सम्बन्धित आलेख-1.गुमशुदा और च्यवनप्राश.2.लोक क्या है ?
कि सी बात की जानकारी होने के सम्बन्ध में आए दिन हम ‘मालूम’ और ‘पता’ शब्द का प्रयोग करते हैं । “मालूम नहीं”, “पता नहीं” कह कर दरअसल हम आई बला को टालने में खुद को कामयाब समझते हैं, दरअसल यह हमारी अज्ञानता का प्रदर्शन होता है । मालूम malum शब्द को कई तरह से इस्तेमाल करते हैं जैसे – “मालूम नहीं”, “मालूम है” अथवा “मालूम करो” आदि वाक्य हमारे इर्दगिर्द सुबह से शाम तक तैरते रहते हैं । हमें अक़्सर बहुत कुछ मालूम रहता है मगर हम किसी को कुछ मालूम नहीं चलने देते और पूछे जाने पर मालूम नहीं कह कर काम चला लेते हैं । मालूम में मूलतः जानकारी, ज्ञान का भाव है और इसका बहुवचन ‘मालूमात’ malumat है । मालूम में ख्यात, विलक्षण, सर्वज्ञात, प्रसिद्ध, असाधारण जैसे भाव भी हैं । मालूम के साथ जब ‘ना’ उपसर्ग लगाया जाता है तब यह अर्थवत्ता उभरती है मिसाल देखें – “मेरे सरीखे नामालूम शख़्स को कौन पूछता है ?” इसी तरह जब पता के साथ जब अरबी का ला उपसर्ग लगाया जाता है तो बनता है ‘लापता’ जिसका अर्थ है गुमशुदा । आइये शब्दों के सफ़र में इस मालूम का अता-पता लगाते हैं ।
मालूम सेमिटिक भाषा परिवार की अरबी से बरास्ता फ़ारसी होते हुए हिन्दी में दाखिल हुआ । इसके मूल में ‘इल्म’ ilm शब्द है जिसका अर्थ है ज्ञान, जानकारी । ‘इल्म’ से ही बनता है तालीम जिसका अर्थ है शिक्षा, पढ़ाई, प्रशिक्षण, मार्गदर्शन आदि । तालीम शब्द का प्रयोग भी हिन्दी में खूब होता है । शोधकर्ता, विद्वान के अर्थ में ‘अलीम’ या ‘आलिम’ शब्द से भी हिन्दीवाले खूब परिचित हैं और इसी सन्दर्भ में ‘आलिम-फ़ाज़िल’ मुहावरा भी याद आ जाता है । संस्कृत का एक शब्द है लोक जो बना है लोक् धातु से जिसमें देखना जानना का भाव है । लोक का अर्थ है विश्व, दुनिया, समस्त दृष्यजगत, व्यक्ति आदि । स्पष्ट है कि हमारे सामने जो कुछ नज़र आता है वही लोक है । इस तरह लोक यानी देखना का अर्थविस्तार “जो दिख रहा है” के रूप में हुआ । कुछ यह प्रक्रिया ‘आलम’ में भी नज़र आती है । अरबी का आलम शब्द फ़ारसी-हिन्दी में भी प्रचलित है । हमें जिस किसी भी चीज़ का इल्म होता है, जो कुछ भी हमें मालूम है, दरअसल वही सब तो हमारा ज्ञात-विश्व है । जो हम नहीं जानते, वह हमारे अनुभूत जगत का हिस्सा भी नहीं होता । ‘आलम’ अर्थात विश्व, ब्रह्माड या जो कुछ भी दृष्यजगत में शामिल है, सब ‘आलम’ है । आलम की अर्थवत्ता में अब ‘हाल’, ‘परिस्थिति’ जैसे भाव भी समाहित हो गए हैं जैसे – “आलम ये है कि कोई सुनने को राजी नहीं ।” यहाँ प्रयुक्त आलम शब्द में परिस्थिति पर ज़ोर है किन्तु प्रकारान्तर से दुनिया की प्रवृत्ति की ओर ही संकेत है ।
