Wednesday, May 16, 2012

सकीना और शान्ति

peace-of-mind

कि न्ही शब्दों के अन्य भाषाओं में पर्याय तलाशने का काम तो रोज़मर्रा में हम करते ही हैं क्योंकि आज के महानगरीय जीवन में हमारे इर्दगिर्द बहुभाषी परिवेश है । मगर व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के अन्य भाषाओं में प्रतिरूप तलाशने की दिलचस्प मग़ज़मारी लोग कम करते हैं । हमें यह चस्का अर्से से है । शब्दों का सफ़र में ऐसे प्रतिरूपों पर कभी-कभार चर्चा हुई है मगर व्यक्तिवाचक संज्ञाओं के संदर्भ में कम बात हुई है । इस बार कुछ ऐसा ही शग़ल करने का मन है । हम बात करेंगे सक़ीना और शान्ति की । दोनों में बहनापा है । भाषा परिवार की दृष्टि से सक़ीना सेमिटिक परिवार से हिन्दी में आई है तो शान्ति का रिश्ता आर्यभाषा परिवार की वैदिक शब्दावली से जुड़ता है ।
मुस्लिम समाज में रखे जाने वाले ज्यादातर नाम अरबी मूल से आते हैं । अरबी की कई व्यक्तिवाचक संज्ञाओं से बरास्ता उर्दू हम परिचित होते हैं । हमारे आसपास के मुस्लिम परिवेश में हम स्त्री-पुरुषों के नामों से हम परिचित होते हैं जैसे अलीम, सलीम, कलीम...मगर इनका अर्थ जानने का प्रयास बहुत कम होता है । ऐसा ही एक शब्द है सकीना । दरअसल यह व्यक्तिवाचक संज्ञा है । सकीना नाम मुस्लिम परिवारों में कन्या के लिए रखा जाने वाला बड़ा आम नाम है । सकीना का अर्थ होता है शान्ति । मंटो की प्रसिद्ध कहानी खोल दो का प्रमुख किरदार दंगाइयों की ज्यादती का शिकार सकीना sakina नाम की लड़की है । सकीना का रिश्ता सुकून से है । अरबी भाषा से बरास्ता फ़ारसी होते हुए हिन्दी मे समाए आमफ़हम शब्दों में सुकून भी है । इसका शुद्ध रूप सुकूँ sukun है । सुकून यानी शान्ति, तसल्ली, चैन, आराम आदि । कहा जाता है कि शान्ति तभी मिलती है जब चित्त में स्थिरता हो । स्थैर्य और धैर्य दोनो ही ज़रूरी हैं । प्रोटो सेमिटिक भाषा परिवार की एक महत्वपूर्ण धातु है स-क-न ( s-k-n ) जिसमें निवास करने, रहने का भाव है । कुल मिला कर रहने, वास करने में स्थिरता का भाव प्रमुख है । मनुष्य ज़िंदगी में सुख, चैन, शान्ति की ही चाह रखता है । सुख भौतिक या आध्यात्मिक होते हैं मगर शान्ति सिर्फ़ मानसिक ही होती है । यही बात सुकून में भी है । सुखून की अनुभूति शरीर को नहीं, दिलो-दिमाग़ को होती है । मन जब तक भटकता रहेगा, अशान्ति रहेगी । मन जैसे ही स्थिर होगा, चैन आएगा, आराम आएगा । यही सुकून है जिसमें स्थिरता का भाव है ।
सेमिटिक स-क-न धातु से ही बना है तस्कीन या तस्कीं शब्द जिसका अर्थ है ढाढ़स, धैर्य, आश्वासन, दिलासा आदि । तस्कीन का प्रयोग शायरी में तो खूब होता ही है, रसीली हिन्दी लिखने बोलने वाले भी तस्कीन का प्रयोग करते हैं मसलन- “किसी के आने से दिल को तस्कीन तो मिलती ही है ।” इसी कड़ी में आता है साकिन शब्द जिसका अर्थ शाब्दिक अर्थ है जो स्थिर हो । इसका आशय किसी जगह विशेष पर निवास करने वाले से है । आज भी गाँव देहात में राजस्व दस्तावेज़ों में पुराने ज़माने की फ़ारसी का प्रयोग देखने को मिलता है जैसे रामबख्श वल्द मौलाबख्श साकिन नूरपुर ।
