हिन्दी-मराठी के गच्ची शब्द को मूलतः इंडो-ईरानी भाषा वर्ग में रखना चाहिए। इस शब्द का मूल है फ़ारसी का गच शब्द जिसका रूढ़ अर्थ है चूना या प्लास्टर। एक अन्य शब्द है गची जिसका अर्थ है पक्का सफ़ेद फ़र्श या वह भूमि जहाँ से चूना निकाला जाता है। ध्यान रहे चूना एक महत्वपूर्ण भवन निर्माण सामग्री है और प्राचीनकाल से लेकर अब तक ईंट-पत्थरों को जोड़ने के काम आता रहा है। दीवारों पर पलस्तर करने के लिए बनाए जानेवाले मसाले का प्रमुख अवयव भी चूना ही है। अब यह काम सीमेंट से होता है जिसकी प्रमुख सामग्री भी चूना ही है। गची से ही मराठी-हिन्दी में गच्ची शब्द बनता है। पुरानी इमारतों में छत को मज़बूती प्रदान करने के लिए उस पर चूने की मोटी परत बिछाई जाती थी। चूने की छत से कमरे भी ठण्डे रहते थे। पक्के सफ़ेद फ़र्श का भाव छत में स्पष्ट हो रहा है। यह महत्वपूर्ण है कि वृहत प्रामाणिक हिन्दीकोश, हिन्दी शब्दसागर और ज्ञान शब्दकोश समेत हिन्दी के ज्यादातर शब्दकोशों में गच्ची शब्द की प्रविष्टि नहीं है अलबत्ता चूना-सुरख़ी से बने पक्के फर्श के तौर पर गच शब्द की मौजूदगी वहाँ है।
सबसे पहले देखते हैं कि गच में चूने की अर्थवत्ता कहाँ से आ रही है। दरअसल फ़ारसी के गच और संस्कृत की खच् धातु में रिश्तेदारी है। खच् में जकड़ना, बांधना, जड़ना, गडमड करना, मिलाना जैसे भाव हैं। रत्नज़ड़ित के अर्थ में ही रत्नखचित शब्द युग्म भी प्रचलित है जिसका अर्थ है जिसमें रत्न जड़ा हुआ है। खच का ही एक अन्य रूप है खज् जिसमें भी यही भाव हैं। फ़ारसी दरअसल पहलवी से निकली है जिसमें गच का पूर्व रूप खच् ही है। जॉन प्लैट्स के कोश के अनुसार ज़ेंद में इसका रूप है घच। स्पष्ट है कि ये सभी ध्वनियाँ क वर्णक्रम की हैं और एक दूसरे में परिवर्तित हो रही हैं। भवन निर्माण सामग्री में चुनाई का मसाला बनाने के लिए चूने में विभिन्न पदार्थ मिलाए जाते हैं। कृ.पा. कुलकर्णी के अनुसार फ़ारसी के गच शब्द का अर्थ है ठूँस कर भरा गया चूना। गच का तुर्की रूप है गज और चीनी रूप है कच मतलब है चूना। पुराने ज़माने में ईरानी वास्तुकला में दीवारों पर पलस्तर करने की एक ख़ास तकनीक को गचकारी कहते थे। ईरान कल्चर हाऊस के फ़ारसी-हिन्दी कोश में गचकारी का अर्थ पलस्तर पर फुलकारी बताया गया है। पलस्तर करनेवाले को गचमाल, गचगीर या गचकर कहते हैं। कृ.पा. कुलकर्णी के मराठी कोश फ़ारसी में गच्ची की प्रविष्टि दो तरह से दी हुई है। एक वह भूमि जिस पर चूने का पलस्तर किया गया है और दूसरी के मुताबिक वह जगह जो खाली न हो। जाहिर है दो ईंटों के बीच चुनाई के लिए रखे गए खाली स्थान में ठूँस ठूँस कर भरा गया मसाला उस स्थान को खाली कहाँ रहने देता है?
