सूफी संतों का में भारी योगदान रहा है। सूफीमत या सूफीवाद का भारत मे सातवी-आठवीं सदी में प्रवेश माना जाता है। सूफियों का मजहब तो इस्लाम ही था लेकिन वे हिन्दुस्तानी संस्कृति की समृद्धि प्रेममार्गी थे, ब्रह्मज्ञानी थे। सभी मज़हबों को समान माननेवाले थे, इसीलिए हिन्दू और मुसलमान दोनों को ही वे अपने प्रेमपंथ में दीक्षित करना चाहते थे।
फिलॉसॉफी और फलसफा का एक रिश्ता सूफीवाद या सूफीज्म से भी जुड़ता है। सूफी शब्द की उत्पत्ति का कोई एक सर्वमान्य आधार अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन जितने भी उद्गम,आधार या व्याख्याएं सामने आई हैं वे सभी बहुत सुंदर और तार्किक हैं। साथ ही साथ इन सबमें एक अंतर्संबंध भी नज़र आता है।
सूफी के पीछे अरबी भाषा के सूफ़ शब्द को भी देखा जाता है। सूफ का मतलब होता है ऊन, श्वेत वस्त्र, सूती वस्त्र, भेड़ या बकरी के बाल। सूफ़ी शब्द से इसका रिश्ता जोड़ने की वजह है दरवेशों की सफेद चोगेवाली वेशभूषा। सूफ से बने वस्त्रों को धारण करने की वजह से सूफी की रचना हुई। हिन्दी के साफा और साफी भी इसी श्रंखला में आते है। सूफ़ का एक अन्य अर्थ है विद्वत्ता, ज्ञान, दानाई, विज्ञान, आयुर्वेद, युक्ति, तरकीब वगैरह वगैरह। सूफी ब्रह्मज्ञानी थे और प्रेम को ही मु्क्ति का आधार समझते थे। जाहिर है इन तमाम अर्थों में उनके लिए सूफी शब्द प्रचलित हो जाना सहज था।
स्वच्छता के अर्थ में अरबी का ही एक अन्य शब्द है सफा। विशुद्धता , पवित्रता, चमक-दमक, खरापन आदि के अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है। इसी शब्द से हिन्दी , उर्दू में सफाई, सफेद और साफ-सफाई, सफेदा, सफेदपोश जैसे शब्द बने हैं और अभिप्राय शुचिता-पवित्रता का ही है। मगर गौर करें कि आज सफेद कपडे़ पहनना कतई इस बात की गारंटी नहीं कि आप भलेमानुस भी होंगे मगर किसी ज़माने में ऐसा था इसी लिए सूफी जैसा शब्द बन गया। सूफी की व्याख्या के लिए यह शब्द भी पर्याप्त आधार पेश कर रहा है। गौर करें कि ज्ञान का सर्वाधिक प्राचीन प्रतीक है
उजाला या प्रकाश प्रकारांतर से सूर्य। इसे यूं समझें कि प्रकाश की मौजूदगी में ही जगत् का ज्ञान मिलता है। बाद में ज्ञान खुद एक चमक या रोशनी बन जाता है। इस तरह सूफी शब्द का मतलब सफेदपोश तो हुआ मगर भौतिक रूप से श्वेतवस्त्र धारण करनेवाला नहीं बल्कि वह जो ज्ञान के भरा-पूरा है। फिलॉसॉफी के sophis शब्द का भी ग्रीक भाषा में मतलब ज्ञान ही है। सूफी शब्द की खूबियों पर गौर करें तो सफा शब्द से भी इसकी व्युत्पत्ति की सही – सही व्याख्या हो जाती है बल्कि फिलॉसॉफी और फलसफा से भी इसका मेल बैठ जाता है।
Monday, October 1, 2007
सफेदपोश नहीं उजले होते है सूफी
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:56 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 कमेंट्स:
प्रेम और बह्मज्ञान सफेद होता है ति व्यवहारिक ज्ञान का क्या रंग है? इसपर भी शब्द पोस्ट बननी चाहिये.
Post a Comment