Sunday, April 8, 2012

ट्रंक का खानदान

trपिछली कड़ियाँ-1.बक्सा, बकसिया और बॉक्सिंग.2कनस्तर और पीपे में समाती थी गृहस्थी.3

क्से की तरह ही ट्रंक trunk भी कई दशकों से भारतीय गृहस्थी की एक ज़रूरी व्यवस्था बना हुआ है । चीज़ों को उनके लक्षणों के आधार पर ही नाम मिलता है । शरीर को तन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें लगातार वृद्धि होती है । संस्कृत की तन् धातु में विस्तार, वृद्धि का भाव है । तानना यानी विस्तार करना क्रिया के मूल में तन् धातु ही है । जो लगातार विस्तारित हो, वही तन है । पेड़ के मुख्य हिस्से को भी तना कहते हैं जो सम्भवतः इसी कड़ी का शब्द है । पेड़ के तने का भी लगातार विस्तार होता है । तने में ही काष्ठ का भण्डार होता है । तने की लकड़ी से ही विभिन्न वस्तुएँ बनती हैं । बॉक्स के मूल पाइक्सोन में मुख्य भाव ठोस, सघन और भरपूर मात्रा का संकेत है । लकड़ी के संदर्भ में ये सारी बातें पेड़ के तने की और इशारा करती हैं जिसे ट्रंक कहते हैं । भारत में आमतौर पर धातु की पेटी को ट्रंक कहा जाता है । किसी ज़माने में ट्रंक भी लकड़ी के ही बनते थे । भारत में भी रईसों के यहाँ पहले लोहे के कब्ज़े वाले लकड़ी के ट्रंक इस्तेमाल होते थे मगर जब आम आदमी के पास ट्रंक पहुँचा, तब तक इसकी काया लौहावरण में ढल चुकी थी । आज भी कई घरों में खानदानी चीज़ों की तरह ट्रंक सहेज कर रखे जाते हैं । ज़ाहिर है ट्रंक यानी तने की लकड़ी से निर्मित बक्से को भी ट्रंक नाम ही मिला । जानते हैं, कैसे ।
ट्रंक मूलतः भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है और वाल्टर स्कीट की कन्साइज़ एटिमोलॉजिकल डिक्शनरी के मुताबिक अंग्रेजी में इसकी आमद पुरानी फ्रैंच के ट्रांक tronc से हुई है जिसका मूल लैटिन ज़बान का त्रुंकस / ट्रंकस truncus शब्द है जिसका अर्थ है वह मुख्य हिस्सा, जिससे उसके सहायक हिस्से अलग किए जा चुके हैं । ज्यादातर संदर्भों में लैटिन के त्रुंकस का आशय पेड़ के ऐसे भारी तने से लगाया गया है जिससे उसके उसके उपांग अलग किए जा चुके हों अर्थात ऐसा तना जिससे जड़ और शाखाएँ का अलग की जा चुकी हों । त्रुंकसमें धड़ का भाव है । धड़ शरीर के उस मुख्य हिस्से को कहते हैं जिससे हाथ, पैर और सिर जुड़े रहते हैं । 1724 में प्रकाशित नैथन बैली की यूनिवर्सल एटिमोलॉजिकल डिक्शनरी में ट्रंकस का आशय हृदय की ओर रक्त ले जाने वाली महाधमनी और महाशिरा से भी है और किसी जगह का मुख्य आधार स्तम्भ से भी है । ध्यान रहे शरीर यानी तन का मुख्य आधार भी धड़ ही होता है । ट्रंक में धड़ का आशय भी है । हिन्दी का धड़ शब्द भी संस्कृत के धर् से बना है जिसका अर्थ है जो धारण करे । धड़ सभी अंगों को धारण करता है ।
ट्रंकस में मूलतः वृक्ष का अर्थ निहित है, न कि उपांगों से काट कर अलग किया जा चुका मुख्य आधार । विलियम फ्रॉली के इंटरनैशनल एन्साइक्लोपीडिया ऑफ लिंग्विस्टिक्स के मुताबिक त्रुंकसका मूल है dru-n [वृक्ष, काष्ठ] + -iko-s[ उपांग, हिस्से ] स्पष्ट है कि ट्रंकस से आशय उस मुख्यआधार से है जिसके साथ उसके दूसरे हिस्से भी जुड़े हों । बाद के दौर में त्रुंकस से बने ट्रंक में सिर्फ़ धड़ की अर्थवत्ता जुड़ गई । संस्कृत-हिन्दी में वृक्ष के लिए तरुवर, तरु, दारुकः, द्रु, द्रुम जैसे शब्द हैं जो इनके एक ही मूल की ओर इशारा करते हैं । संस्कृत में एक धातु है द्रु जिसमें वृक्ष का भाव है। मूलतः यह गतिवाचक धातु है । इससे बने द्रुत का मतलब है तीव्रगामी, फुर्तीला, आशु गामी आदि होता है । वृक्ष के अर्थ में द्रु धातु का अभिप्राय भी गति से वृद्धि से ही है । इससे ही बना है द्रुमः शब्द जिसका अर्थ भी पेड़ ही होता है और द्रुम के रूप में यह परिनिष्ठित हिन्दी में भी प्रचलित है । कल्पद्रुम शब्द साहित्यिक भाषा में कल्पवृक्ष के लिए प्रचिलत है । द्रु से ही बना है दारुकः शब्द जो एक प्रसिद्ध पहाड़ी वृक्ष

