हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के एक बड़े शाइर थे जनाब मुनीर नियाज़ी साहब। नौ अप्रैल १९२८ को पंजाब के होशियारपुर जिले के खानपुर गांव में वे जन्मे थे। बाद में वे पाकिस्तान जा बसे थे। बीते बरस वे हमारे बीच नहीं रहे। मेरे प्रिय शाइरों में वो भी थे। उनकी एक नज्म मुझे पसंद है जिसकी कहन काबिल-ए-तारीफ है। एक ग़ज़ल भी , जो आप सबने सुनी होगी। इसे सबसे उम्दा गुलाम अली साहब ने गाया है। मेंहदी हसन साहब ने भी उनकी कई ग़ज़लें गाई हैं।
कोई और तरह की बात करो
दिल जिस से सब का बहल जाए
ध्यान और तरफ को निकल जाए
कोई और तरह की बात करो
ध्यान और तरफ को निकल जाए
किसी और खयाल में ढल जाए
बेमसरूफ दिन के आखिर पर
ये ढलती शाम संभल जाए
इस सख्त मकाम ज़माने का
ये सख्त मकाम बदल जाए
कोई और तरह की बात करो
किसी घाट पे किश्ती आन लगे
कोई नई नई पहचान लगे
कोई नया नया अंजान लगे
बेमसरूफ दिन के आखिर पर
ये ढलती शाम संभल जाए
कोई और तरह की बात करो
बेचैन बहुत फिरना...
बेचैन बहुत फिरना , घबराए हुए रहना
इक आग सी जज्बों की , दहकाए हुए रहना
इस हुस्न का शेवा है, जब इश्क नज़र आए
पर्दे में चले जाना, शरमाए हुए रहना
इक शाम सी कर रखना , काजल के करिश्मे से
इक चांद सा आंखों में , चमकाए हुए रहना
और हासिले-गजल शेर है-
आदत ही बना ली है , तुमने तो मुनीर अपनी
जिस शहर में भी रहना , उकताए हुए रहना
-मुनीर नियाज़ी
एकाध शेर और है जो मुझे याद नहीं आ रहा।
Friday, October 5, 2007
कोई और तरह की बात करो
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:32 AM
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3 कमेंट्स:
अजितजी,
इतनी बढिया नज्म पढवाने के लिये धन्यवाद !
बेचैन बहुत फिरना , घबराए हुए रहना ये तो लाइन कमाल की हैं और अखिरी वाली तो लाजवाब है.. जिस शहर में रहना उक्ताए हुए रहना ... दिल को छू जाती है.. गुलाम अली साहब ने इसे गाया भी है, मुनीर नियाज़ी की ये वाली पोस्ट चढाने के लिये आपको बहुत बहुत शुक्रिया,
धन्यवाद!
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