Friday, April 11, 2008

शोरगुल के साथ खारापन ....


फारसी के शोर-गुल शब्द का आमतौर पर कोलाहल के अर्थ में हिन्दी में भी खूब इस्तेमाल होता है। यह बड़ा अनोखा शब्द है। यह शोर+गुल से मिलकर बना है। इन दोनों ही शब्दों का अर्थ समान है यानी कोलाहल, चीख-पुकार वगैरह।
शोर शब्द बना है संस्कृत के क्षार से । क्षार रासायनिक पदार्थ होते हैं और आयर्वेद में इनका उपयोग है। कुछ क्षार जड़ी-बूटयों को जलाकर बनाए जाते हैं। इसी तरह कुछ क्षार खनिज के तौर पर प्राकृतिक रूप में भी मिलते हैं जैसे बारूद बनाने के काम आने वाला श्वेतक्षार या सफेद क्षार। फारसी में इसे कहा गया शोर:। इसका यह रूप बना क्षार से ही मगर अर्थ हो गया तेज आवाज करनेवाला। जाहिर सी बात है कि बारूद की भीषण आवाज की वजह से ही शोरे को यह अर्थ मिला। बाद में शोर: का मतलब ही हो गया चिल्लाहट या तेज आवाज। नमक के लिए भी क्षार शब्द है इसीलिए नमकीन के अर्थ में खारा शब्द ज्यादा चलता है। राख शब्द भी क्षार से ही बना है। इस तरह क्षार से शोर: और फिर शोर शब्द बन गए। इससे ही शोरगर यानी पटाखे बनाने वाला और शोर-शराबा जैसे शब्द बने।
अब आते हैं गुल पर। फारसी में गुल का अर्थ भी कोलाहल, शोर या चीख-पुकार ही है। फारसी का गुल शब्द भी संस्कृत के कल से ही बना है जिसका अर्थ होता है शब्द करना, आवाज करना। पंजाबी के की गल्ल ऐ वाली गल में भी यही कल गूंज रहा है। इससे हिन्दी में कई शब्द बने हैं जैसे कोलाहल, कलरव या कलकल यानी मन्द गति से पानी बहना। गौरतलब है कि फारसी में भी कलकल शब्द का पर्याय है गुलूल

9 कमेंट्स:

नीरज गोस्वामी said...

अजित जी
कमाल के ज्ञानी हैं आप. भाषा का ऐसा विवरण कहीं और पढने को नहीं मिलता.
नीरज

Yunus Khan said...

बताइये शोर क्षार से बना है पर होता अम्‍लीय है ।
शोर का अहसास वैसा ही है जैसा एसिडिटी का है ।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

क्या बात है ! अजित जी .
शोरगुल और खारेपन से
बनते-बिगड़ते परिवेश व संबंधों की चिंता
आज आम बात है !
बारूद के ढेर पर बैठी है दुनिया ,
यह भी एक जाना-पहचाना जुमला बन गया है.
लेकिन क़ाबिले गौर है कि क्षार में
यदि विध्वंस ख़तरा है तो
इसी शब्द को उलटकर पढ़ें तो
रक्षा का भाव जन्म लेता है !
मज़ा ये भी है कि क्षार से अगर राख बना है
तो इस शब्द का उलट खरा है.
यानी जो खरा है वह
क्षार का व्यवहार कर नहीं सकता !

मैं फिर यही कहूँगा कि
आपका यह शब्द-सफ़र
समझ का सफ़र भी है !!
आभार !
डा. चंद्रकुमार जैन

दिनेशराय द्विवेदी said...

हम तो चाहते हैं शोर तो हो गुल, संगीत बना रहे।

मीनाक्षी said...

क्षार से शोर..फिर शोरगुल... पर रोचक जानकारी पढ़ी लेकिन गुल फूल भी होता है और गायब होना भी...क्या दूसरा कोई सन्दर्भ भी है..

Sanjay Karere said...

की गल्‍ल ऐ जी तुस्‍सीं तां छाए होए हो...गल्‍ल विच कल... मजा आ गया पढ़ कर.

Asha Joglekar said...

बढिया । मीनाक्षी जी के सवाल का ुत्तर मैं बी जानना चाहूंगी ।

Baljit Basi said...

पंजाबी 'गल' हिंदी 'बात' और अंग्रेजी 'टाक' (TALK) का समानार्थी शब्द है. यह तो आम ही शब्द है. यहाँ 'बात' नहीं बोला जाता. बात का पंजाबी में मतलब लम्बी कहानी होता है. हाँ 'गल-बात' शब्द युगम जरुर बातचीत के अर्थों में इस्तेमाल होता है. मुझे हैरानी है कि मैंने खुद इस आम शब्द के बारे कबी सोचा नहीं. पर इसका सम्बन्ध संस्कृत के 'क्षार' से दूर की बात लगती है. इसका समबन्ध तो गल्ल (कंठ) या 'गल्प' से लगता है.

अजित वडनेरकर said...

बलजीत भाई,
आप इतने जल्दबाज क्यों हैं?
इतनी छोटी सी छोटी सी पोस्ट में लिखे चंद सतरे भी तसल्ली से नहीं पढ़ पाए। ज्यादातर मौकों पर यही हुआ है।
मैंने क्षार से कब गुल का संबंध जोड़ा ? बात शोरगुल शब्द युग्म के दोनों शब्दों की है। पहले शोरगुल एक साथ। फिर क्षार की बात। फिर गुल की बात।
शोर वाले गुल की व्युत्पत्ति पर बतियाते हुए हम संस्कृत के कल् तक पहुंचते हैं और फिर पंजाबी के गुल की उससे रिश्तेदारी जोड़ते हैं।
इसमें क्षार कहां से टपका रहे हैं? आपकी जल्दबाजी की वजह से अक्सर मेरे साथ अन्याय होता है।
जैजै

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