Tuesday, April 14, 2009

रुखे-रोशन का रोज़नामचा…[रुख-1]

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रू प का रिश्ता हमेशा से चमक से रहा है। आमतौर पर रूप में चेहरा या मुख ही पहचाना जाता है मगर रूप शब्द की अर्थवत्ता व्यापक है। संस्कृत की रुप्य धातु से बना है रूप जिसका अर्थ होता है चमक, चेहरा, चांदी। सिक्के के अर्थ में रौप्यमुद्रा प्रचलित थी जिससे रुपया शब्द बना। धातु की जगह कागज़ का रुपया अब आम है। चांदी की आभा को सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है सो चांदी सी आभा वाले चेहरे को ही रूप कहा गया। खूबसूरत महिला कहलाई रूपा। गौरतलब है कि रुप्य से निकले ये तमाम शब्द उर्दू में भी प्रचलित हैं।
मक, प्रकाश, आभा जैसी अर्थवत्ता के साथ ही मुख के लिए रुख़ और गालों के लिए रुख़सार शब्द भी बोले जाते हैं। यह मूल रूप से फारसी के शब्द हैं मगर हिन्दी-उर्दू में समान भाव से इस्तेमाल होते हैं। इंडो-ईरानी भाषा परिवार से जुड़े ज्यादातर शब्द भारोपीय परिवार के ही हैं क्योंकि इंडो-ईरानी परिवार, इंडो यूरोपीय भाषा परिवार का ही एक उपवर्ग है। रुख शब्द को पहले हम इंडो-ईरानी परिवार के दायरे में देखते हैं। संस्कृत में एक धातु है रुच् जिसमें चमक, आभा का भाव है। संस्कृत की ही बहन अवेस्ता, जिसे ईरानी परिवार की भाषाओं में सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है। अवेस्ता भी वैदिकी भाषा जितनी ही पुरातन है। रुच् के समकक्ष अवेस्ता में एक धातु है रोचना और यहां भी चमक, प्रकाश जैसे भाव ही उद्घाटित हो रहे हैं। संस्कृत में भी रोचना शब्द है जिसमें उज्जवल आकाश, अंतरिक्ष का भाव है।
संस्कृत रुच् से बना रुचि शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित है। यू तो रुचि शब्द का सीधा सीधा अर्थ है दिलचस्पी, शौक, पसंद, इच्छा, स्वाद, ज़ायका आदि। मगर इसका धात्विक अर्थ है चमक, सौन्दर्य, रूप आदि। रुचि से जुड़े शेष अर्थों पर ध्यान दें तो स्पष्ट होता है कि इनमें भी इसके धात्विक अर्थ ही झांक रहे हैं। जो कुछ भी रुचिकर है वह सब हमारे लिए प्रसन्नता और सौंदर्य की रचना करता है। सौंदर्य वहीं है जो नुमांयां हो, नज़र आए। चेहरे की चमक ही सौन्दर्य है, उसमें नाक-नक्श की बनावट गौण हो जाती है। रुच या रोचना से ही बना है प्राचीन फारसी का रोचः शब्द जिसका अगला रूप हुआ रोसन और फिर बना रोशन, रोशनी जो फारसी, उर्दू और हिन्दी का प्रकाश, चमक के अर्थ में जाना-पहचान लफ्ज है।  संस्कृत के रोचन शब्द की रोशन से समानता पर गौर करें जिसका मतलब भी उज्जवलता, प्रकाश ही होता

PQAAA001 ... जो ऱोशनी में आए, वही रुख है। यूं रुख में चेहरे का भाव है पर इसका मूल अर्थ उस आयाम से है जो प्रकाशित है। इसीलिए हम रुख शब्द का प्रयोग कई तरह से करते हैं।...

