Wednesday, April 11, 2012

बलाए-ताक नहीं, बालाए-ताक सही

Vue générale des grottes de Taq-e Bostanसम्बंन्धित आलेख-1.आखिरी मक़ाम की तलाश... पिया मिलन को जाना.…2. प्यारा कौन ? बैल , बालम या मलाई ?.3.लीला, लयकारी और प्रलय….
बो लचाल की भाषा को लय और अर्थवत्ता देने में मुहावरों का अहम क़िरदार होता है । एक मुहावरा पाँच वाक्यों के बराबर बात कह जाता है । इसीलिए मुहावरेदारा भाषा सहज और प्रवाही होती है । हिन्दी को समृद्ध बनाने में फ़ारसी के मुहावरों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है । आज़ादी के बाद जब हिन्दी के राजभाषा वाले स्वरूप के प्रति लोग कुछ सजग हुए तो उर्दू-फ़ारसी की ठसक वाली हिन्दुस्तानी ज़बान का रुतबा धीरे धीरे कम होने लगा । हालाँकि अरबी-फ़ारसी शब्दों का इस्तेमाल कम नहीं हुआ, मगर उनका बर्ताव हिन्दी शब्दों जैसी ही गै़रज़िम्मेदारी से होने लगा । कई शब्दों और मुहावरों का इस्तेमाल में असावधानी नज़र आने लगी क्योंकि इस ओर  हिन्दी वालों का ध्यान नहीं था । राजभाषा अब फ़ारसी, अंग्रेजी नहीं, हिन्दी थी । मिसाल के तौर पर एक मुहावरा है बलाए-ताक रखना । आमतौर पर किसी विषय को दूर रखने, उसकी उपेक्षा करने, मुख्यधारा से अलग रखने की कोशिश को अभिव्यक्त करने के लिए बलाए-ताक़ मुहावरे का प्रयोग किया जाता है जैसे- “इमर्जेंसी में सत्ताधारी पार्टी ने कानून को बलाए-ताक रख दिया था ।“ ख़ास बात यह कि दशकों से इस मुहावरे का प्रयोग हो रहा है जबकि सही रूप है बालाए-ताक रखना । लोग समझते हैं कि किसी चीज़ को बला यानी दिक्क़ततलब समझ कर ताक पर रखा जा रहा है जबकि इसमें बला यानी मुश्किल, कठिनाई का भाव न होकर बाला यानी ऊँचाई का भाव है ।

बला’ और ‘बाला’ की रिश्तेदारी

ला शब्द का हिन्दी में खूब इस्तेमाल किया जाता है । अरबी में विपत्ति, मुश्किल, कठिनाई, आपदा, दिक़्क़त, मुसीबत, कष्ट, संकट या परेशानी जैसी स्थितियों के संदर्भ में बला शब्द का प्रयोग किया जाता है । फ़ारसी कहावत सबने सुनी है- “ज़ल तू, ज़लाल तू, आई बला को टाल तू ।” इस कहावत में बला को उपरोक्त तमाम अर्थों में समझा जा सकता है । सौन्दर्य की पराकाष्ठा की अभिव्यक्ति के लिए फ़ारसी में नकारात्मक विशेषणों का प्रयोग भी होता है । क़यामत की ही तरह बला भी इस कड़ी में है । बला की खूबसूरती अथवा खूबसूरती या बला जैसे मुहावरों में बला विशेषण के तौर पर आया है । भाव है ऐसा सौन्दर्य जिसे देख कर आदमी सुध-बुध खो बैठे । जाहिर है ऐसा होना परेशानी वाली बात ही है, मगर इससे सौन्दर्य को भी सराहना मिल रही है । मगर बलाए-ताक़ में यह बला नहीं है क्योंकि बलाए-ताक का शाब्दिक अर्थ होगा ताक की बला यानी आले की परेशानी । इससे कुछ भी स्पष्ट नहीं होता । हालाँकि बला और बाला दोनों ही शब्द सेमिटिक मूल के हैं और इनमें आपसी रिश्तेदारी है । मगर प्रस्तुत मुहावरे में ये बला और बाला दोनो अलग अलग छोर पर नज़र आते हैं । इसके लिए जानते हैं बालाए-ताक को ।

