए जाते हैं. बरसात के इलावा दुसरे मौसमों में यह चोअ खुशक ही रहते हैं.

सतीश पंचम said...

अजित जी,

पानी वाल गढ़े के अलावा 'चहबच्च' या 'चबहच्ची' का एक और अर्थ है जिसका मतलब है कि वह गढ़ा / गड्ढा जिसमें कोई चीज छुपाई जाती हो। ( संदर्भ - रामचंद्र वर्मा....उर्दू डिक्शनरी )

PD said...

बचपन में घर के लोग मजाक में हमें चहबच्चा कह कर बुलाते थे.. :)
आज पता चला कि ये शब्द आई कहाँ से..

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं

Vishal Gupta said...

अमज़िंग, बहुत रोचक
-
विशाल

शरद कोकास said...

इस तरह के चहबच्चे मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई मे बहुत मिले हैं । यह संस्कृति अपनी नगरीय व्यवस्था के लिये प्रसिद्ध रही है ।

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