Saturday, October 13, 2007

पलंगतोड़ के बहाने पालकी का सफर

मतौर पर आलसी और काहिल आदमी को पलंगतोड़ कहते हैं। जानते हैं पलंग के बारे में जिसने हिन्दी को पलंग तोड़ना जैसा शानदार मुहावरा दिया। पलंग शब्द भी उन कई शब्दों में शामिल है जो भारत में पैदा होकर कई मुल्कों भाषाओं के चक्कर लगा कर एक अलग ही रूप में फिर देश लौट आए । अंग्रेजी का एक शब्द है पैलनकीन (palankeen) जिसका मतलब है एक ऐसा खटोला जिसे चार या उससे अधिक लोग कंधों पर उठाएं। हिन्दी मे इसके लिए पालकी या डोली शब्द है। पालकी या डोली आमतौर पर चार लोग मिलकर उठाते हैं जिन्हें कहार कहते हैं। आज के दौर में न पालकी रही , न डोली मगर गीत-संगीत के जरिये ये शब्द आज भी जिंदा हैं । ये पंक्तियां बहुतों ने अपने बचपन में सुनी होंगी और इससे संबंधित खेल भी खेला होगा -

हाथी, घोड़ा , पालकी ।
जय कन्हैयालाल की ।।


गौरतलब है कि पालकी और पैलनकीन का न सिफ अर्थ एक है बल्कि ये जन्में भी एक ही उद्गम से हैं और वह है संस्कृत शब्द पर्यंक: जिसका मतलब होता है शायिका। इसके अलावा इसका अर्थ समाधि मुद्रा या एक यौगिक क्रिया भी है जिसे वीरासन कहते हैं।
संस्कृत में पर्यंक: का ही एक और रूप मिलता है पल्यंक:। खास बात ये कि हिन्दी का पलंग शब्द इसी पर्यंक: से निकला है और संस्कृत मे भी इसका अर्थ चारपाई, शायिका या खाट ही है। संस्कृत से पालि भाषा मे आकर पर्यंक: ने जो रूप धारण किया वह था पल्लको। यही शब्द पलंगडी़ के रूप में भी बोला जाता है। पलंग चूंकि शरीर को
आराम देने के काम आता है और आराम का आधिक्य मनुश्य को आलसी बना देता है लिहाज़ा हिन्दी में आलस से संबंधित कुछ मुहावरों के जन्म में भी इस शब्द का योगदान रहा जैसे पलंग तोड़ना यानी किसी व्यक्ति का काहिलों की तरह पडे रहना, कामधाम न करना, निष्क्रिय रहना आदि। ऐसे लोगों को पलंगतोड़ भी कहते हैं।
खास बात ये कि पूर्वी एशिया में बौद्धधर्म का प्रचार-प्रसार हुआ तो वहां पालि भाषा के शब्दो का चलन भी शुरू हुआ। इंडोनेशिया के जावा सुमात्रा द्वीपो में आज भी पालकी के लिए पलंगकी शब्द चलता है जो पालि भाषा की देन है। जावा सुमात्रा पर पुर्तगाली शासन के दौरान यह शब्द पुर्तगाली जबान में भी पैलनकीन (palangquin) बनकर शामिल हुआ और इसके जरिये योरप जा पहुंचा। अंग्रेजी में इसने जो रूप लिया वह था पैलनकीन। उर्दू फारसी में पलंग शब्द तो है मगर इसका अर्थ चारपाई न होकर तेंदुआ है।

8 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई........


और ये चले हम, पलंग तोड़ने. :)

--ज्ञानवर्धन का आभार.

काकेश said...

हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक.
चारपाई के बारे में मेरी आज की और कल आने वाली पोस्ट अवश्य पड़ें. http://kakesh.com

आपकी पसंद हम नहीं बन पाये इसका दुख है.;-)

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! तेन्दुये पर जो सवार हो कर सो सके वही सही मायने में आलसी!

अनूप शुक्ल said...

कलम तोड़ लिखा है। शुक्रिया!

sanjay patel said...

पलंगतोड़ पर वही लिख पाते हैं जो पलंगछोड़ होते हैं यानी आप जैसे कर्मठ और
शब्द-शोधार्थी..अजित भाई.

Ashok Pande said...

बढ़िया काम है आपका। पलंग तोड़ते रहने वालों को शिक्षा मिलेगी शायद आपकी मेहनत से। शुभकामनाएं।

बोधिसत्व said...

क्या बात है प्रभु.....आपने तो पलंग, खटोला सब तोड़ दिया....

अजित वडनेरकर said...

समीर भाई, ज्ञानजी, काकेश जी ,अशोक जी, बोधिभाई,अनूपजी और संजयभाई आप सबको यह पोस्ट पसंद आई इसका शुक्रिया।

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