धनसंपत्ति हमेशा पारिवारिक कलह की वजह बनती है और इसकी वजह से अक्सर घर टूटते हैं। अब चाहे अकूत सम्पदा की बात हो या बटुए में समाने लायक लक्ष्मी की, परिजनों में झगड़ा तभी शांत होता है जब बंटवारा होता है। अनादिकाल से विभाजन के जरिये ही सम्पत्ति विवाद सुलझाए जाते रहे हैं -न्यायिक तौर पर भी। पौराणिक आख्यानों में यही दर्ज है। दरअसल बंटवारा एक व्यवस्था का नाम है । देखते हैं बटुए और बंटवारे की रिश्तेदारी ।
विभाजन के लिए संस्कृत में एक धातु है वण्ट् जिसका अर्थ है अंश, खण्ड, हिस्सा आदि। इससे बने वण्टः में भी यही भाव समाहित हैं। वंण्ट से ही बने हैं विभाजन से संबंधित कई शब्द मसलन बांटना, बंटवाना, बंटवारा , बंटवार, बटनिया आदि। भूमि बंदोबस्त की एक प्रणाली को बंटाई या बटाई कहते हैं और यह आज भी जारी है। इसके तहत उपज के एक हिस्से के बदले भूस्वामी किसी को भी अपनी ज़मीन पर काश्त करने देता है। बांटने वाले को बंटैया भी कहते हैं। किसी योजना का सत्यानाश होना या चौपट होना बंटाधार कहलाता है। दो जनों को लड़ा कर अपना फायदा देखना बंदरबांट होती है। इसका राजनीतिक अर्थ फूट डालो और राज करो जैसे मुहावरे में साफ है। इन मुहावरों मे भी विभाजन सूचक वण्ट् ही नज़र आ रहा है। आजादी के बाद जब हिन्दी का सरकारीकरण शुरु हुआ तो आवंटन जैसा शब्द सामने आया । इसमें भी अंश या खण्ड वाला अर्थ स्पष्ट है। किसी भूखंड, राशि अथवा अनाज के कोटे के संदर्भ में अक्सर आवंटन शब्द हम अखबारों में पढ़ते हैं।
रुपए – पैसे रखने के लिए अक्सर हम मनीबैग का उपयोग करते हैं मगर बोलचाल की भाषा में इसके लिए बटुआ या पर्स शब्द का ही प्रयोग ज्यादातर होता है। उसमें भी पर्स शब्द का इस्तेमाल बटुए की तुलना में कहीं ज्यादा होता है। यह बटुआ भी इसी वंट की उपज है। पर्स या बटुए की क्या खासियत होती है ? इसमें अलग अलग खण्ड या हिस्से होते हैं। वण्ट् धातु का अर्थ ही है विभाजन, खण्ड या हिस्से। इसी खासियत की वजह से वण्ट् से बना वण्टकः जिसे हिन्दी में बटुआ नाम मिला। बटुए आज भी चलन में हैं और महिलाएं शौक से इन्हें इस्तेमाल करती हैं। इसमें रूपए पैसे अलग अलग रखने की सुविधा के चलते ये कभी चलन से बाहर नहीं हुए। बटुआ मराठी में बटवा, गुजराती में बटवो के रूप में प्रचलित है।
Sunday, March 9, 2008
बटुए में हुआ बंटवारा [ जेब- 3 ]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:33 AM
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4 कमेंट्स:
बहुत देर अटका बटुए में शब्दों का सफर। बटुआ चीज ही ऐसी है। तीन माह पहले किसी ने हमारा टाँच लिया। हम सुकल्पना करते रहे कि कोई लौटा दे मेरा पुराना बटुआ। सब कुछ रख ले उस में पड़े हुए कागज ही लौटा दे। आज तक वापस नहीं लौटा। अब पैन कार्ड डुप्लीकेट बनवाना पड़ेगा।
सुन्दर लेख। बंटवारे वाला लेख भी बांधे हुये है।
AAKHIR AA HI GAYA BATUA...
MAINE PICHHLE PADAV PAR ISKI SAHAJ AASHA KI THI.
SANYOG HI SAHI LEKIN MUJHE BEHAD KHUSHI HUI.
EK BAAR PHIR AAPKO BAHAI.
MERI VIGAT TIPPNI JAROOR PADHIYEGA...AJIT JI.
AJIT JI,
BLOG PAR MERE GEET KE LIYE AAPKI SHUBHASHANSA KA AABHAR.
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