हिन्दी-उर्दू के मोहर/मुहर शब्द का रिश्ता फारसी के मुह्र शब्द से जोड़ा जाता है। इसकी उत्पत्ति हुई है प्राचीन ईरानी अर्थात अवेस्ता के मुध्र शब्द से जिसमें से द की ध्वनि का लोप होने से बचा रह गया ह और इस तरह बना मुह्र जिसका हिन्दी उर्दू रूप होता है मोहर या मुहर। अवेस्ता के मुध्र की संस्कृत के मुद्र/मुद्रा से समानता गौरतलब है। संस्कृत में सिक्के के लिए मुद्रा शब्द का खूब इस्तेमाल होता है। आज भी आर्थिक शब्दावली में यह लोकप्रिय है और मुद्रास्फीति (मुद्रा-प्रसार या मनी इन्फ्लेशन) के रूप में आए दिन इसका प्रयोग सामने आता है। मुहर के पीछे यही मुद्रा शब्द छुपा है। मुद्रा का अर्थ है छापना, चिह्न अंकित करना आदि। ऐसी अंगूठी जिस पर चिह्न अंकित हो मुद्रिका कहलाती थी। प्राचीनकाल में प्रभावशाली व्यक्ति अपने निर्देशों का पालन कराने के लिए आदेशपत्र के नीचे दस्तखत की जगह पर अंगूठी अर्थात मुद्रिका का निशान लगाते थे। श्रीमान हुक्मरान अंगूठीछाप थे और श्रीहीन हुकुम बजानेवाले थेअंगूठाछाप!!
मुद्राका जन्म मुद् धातु से बताया गया है जिसका अर्थ है भाव मगर मूलतः हर्ष, प्रसन्नता, संतोष आदि ही इसके दायरे में आते हैं। मुद्रा का एक अर्थ हाव-भाव का प्रकटीकरण भी है जो इसी कड़ी का हिस्सा है। इन्हीं हाव-भाव का पत्थरों पर मानवाकृतियों में उत्कीर्णन मुद्रा कहलाया। नाथपंथी-तांत्रिक शब्दावली में भी मुद्रा शब्द का महत्व है जिनका संबंध अंगुलियों के विशिष्ट आध्यात्मिक संकेतों से है। इसी वजह से मुद्रा का एक अर्थ रहस्य भी है। नृत्य में अंगुलियों और हाथों की मुद्राओं में इन्हें बखूबी समझा जा सकता है। गौरतलब है कि नृत्य अपने प्राचीन रूप में ईश्वर आराधना की शैली ही रही है। बतौर मुहर, इन तमाम भावार्थों की व्याख्या यही है कि शासकीय या अन्य सांस्थानिक दस्तावेजों पर अंकित आधिकारिक-प्रामाणिक निशान या चिह्न को ही मुद्रा कहते हैं।
मुद्रा अथवा मुहर की एक अन्य व्युत्पत्ति भी बताई जाती है। पाश्चात्य पुरातत्विदों और भाषाशास्त्रियों के मुताबिक पत्थरों पर अब तक जो सबसे प्राचीन अंकन मिला है, वह सुमेरी सभ्यता (प्राचीन इराक में दजला फरात के दोआब में पनपी ईसा से
प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता की एक मुद्रा
भी आठ से दस सदी पूर्व की सभ्यता) का है। दरअसल अंकन विद्या का ज्ञान सुमेरियों ने ही विश्व को दिया। राजकीय चिह्न को उत्कीर्ण करने के लिए प्राचीन सुमेरी चित्रलिपि में मुसुरू शब्द पढ़ा गया है। सुमेरी चित्रलिपि कीलाक्षर लिपि कहलाती है जो पत्थरों पर उत्कीर्ण की जाती थी। मुसुरू शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है मु अर्थात नाम, परिचय तथा सर यानी लिखना। जाहिर है तात्पर्य पत्थरों पर विरुदावली के बखान से ही है जो प्राचीनकाल से लेकर अब तक सभी प्रभावशाली हस्तियों का प्रमुख शग़ल रहा है। इसी मुसुरू ने प्राचीन ईरानी में मुध्र का रूप लिया जो संस्कृत में मुद्रा के रूप में दाखिल हुआ। रूपए-पैसे के लिए भी मुद्रा शब्द का प्रयोग इसी वजह से हुआ क्योंकि सिक्कों पर शासकीय चिह्न ही अंकित रहता है जो मुद्रा कहलाती है। चेहरे के हाव-भाव के लिए मुखमुद्रा जैसा शब्द खूब चलता है।मुद्रा का परिचय चिह्न और अंकन के रूप व्यापक प्रयोग होता है। रूपए-पैसे, करंसी के तौर पर तो मुद्रा शब्द का प्रयोग होता ही है, छपाई के लिए इससे ही बना मुद्रण शब्द प्रचलित है। छापने वाले के लिए मुद्रक शब्द भी बना लिया गया। मुद्रणालय, मुद्रांकन, मौद्रिक, मुद्रांकित इसी कड़ी के अन्य शब्द हैं जो इस्तेमाल किए जा रहे हैं। मोहर का प्रयोग भी अब शासकीय या संस्थागत सील, ठप्पा, छापा, चिह्न, ही ज्यादा प्रचलित है। चिह्न के तौर पर होता है। वस्तु या व्यक्ति पर किसी के प्रभाव या छाप का उल्लेख करने के लिए भी मोहर लगना जैसे वाक्य का मुहावरेदार प्रयोग किया जाता है। मोहर का ठप्पा इतना प्रभावकारी था की लोगों ने पहचान चिह्न से भी ऊपर व्यक्तिनाम के तौर पर भी उसका इस्तेमाल शुरू कर दिया और मोहर बन गई मोहरसिंह।
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16 कमेंट्स:
क्या बात है जी माल के मुकद्दमे एक सिरे निपटाते जा रहे हो ! अच्छा लगा !
