Wednesday, April 4, 2012

लियाक़त की नालायकी

लायक में ना उपसर्ग लगने से नालायक शब्द बनता है और किसी को मूर्ख, अयोग्य, नाकारा, निकम्मा, नाकाबिल क़रार देते हुए अक़्सर नालायक के ख़िताब से नवाज़ा जाता है ।
बोलचाल की हिन्दी में विभिन्न स्रोतों से आकर कई शब्द अपनी ख़ास पैठ बना चुके हैं । हिन्दी की तद्भव और देशज शब्दावली के साथ उनका हेलमेल इतना गहरा होता है कि उनके विदेशी मूल की शिनाख़्त मुश्किल लगती है । योग्यता और क़ाबिलियत का भाव प्रकट करने के लिए हिन्दी में लायक शब्द का खूब प्रयोग होता है । मूल रूप से लायक अरबी ज़बान का है और फ़ारसी के ज़रिए हिन्दी में प्रविष्ट हुआ है । “मेरे लायक कोई सेवा”, “फ़िलहाल बताने लायक कुछ नहीं है”, “ऐसा आदमी ढूंढो, जो लायक हो” इस तरह के वाक्य आए दिन हम बोलते-सुनते हैं । लायक में मूलतः उचित, उपयुक्त, पर्याप्त, ठीक, मुनासिब, योग्य, सही, सम्पूर्ण, गुणवान जैसे भाव हैं और प्रायः इन सभी अभिप्रायों को व्यक्त करने के लिए लायक शब्द का हम इस्तेमाल करते हैं ।
रबी में लायक का सही रूप है लाइक़ और हैन्स व्हैर की डिक्शनरी ऑफ़ मॉडर्न रिटन अरेबिक के मुताबिक यह बना है लक़ा धातु से जिसमें गुण, पात्रता, क़ाबिलियत, उपयुक्तता, अनुकूलता जैसे भाव हैं । लायक का प्रयोग मूलतः गुणवाचक विशेषण या संज्ञा की तरह होता है । लायक वही है जो समर्थ, उचित, योग्य, गुणी या उपयुक्त है । लायक में ना उपसर्ग लगने से नालायक शब्द बनता है और किसी को मूर्ख, अयोग्य, नाकारा, निकम्मा, नाकाबिल क़रार देते हुए अक़्सर नालायक के ख़िताब से नवाज़ा जाता है । लायक से लायकी भी बनता है जिसमें शिष्टता, उपयुक्तता, समर्थता जैसी अर्थवत्ता है । लायक का एक रूप लईक़ भी है जो संज्ञानाम की तरह प्रयुक्त होता है जैसे लईक़ खान या लईक़ एहमद । लायक का इस्तेमाल लाइक़ की तरह अज़रबैजानी, तुर्की, फ़ारसी समेत कई भारतीय भाषाओं में होता है । मराठी में नालायक की तरह अयोग्य अथवा अनुचित के लिए ग़ैरलायक भी चलता है । इसका ग्रामीण रू ल्याख है । लायक की कड़ी में ही लियाक़त शब्द भी आता है जो बना है अरबी के लिआक़ा से । लिआक़ा भी विशेषण है जिसमें नेक, योग्य, आदरणीय, समर्थ, ईमानदार जैसे भाव हैं । लियाक़त में हर अर्थ में क़ाबिल, उचित, सही का भाव है । उसमें किसी चीज़ की लियाक़त नहीं है जैसे वाक्य से स्पष्ट है कि इसमें सर्वगुणसम्पन्नता वाली अर्थवत्ता समायी है । लईक़ की तरह लियाक़त भी संज्ञानाम की तरह इस्तेमाल होता है जैसे लियाक़त अली खान, लियाक़त हुसैन आदि ।
