रोजमर्रा की पोशाक़ों में अक्सर शर्ट – कमीज़ पहनी जाती है । हिन्दी में ये दोनो शब्द खूब चलते हैं । कमीज़ शब्द हिन्दी में बरास्ता उर्दू आया । गौरतलब है शर्ट शब्द भी हिन्दी में खूब चलता है और यह अंग्रेजी से हिन्दी मे दाखिल हुआ । कमीज़ दरअसल कमर से ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र होता है जो आमतौर पर पूरी बांहों का होता है । मौसम के अनुरूप इसे आधी बांह का पहनने का भी चलन रहा है।
उर्दू का कमीज़ शब्द दरअसल फ़ारसी कमीज़ का ही रूप है। फ़ारसी में यह शब्द अरबी से आया जहां इसे कमीस या कमिस कहा जाता है। अरबी का कमीस शब्द पूरी दुनिया में छाया हुआ है। लैटिन में इसका रूप है कैमिसा, अल्बानी में केमिशे, मिस्री में कमीस, ग्रीक में पॉकमिस्क, इंडोनेशियाइ में केमिजा, रोमन में कमिसिया, मालदीवी में ग़मीज़, नेपाली में कमिज, सिंहली में कमिसे जैसे कई शब्द रूप मिलते हैं। ये सभी शब्द रूप मूल रूप से अरबी कमिस या कमीस से निकले हैं। जाहिर है कि अरब सौदागरों के दुनियाभर के साथ कारोबारी रिश्तों ने ही इस शब्द को सर्वव्यापी बनाया है।
अरबी भाषा में भी इस शब्द की व्युत्पत्ति मूल हिब्रू धातु क़म्स से हुई है जिसका मतलब छोटा वस्त्र होता है। क़म्स ने ही कमीस का रूप लिया। मूल हिब्रू में भी इस धातु से बना शब्द है क़मास जिसका मतलब हुआ बांहों का ढंका होना। जाहिर है सिर्फ बांहों को ढकनेवाला तो कोई वस्त्र होता नही लिहाज़ा कमीस अपने मूल रूप में पूरी बाहो वाला वस्त्र ही रही होगी।
हिन्दी में एक और शब्द आमतौर पर प्रचलित है शमीज़ जिसका मतलब होता है स्त्रियों का एक अंतर्वस्त्र । बनियान की तरह के इस वस्त्र को मुख्य पोशाक के नीचे पहनने का प्रचलन पूरी दुनिया में है। शमीज़ शब्द की व्युत्पत्ति भी कमीस से ही हुई है। मोटे तौर पर कमीस का शमीस या शेमीस रूप फ्रेंच में दिखाई देता है। वहीं से इसे अंतर्वस्त्र के तौर पर पहनने की शुरूआत हुई। शेमीस शब्द इस नए वस्त्र विन्यास का पर्याय बनकर अंग्रेजी में पहुंचा। फ्रेंच लोगों की आमद जब इथियोपिया में हुई तो वहां की ज़बान आम्हारिक में इसने कमीस की जगह शमीस का रूप ले लिया। अरबी, फारसी और फिर उर्दू में भी यह शब्द बाद में चला आया। स्त्रियों के अंतर्वस्त्र के तौर पर कंचुकी , अंगिया पहनने का चलन रहा है मगर भारत में शेमीस या शमीस शब्द की आमद अंगरेजी सभ्यता के साथ ही हुई है ऐसा मानने की खास वजह यही कि उर्दू – हिन्दी के शब्दकोशों में इस शब्द को स्थान नहीं मिला हुआ है। [ इसी से संबंधित एक अन्य शब्द पर चर्चा अगली कड़ी में ]
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली कड़ी विमल की चीज़ अपनी कहने पर तुले हैं प्रमोदसिंह पर स्वप्नदर्शी, अऩूप शुक्ल ,यूनुस , प्रमोदसिंह , अफ़लातून, अनिल रघुराज, चंद्रभूषण, संजीत त्रिपाठी, अनिताकुमार, अनुराधा श्रीवास्तव, आभा, शिवकुमार मिश्र, घोस्ट बस्टर, इरफ़ान और डॉक्टर अमर कुमार की प्रतिक्रियाएं मिलीं। आप सबका आभार ।