हिन्दी की एक आम स्त्रीवाची संज्ञा है शान्ति । चार-पाँच दशक पहले हर मोहल्ले पड़ोस के घरों की लाड़लियाँ-दुलारियाँ शान्ति के नाम से जानी जाती थीं । ऐसे शान्ति-सदन अब बिरले ही नज़र आते हैं । शान्ति यानी स्थिरता, चैन, आराम । मौन, चुप्पी, खामोशी । स्तब्धता, निर्वाण, मृत्यु । ये अलग-अलग अर्थ-संदर्भ हैं जिनके लिए शान्ति का प्रयोग होता है । शान्ति हिन्दी का तत्सम शब्द है । शान्ति के मूल में शान्त शब्द है और शान्त के मूल में है संस्कृत की शम् धातु जिसमें शान्त, चुप्प, मौन, स्थैर्य, जीत, अन्त, मूकता, आराम, निवृत्ति जैसे भाव अभिप्राय हैं । यही सारे आशय शान्त शब्द में भी हैं । सौम्य, मौन, नीरव, विरक्त और वैराग्य जैसे भाव भी शान्त से प्रकट होते हैं । प्रायः हल, निराकरण, समाधान आदि के प्रयोजन से शमन शब्द शब्द का प्रयोग होता है । आग बुझाने के संदर्भ में अग्नि-शमन या जानने के संदर्भ में जिज्ञासा-शमन, शंका-शमन जैसे शब्दयुग्मों पर ध्यान दें । शम् में निहित अन्त अथवा जीत का भाव यहाँ प्रमुख है । शमन यानी अन्त करना, विजय प्राप्त करना अर्थात निराकरण करना ।
शांतनु भी इसी मूल से उपजी व्यक्तिवाची संज्ञा है । महाभारत के कालजयी चरित्र भीष्म पितामह इन्हीं के पुत्र थे । शम् धातु से जन्मे शान्ति या शान्ता जैसे नामों को आजकल के माँ-बाप दकियानूसी समझते हैं वहीं इसी मूल से जन्मे शम्पा (विद्युत, तड़ित), शमित, शमिता ( शान्त, संतुष्ट ) और शांतनु जैसे नाम आधुनिक समझे जाते हैं । हालाँकि इन सबका मूलाधार वैदिक शब्दावली ही है । यूँ तो सभी धर्मों का संदेश सदाचार और शान्ति होता है मगर जैन धर्म के साथ शान्ति का नाता कुछ ऐसा है कि इस समुदाय में व्यक्तिनाम के तौर पर शान्ति शब्द का सर्वाधिक प्रयोग देखने को मिलता है । पुरुषों के नाम के साथ कुमार शब्द जोड़ा जाता है । जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर का नाम शान्तिनाथ है ।

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5 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

शान्ति सबका प्रिय शब्द है..

पुष्प कुलश्रेष्ठ said...

वाकई सुकून पहुचने वाला आलेख ......शुभकामनाये

निर्मला कपिला said...

दिलचस्प जानकारी। धन्यवाद।

Mansoor ali Hashmi said...

जिज्ञासा 'शांत' कर गयी ये पोस्ट आपकी,
दिल को मिला 'सुकून', और मन को 'शान्ति'

'वक़्त और मकाँ' ने अर्थ भी बदले है शब्द के,
'शब्दों' के मूल में छुपी कितनी ही क्रांति !

अपना लिया जिसे वही 'अपना' ही हो गया,
'भाषा-विवाद' छोड़े ! करे दूर भ्रान्ति,

'बहनापा' इनमे बाक़ी सलामत रहे ख़ुदा,
हर घर में 'सकीना' हो हर इक घर में 'शान्ति'.

http://atm-manthan.com

Asha Joglekar said...

सकीना ही शान्ति है और सुकून भी । सुंदर आलेख ।

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