बाल का बोलबाला

सेमिटिक भाषा परिवार का एक ख़ास शब्द है बाल, जिसकी इस समूह की कई भाषाओँ में व्यापक अर्थवत्ता है । दिक्कत, परेशानी, अनिष्ट, कष्ट आदि अर्थों में ही यह अज़रबेजानी में बेला है, फुलानी में यह आलबला है तो ग्रीक में यह पेलास है । अफ्रीका की हौसा भाषा में यह बालाई है, हिन्दी और इंडोनेसियाई में इसे बला कहते हैं तो किरगिज़ी में यह बलाआ है । रोमानी में इसका रूप बेलिया है और उज्बेकी में यह बलो है । सुमेरी संस्कृति में इसका मतलब होता है -सर्वोच्च, शीर्षस्थ या सबसे ऊपरवाला । हिब्रू में इसका मतलब होता है परम शक्तिमान, देवता अथवा स्वामी । गौरतलब है कि लेबनान की बेक्का घाटी में बाल देवता का मंदिर है । हिब्रू के बाल (baal) में निहित सर्वोच्च या सर्वशक्तिमान जैसे भावों का अर्थविस्तार ग़ज़ब का रहा। संस्कृत में इसी बाल या बेल का रूप बलम् देखा जा सकता है जिसका अभिप्राय शक्ति , सामर्थ्य , ताकत, सेना, फौज आदि है । एक सुमेरी देवता का नाम बेलुलू है। गौर करें कि संस्कृत में भी इन्द्र का एक विशेषण बललः है । अनिष्टकारी शक्ति के , आसमानी मुसीबत, विपत्ति आदि के लिए हिन्दी में बला शब्द खूब प्रचलित है । यह अरबी फारसी के जरिये हिन्दी में आया । अरबी में इसका प्रवेश हिब्रू के बाल की ही देन है अर्थात बला में बाल की शक्तिरूपी महिमा तो नज़र आ रही है। इससे कुछ हटकर संस्कृत में बला शब्द मंत्रशक्ति के रूप में विद्यमान है । गौर करें की दूध के ऊपर जो क्रीम जमती है उसे हिन्दी में मलाई कहते हैं। मलाई को उर्दू, फारसी और अरबी में बालाई कहते हैं क्योंकि इसमें भी ऊपरवाला भाव ही प्रमुख है । जो दूध के ऊपर हो वही बालाई । पुराने ज़माने में मकान की ऊपरी मंजिल को बालाख़ाना कहते थे । बाला यानी ऊपर और खाना यानी स्थान।
क्या है ताक़
बालाए-ताक़ में यह ऊपर का भाव महत्वपूर्ण है । हिन्दी में आमतौर पर  ताक tak/tāḳ शब्द का प्रयोग होता है जो अरबी का शब्द है मगर इसका मूल फ़ारसी है। अरबी केطاق  ताक़ taq ( tāḳ/ṭāq ) का अर्थ है बल, क्षमता, शक्ति है जिससे ताक़त, ताक़तवर जैसे शब्द बनते हैं। साथ ही इसका अर्थ मेहराब भी है और वो घुमावदार कमानीनुमा आधार भी जिस पर किसी भी भवन की छत टिकी रहती है। वह अर्धचन्द्राकार रचना जो छत को ताक़त प्रदान करती है, उसे थामे रखती है अर्थात उसके बूते छत टिकी रहती है। भाव है ताक़त देना। उसे क्षमता प्रदान करना। अरबी का طاقت ताक़त शब्द इसी मूल का है और ताक़ से उसकी रिश्तेदारी है। हिन्दी में आने के बाद ताक़ शब्द में आला अर्थात दीवार में सामान रखने के लिए बनाया जाने वाला खाली स्थान। यह भी कमानीदार, मेहराबदार आकार में बनाया जाता था। पुराने ज़माने में ऐसे ताक़ आमतौर पर छत से कुछ नीचे, दीवार के ऊपरी हिस्से में रोशनदान के लिए बनाए जाते थे। ताक़चा tāḳchá यानी वह छोटा आला जो कुछ ऊँचाई पर दीवार में बना हो। लोगों की पहुँच से दूर, सुरक्षित रखने के लिए भी ऐसे मेहराबदार खाँचे बनाए जाते थे। इसे ही ताक़ कहते थे । बालाए-ताक़ का अर्थ हुआ ताक़ यानी मेहराबदार दीवार का सबसे बाला हिस्सा यानी सबसे ऊँचा हिस्सा । किसी मुद्दे, विषय या चर्चा सूत्र को दरकिनार करने के संदर्भ में बालाए-ताक़ का प्रयोग होता है। जैसे- इसी सत्र में महिला विधेयक पर बात होनी थी, मगर सत्ता पक्ष ने उसे बालाए-ताक़ रखा । स्पष्ट है कि सत्ता पक्ष नहीं चाहता कि इस विषय पर चर्चा हो इसलिए इसे अलग – थलग करने, इसे पहुँच से दूर रखने के लिए उसने कई हथकण्डे अपनाए । यही है बालाए-ताक़ रखना मुहावरे का सही अर्थ।
ताक़ में नक़्क़ाशी
ताक़ शब्द अरबी में फ़ारसी मूल से गया है । जॉन प्लैट्स के कोश में ताक़ का अर्थ मेहराब, खिड़की, आला, कॉर्निस, खाँचा, कोना, छज्जा और बालकनी आदि है । ताक़ अगर अरबी में फ़ारसी से गया है तो ज़ाहिर है कि यह इंडो-ईरानी परिवार का शब्द है और इसका रिश्ता किन्हीं अर्थों में संस्कृत, अवेस्ता आदि भाषाओं से भी होगा । इसका स्पष्ट संकेत कहीं नहीं मिलता । फ़ारसी संदर्भों में पश्चिमी ईरान के पहाड़ी प्रान्त करमानशाह में दूसरी से छठी सदी के बीच निर्मित महान स्थापत्य ताक़ ए बोस्ताँ से मिलता है । ये स्थापत्य दरअसल सासानी काल में ईरानी शिल्पकारों द्वारा पहाड़ी चट्टानों पर उत्कीर्ण कला के महानतम नमूने हैं । चट्टानों पर नक्काशी के जरिये मेहराबदार खुले कक्ष बनाए गए हैं जिनकी दीवारों पर ईरान के इतिहास और जरथ्रुस्तकालीन प्रसंग उत्कीर्ण हैं । ईरान में इसे प्राचीनकाल से ही ताक़ ए बोस्ताँ कहा जाता है । पत्थरों में उत्कीर्ण मेहराब की रचना के लिए ताक़ शब्द के प्रयोग से ऐसा लगता है कि ताक़ शब्द का रिश्ता संस्कृत के तक्ष से है जिसमें उत्कीर्ण करने, काटने, तराश कर आकार देने जैसे भाव हैं । तक्षन या तक्षक का अर्थ शिल्पकार, दस्तकार होता है । सम्भव है तक्ष से ही फ़ारसी का ताक बना हो और मेहराब के अर्थ में अरबी ने भी इसे आज़माया हो।
इन्हें भी देखें- 1.ठठेरा और उड़नतश्तरी
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8 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

