Tuesday, October 2, 2007

ग्वालों की बस्ती में घोषणा

 


आमतौर पर गायों को रखने के स्थान को गोशाला कहा जाता है। गोवंश से जुड़ी शब्दावली का ही एक शब्द है घोष अथवा घोषः जिसका जिसका मतलब भी गोशाला ही है। यूं आमतौर पर इस शब्द का मतलब मुनादी अथवा घोषणा ही है। घोषः शब्द बना है संस्कृत की घुष् धातु से जिसके मायने हैं कोलाहल करना, चिल्लाना, सार्वजनिक रूप से कुछ कहना वगैरह। घोषः या घोष का मतलब गोशाला तो होता ही है इसके अलावा ग्वालों की बस्ती, गांव या ठिकाने को भी घोष ही कहते हैं। अहीरों के टोले और बस्तियां भी प्राचीनकाल में घोष ही कहलाती थीं। गौरतलब है कि मवेशियों को लगातार हांकने और देखभाल करने के लिए इन बस्तियों में लगातार होने वाले कोलाहल की वजह से यह नाम मिला होगा। पूर्वी उत्तरप्रदेश के एक जिले का नाम है घोसी जिससे साफ जाहिर होता है कि किसी ज़माने में यहां गोपालकों की बस्तियां बहुतायत में होंगी इसीलिए इस पूरे क्षेत्र को ही घोष कहा जाने लगा जो बाद में घोसी के रूप में प्रचलित हुआ। गोपालकों के एक वर्ग का उपनाम भी घोसी है जिसके पीछे भी घोष ही है। उत्तरप्रदेश में घोसी प्रायः मुस्लिम अहीरों का उपनाम होता है। पश्चिमी राजस्थान और गुजरात में भी दुग्ध उत्पादक किसानों का एक जाति-नाम घांची भी है जिससे जाहिर है कि पूर्व में जो घोसी है वही पश्चिम में घांची है। संस्कृत में घोष का अर्थ न सिर्फ शोरगुल, मुनादी या घोषणा है बल्कि इसका एक मतलब झोपडी भी होता है। इसी तरह कायस्थों के एक गोत्र का नाम भी घोष है। बंगाल में यह उपनाम ज्यादा देखने को मिलता है। घोषाल भी प्रचलित है। घोष से ही बना है घोषवती शब्द जिसका अर्थ है वीणा। वीणा के तारों की झन्कार से निकलते गंभीर नाद को जिसने भी सुना है वह जानता है कि घोषवती नाम कितना सार्थक है। इसी तरह ऋग्वेद में उल्लेखित एक महिला ऋषि का नाम भी घोषा है।

2 कमेंट्स:

Gyan Dutt Pandey said...

मेरे दो ब्लॉगों पर क्रमश: श्रीकृष्ण और श्री अरविन्द घोष के चित्र हैं. यह अच्छा लगा जान कर कि दोनो में शाब्दिक सूत्र भी जमता है - ग्वाले का!

Anonymous said...

ये एक jati भी है. मैं इस पर एक aalekh अपने ब्लॉग
http://fmghosee.blogspot.कॉम
जल्दी ही likhunga

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