आलम alam का एक रूप अलम alam भी है जिसमें चिह्न, प्रतीक का आशय है । इसमें ध्वज, पताका या झण्डे की अर्थवत्ता समा गई । किसी भी समूह या देश का ध्वज दरअसल एक चिह्न ही होता है ताकि उसकी शिनाख्त हो सके । इस शिनाख्त में ही ज्ञान अथवा जानकारी का भाव है । अब आते हैं अलमबरदार पर । कुछ लोग इसे हिन्दी में अलंबरदार भी लिखते हैं जो ग़लत प्रयोग है । यह शब्द भी अरबी फारसी के ज़रिये हिन्दी उर्दू में आया । अलमबरदार भी शाही दौर में एक पद था । जब सेना या राजा का काफिला निकलता था तो सबसे आगे ध्वजवाहक ही चलते थे जिन्हें अलमदार या अलमबरदार कहा जाता था । आज इसका मुहावरे के तौर पर भी प्रयोग होता है जिसका अर्थ है किसी खास पंथ, धर्म अथवा राजनीतिक विचारधारा के बडे नेता। आलम शब्द का प्रयोग उपनाम की तरह भी होता है जैसे आफ़ताब आलम । इल्म का असर नीलाम पर भी नज़र आता है । बोली लगाकर किसी वस्तु की सार्वजनिक बिक्री की क्रिया नीलाम कहलाती है । सफ़र में इस पर विस्तार से लिखा जा चुका है । दरअसल यह शब्द हिन्दी में पुर्तगाली के leilao से जन्मा है । प्रख्यात प्राच्यविद चार्ल्स फिलिप ब्राऊन (1798-1884) ने अपनी तेलुगू-इंग्लिश डिक्शनरी में पुर्तगाली leilao की व्युत्पत्ति अरबी मूल के अल-इल्म से मानी है जिससे बना है इल्म जिसमें जानकारी होना, बतलाना, ज्ञान कराना, विज्ञापन जैसे भाव है। गौर करें कि नीलाम की प्रक्रिया में खरीददार को वस्तु के मूल्य और वस्तु के अन्य विवरणों से अवगत कराया जाता है । प्रकाण्ड पण्डित के अर्थ में उर्दू का अल्लामा शब्द इसी मूल का है । स्पष्ट है कि मालूम शब्द में सबसे ज्यादा ‘इल्म’ यानी ज्ञान का महत्व है । ‘मालूम’ के सन्दर्भ में ‘इल्म’ शब्द का प्रयोग देखें- “मुझे इस बात का इल्म था कि बात तो बिगड़नी है ।” इसे यूँ भी कहा जा सकता है – “मुझे मालूम था कि बात बिगड़ जाएगी ।” अब करते हैं पते की बात । पता शब्द भी हिन्दी की सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाली शब्दावली में शामिल है । “क्या पता”, “पता नहीं”, “पता चलेगा” जैसे अल्फ़ाज़ बोलते हुए हम दिन भर अपना काम चलाते हैं । इस ‘पता’ का प्रयोग लगभग मालूम की तर्ज़ पर ही होता है और पता शब्द में भी जानकारी या ज्ञान का ही आशय है ‘पता’ को लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं । ‘पता’ शब्द सामने आते ही किसी व्यक्ति या वस्तु से सम्बन्धित विशेष स्थान की स्थिति का बोध होता है । इस सन्दर्भ में अक्सर पता-ठिकाना जैसा पद इस्तेमाल किया जात है । किसी को पत्र लिखते समय पते का सर्वाधिक महत्व होता है । जॉन प्लैट्स पता का रिश्ता संस्कृत के पत्रकः से ही जोड़ते हैं, मगर यह तार्किक नहीं लगता । ध्यान रहे संस्कृत के पत्रकः संस्कृत के पत्त्र से बना है और चिट्ठी के सन्दर्भ में इसमें पेड़ का पत्ता, छाल, धातु