मुहावरों की इसी कतार में है धेले भर का काम या धेले भर का आदमी। किसी व्यक्ति का क्षुद्रत्व या उसकी हैसियत उजागर करने के लिए टके का आदमी की तरह ही धेले भर का आदमी भी तौला जाता है। यहां धेला का उल्लेख भी मुद्रा के तौर पर हो रहा है। प्राचीन मुद्रा रही है। मुग़लकाल से लेकर अंग्रेजी राज में भी इसका चलन रहा। दरअसल धेला संक्षिप्त रूप है। सम्पूर्ण रूप में यह अधेला adhela है। अधेला का अर्थ हुआ आधा। यह बना है अर्ध में इल प्रत्यय लगने से। एक पैसे का आधा मूल्य होने की वजह से अधेला को यह नाम मिला। दो अधेला मिलकर एक पैसा बनता था। मुगलकाल में दाम दस ग्राम की ताम्बे की मुद्रा थी। चालीस दाम से रुपया बनता था। पैसे के स्थान पर तब दाम का चलन था। अर्थात तब अधेला पेसे की जगह दाम के आधे मूल्य की मुद्रा को कहते थे। एलायड चैम्बर्स डिक्शनरी के मुगल ग्लॉसरी खंड में अधेला का अर्थ मोहर का आधा बताया गया है जबकि मोहर स्वर्ण मुद्रा थी। अब न आना बचा न पाई मगर कंजूस या टेंट ढीली न करने वाले व्यक्ति के संदर्भ में आना-पाई का हिसाब करना मुहावरा भी प्रचलित है। आना पाई का किसी ज़माने की सबसे छोटी मुद्राओं में शुमार था। भाव यही है कि तुच्छ धनराशि का भी हिसाब-किताब रखना। जाहिर है कंजूसी इसी को कहते हैं।
पाई और पैसा paisa शब्दों का मूल एक ही हैं। दोनों शब्द संस्कृत की पद् धातु से जन्मे हैं जिसमें चतुर्थांश, अध्याय, हिस्सा अथवा छोटी मुद्रा का भाव हैं। इससे बने पद्म में एक बहुत बड़ी संख्या का भाव है। आप्टे कोश के अनुसार एक के आगे पंद्रह शून्य जितनी। उसे पद्म कहते हैं। यह संख्या हजारों खरब होती है। भाषा विज्ञानी पैसा की दो व्युत्पत्तियां बताते हैं। पहली के मुताबिक यह पद्म+अंश बना है। दूसरी व्युत्पत्ति के अनुसार यह पाद+इका+सदृशकः से है। मेरी निगाह में पहली व्युत्पत्ति ज्यादा सही है क्योंकि इसमें विराट संख्या के अंश की बात कही जा रही है जो पैसा है। पाई भी इससे ही बना है जिसे रुपए की सबसे छोटी इकाई माना जाता है और पैसे के समकक्ष रखा जाता है। भारत में रूपए का मूल्य किसी ज़माने में चालीस पैसे था, फिर चौंसठ पैसे हुआ । दाशमिक प्रणाली लागू होने के बाद सौ पैसों से एक रूपया बना। ऐसा नहीं कि अधेला ही सबसे छोटी मुद्रा थी। दाम का चौथाई हिस्सा पावला होता था । गौर करें तौल और मात्रा की इकाई आज भी पाव है । पद में समाया चौथाई भाव इसमें स्पष्ट है। पावला से भी छोटी मुद्रा थी दमड़ी जो पाव का भी आधा और दाम अथवा रुपए का 1/ 8 हिस्सा कहलाती थी।
पैसा भी ऐसी मुद्रा है जिसका प्रसार पश्चिमी देशों में हुआ। मुगलकाल में अफगानिस्तान में भी पैसा चलता रहा। नेपाल और पाकिस्तान में आज भी चल रहा है। बांग्लादेश में भी इसे पोइशा कहा जाता है। ईरान के कुछ हिस्सों में ब्रिटिश काल में पैसा चलता रहा। कुछ अरब देशों में मसलन मस्कट, बहरीन, कतर और ओमान में भी पैसा सरकारी मुद्रा के तौर पर डटा हुआ है
ओमानी मुद्रा 100 बैसा का नोटभारतीय पैसा की तरह ही ओमान की सबसे छोटी मुद्रा भी बैसा ही है जिसका मौद्रिक मूल्य दो भारतीय पैसों के बराबर होता है। गौरतलब है कि एक ओमानी रियाल करीब बीस रूपए का होता है ।