ताक पर ही रखा रहने दें..यहाँ वैसे ही बहुत गम हैं।

अमरनाथ 'मधुर'امرناتھ'مدھر' said...

मनुष्य के सर के ऊपर होने से ही शायद केश बाल कहे जाते हैं| कशमीर में हजरत बल भी किसी ऊँची जगह का नाम रहा था क्या? यह भी स्पष्ट करें | बल अर्थात ताकत भी क्या एक ही मूल के हैं ?

अजित वडनेरकर said...

@अमरनाथ मधुर
कृपया सम्बन्धित आलेख भी देखें । खास तौर पर "प्यारा कौन ? बैल , बालम या मलाई"

Mansoor ali Hashmi said...

'बालाए ताक़' रखके 'बला' टाल रहे है,
'अफज़ल' हो कि 'कस्साब' हो हम पाल रहे है.

'बिंदु' जो कभी थे वो हिमालय से लगे अब,
'रेखाओं' के नीचे जो है, पामाल रहे है.

बदली 'परिभाषा , मनोरंजन की तो देखो,
अब 'बार की बालाओं' को वो 'ताक' रहे है !

.........और भी है.....http://aatm-manthan.com पर...

pankaj srivastava said...

वाह भाई अजित...बचपन में भाई-बहन एक दसरे का कान पकड़कर आलाबाला खेलते थे....मतलब आज समझ में आया....

Sanjay Karere said...

इसे भी दुरुस्‍त कर लिया है... शुक्रिया

Shanth said...

अजित जी, बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ की आपके इस "शब्दों के सफ़र" पर आपने हमें भी हमसफ़र बना लिया। एक छोटी सी भूल नज़र पड़ती है, जो आपकी आज्ञा से सुधारना चाहूँगा:

“ज़ल तू, ज़लाल तू, आई बला को टाल तू ।”

उपर्युक्त कहावत में जहाँ आप "ज़ल" व "ज़लाल" लिखतें हैं, वहाँ "जल" और "जलाल" होना चाहिए. ये दोनों शब्द ( جل , جلال ) अरबी भाषा में "जीम" से शुरू होते हैं, "ज़े" या "ज़ाल" से नहीं।

Dr Pande said...

बिलकुल दुरुस्त। जलील को अगर ज़लील कह के सम्बोधित करें तो सिरफुटौवल हो सकती है ! इजिप्शियन जीम को जीम न कह गीम कहते हैँ | अतः जलील को गलील , लहजा को लहगा और जदीद को गदीद !

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