Monday, April 14, 2008

उधार लो, उद्धार करो...

ज के दौर में अगर दुनिया चल रही है तो सिर्फ एक शब्द यानी उधार के दम पर उधार एक ऐसी व्यवस्था है जिसे पुराने ज़माने में चाहे बोझ माना जाता हो मगर आज तो विश्व की अर्थव्यवस्था सिर्फ और सिर्फ इसी उधार नाम के बंदोबस्त पर टिकी है। उधार में ही सबका उद्धार छुपा है। चार्वाक की 'ऋणं कृत्वा , घृतं पिवेत्' जैसी प्रसिद्ध उक्ति में भी यही सिद्ध होता है कि उधार लो , उद्धार करो [ किसका ?]। ये अलग बात है कि उद्धार के रूप अलग अलग होते हैं। समझदारी से चुकारा करते जाने पर उधार सचमुच लेने वाले का उद्धार कर देता है मगर उधार न चुकाया जाए तो कई बार लेने वाले के साथ साथ देने वाले का भी ‘उद्धार’ हो जाता है। उधार की वसूली न होने से ही बैंक दिवालिया होते हैं । उधार न चुकाने से ही सरकारें कमज़ोर होती हैं, लोग खुदकुशी करते हैं ।
धार के मूल में जितनी अधोगति छुपी है, उसके मूल उद्धेश्य और अर्थ में दरअसल सचमुच सद्गति और उद्धार का भाव ही था। अंग्रेजी के लोन, संस्कृत के ऋण या उर्दू के कर्ज़ जैसे शब्दों के हिन्दी पर्याय उधार का जन्म सचमुच संस्कृत के उद्धार शब्द से ही हुआ है। उद्धार का अर्थ होता है उठाना, ऊपर करना, मुक्ति, बचाव, छुटकारा। उद्धार बना है संस्कृत धातु उद् से । उद् धातु एक प्रसिद्ध उपसर्ग है जो नाम, पद या शक्ति की दृष्टि से श्रेष्ठता , उच्च या अतिशय ऊंचाई वाले भाव प्रकट करने के लिए शब्दो से पहले लगाया जाता है । जैसे उद् + सह् के मेल से बना उत्साह जिसका मतलब हुआ शक्ति, प्रयत्न , ऊर्जा आदि। उद्धार के धन-सम्पत्ति से जुड़े अर्थों में पैतृक सम्पत्ति का वह हिस्सा जो सबसे बड़े पुत्र को मिलता है। अथवा युद्ध या लूट का छठा हिस्सा भी उद्धार कहलाता था जिसका हकदार राजा होता था। इसी तरह ऋण और खोई सम्पत्ति का फिर मिलना भी इसमें शामिल हैं। गौर करे कि बड़े पुत्र का हिस्सा और राजा का अंश भी किसी न किसी रूप में उच्चता, वरिष्ठता या शक्ति की ओर ही इशारा कर रहे हैं।
द्धार उद्+हृ के मेल से बना है । हृ धातु मे भी ऊपर उठाना, ले जाना, बचाना , मुक्त करना जैसे भाव शामिल हैं। स्पष्ट है कि धन की कमी से मनुश्य का जीवनस्तर गिरता है । सो ऋण ही इस अवस्था से उबारने का एक महत्वपूर्ण जरिया अनादि काल से रहा है। इसीलिए आर्थिक संकट से उबारने की व्यवस्था के रूप में उद्धार शब्द का चलन हुआ जो पाकृत में उधार के रूप में ढल गया ।
माज के विकास के साथ शब्दों के अर्थ भी बदलते है जिनमें अर्थ की उन्नति भी होती है तो अवनति भी । उद्धार शब्द के साथ भी यही हुआ है । बोलचाल की हिन्दी में उद्धार शब्द की अवनति हुई है । आज कोई काम अगर बिगड़ जाए तो कहा जाता है – इसका उद्धार कर दिया । किसी नालायक के सिपुर्द अगर कोई महत्वपूर्ण कार्य सौंपा जाने वाला हो तो सावधान करने के लिए भी यही कहा जाता है कि वह तो उसका उद्धार कर देगा यानी बर्बाद कर देगा। कुल मिलाकर उद्धार शब्द की भी हिन्दी हो चुकी है। इस शब्द की अवनति के पीछे शायद एक बड़ी वजह यह भी रही है कि उद्धार करने वालों ने अक्सर अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन सही ढंग से नहीं किया इसलिए उबारने के प्यारे से भाव वाले इस शब्द का उद्धार हो गया ।

9 कमेंट्स:

Gyan Dutt Pandey said...

उधार, उद्धार, अधोगति और ऊर्ध्वगति - एक ही पासे के चार पहलू। किसी का परित्याग करने की जरूरत नहीं। वाह!

दिनेशराय द्विवेदी said...

उद्धार=किसी भी संकट से उबारना
उधार=संकट से उबारने के लिए दी गई वस्तु या सहायता जो किसी वृद्धि के साथ या उस के बिना लौटानी भी है और जो संकट बढ़ाती भी है।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

अजित जी ,
उद्धार और उधार के अभिन्न संबंध को जानना
आज की नक़द उपलब्धि रही.

सरकारें उदार होकर उधार देती हैं
और जब उधर से ख़तरा महसूस होता है
तो उधार माफ़ कर देती हैं .
क्या पता जनता उद्धार कर दे !

वैसे आजकल बड़ा कर्ज़दार होना
बड़ी हैसियत का सुबूत भी माना जाता है !
देखिए न -
कर्ज़दार की नाक देश में सोने मढी हुई है
कितनी मालाएँ पहनाओ फिर भी चढ़ी हुई हैं !

सच यह है कि आज आपकी यह पोस्ट
अद्वितीय और अनुपम है.
शब्द के मर्म और धर्म दोनो को
रेखांकित करने की पहल .
आभार
डा.चंद्रकुमार जैन

mamta said...

सही शीर्षक है।
और सही है आजकल उधार से उद्धार हो रहा है।

Sanjeet Tripathi said...

सही!!
उधार ले तो लें मिलेंगा किधर कूं ;)

Arvind Mishra said...

आपने कई उद्धरणों के जरिये सचमुच साबित कर दिया कि उधार दरअसल उद्धार ही है.

Anonymous said...

उधार से उद्धार तक का ये सफऱ अच्छा लगा...वैसे भी शब्दों के दिलचस्प सफऱ में आप यकीन रखते हैं...अच्छा लगा.

Asha Joglekar said...

उधार से उध्दार तक ब़ा अछचा सफर रहा । क्या उदार का भी इनसे रिश्ता है ?

Ghost Buster said...

बढ़िया रहा. अन्तिम पैराग्राफ में उद्धार शब्द के उद्धार ने अच्छा गुदगुदाया.

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