अलबत्ता वहां इसका नाम बैसा baisa या बैजा baiza हो गया। भारतीय पैसा की तरह ही ओमान की सबसे छोटी मुद्रा भी बैसा ही है जिसका मौद्रिक मूल्य दो भारतीय पैसों के बराबर होता है। गौरतलब है कि एक ओमानी रियाल करीब बीस रूपए का होता है । एक रियाल rial एक हजार बैसा होते है। ओमान में सौ , दो सौ बैसा के नोट चलते हैं जिनकी हैसियत भारतीय मुद्रा में दो सौ पैसे अर्थात दो रूपए के बराबर होती है। औमान में 1940 तक रूपया और आना भी चलता रहा ।अरब देशों में रियाल प्रमुख मुद्रा है । दिलचस्प बात यह कि यहां की सबसे बड़ी और सबसे छोटी दोनो ही मुद्राएं विदेशी मूल की हैं। बैसा के भारतीय मूल की बात हो चुकी है। रियाल मूल रूप से स्पेन का है। पुर्तगालियों ने जब पांचसौ साल पहले खाड़ी देशों में अपना प्रभुत्व जमाया तब स्पेन की शाही मुद्रा रियल real का वहां आगमन हुआ। रियल का अर्थ होता है खरा, सच्चा, सीधा, प्रामाणिक आदि। ये तमाम अर्थ इसे मिलते हैं इंडो-यूरोपीय धातु rei से। संस्कृत में इसके लिए ऋ धातु है जिसमें उचित, सच्चा, ईमानदार, प्रतिष्ठित जैसे भाव जुड़ते हैं जो शासक के प्रमुख गुण माने जाते हैं। अंग्रेजी का रॉय, रॉयल, वायसरॉय शब्द भी इसी मूल का है। संस्कृत के राजा > राया > राय > राई जैसे सभी शब्दों की इनसे समानता पर गौर करें। भी। रियाल में राजसी मुद्रा की बात अंतर्निहित है। इसीलिए कहते हैं दुनिया गोल, पैसा गोल। गोल गोल ताम्बे के पैसे की रिश्तेदारी स्पेनी रियल और अरबी रियाल दोनों से जुड़ रही है।
आपकी चिट्ठी
सफर की पिछली कड़ी मिस्री पेपर और बाइबल(पर्चा-2) में ज्ञानदत्त पांडे पूछते हैं कि पेपर से कागज कैसे रूपान्तरित हुआ?
मिठास का रिश्ता !
पेपर और कागज़ में जन्म का कोई रिश्ता नहीं ज्ञानदा अलबत्ता स्वाद का ज़रूर है। काग़ज़ चीनी मूल का है और पेपर मिस्री मूल का। तो जाहिर है इसमें चीनी और मिस्री की मिठास होगी। अपन ने कभी काग़ज़ खाकर नहीं देखा। जिन्हें बचपन में इसे खाने की आदत रही होगी वे बता सकते हैं। वैसे काग़ज़ के चीनी मूल की कथा पिछली कड़ी अरब की रद्दी, चीन का काग़ज़ [पर्चा-1]में बताई जा चुकी है।
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10 कमेंट्स:
आपको कई बार पढ़ा, चमत्कारिक लगता है
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---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
मैं धेले भर का आदमी आपके लेखो पर अशरफिया लुटाना चाहता हूँ पर पैसे पैसे को मोहताज़ हो जाऊंगा . अरे मैं तो मुहावरों मे बात करने लगा .
बहुत पहले पद्म ,शंख ,महाशंख के बारे मे पढ़ा था . अब इनकी जगह शायद मल्टी बिलियन जैसे शब्दों ने ले ली .
रोटी गोल , बिंदी गोल ,बडनेकर सहाब का पैसा गोल मटोल
बहुत लाजवाब जानकारी.
रामराम.
रियल और रायल पोस्ट !
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शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
शब्दों के रिश्ते आप ने खूब तलाशे हैं!
क्या बात है..ज्ञान बढ़ाते ही चलते रहिये. सदियाँ आभारी रहेंगी आपकी.
बैजा और बेजाँ में भी रिश्ता निकल आए तो कोई बेजाँ नहीं :)
हमारा ज्ञान बढता ही जा रहा है !
बाद में हम इसी को बाँटने लगें तो को आश्चर्य नहीं !
बहुत लाजवाब जानकारी.
सोलह आने का एक रूपया, चवन्नी, अठन्नी... मतलब आना भी बहुत प्रसिद्द था. तभी तो आज भी इस्तेमाल होता है ! इंडोनेशिया, श्रीलंका और मालदीव, नेपाल में भी तो रुपया ही (थोड़ा बदला हुआ) होता है.
बहुत खूब.
हम तो ये जानते हैं कि शब्दों के मामले में सिक्का, अशर्फी, मोहर, पैसा सब आपका चलता है। :-)
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