Thursday, January 29, 2009
जड़ में मट्ठा डालिये…[खानपान-5]
कि सी भी समस्या का आधा-अधूरा समाधान नहीं बल्कि उसका समूल नाश होना चाहिए। इस संदर्भ में जड़ों में मट्ठा डालने वाला मुहावरा भी प्रचलित है। मट्ठा यूं तो दही से बना स्वादिष्ट पेय होता है पर यह इतना प्रभावी है कि किसी वनस्पति की जड़ों में इसे पानी की जगह डाला जाए तो वह समूल नष्ट हो जाती है। कूटनीति के जनक कौटिल्य अर्थात चाणक्य ने भी मट्ठे के इसी गुण को जानकर राज्यनीति में इसका प्रयोग किया। यूं मट्ठा और दही में गुण संबंधी कोई फर्क नहीं है। दही में पानी मिलाकर बिलोने से मट्ठा बन जाता है। ताज़े दही से बना मट्ठा बेहद पाचक होता है और पेट संबंधी समस्याओं से निज़ात के लिए खाली पेट सैंधा नमक, जीरा और कालीमिर्च के चूर्ण के साथ मट्ठा पीने की सलाह दी जाती है। कहा जा सकता है कि पेट की समस्याओं को यह जड़ से मिटा सकता है। मट्ठा बना है संस्कृत की मथ् या मन्थ धातु से जिसमें आघात करना, हिलाना, घुमाना, रगड़ना, मिश्रण करना जैसे अर्थ हैं। संस्कृत का मन्थनः या हिन्दी का मन्थन/मंथन शब्द इससे ही बना जिसमें यही सारे भाव समाहित हैं। मन्थ् से बने मन्थर शब्द का अर्थ होता है धीमा, मन्द, विलंबित, टेढ़ा, वक्र, जड़, मूर्ख आदि। कैकेयी की दासी कुब्जा kubja का नाम कूबड़ की वजह से ही पड़ा था। उसका दूसरा नाम था मन्थरा manthara जो इसमें शामिल वक्रता या टेढ़ेपन के भाव के चलते ही उसे मिला होगा। क्योंकि उसे मंदबुद्धि या मूर्ख तो नहीं कहा जा सकता। मन्थ् का एक अन्य अर्थ है क्षुब्ध करना। अगर दही बिलोने की प्रक्रिया देखें तो मथानी की उमड़-घुमड़ से तरल में जिस तरह का झाग उत्पन्न होता है, जैसी ध्वनि पैदा होती है उससे क्षुब्ध करने का भाव भी स्पष्ट हो रहा है। मन्थन का अर्थ हिन्दी में आम तौर पर विचार-विमर्श होता है। भाव वही है कि किसी मुद्दे पर समग्रता के साथ सोच-विचार, तर्क-वितर्क करना ताकि निष्कर्ष रूपी रत्न प्राप्त हो सकें। मन्थन की क्रिया से कुछ न कुछ निकलता ही है। सागर मन्थन से चौदह रत्न निकले थे। दही बिलोने से घी मिलता है। इसी तरह वैचारिक मन्थन से सत्य की प्राप्ति होती है। मन्थन करने का उपकरण मन्थनी कहलाता है जिससे मथानी शब्द बना है। मन्थ/मथ का अपभ्रंश हुआ मट्ठ जिससे बना मट्ठा या मठा। मंथन या मथने के लिए हिन्दी में बिलोना शब्द भी प्रचलित है। यह बना है विलोडन/ विलोडनीयं शब्द से। विलोडन > विलोअन > बिलोना। इसके मूल में हैं लुट/लुठ/लुड जैसी धातुएं जिनमें क्षुब्ध करने-होने, घुमाने-घूमने, हरकत करने जैसे भाव हैं। हिन्दी में लुढ़कना, लोट-पोट होना, लोटना जैसे शब्द इन्ही धातुओं से निकले हैं। मराठी में लोटना के लिए लोळ शब्द है। लुड् में आ उपसर्ग लगने से आलोडन शब्द भी बनता है जिसका अर्थ भी मंथन ही है। मथानी की तर्ज पर बिलोने की क्रिया कराने वाला उपकरण बिलोनी कहलाता है। ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 4:00 AM
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17 कमेंट्स:
दही बिलोने से घी मिलता है। इसी तरह वैचारिक मन्थन से सत्य की प्राप्ति होती है।
--जय हो स्वामी अजित जी की. ज्ञान प्राप्त कर लिया.
सुन्दर! लेख और फोटो दोनों!
मेरे यहाँ रोज मट्ठा चलता है . लेकिन जाना आज , मट्ठे को तो जड़ो मे डालने का मुहावरा सुना था अब प्रयोग भी करना चाहता हूँ .
दही बिलोने से घी मिलता है। इसी तरह वैचारिक मन्थन से सत्य की प्राप्ति होती है। यह वाक्य प्रेरणा देगा मुझे .
मटकी में बड़ी बिलौनी से दही बिलौना एक बहुत ही अच्छी कसरत है जिस से न केवल हाथों की मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं। पेट की चर्बी कम होती है कमर का घेरा कम रहता है। यही बिलौने की क्रिया महिलाओं के सौन्दर्य और शक्ति दोनों को सहेज कर रखती थी।
अब शायद जिम में उसी की प्रतिकृति का कोई टूल कसरत के लिये बनाए जाते हैं।
वाकई बहुत ही ज्ञानदायक आलेख. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
धीरू सिंह जी फ़ौरन किसी नेता को पकड कर ट्राई करे , लेकिन अब ये कामगर नही रहा जैसे मच्छरो के लिये डी डी टी :)
मंथर....मंथरा !
क्या बात है...समझे अब हम !!
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लस्सी के बाद मट्ठा !
ग्रीष्म ऋतु से राहत और
तरावट की अग्रिम तैयारी के
संकेत भी मिल गए !!
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आभार अजित जी
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
मज़ेदार मट्ठे के रायते वाली पोस्ट !
आपके लेख को मन्थर गतिसे पढ़ने पर ही मजा है! :-)
ये मुहावरा तो मैंने पहली बार सुना.
बहुत ही ज्ञान वर्धक लेख है...........मट्ठा की जानकारी से ज्ञात हुवा की हम कितनी अच्छी चीज पी रहे हैं
मथ के मट्ठा बना, मंथर से मंथरा !
ज़रा-सा व्यस्त था वापस आया तो इतनी रोचक पोस्ट पढ़ने को मिली, शुक्रिया!
हमेशा की तरह ज्ञान वर्धन करता हुआ लेख ।
लेकिन यह भी बताइएगा कि 'मन्थन' की प्राप्ति क्या है-मट्ठा या मक्खन?
बहुत बढिया रहा यहाँ
"मट्ठा आख्यान "
सही कहा.........मंथन से ही रत्न प्राप्ति हो सकती है,चाह वह विचार रूपी रत्न हो या पदार्थ रूपी रत्न.
अतिसुन्दर विवेचना हेतु साधुवाद......
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