तिल पर पिछली चर्चा के सिलसिले में इस उद्गम से जन्में एक और शब्द का पता चला। तिलोत्तमा नाम की एक अप्सरा का पुराणों में उल्लेख है। इसके बारे में अलग-अलग संदर्भ हैं। कहा जाता है कि इसकी रचना के लिए ब्रह्मा ने तिल-तिल भर संसार भर की सुंदरता को इसमें समाहित किया था इसीलिए इसका नाम तिलोत्तमा पड़ा।
एक कथा के अनुसार हिरण्यकशिपु के कुल में निकुंभ नाम का प्रतापी दैत्य हुआ। उसके दो पुत्र थे सुंद और उपसंद। दोनों एक शरीर दो आत्मा की तरह थे और परस्पर अतुल स्नेह भी रखते थे। उन्होंने त्रिलोक पर राज करने की कामना से विन्ध्याचल पर्वत पर घोर तपस्या की । उनके तप तेज से देवता घबरा गए और हमेशा की तरह ब्रह्मा की शरण में गए। ब्रह्मा स्वयं दोनो भाइयों के सामने गए और उनसे वर मांगने को कहा। दोनों ने अमरत्व मांगा। ब्रह्मा ने साफ इन्कार कर दिया। तब दोनों ने कहा कि उन्हें यह वरदान मिले कि एक दूसरे को छोड़कर त्रिलोक में उन्हें किसी से मृत्यु का भय न हो। ब्रह्मा ने कहा – तथास्तु। जैसा कि होना ही था, सुंद-उपसुंद लगे उत्पात करने जिसे देवताओं ने अत्याचार की श्रेणी में गिना और फिर ब्रह्मा के दरबार में गुहार लगा दी। अब तो दोनो की मौत तय थी, बस उपाय भर खोजा जाना बाकी था। ब्रह्माजी को उनके वरदान की याद दिलाई गई। ब्रह्माजी ने फौरन विश्वकर्मा को तलब किया और एक दिव्य सुंदरी की रचना का आदेश दिया। बस, विश्वकर्मा ने त्रिलोक भर की तिल-तिल भर सुंदरता लेकर एक अवर्णनीय सौंदर्य प्रतिमा साकार कर दी। ब्रह्माजी ने उसमें प्राण फूंक दिये। यह सुंदरी तीनों लोकों में अनुपम थी। ब्रह्माजी ने इसका नाम तिलोत्तमा रखा। -
तिलं तिलं समानीय रत्नानां यद् विनिर्मिता ।
तिलोत्तमेति तत् तस्या नाम चक्रे पितामहः ।।
बस, उसे दोनो भाइयों के पास जाने को कहा गया। तिलोत्तमा का वहां जाना था, दोनों का उसपर एक साथ मोहित होना था और फिर एक दूसरे की जान का प्यासा होना तो तय । ब्रह्माजी का वरदान फलीभूत हुआ। दोनो आपस में ही लड़ मरे।
एक अन्य उल्लेख में तिलोत्तमा कश्यप ऋषि और अरिष्टा की संतान थी। अरिष्टा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। गंधर्वों और अप्सराओं की इसी की संतान माना जाता है। तिलोत्तमा को पूर्व जन्म में कुब्जा कहा गया है।
Wednesday, October 17, 2007
तिलोत्तमा यानी दुनिया की पहली मिस यूनिवर्स !
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:46 AM
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3 कमेंट्स:
तिलोत्तमा की कथा जानना रुचिकर रहा, बहुत धन्यवाद.
तिलोत्तमा की कथा सुनकर ज्ञानवर्धन हुआ. धन्यवाद.
रूचिकर शब्द्चर्चा और मनोहर कथा प्रस्तुति
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