हिन्दी का काबिल भी ऐसा ही एक शब्द है जो बोलचाल की भाषा में बीती कई सदियों से हिन्दी का अपना शब्द बन चुका है । क़ाबिल यानी योग्य, कुशल, दक्ष, विद्वान, होशियार, बुद्धिमान और समझदार। हिन्दी में नुक़तों का चलन नहीं है मगर अरबी क़ाबिल में नुक़ता लगता है । क़ाबिल से ही बनता है क़ाबिलियत जिसका अर्थ विद्वत्ता, बुद्धिमानी, योग्यता, समझदारी है । क़ाबिल और क़ुबूल में रिश्तेदारी है और ये दोनों सेमिटिक धातु क़-ब-ल q-b-l से जन्में हैं । क़-ब-ल q-b-l में मूलतः स्वीकार का भाव है । अरबी में इससे क़बूलियत भी बना है जिसका अर्थ है स्वीकृति अथवा मंज़ूरी मगर यह हिन्दी में कम चलता है। हिन्दी ने कबूल से कबूलना जैसा शब्द भी बना लिया है। स्वीकार के अलावा इस धातु में निकटता, सामीप्य, विनम्रतापूर्वक लेना या पाना जैसे भाव भी हैं । इन भावों का विस्तार क़ाबिल में नज़र आता है । बिना ज्ञानार्जन के योग्यता नहीं आती । ज्ञान को सविनय हासिल करना पड़ता है । जिसे मन, वचन और कर्म से सिद्ध कर लिया जाए, वही विद्या सार्थक होती है । सो क़ाबिल में क-ब-ल धातु के सभी भाव निहित हैं । क़ाबिलियत के लिए क़बूलियत ज़रूरी है । जो योग्य है वही समर्थ है । सामर्थ्यवान व्यक्ति का समाज में मान-सम्मान होता है । क़ाबिल आदमी का यश होता है ।
क़ाबिल, लायक के लिए योग्य शब्द हिन्दी की तत्सम शब्दावली से आता है जिसके मूल में सस्कृत की युज् धातु है । युज् का अर्थ है उचित, सही तरीके से, जोड़ना, मिलाना, समान करना आदि हैं । इस धातु का उल्लेख शब्दों का सफ़र के कई आलेखों में विस्तार से हुआ है । उचित रीति से किन्हीं चीज़ों को साथ रखने से नया गुण पैदा होता है, यही योग्यता है । युक्त, उपयुक्त जैसे शब्द युज् से ही बने हैं । तरकीब के अर्थ में युक्ति और इसका अपभ्रंश जुगत होता है । मोनियर विलियम्स के कोश के मुताबिक योग्य का अर्थ है सही, उपयुक्त, काम के लायक, गुणवान, सामर्थ्यवान आदि जैसे- वह किसी योग्य नहीं है में संदर्भित व्यक्ति की अक्षमता, नाक़ाबिलित का उल्लेख है । युज् धातु में निहित मिलाने, जोड़ने जैसे अर्थों से योग्य में निहित योग्यता में चतुराई और युक्तिपूर्ण सामर्थ्य सिद्ध होती है ।
[इस कड़ी से सम्बद्ध क़ाबिल और योग्य से जुड़े शब्दों पर शब्दों का सफ़र में विस्तार से लिखा जा चुका है । कृपया देखे-1.क़िबला की क़ाबिलियत और क़बीला.2.जोड़तोड़ में लगा जुगाड़ी.3.चांदी का जूता, चंदन की चप्पल 4.जालसाज़ी के उपहार का योगदान !]

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2 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

योग्य, लायक, काबिल, बस ये शब्द ही पहुँच में रहे, अर्थ तो सदा ही भागता रहा।

Mansoor ali Hashmi said...

आई सदा 'कुबूल' की शौहर वह बन गया,
काज़ी ने 'सनद' दी तो ,'गौहर'* वह बन गया, [*रत्न ]
'सत्रह' की अंगूठी में जड़ा 'साठ' का पन्ना,
'लायक़' बड़ा था, जोड़ू का नौकर वह बन गया.

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