हिन्दी में अक्षर को प्रचलित अर्थ में बारहखड़ी के हर्फ या वर्ण के रूप में जाना पहचाना जाता है। मगर अक्षर का सबसे प्रमुख अर्थ हैं अविनाशी अर्थात जो नष्ट न हो सके। गौरतलब है कि संस्कृत का मूल शब्द है क्षर् जिसका मतलब है बहना, गिरना, टपकना, कम होना, नष्ट होना , घुलना, पिघलना आदि । इसमें अ उपसर्ग लगने से बना अक्षर अर्थात जो नष्ट न हो सके । इसे यह भाव क्यों मिला इसके पीछे भी गहरी सोच है। हर अक्षर या वर्ण अपने आप में एक ध्वनि है इसलिए इसे नाद भी कहते हैं। न सिर्फ भारतीय दर्शन बल्कि आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि ध्वनि नष्ट नहीं होती इसलिए नादब्रह्म है इसलिए अक्षर को भी ब्रह्म कहा जाता है। चूंकि ब्रह्म नित्य ,चिरंतन और अक्षय है इसलिए अक्षर रूपी ब्रह्म को अविनाशी यानी नष्ट न होने वाला भी कहा जाता है। अक्षर का ही देशज रूप अक्खर या आखर बनता है जिसमें क्ष वर्ण ख में बदल रहा है। इस ख में अरबी का ख़ला भी झांक रहा है जिसमें अंतरिक्ष से लेकर खालीपन जैसे भाव समाहित हैं।
गौर तलब है कि क वर्णक्रम में ही ख भी आता है । स्वतंत्र रूप में खः वर्ण अपने आप में धातु भी है जिसका मतलब होता है आकाश, अंतरिक्ष, स्वर्ग , ब्रह्म आदि। खः का अर्थ है ज्ञान । चूंकि ज्ञान का आभास इंद्रियों के जरिये ही होता है इसलिए खः मे शरीर के दशद्वार भी शामिल हैं। ब्रह्म की अनुभूति बिना ज्ञान संभव नहीं इसलिए खः में इंद्रियों का समावेश तार्किक है। ब्रह्म में आनंद की अनुभूति ही प्रमुख है इसीलिए खः का अर्थ आनंद, प्रसन्नता भी है। खुशी में भी ख ही झांक रहा है। पक्षी को संस्कृत में खगः कहते हैं। रामचरित मानस के अरण्यकांड में तुलसी कहते हैं-
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी। तुम्ह देखी सीता मृगनैनी।।
खःअर्थात् आकाश और ग अर्थात गमन यानी जो आकाश में गति करता है जाहिर है पक्षी के अर्थ में खगः की यह व्युत्पत्ति सटीक है। खः में निहित अंतरिक्ष, ब्रह्म , आकाश जैसे भावों से अरबी के ख़ला की तुलना की जा सकती है। जाहिर है ये एक ही मूल से जन्मे हैं।
डॉ रामविलास शर्मा के मुताबिकक्षर् का अगला रूप झर बनता है जिसमें बहने-टपकने के भाव के साथ नष्ट होने या मिटने का अर्थ भी निहित है। मसलन पत्ते झर (या झड़) गए। जल प्रवाह के लिए झरना या निर्झर जैसे शब्दों में यही झांक रहा है। इसी तरह संस्कृत की एक अन्य क्रिया स्खल् है जो क्षर् पर आधारित है । इसका अर्थ भी गिरना,टपकना, फिसलना आदि है। मालवी में टपकने के लिए क्षर् का ही देशज रूप खिर ( खिरना ) प्रचलित है। हिन्दी के हिमस्खलन या भूस्खलन और पहाड़ी नाले के लिए मालवी-राजस्थानी में खाला,खल्ला जैसे जैसे शब्द इससे ही बने हैं। कुल मिलाकर इसमें एक ओर खत्म होने का भाव है तो दूसरी तरफ निरन्तरता, सातत्य और शाश्वत प्रवाह वाली बात भी है।
Monday, March 31, 2008
यूं ही नहीं आखर अनमोल
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 4:14 PM
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12 कमेंट्स:
अजित जी,
ब्रह्म बिंदूपनिषद् में उल्लेख है -
शब्द्ब्रह्मणि निष्णातः परब्रह्माधिगछति .
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अर्थात् शब्द ब्रह्म में निष्णात साधक
परब्रह्म को प्राप्त कर लेता है.
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आपकी शब्द-साधना का यह पड़ाव
अविनाशी अक्षर की सरस अभिव्यक्ति है.
चूँकि शब्द स्वयं ज्योति-स्वरूप है
अतः शब्दों का सफ़र भी
ज्योतिर्मय यात्रा ही तो है .
आपको अक्षर-शुभकामनाएँ !
आपका
डा.चन्द्रकुमार जैन.
अच्छी पोस्ट है खगोल शब्द भी ख से ही बना है। हाड़ौती में क्षर को खर ही बोलते है। जरा कभी ब्रह्म की उत्पत्ति भी बताइये। शब्द की ही सही।
अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक.
हे आखर दूत...तुम विलक्षण हो....
हम सब तो चोचला करते लगते हैं ....नाम दिख जाए....टिप्पणियाँ आ जाएँ...तुम्हारा काम शब्द की महिमा को विस्तार देता है...सलाम तुम्हारे शोध,साहस,उपक्रम,जुनून,जीवट को (अभी इतने ही
शब्द याद आ रहे हैं...तुम्हारा काम इससे कहीं ज़्यादा बड़ा है शब्द साधक.)...नतमस्तक हैं हम तुम्हारे इस अक्षर-अभियान पर.
अक्षर शब्द का भी मतलब हो सकता है कभी सोचा ही न था, हमारे ज्ञान चक्षु खोलने के लिए धन्यवाद। संजय पटेल जी का कहा सब सही है और हम उससे 100% सहामत हैं।
अजित भाई ,
बहुत बहुत धन्यवाद --
आपके जाल घर के
मेहमान बनने का सु- अवसर आया -
- उसके लिए --
बेहद ज्ञानवर्धक ..ऐसी ही आगे भी अपेक्षा रहेगी
Respected Ajit Bhaiya,
I could not find a way to type in Devanagari. Your blog has come up real nice, most authentic. We have named our son as "Akshar Ananya" (Papa has even written a small piece explaining it).
शब्दों का सफर तो ज्ञानवर्धक है ही, उस पर की गई प्रतिक्रियाएँ भी आनन्द देने वाली है. कलिप कार्तिक जी के पापा ने जो लिखा है आपके बारे में, उसे जानने की इच्छा है..
बहुत ही उम्दा ,ज्ञानवर्धक ,पोस्ट सच में "शब्दों का सफर "'तो "कांरु का खज़ाना "है , कभी सोचा ही नहीं था ... गज़ब !! जियो, मेरे शाह अब्बास !!!
अजित भाई कल्प कार्तिक जी को हिंदी लिखने के बारे में जानकारी मेल कर दी है. उम्मीद करता हूं कि अगली बार वे हिंदी में टिप्पणी करेंगे. सफर में पिछले कुछ दिनों से बस मौन आमद दे रहा हूं... आशा है अन्यथा नहीं लेंगे.
hamesha kee tarah manoranjak aur dnyan wardhak.
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