@डॉ अमर कुमार-
डॉक्टर साहब, आपका बहुत बहुत शुक्रिया । किसी बहाने सही, आप आए तो सही। मूलतः शब्दों का सफर शब्द-व्युत्पत्ति के रसिकों का मंच है जिनके लिए मैं आसान भाषा में शब्दों का सफर पेश करता हू। मगर इस पहल को साथियों ने इस क़दर पसंद किया कि सहयात्रियो की जमात बढ़ती चली गई। जाहिर है जब सफर लंबा होगा तो हम एक दूसरे के बारे में भी जानेंगे ही। बस, इसी विचार ने जन्म दिया बकलमखुद को। शब्दों का सफर अपनी जगह चलता रहेगा। वह है तो ही बकलमखुद है। आप साथ बने रहिये।
Tuesday, March 18, 2008
तमीज़दार लोगों की कमीज़ ...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 12:42 AM
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12 कमेंट्स:
भैया, कमीज पहन-पहना ली। तमीज को कहाँ छोड़ आए? उस की ज्यादह जरुरत है।
आज समझ में आया अजित भाई कि जो पहन रहे थे उस वस्त्र का जन्म कैसे हुआ. अब पहनूंगा तो शायद उस अर्थ को भी साथ महसूस करूंगा जो आपने बताए....निकट आ रही होली की राम राम.
अब तक तो सिर्फ पहनता था अब समझता भी हूं कि क्या पहन रखा है...... और भी बताएं
आज तक शब्दों के सफ़र की जानकारी पहनकर घर से निकलने की आदत-सी हो गई थी अजित जी!
पर आज पहनने की जानकारी लेकर कॉलेज जा रहा हूँ.
ये पोस्ट भी खूब है!
अजीत जी, कुछ कहावतों के बारे में विस्तार से लिखने की गुज़ारिश है आपसे, मसलन "खीसें निपोरना", "मसें भीगना" और "बाँछें खिलना", मुझे यह बात अब भी अस्पष्ट है कि बाँछें शरीर में कहाँ होती हैं :)
ओह, कमीज़, तेरी खींसें क्यों निपुरी हुई हैं.. अच्छा बताया, मास्साब..
पहनता है सारा जहां कमीज़
मिलती है कम जहां तमीज़!
शुक्रिया
शर्ट के ही साथ टी-शर्ट और बुशर्ट (आधी बांह की ) के बारे मे भी कुछ बताइये।
अब तमीज की कड़ी का इंतजार है।
आधुनिक सिलाई मशीन का अविष्कार मानव इतिहास के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अविष्कारों में माना जाता है. मशीन द्वारा सिले हुए कपडों को पहनना किसी भी सभ्य समाज की प्राथमिक अनिवार्यता है. इस से पहले लोग शायद यूं ही लपेटे हुए वस्त्र धारण करते होंगे या फिर हाथ से सिले हुए. सिलाई मशीन भी उत्तरोत्तर सुधारों की प्रक्रिया से गुजरती हुई अपने वर्त्तमान स्वरूप तक पहुँची है.
तो कमीज़ या शर्ट को आज जिस रूप में हम जानते हैं उसका उदगम यूरोप में हुआ.
प्रारंभिक प्रयास:
ई. 1755 - जर्मन नागरिक चार्ल्स वीसेंथल ने एक सुई को पेटेंट करवाया जो यांत्रिक मशीन में कार्य करने में सक्षम थी.
ई. 1790 - ब्रिटिश आविष्कारक थॉमस सेंट ने पहली सम्पूर्ण सिलाई मशीन को पेटेंट करवाया.
ई. 1804 - फ्रेंचमेन थॉमस स्टोन और जेम्स हैनडरसन को एक पेटेंट जारी किया गया, उसी समय स्कॉटलैंड निवासी जॉन डंकन को भी एक ऐसी मशीन का पेटेंट मिला जिसमें एकाधिक सुइयाँ थीं. दोनों अविष्कार अंततः असफल रहे.