जेब शृंखला की ये कड़ियाँ ज़रूर देखें... peti1. पाकेटमारी नहीं जेब गरम करवाना [जेब-1]
2 टेंट भी ढीली, खीसा भी खाली
3 बटुए में हुआ बंटवारा
4 अंटी में छुपाओ तो भी अंटी खाली
5 आलमारी में खजाने की तलाश
6 कैसी कैसी गांठें
7 थैली न सही , थाली तो दे[जेब-7]

है जिसका प्रचलित नाम देवदारु है । द्रु से ही बना है द्रव जिसका मतलब हुआ घोड़े की भांति भागना, पिघलना, तरल, चाल, वेग आदि । द्रु के तरल धारा वाले रूप में जब शत् शब्द जुड़ता है तो बनता है शतद्रु अर्थात् सौ धाराएँ । पंजाब की प्रमुख नदी का सतलुज नाम इसी शतद्रु का अपभ्रंश है । अंग्रेजी का ट्री और फारसी का दरख्त इसी मूल से जन्में हैं ।
ध्यान रहे भारत-ईरानी परिवार में द्रु में बहाव, गति, ले जाने के साथ साथ स्थिरता का भाव भी है । द्रु काएक अर्थ अगर वृक्ष है तो इसमें वृद्थि के साथ साथ स्थिरता भी है । वृक्ष अपने स्थान पर दृढ़ होते हैं, अडिग होते हैं । जूलियस पकोर्नी  भारोपीय धातु deru में वृक्ष का भाव देखते हैं और कुछ अन्य भाषाशास्त्रियों नें tru धातु की कल्पना करते हुए इसमें दृढ़ता, पक्कापन, ठोस और मज़बूत जैसे भावों को देखा है । पुरानी आइरिश के derb में पक्का, भरोसा का भाव है तो अल्बानी के dru का अर्थ लकड़ी या छाल है । हित्ती भाषा के ता-रू , अवेस्था के द्रवेना, दारु, संस्कृत के द्रु, वेल्श के दरवेन, गोथिक के त्र्यु , ओल्ड इंग्लिश के ट्रेवो समेत कई यूरोपीय भाषाओं के इन शब्दों का अर्थ लकड़ी या पेड़ है । हाथी की सूंड को भी ट्रंक कहते हैं ।
डॉ रामविलास शर्मा एक और दिशा में संकेत करते हैं । वे स्थिरता के अर्थ में स्थर् की कल्पना करते हैं और उसके एक पूर्व रूप धर् के होने की बात कहते हैं जिससे धारिणी के रूप में धरती शब्द बना । संस्कृत दारु, द्रुम, तरु, ग्रीक द्रुस, अंग्रेजी के ट्री में दरअसल धर् के रूपान्तर दर् और तर् हैं । प्राकृत धड, हिन्दी धड़, पेड़ के तने की तरह, मानव शरीर के शीशविहीन भाग का अर्थ देते हैं । संस्कृत तण्डक ( तना ), तन् ( शरीर ), हिन्दी तना, अंग्रेजी स्टौक, ( तना ), आदि स्थिरताबोधक हैं । यह भी दिलचस्प है की धर में निहित स्थिरतामूलक धारण करने के भाव से ही गतिवाचक धारा शब्द भी बनता