है।  रोशनदान, रुखे-रोशन, रोशन-दिमाग़ जैसे कई चिरपरिचित शब्द युग्म हमें सहज ही याद आ सकते हैं। सियाही अथवा इंक के लिए फारसी के रोशनाई शब्द से भी हिन्दीभाषी परिचित हैं। यह दिलचस्प है कि स्याही या सियाही का अर्थ होता है कालिख या काला। आमतौर पर काग़ज पर काले रंग से ही लिखा जाता है इसीलिए उसे सियाही कहते हैं। मगर यह शब्द इतना लोकप्रिय हुआ कि अब लाल, नीली, पीली, हरी यानी हर रंग की रोशनाई को सियाही ही कहा जाता है। सियाही के अर्थ में रोशनी से बने रोशनाई में लिखावट को उद्घाटित करने का भाव है। क्योंकि गहरे रंग की वजह से ही लिखावट प्रकाश में आती है, रोशन होती है और पठनीय हो पाती है इसलिए रोशनाई नाम सार्थक है। देवनागरी लिपि में वर्णक्रम में ही आता है
भाषा विज्ञान में अक्सर एक वर्णक्रम के व्यंजनों की ध्वनियों में परिवर्तन होता है। रुच या रोच् का अगला परिवर्तन है रोज़। गौर करें कि हम दिन अथवा वार के लिए दिन भर हम रोज़ शब्द का ही इस्तेमाल करते हैं। यह बना है रुच् के रुज़ रूप से। रुज़ का अर्थ होता है चमक, प्रकाशित। दिन का अर्थ भी चमक या प्रकाश ही होता है इसीलिए सूर्य का एक नाम दिनकर है अर्थात जो उजाला करे। यही भाव रूज़ से बने रोज़ में है और इसलिए रोज़ का अर्थ होता है दिन। दैनिक के लिए इसका रूप होता है रोज़ाना। इसके अलावा रोजनदारी, रोज़गार, हररोज़, शाहरोज़, रोज़नामचा जैसे कई आमफ़हम शब्द इसी श्रंखला के हैं। रुच् का अगला रूप हुआ रुश् और फिर बना रुख जिसमें चेहरे या रूप का अभिप्राय छिपा है। रुख का रोशनी से रिश्ता साफ है। किसी भी इन्सान की शिनाख्त उसके मुख से ही होती है। किसी भी काया की पहचान जब हम उसकी शख्सियत के साथ करते हैं तो सबसे पहले उसका मुखड़ा ही नज़र आता है। जो ऱोशनी में आए, वही रुख है। यूं रुख में चेहरे का भाव है पर इसका मूल अर्थ उस आयाम से है जो प्रकाशित है। इसीलिए हम रुख शब्द का प्रयोग कई तरह से करते हैं। रुख बदलना मुहावरे का मतलब होता है नई परिस्थिति सामने आना। यहां रुख का अर्थ आयाम से ही है जिसमें नज़रिया, दृष्टिकोण जैसे भाव शामिल हैं। जब किसी पर गुस्सा हुआ बगैर नाराजगी उजागर करनी हो  तो उसकी ओर से मुंह फेर लिया जाता है। इसमें उपेक्षा का भाव होता है। फारसी का बेरूखी शब्द रुख से ही बना है जिसका मतलब मुंह फेरना या उपेक्षा जताना ही है। विदा लेने के लिए रुख़सत शब्द है जिसमें जाने का भाव है। क्योंकि उस वक्त चेहरा पलटना पड़ता है। चांद जैसे मुखड़े के लिए माहरुख और राजाओं जैसा के अर्थ में शाहरुख शब्द इसी कड़ी का हिस्सा हैं।

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14 कमेंट्स:

Ria Sharma said...

शब्दों का सफ़र बहुत शानदार रहा
ज्ञानवर्धक .

सादर !!!

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

ग़ज़ब रूपलोभी हैं भाई आप तो :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

रुप्यकाणि, रुपए में जो रूप है वह तो कहीं नहीं। कबीर भी कह गए।
सब पैसे के भाई। आज तीसरा खंबा पर जो पोस्ट है वह भी रूप का ही चक्कर है। रूप की महिमा अपरंपार है जी।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

दुनिया की कैसी भी
बेरुखी हो....सफ़र की तरफ
रुख करते ही बेमानी हो जाती है.
===========================
रूककर और रूखकर पढने योग्य
लाज़वाब पोस्ट....शुक्रिया.

डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Anonymous said...

बहुत ही शोधपरक और सहेज कर रखने वाली जानकारी.

.... आपका ब्लॉग को तो मैंने बुकमार्क में ऐड कर लिया है.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

रोजाना आप को पढता हूँ ,समझता हूँ . पर समय की विभिन्नता समझ नहीं आ रही सुबह सुबह पढने की आदत है शब्दों के सफर की .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भाई वडनेकर जी !
शब्दों के सफर में आज आपने रुखसार से
नकाब हटा ही दिया।
रोजनामचे में यह कड़ी भी अच्छी लगी।
शुक्रिया।

ताऊ रामपुरिया said...

जबरदस्त ज्ञानवर्धक जानकारी.

रामराम.

निर्मला कपिला said...

आपके शब्दों का सफर हमारी राह रोशन करता है1 आपके किसी भी ब्लोग पर कोई प्रतिक्रिया देना मेरे लिये सूरज को दीपक दिखाने के बराबर है आपकी श्रम साधना और कलम को शत शत नमन है
हमारी राहें यूँ ही रोशन करते रहें धन्यवाद्

के सी said...

उसने रुख़ से हटा के बालों को
रास्ता दे दिया उजालों को !!

Shiv said...

जानकारी के लिए हम आपके ब्लॉग का रुख करते हैं. बहुत बढ़िया जानकारी. रूप, रुख, रुखसार...
धन्यवाद, अजित भाई.

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

बहुत खूब. चंद सालों पहले मैं फारसी सीखने की कोशिश कर रहा था, बोलना तो नहीं पर लिखना-पढना सीख गया. तभी मैंने संस्कृत और फारसी में अद्भुत समानताओं को पहचाना था - जैसे दो बहनें हों. राष्ट्रवादी सोच तो यही कहेगी कि हमारी संस्कृत ही समस्त भाषाओँ कि आदिमाता है... बहस का विषय है. खैर, शब्दों का सफ़र हमेशा ही मुझे लाजवाब सफ़र पर ले जाता रहा है. भाषा पर बेहतरीन और अप्राप्य जानकारी देने के लिए धन्वाद, अजित जी.

Rajeev (राजीव) said...

और रोज़ की ही श्रृंखला में रोज़नामचा, दैनन्दिनी, डायरी, लॉग जो बाद में तकनीकी मार्ग / इण्टरनेट पर होता हुआ बना वेब-लॉग और ब्लॉग! (गम्भीरता से न लें, बस यूँ ही कुछ समानता लगी)

vineetjs said...

हिंदी में सही शब्द क्या है? सियाही या स्याही।

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