ई. 1810 - जर्मन बल्थास्कर क्रेम्स ने एक स्वचालित मशीन का अविष्कार किया लेकिन पेटेंट नहीं करवाया. इस मशीन की फंक्शनिंग में कुछ समस्या थी.
ई. 1814 - आस्ट्रेलियन दर्जी जोसेफ मेडरस्पर्जर को एक मशीन का पेटेंट जारी हुआ लेकिन मशीन पूरी तरह ठीक से कार्य नहीं कर सकी.
ई. 1818 - जॉन एडम्स डोगे और जॉन नोल्स नामक अमरीकियों ने एक प्रयास किया. उनकी मशीन भी कुछ ज्यादा उपयोगी कार्य करने में असफल रही.
सफलता:
ई. 1830 - फ्रांसीसी दर्जी बार्थेलेमी थिमोनिएर ने पहली सफल सिलाई मशीन बनाई. इसमें सिर्फ़ एक धागा होता था. आविष्कारक को इसके लिए अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ी. अन्य दर्जी इस मशीन का विरोध कर रहे थे क्योंकि उन्हें अपने रोजगार में कमी आने का भय था. बार्थिलेमी की कार्यशाला में आग लगा दी गयी और बड़ी मुश्किल से उनकी जान बची.
ई. 1834 - वाल्टर हंट ने अमरीका की पहली सफल सिलाई मशीन बनाई लेकिन पेटेंट नहीं करवाई क्योंकि उन्हें भी भय था कि अन्य लोगों का रोजगार इससे प्रभावित हो सकता है. (या शायद बार्थिलेमी को मिले ट्रीटमेंट का असर हो).
ई. 1846 - इलिआस होव को पहली अमरीकन सिलाई मशीन का पेटेंट मिला. इस मशीन में दो धागे होते थे (आधुनिक मशीनों की तरह). इसके बाद तकरीबन दस वर्षों तक होव इस मशीन को लोकप्रिय बनाने और साथ के साथ नक्कालों से बचाने में लगे रहे.
ई. 1850 - आईजक सिंगर ने एक मशीन बनाई जो काफ़ी हद तक होव की मशीन जैसी ही थी. इसे लेकर दोनों के मध्य पेटेंट युद्ध भी चला. जीत होव की हुई.
आधुनिक स्वरूप:
होव की मशीन का ही और सुधरा रूप है आधुनिक सिलाई मशीन. समय के साथ अन्य बदलाव भी आते चले गए. 1905 में विद्युत चालित मशीन भी बन गयी.
होव की मशीन मूल रूप से वाल्टर हंट की मशीन से बनाई गई थी लेकिन हंट ने कोई पेटेंट ही नहीं लिया.
तो जब कभी शान से नई शर्ट पहनें तो इन सभी महानुभावों को भी श्रद्धा से याद करें जिनके बिना शायद कपडा लपेट कर ही कमीज पहन रहे होते.
अब एक सवाल, शर्ट के अलावा बुश्शर्ट भी सुनने में आता है. बचपन की याद है, हिन्दी के माटसाब दोनों में कुछ फर्क बताते थे. वो फर्क याद नहीं आ रहा. कुछ प्रकाश डालेंगे क्या?
बापरे.. कमीज से शुरु कर पूरी दुनियाँ घुमाते हुए शमीज तक ले याए। ३४ सालों से कमीज पहन रहे थे पर अब तक पता ही नहीं था।
कमीज को गुजराती में बुशकोट भी कहा जाता है और बनियान को गंजीफराक! बुशकोट तो कुछ हद तक बुशशर्ट का अपभ्रंश लगता है पर गंजीफराक...!!
पता नहीं ये शब्द कैसे बने होंगे। :(
ह्म्म ! समझ आया कमीज़ और शमीज़ की व्युत्पत्ति । लगे हाथ घोस्ट बस्टर जी ने तो सिलाई मशीन की भी व्युत्पत्ति बता दी । बहुत ग़्य़ानवर्द्धन हुआ आज यहाँ आकर ।
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