है । धारा वह जो धारण करे, अपने साथ ले जाए । धर, धरा के मूल में धृ धातु है । धरा यानी धरती को देखें तो यह स्थिर जान पड़ती है मगर यह न सिर्फ़ अक्ष पर घूमती है बल्कि सूर्य की परिक्रमा भी करती है । स्थिरता का परम प्रतीक ध्रुव का जन्म भी इसी धृ धातु से हुआ है । धृ की ही समानधर्मा धातु दृ बाद में विकसित हुई होगी ।
स तरह स्पष्ट है कि अंग्रेजी के ट्रंक में मुख्य आधार का भाव है । यह आधार कहीं मार्ग है, कहीं स्तम्भ है और कहीं तना है तो कहीं धड़ है । ट्रंक शब्द का प्रयोग महामार्ग के रूप में भी होता है जैसे ग्रांड ट्रंक रोड । देश के सुदूर पश्चिमोत्तर को धुर पूर्वी छोर से जोड़नेवाला जो महामार्ग सदियों तक हिन्दुकुश के पार से आने वाले कारवाओं से गुलजार रहा, उसे शेरशाह सूरी ने व्यवस्थित राजमार्ग का रूप दिया था । अंग्रेजों ने उसका नाम ग्रांड ट्रंक रोड रखा जो पेशावर से कलकत्ता तक जाता था । इसे अब जीटी रोड कहा जाता है । रेलवे में भी ट्रंक लाईन होती है । जीटी एक्सप्रेस एक प्रसिद्ध ट्रेन का नाम है । ट्रंक का प्रयोग दूरसंचार प्रणाली में भी होता है । संचार नेटवर्क का खास रूट ट्रंक कहलाता है । पुराने ज़माने में दूरदराज स्थानों पर टेलीफ़ोन क़ॉल के लिए ट्रंक लाईन का इस्तेमाल होता था जिसे ट्रंककॉल कहा जाता था । ट्रंक में निहित बक्से का भाव वृक्ष के मोटे पुष्ट तने से स्पष्ट हो रहा है । ज़ाहिर है ट्रंक यानी तने की लकड़ी से निर्मित बक्से को भी ट्रंक नाम ही मिला ।

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2 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

ट्रंक के अनेक अर्थ हैं। लेकिन उस में प्रमुखता का भाव है। किसी एक सैट में जो भी इकाई प्रमुख है वही ट्रंक है। ट्रंक घऱ का सब से मुख्य और बड़ा बक्सा है जिस में घर का सब से अधिक सामान समा जाता हो। हमारी श्रीमती जी वर्षों तक बिस्तर रखने को ट्रंक बनवाने की कहती रहीं। फिर हमने दो दीवान बनवा लिए तो ट्रंक की मांग समाप्त हो गई।

प्रवीण पाण्डेय said...

सबका आधार और अर्थ तो एक जैसा ही लगता है।

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

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