की पतली सतह जैसा भाव है । प्राचीन काल में संदेशों का आदान-प्रदान पेड़ की छाल या पत्तों पर लिख कर होता ता जैसे ताड़-पत्र या भोज-पत्र । पत्र में मूलतः मज़मून लिखने की बात है । जॉन प्लैट्स पत्रकः में चिह्न, संकेत, निशानी जैसे अर्थ देखते हैं मगर इससे एड्रेस यानी पता नहीं उभरता । संस्कृत का पत्त्र शब्द पत् धातु से बना है जिसका अर्थ है गिरना । पतित, पतिता, पतन जैसे शब्द इसी मूल के हैं । पत्ता पेड़ पर लगता है और अन्ततः सूख कर गिरता है । इस गिरने की क्रिया में वे तमाम लक्षण नहीं है जिनका आशय चिट्ठी का पक्का ठिकाना होना चाहिए । कृपा कुलकर्णी के मराठी व्युत्पत्ति कोश में पता की व्युत्पत्ति ‘प्रत्यय’ से बताई गई है । प्रत्यय एक बहुआयामी शब्द है मगर आम हिन्दी भाषी इसे व्याकरण का शब्द समझता है जिसका अर्थ है किसी शब्द के अन्त में लगने वाला परसर्ग । मोनियर विलियम्स के कोश के मुताबिक प्रत्यय का अर्थ है भरोसा, विश्वास, निश्चितता, दृढ़ता, सिद्धि, हासिल, ठोस प्रमाण, सबूत, आधार, स्थापना आदि । वैदिक शब्दावली में ‘प्रत्यय’ का अभिप्राय ऐसे गृहस्थ से है जिसने अपने घर में पवित्राग्नि की स्थापना की हो । यहाँ ‘पते’ की मूल बात उभर रही है । आप्टे कोश में ‘प्रत्यय’ का अर्थ स्थान की दृष्टि से अंदाज़ लगाते हुए बताया गया है । साथ ही इसमें प्रसिद्धि, यश, कीर्ति भी शामिल है । मुहर लगी, मुद्रांकित अंगूठी या मुद्रिका को भी ‘प्रत्यय’ कहा जाता है । हिन्दी शब्दसागर में भी ‘पता’ की व्युत्पत्ति ‘प्रत्यय’ ही बताई गई है । ‘प्रत्यय’ का प्राकृत रूप पत्तअ होता है जिसका अगला रूप पता हुआ । कोश में इसका रूप-विकास यूँ बताया गया है –प्रत्यायक > पत्ताअ > पताअ > पता । ध्यान रहे, कीर्ति, प्रसिद्धि अथवा यश का एक ठोस आधार होता है । यह आधार ही प्रत्यय है, ‘पता’ है । पता शब्द में मुहावरेदार अर्थवत्ता है जैसे काम की, सटीक या भेद खोलने वाली बात के लिए पते की बात मुहावरा प्रसिद्ध है । ‘अता-पता’ मुहावरा भी खूब प्रचलित है जिसमें किसी व्यक्ति या वस्तु की खोज-खबर, सूचना या समाचार जानने का भाव है । हिन्दी में गुमशुदा को लापता कहते हैं जबकि मराठी में यह बेपत्ता होता है । ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
5 कमेंट्स:
बहुत बढिया ज्ञानवर्धक पोस्ट आभार।
इसमें से बस थोड़ा बहुत मालूम है... बाकी मालूम नहीं था
प्रत्यय तक पहुँच कर प्रति की बात नहीं की, अजित भाई? अक्सर लोग चिट्ठी में नाम के पहले 'प्रति' भी लिखते हैं.. प्रति का अर्थ ही होता है - की ओर..
अजित जी ,आभार आपका |नामालूम का अता-पता देने के लिए ....|
शुभकामनाएँ!
शब्द उद्भव से तो पत्ते का अन्त पहले से निश्चित कर दिया गया है।
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