Monday, October 29, 2007

ख्यात, विख्यात और कुख्यात

शोहरत के अर्थ में हिन्दी में एक शब्द और इस्तेमाल किया जाता है ख्यात् या ख्याति। इसमें उपसर्गों के जुड़ने से विख्यात, प्रख्यात या सुख्यात और कुख्यात जैसे शब्द भी बनते हैं औ ये सब हिन्दी में विख्यात हैं। ख्यात या ख्याति के मूल में है संस्कृत की ख्या धातु जिसमें कहना, घोषणा करना और प्रसिद्ध होना जैसे भाव निहित हैं।

ख्या से ही बने हैं व्याख्या या व्याख्यान जैसे शब्द। व्याख्या का शब्दार्थ हुआ किसी तथ्य का सुविस्तृत भाष्य अथवा टीका । इसके अलावा वृत्तान्त या वर्णन भी इसमें शामिल है। इसी तरह व्याख्यान में भी वृत्तान्त या वर्णन के साथ किसी किसी चीज़ का ज्ञान कराना, समाचार देना, व्याख्या करना आदि है। जाहिर है ये सारे काम जो करता है उसे ही व्याख्याता कहा जाएगा।

हिंदी संस्कृत में पौराणिक कथा के लिए आमतौर पर आख्यान शब्द का प्रयोग होता है जो ख्या से ही निकला है। आख्यान या आख्यायिका ऐसी कहानी होती है जिसमें कहने वाला स्वयं कथा का एक चरित्र होता है।

अब आते हैं उपाख्यान परमराठी समेत हिन्दी की कुछ बोलियों में कहावतों के लिए एक शब्द आमतौर पर प्रचलित है उक्खान जिसे मराठी में इसे उखाणं कहते हैंयह बना है उपाख्यान सेलोक व्यवहार को लेकर कही गई नीतिगत बात ही उक्खान या कहावत बन जाती है जैसे थोथा चना, बाजै घनावे तमाम बातें जो धार्मिक ग्रंथों में आख्यायिका के रूप में मौजूद हैं उन्हीं के रोचक प्रसंग या उक्तियां कहावतों अथवा उक्खानों के रूप में विख्यात हो गए

6 कमेंट्स:

VIMAL VERMA said...

लेख पसन्द आया... आपका नाम भी लब्धप्रतिष्ठ और ख्यातिलब्ध ब्लॉगलेखन के लिये किया जायेगा !!बड़े दिनो बाद आपके द्वार पर आया हूं..अच्छा लगा शुक्रिया !!

sanjay patel said...

अजित भाई शब्दों की रचना में ध्वनि का जादू भी निराला है.उखाण के नज़दीक का ही शब्द देखिये ओखाणां यानी कहावतें ..राजस्थानी का शब्द है ये. मालवी में नंगे पैर को कहा जाता है अवराणे जो मराठी में हो जाता है अनवाणी.शोहरत शब्द से शुरू आपके इस सफ़र पर एक शेर नज़्र कर रहा हूँ..अर्ज़ किया है...
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पर बैठे हो वह टूट भी सकती है
खु़दा हाफ़ि़ज़.

Udan Tashtari said...

आभार ज्ञानवर्धन के लिये, हमेशा की तरह.

बोधिसत्व said...

मैंने आपकी सुपारी दे दी है....
अब गर और अच्छा लिखा तो...ठीक नहीं होगा....कहे देता हूँ.....
मस्त जा रहे है....जाते रहें....

दीपा पाठक said...

अजित जी, इसमें कोइ दोराय नहीं कि आपका ब्लाग सबसे अलग है। शब्दों का यह सफर सचमुच बहुत दिलचस्प है। एक-एक शब्द के बारे में जानकारी देने में आप कितनी मेहनत करते होंगे यह साफ दिखाई देता है। मेरे जैसे लोगों को जिन्हें भाषा की तमीज़ सीखनी बाकी है आपका ब्लाग बहुत मददगार है। बने रहिए अपने शानदार सफर में, हम भी काफिले में शामिल हैं।

अजित वडनेरकर said...

दीपाजी, बोधिभाई, संजयजी,विमलबाबू और समीरजी का बहुत बहुत आभार है। हमारे धाम पर आने का और शरीके-सफर होने का। ये कारवां भी चलता रहेगा और शब्दों की पंचायत भी होती रहेगी। शुक्रिया एक बार फिर ।

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