Wednesday, April 23, 2008

साधु-साधु साहूकार...

न साधु का फेर ,न साहूकार का चक्कर

भारतीय परंपरा में अक्सर प्रशंसा के अर्थ में साधु-साधु शब्द पढ़ने को मिलता है। अब तो प्रशंसा के प्रसंग को अतिनाटकीय बनाने के लिए ही यह शब्द युग्म इस्तेमाल किया जाता है । साधुवाद शब्द भी इससे ही बना है जिसमें शाबाश का भाव , धन्य की ध्वनि उजागर होती है। ब्लागजगत में भी समीर लाल ने साधुवाद का दौर चलाए रखा।
साधु शब्द बना है साध् से जिसमें किसी काम को पूरा करने , समाप्त करने , जीतने , सिद्ध करने का भाव शामिल है। उपलब्ध करना , हासिल करना आदि अर्थ भी इसमें समाहित हैं। अब कार्य को करने के लिए किसी यंत्र या उपकरण की भी ज़रूरत होती है सो साधन शब्द का अभिप्राय भी समझ में आ रहा है। स्पष्ट है कि किसी कार्य की पूर्णता पर होनी वाली सराहना के लिए साधु शब्द भी चल पड़ा। यूं साधु शब्द का सबसे प्रमुख अर्थ हिन्दी में संत-ऋषि-मुनि ही माना जाता है। साध् शब्द में निहित सकारात्मक कर्मों के भाव ही साधु में समा गए हैं जिससे साधु शब्द का अर्थ हुआ भले कर्म करने वाला, दयालु, कृपालु, उत्तम, श्रेष्ठ , गुणी , पुण्यात्मा आदि।
गर साधु का एक अन्य अर्थ भी शब्दकोश बताते हैं – वह है महाजन, सूदखोर अथवा सौदागर। साधारणतः विपरीतार्थी समझे जाने वाले इस शब्द के मूल में देखें तो प्राचीनकाल में कुलीनों-धनिकों को भी दयालु, कृपालु , श्रेष्ठ जैसे संबोधन ही मिले हुए थे। श्रेष्ठ से ही सेठ जैसा शब्द भी बना है । तब साधु शब्द से ही अगर साहू शब्द भी चल पड़ा हो तो कोई आश्चर्य नहीं। भाषाविज्ञानी तो साहूकार शब्द के मूल में साधु शब्द ही देखते हैं। भारतीय समाज में यूं तो साहूकार शब्द का नकारात्मक प्रभाव है मगर अपने मूल अर्थ में यह साधु+कार्य से प्रेरित है। साधुता के कार्य करने वाला कुलीन ।
से यूं समझें कि प्रायः सभी नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र धनी-कुलीनों के जो लक्षण बताते हैं उनमें परोपकार, दयालुता और उदारता जैसे गुण ही प्रमुख रहे हैं। यही कुलीनों के साधुकार्य रहे हैं। कालांतर में कलयुगी लक्षणों के साथ मूल साधु कर्म पीछे छूट गए और साहूकार का असली चेहरा उभरा जिसमें न तो दया नज़र आती है न ही परोपकार। साहूकार के चक्कर में पड़े व्यक्ति के मुंह से साधु-साधु नहीं बल्कि त्राहिमाम् त्राहिमाम् ही निकलता है। वैसे देखा जाए तो आज के दौर में तो न साधु का फेर सही न साहूकार का चक्कर। साह शब्द भी इससे ही जन्मा है और साहू भी। मूलतः ये सभी शब्द व्यापार, व्यवसाय और मुद्रा से जुड़े हुए हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में साहू और साह व्यापारी जातियों के उपनामों के रूप में भी प्रचलित हैं।

आपकी चिट्ठियां

सफर की पिछली चार कड़ियों पर सर्वश्रीसंजय, दिनेशराय द्विवेदी, ज्ञानदत्त पांडेय, डॉ अमर कुमार, संजीत त्रिपाठी, बिल्ला, मीनाक्षी, डॉ चंद्रकुमार जैन,अनिताकुमार, लावण्या शाह, ममता, घोस्टबस्टर, अरविंद मिश्रा, आशा जोगलेकर ,अरुण आदित्य, अल्पना वर्मा, काकेश , अशोक पांडे, समीर लाल, कंचनसिंह चौहान, अतुल, अनूप शुक्ल, मनीष , डॉ भावना, अखिल मित्तल, देबप्रकाश चौधरी, माला तैलंग, मुनीष , जोशिम, यूनुस, अफलातून,विजयशंकर, विमल वर्मा, उन्मुक्त, पारुल और पंकज अवधिया की टिप्पणियां हमें मिलीं। आप सबका आभार । बकलमखुद भी जारी रहेगा और शब्दों का सफर भी।

