आमतौर पर हंसोड़ और परिहासप्रिय व्यक्ति को समाज में पसंद किया जाता है। ये लोग चूंकि सामान्यत: हर बात में हंसी-ठट्ठे का मौका तलाश लेते हैं इसलिए ऐसे लोगों को अक्सर विदूषक या मसखरा की उपाधि भी मिल जाती है। हालांकि ये दोनों ही शब्द कलाजगत से संबंधित हैं और नाटक आदि में ठिठोलीबाजी और अनोखी वेषभूषा, बातचीत, हावभाव,मुखमुद्रा आदि से परिहास उत्पन्न कर दर्शकों के उल्लास में वृद्धि करनेवाले कलाकार को ही मसखरा या विदूषक कहा जाता है।
हिन्दी में मसखरा शब्द अरबी के मस्खर: से बरास्ता फारसी उर्दू होते हुए आया। में अरबी में भी मस्खर: शब्द का निर्माण मूल अरबी लफ्ज मस्ख से हुआ जिसका मतलब है एक किस्म की खराबी जिससे अच्छी भली सूरत का बिगड़ जाना या विकृत हो जाना। यह तो हुई मूल अर्थ की बात । मगर यदि इससे बने मसखरा शब्द की शख्सियत पर जाएं तो अजीबोगरीब अंदाज में रंगों से पुते चेहरे और निराले नैन नक्शों वाले विदूषक की याद
आ जाती है। हिन्दी के मसखरा शब्द का अरबी रूप है मस्खरः
जिसके मायने हैं हँसोड़, हँसी-ठट्ठे वाला, भांड, विदूषक या नक्काल वगैरह। जाहिर है लोगों को हंसाने के लिए मसखरा अपनी अच्छी-भली शक्ल को बिगाड़ लेता है। मस्ख का यही मतलब मसखरा शब्द को नया अर्थ देता है।
इसी नए अर्थ के साथ अरब के सौदागरों के साथ यह शब्द स्पेन और इटली में मैस्खेरा बन कर पहुंचता है जहां इसका मतलब हो जाता है मुखौटा या नकाब। अरब से ही यह यूरोप की दीगर जबानों में भी शामिल हो गया और इटालियन में मैस्ख और लैटिन में मैस्का बना । फ्रैंच में मास्करैर कहलाया जहां इसका मतलब था चेहरे को काला रंगना। अंग्रेजी में इसका रूप हुआ मास्क यानी मुखौटा। मध्यकाल में मसखरा शब्द ने मेकअप और कास्मैटिक की दुनिया में प्रवेश पाया और इसका रूपांतर मस्कारा में हो गया जिसके तहत मेकअप करते समय महिलाएं काले रंग के आईलाईनर से अपनी भौहों और पलकों को नुकीला और गहरा बनाती हैं।
हालांकि सेमेटिक भाषा परिवार की होने के बावजूद अरबी ज़बान में मस्ख की मौजूदगी मूलभूत नहीं जान पड़ती। संस्कृत में एक धातु है मस् जिसका मतलब है रूप पदलना, पैमाइश करना। इससे बना है मसनम् जिसका मतलब है एक प्रकार की बूटी (चेहरे पर लेपन के लिए ?)। हिन्दी-संस्कृत के मस्तक या मस्तकः या मस्तम् ( सिर, खोपड़ी ) शब्द के मूल में भी यही मस् धातु है। गौर करें कि मस्ख से बने मास्क को मस्तक पर ही लगाया जाता है। मस्तिष्क यानी दिमाग़ का मस्तक से क्या रिश्ता है बताने की ज़रूरत नहीं,ज़ाहिर है इसके मूल में भी यही धातु है। माथा, मत्था जैसे देशज शब्द भी इसी की उपज हैं।
आवारगी, बेचारगी, दीवानगी की तर्ज पर मस्खरः में ‘अगी’ प्रत्यय लगने से अरब,फारसी में बनता है मस्खरगी यानी मस्खरापन या ठिठोलेबाजी। मगर इसके विपरीत इसमें ‘शुदा’ प्रत्यय लगने से बन जाता है विकृत, रूपांतरित आदि।
Saturday, October 20, 2007
मसखरे की मसखरी सिर-माथे !
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7 कमेंट्स:
बड़ा रोचक रहा यह जानना कि मास्क और मस्कारा भी मसखरा से निकले हैं. ज्ञानवर्धन के लिये बहुत आभार.आप रोज एक से एक बेहतरीन ज्ञान दे जाते हैं.
agar sanskrit mein mas hai to kya ye sambhav nahin ki ye shabd sanskrit se arabi mein gaya ho?
शब्द जगत को मसमसाती हुई मस्त पोस्ट है यह।
सुन्दर। आपका ब्लाग पढ़ने के बाद्स शब्दों की रिश्तेदारी समझने का मन बनने लगता है। मसखरा से ही आगे मुस्की,मुस्कान शब्द बने हैं क्या? ये भी तो चेहरे पर ही धारण किये जाते हैं। :)
ज्ञानवर्धक.
भौत बढ़िया
वाह बहुत ही सुंदर जानकारी ,यह सब शब्द तो रिश्ते दार निकले :) शुक्रिया
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