दीवार और फ़र्श की सतह को ठोस, हमवार और मज़ूबत बना देने वाला गच् यानी चूना का पुराने ज़माने में वही महत्व था जो आज के ज़माने में सीमेंट का है। सीमेंट से बने पक्के मकान आज भी महँगे होते हैं और देहातों में इसका इस्तेमाल कम ही होता है। इसी तरह पुराने ज़माने में चूने का इस्तेमाल धनिकों की कोठियों में होता था या राजाओं के महलों में। आमजन के घर तो पत्थर-मिट्टी से ही बनते थे। चूना हर कहीं उपलब्ध नहीं होता और उस दौर में तो उसकी ढुलाई करना ही बेहद खर्चीला काम था। चूने का प्रयोग यानी मकान की पुख़्तगी की गारंटी। ज्यादा चूना यानी ज्यादा पुख़्तगी। जाहिर है ज्यादा चूना ही ही मकान की लागत भी बढ़ाता होगा। इसी परिस्थिति में चूना लगाना मुहावरा जन्मा होगा। भ्रष्टाचार हर काल में रहा है। बाद के दौर में ठेकेदार द्वारा मकान में कम चूने का इस्तेमाल करने के बावजूद मज़बूती के क़सीदे पढ़ने के मामले बढ़े होंगे। यह आज भी होता है जब कि चूने की जगह सीमेंट इस्तेमाल होता है। इसी से कहावत चल पड़ी होगी-कितने का चूना लगाया? प्रसंगवश संस्कृत के चूर्ण से ही बना है चूना जिसका अर्थ है पिसा हुआ, महीन पदार्थ। एफजे स्टैंगास के कोश में भी गच् का अर्थ भी चूने के पलस्तर वाली ज़मीन ही बताया गया है। गच शब्द का प्रयोग कई तरह से होता है। ठूँस ठूँस कर खाने, गले गले तक पेट भरने के लिए भी गच शब्द का प्रयोग होता है। गचागच यानी ऊपर तक भरा हुआ। कई जगह गच का प्रयोग ध्वनिअनुकरण की तरह भी होता है। मेरा अनुमान है कि मूलतः ध्वनि अनुकरण के आधार पर ही संस्कृत के खच् और फ़ारसी के गच् का विकास हुआ होगा। गीली सतह पर पैर या किसी ठोस वस्तु के गिरने से भी गच, खच या फच ध्वनि होती है। इससे ही बना है गचाका यानी गिरना। धोखा देने के अर्थ में गच्चा खाना मुहावरा इसी से आ रहा है। गच्चा खाना में जहाँ असावधानीवश नुकसान उठाने का भाव है, वहीं गच्चा देने में जानबूझकर नुक़सान पहुँचाने या धोखा देने का भाव है। मराठी में गच्चा शब्द की अर्थवत्ता थोड़ी और विस्तृत है। इसमें झटका या धक्का देने या खाने का भाव है। इसके अलावा इसका अर्थ खड्डा भी होता है। शरीर में चाकू या तलवार धँसने पर भी खच् या गच् ध्वनि होती है। कृ.पा. कुलकर्णी गच्चा शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की गम् या इसके वैदिकी रूप गध् से बताते हैं- गध् > गज > गच के क्रम में इसका विकास हुआ होगा। कीचड़ या चिपचिपी सतह पर कुछ गिरने की वजह से उपजी खच् या गच् ध्वनि का विकास बाद में जड़ने, बांधने या जकड़ने जैसे भावों में हुआ। गौर करें कि दलदल या कीचड़ में कोई भी वस्तु जकड़ ली जाती है और सूखने पर वह वस्तु वहीं पैबस्त हो जाती है। गौर करें कि कीचड़ भी कीच से बना है जो इसी खच्, कच्, गच् वाली शब्द शृंखला का हिस्सा है। कीचड़ से ही मनुष्य को भवन निर्माण के लिए मसाला बनाने की युक्ति सूझी होगी और इसमें चूने का इस्तेमाल होने लगा होगा।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
12 कमेंट्स:
हम तो गच्चा ही खा गये, चलो कुछ चूना लगा देते है
कुस्ती में पहलवान पिछे से टांग फंसा कर गिराते, उसे भी गच्चा देना कहा जाता है।
इस गच्चा का सम्बंध कुस्ती से क्या है?
@सुज्ञ
भाई, पोस्ट में गच्चा देने का अर्थ झटका देना, धक्का देना है। कुश्ती के संदर्भ में यह एक दांव हो गया जिसमें गिराने का भाव समा गया। ये सब अर्थ गच् का परवर्ती विकास हैं।
काफी शोधपूर्ण सामग्री है...बधाई!
लगा है 'चूना' ? जो है चका-चक !
बदल गया रंग क्यूँ यकायक ?
चमक में तेरी, छुपा है 'कीचड़',
लगा के चूना, तू है झका-झक,
मुफ़त का है माल, ख़ा 'गचागच',
है 'चूर्ण' 'कायम' करे पचा-पच.
वो आये 'गच्ची' पे नंगे पाऊँ?
बताना सच-सच !, बताना सच-सच !!
=================================
है बारहा हमने खाया 'गच्चा',
'पड़ौसी' अपना, नही है सच्चा !
गो हम थे ज़च्चा, वो अपना बच्चा,
निकल गया है मगर वो 'लुच्चा'!!
-----------------------------------
- mansoorali हाश्मी
http://aatm-manthan.com
bahoot hi gyanopayogi prasatuti.......... aabhar.
बहुत ही अच्छी जानकारी !
सुन्दर जानकारी!
regards,
गच्चा खाना होता है, चूना लगाना होता है, संबन्ध तो होना ही है।
अच्छी जानकारी दी है आपने !
हमेशा की तरह शोधपूर्ण सामग्री का संकलन किया है आपने , शब्दों पर जिस तरह से विस्तार तथा तर्कपूर्ण ढंग से विचार किया है वह काफी रुचिकर है ...!
सुंदर पोस्ट , शुभकामनायें
मुझे तो इंतज़ार रहता ही है हमेशा आपके ताज़ा आलेख का
विरहणी का प्रेम गीत
hi
Post a Comment