मोह सारा हर लिया
मोहर पिया
तभी तो मंदी के घर गया
वहां जाकर घिर उर गया।
इसीलिए तो गये साल में
चारों ओर मंदी पसर गया
मोहर मो हर मोह हरा
पिया पिया पिया जिया।
कौडी ,आना , अशर्फी मुद्रा का सफर पढ़ रहा हूँ . मुद्रा पर आपकी मोहर लगी हुई जान पड़ती है
लाजवाब. जानकारी परक श्रंखला मे घणा आनन्द आ रहा है.
रामराम.
आप 'सिक्का' पर श्रृंखला निरन्तर किए हुए हैं तो एक सूचना का उपयोग कहीं न कहीं कर लीजिएगा ।
मालवा में जब कोई, किसी को खूब भली-बुरी कहता है (या कि गालियां देता है) तो कहा जाता है - 'उसने फलां-फलां को खूब सिक्के सुनाए ।'
शायद, 'भली-बुरी' (या कि गालियां) जिस अन्दाज में कही जाती हैं, वह बडा 'खनकदार' होता है ।
हमेशा कि ही तरह उपयोगी.. मै तो इस पूरी श्रृखला के प्रिन्ट ले अपने सिक्का संग्रह के साथ रखने वाला हूँ..
आभार
श्रंखला बहुत रोचक है. कौडी, दमड़ी, रुपया, अशर्फी सब देखा मगर सिक्के का उद्गम या तो मुझसे या आपसे छूट गया है. कृपया उसके बारे में विस्तार से बताएं. इस सन्दर्भ में यह बताना भी ज़रूरी है की अंग्रेजी कैश का उद्गम भी भारतीय ही है.
बहुत अच्छी जानकारी मिली ............काफ़ी कुछ आपने बताया मुद्रा के बारे में....आपका बहुत बहुत धन्यवाद
@रंजन
आपकी तरह किसी वक्त मुझे सिक्कों का शौक था मगर उसे कभी पूरा नहीं कर पाया। एक उम्र के बाद किताबों से दोस्ती होती चली गई। पुस्तकों का संग्राहक हूं अब तो। यह श्रंखला पसंद आ रही है इसका शुक्रिया। यहां रोजमर्रा के उन सभी शब्दों के बारे में जानकारियां जुटाने का प्रयास चलता रहेगा जिन्होने अन्य भाषा-परिवारों से आकर हिन्दी को समृद्ध किया है।
@विष्णु बैरागी
@स्मार्ट इंडियन
मालवी कहावत में सिक्के की खनक सुनवाने का शुक्रिया भैया। सिक्के पर लिखा जा चुका है। सफर की पहली कड़ी में। यह करीब साल भर पहले लिखी गई थी। मगर इसे फिर संशोधित इसी श्रंखला में शामिल करूंगा। अनुराग भाई कैश के भारतीय उद्गम के बारे में भी लिख चुका हूं सफर में। मगर निश्चिंत रहे, इस श्रंखला में भी उसका उल्लेख अवश्य होगा। सफर में बने रहें। शुक्रिया...
bhai vaah yahan hai asli sikko ki khanak...
अँगूठाछापों की अँगूठीछाप का सफर रोचक एवं ज्ञान वर्धक है। कभी काषार्पण और निष्क के उद्भव और विकास से भी अवगत करानें की कृपा करें।
आपका शुक्रिया. हमारा भी कुछ आप जैसा ही विचार था, बस ब्लॉग की दुनिया में नया होने के कारण ब्लॉग सम्बन्धी कुछ परम्पराओं का पालन नहीं कर पाते हैं. आप सबकी सलाह, विचार का हमेशा स्वागत है.
बहुत ही अच्छी जानकारी है.
बहुत जानकारी बढाई है आपने हमारी मुद्रा जगत को खूब समेटा है अजित भाई -
शानदार
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