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Monday, November 30, 2009
चौधरी की चौधराहट
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 22 कमेंट्स पर 6:20 AM
Sunday, November 29, 2009
चक्रव्यूह, समूह और ऊहापोह
[शब्दों का सफ़र बीते पांच वर्षों से प्रति रविवार दैनिक भास्कर में प्रकाशित होता है]
अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 10 कमेंट्स पर 5:37 AM
Friday, November 27, 2009
क्या हिंदी व्याकरण के कुछ नियम अप्रासंगिक हो चुके हैं?
सुयश सुप्रभ दिल्ली में रहते हैं और अनुवादक हैं। उनका एक ब्लाग है-अनुवाद की दुनिया, जिसके बारे में वे लिखते हैं... हिंदी को सही अर्थ में जनभाषा और राजभाषा बनाने के लिए सामूहिक प्रयत्न की आवश्यकता है। इस ब्लॉग में मैंने हिंदी पर अंग्रेज़ी के अनुचित दबाव, हिंदी वर्तनी के मानकीकरण आदि पर भी चर्चा की है... यह आलेख उन्होंने हिन्दी भाषा समूह पर सदस्यों की राय के लिए डाला था। उनसे पूछ कर हम इसे यहां प्रकाशित कर रहे हैं।
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 37 कमेंट्स पर 5:23 AM लेबल: भाषा
Wednesday, November 25, 2009
बेअक्ल, बेवक़ूफ़, बावला, अहमक़!!!!
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 22 कमेंट्स पर 2:53 AM
Tuesday, November 24, 2009
शुक्रिया दोस्तों,ब्लागिंग चलती रहेगी[बकलमखुद-115]
... वकील साब दिनेशराय द्विवेदी उर्फ सरदार के बकलमखुद की अन्तिम कड़ी...
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 22 कमेंट्स पर 2:31 AM
Sunday, November 22, 2009
डाकिया बीमार है…कबूतर जा…
आज की दुनिया वहां न होती अगर संवाद की इच्छा और उसे पूरा करने की ललक मनुष्य में न रहती। इस हफ्ते एक और खास पस्तक की चर्चा। लेखक- अरविंदकुमार सिंह/ प्रकाशक-नेशनल बुक ट्रस्ट/ पृष्ठ-406/ मूल्य-125 रु./
कविता डाकिये परमोबाइल क्रान्ति के इस युग में रामकुमार कृषक के यह ग़ज़ल बहुत से लोगों को चकित कर सकती है। मगर सिर्फ एक दशक पहले तक इस देश में डाकिये के संदर्भ वाले य़े नज़ारे हुआ करते थे।
अरविंदकुमार सिंह की किताब बताती है कि मुहम्मद बिन तुगलक ने भी संवाद प्रेषण के लिए चीन जैसी ही व्यवस्था बनाई थी। गंगाजल के भारी भरकम कलशों से भरा कारवां हरिद्वार से दौलताबाद तक आज से करीब सात सदी पहले अगर चालीस दिनों में पहुंच जाता था, तो यह अचरज से भरा कुशल प्रबंधन था। ये कारवां लगातार चलते थे जिससे पानी की कमी नहीं रहती थी। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि तुगलक पीने के लिए गंगाजल का प्रयोग करता था। ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 20 कमेंट्स पर 4:29 AM लेबल: पुस्तक चर्चा
Saturday, November 21, 2009
राजनीति के क्षत्रप
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 14 कमेंट्स पर 2:23 AM लेबल: government
Friday, November 20, 2009
शहर का सपना और शहर में खेत रहना [आश्रय-23]
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 10 कमेंट्स पर 4:26 AM लेबल: shelter
Wednesday, November 18, 2009
क़स्बे का कसाई और क़स्साब [आश्रय-22]
पिछली कड़ियां-मोहल्ले में हल्ला [आश्रय-21] कारवां में वैन और सराय की तलाश[आश्रय-20] सराए-फ़ानी का मुकाम [आश्रय-19] जड़ता है मन्दिर में [आश्रय-18] मंडी, महिमामंडन और महामंडलेश्वर [आश्रय-17] गंज-नामा और गंजहे [आश्रय-16]
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 16 कमेंट्स पर 2:47 AM लेबल: shelter
Tuesday, November 17, 2009
मांझे की सुताई
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 16 कमेंट्स पर 3:19 AM
Monday, November 16, 2009
भरी जवानी, मांझा ढीला [मध्यस्थ-4]
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 23 कमेंट्स पर 1:26 AM
Sunday, November 15, 2009
मियां बराक, ब्रोकर और डीलर [मध्यस्थ-3]
पिछली कड़ियां-1.मियां करे दलाली, ऊपर से दलील!![मध्यस्थ-2]2.मियांगीरी मत करो मियां [मध्यस्थ-1]
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 14 कमेंट्स पर 2:37 AM