@अफ़लातून-
बहुत-बहुत शुक्रिया साहेब। एकदम सही कहा आपने नीड् भी डीन् श्रंखला का ही शब्द है। इसे शामिल करना भूल गया था। नि में आश्रय या निवास का भाव शामिल है और डीन् में ऊंचाई, उड़ान का । सो अर्थ हुआ पक्षी का घोंसला।

@दिनेशराय द्विवेदी-
हड़ौती में प्रचलित डियां शब्द का उल्लेख आपने आंखों के अर्थ में किया है । हालांकि इसमें उड़ने-उड़ाने से संबद्ध धातु डीन् तो नहीं है मगर यदि आंखड़ियां को देखें और आदि स्वर-वर्ण लोप की कल्पना करें तो डियां ही बचता है। दूसरी कल्पना यह आती है कि दृष्टि के दिट्ठी, दीठ, दीठी जैसे रूप प्रचलित हैं। आंख के रूप में डियां भी इसी क्रम में बना हो !

@लावण्या, अनिताकुमार, मीनाक्षी
आप तीनों का शुक्रिया कि मुझे बकलमखुद के लिए न्योता दिया। मैं ज़रूर शब्दों के सफर की इस मुहिम में शामिल होऊंगा । मगर फिलहाल तो कारवा यूं ही आगे बढ़ने देते हैं। अभी कई साथी हैं । हो सकता है मैं बीच में ही प्रकट हो जाऊं वर्ना सबसे आखिर में तो तय है।

9 कमेंट्स:

Neeraj Rohilla said...

साधु के बारे में इतनी जानकारी के लिये आपको साधुवाद :-)

अनूप शुक्ल said...

साधुवाद!

जेपी नारायण said...

साधु-साधु। पठनीय और शोधपरक। बधाई

मीनाक्षी said...

साधु साधु ! आपके साधुकार्य इसी तरह होते रहे. शब्दों का सफ़र पड़ाव दर पड़ाव बढ़ते रहें, यही कामना है. ढेरों शुभकामनाएँ

Sanjeet Tripathi said...

साधु-साधु!!
साधु से तात्पर्य महाजन अथवा सूदखोर भी हो सकता है इसकी तो कल्पना ही नही थी!!
शुक्रिया!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

सफ़र का सधा हुआ ,समर्थ पड़ाव !
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अजित जी,
साधु -साहूकारी और साहूकारी-साधुता
पर साधु चिंतन आज तिरोहित
जान पड़ता है ! बलिहारी है समय की !!
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साधु ऐसा हो तो समझो साधु-साधु -
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सिंह के समान पराक्रमी, गज के समान स्वाभिमानी.
वृषभ के समान भद्र, मृग के समान सरल.
पशु के समान निरीह, वायु के समान निस्संग.
सूर्य के समान तेजस्वी, सिंधु के समान गंभीर.
पर्वत के समान निश्चल, चन्द्र के समान शीतल.
मणि के समान कांतिमान, पृथ्वी के समान सहिष्णु.
सर्प के समान अनियत आश्रयी और आकाश के समान निरालंब.
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वैसे सफ़र में तकनीकी गड़बड़ी के बाद भी
यह साधुता बनी रही !
साधुवाद !!!
आपका
डा.चंद्रकुमार जैन

Abhishek Ojha said...

साधु-साधु!
आपका ये शोधपरक कार्य चलता रहे, आप ऐसी ही ज्ञानवर्धक बातें हमें मिलती रहे और हम आपको साधुवाद देते रहे.

mamta said...

आज तो कहना पड़ेगा -- साधुवाद!!
साधु का एक अन्य अर्थ भी शब्दकोश बताते हैं – वह है महाजन, सूदखोर अथवा सौदागर।
ये तो पहली बार जाना।

Arvind Mishra said...

क्या सुधी शब्द की भी समान व्युत्पत्ति है ?

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