Monday, March 30, 2009

चाल, शालीनता और नर्क [आश्रय-10]

दुनियाभर में घरघुस्सू लोग ही शालीन और शरीफ माने जाते हैं।  family2
तार में बने कई बड़े प्रकोष्ठों या कमरों को शाला कहा जाता है। यह शालः से बना है जिसमें दीर्घाकार का भाव भी शामिल है। सामुदायिक निवास या आवास संकुल के रूप में यहां भी चाल शब्द से इसकी रिश्तेदारी की पुष्टि होती है। विशाल शब्द इसी मूल का है। मनुष्य के लिए आश्रय इतना महत्वपूर्ण है कि मृत्योपरांत भी आश्रय के लिए उसने स्वर्ग और नर्क की कल्पना कर ली। मगर ये दोनों जीवनकाल में ही, इसी पृथ्वी पर नज़र आते हैं। चाल, शाल, शाला, धर्मशाला, पाठशाला  का रिश्ता नर्क से भी जुड़ता है।
सीधे सरल स्वभाव वाले व्यक्ति को शालीन कहा जाता है। जाहिर है यह शाल् से ही बना है। डॉ रामविलास शर्मा के मुताबिक शालीन वह व्यक्ति है जिसके रहने का ठिकाना है। मोटे तौर पर यह अर्थ कुछ दुरूह लग सकता है, मगर गृहस्थी, निवास, आश्रय से उत्पन्न व्यवस्था और उससे निर्मित सभ्यता ही घर में रहनेवाले व्यक्ति को शालीन का दर्जा देती है। कन्या के लिए  हिन्दी का लोकप्रिय नाम शालिनी  संस्कृत का है जिसका अर्थ गृहस्वामिनी अथवा गृहिणी होता है।  व्यापक अर्थ में गृहस्थ ही शालीन है। स्पष्ट है कि आश्रय में ही शालीनता का भाव निहित है। जिसका कोई ठौर-ठिकाना न हो वह आवारा, छुट्टा सांड जैसे विशेषणों से नवाज़ा जाता है। हमेशा घर में रहनेवाले व्यक्ति को घरू या घरघूता, घरघुस्सू आदि विशेषण दिये जाते हैं। इन घरघुस्सुओं को दुनिया शालीन मानती है। इस अर्थ में शाल अर्थात चाल में रहनेवाले सभी जन शालीन कहलाने चाहिए, मगर इसके ठीक उलट बंगलों में रहनेवालों की निगाह में चाल वाले असभ्य, उजड्ड, मवाली होते हैं। आजकल की झोपड़पट्टियों वाली चालें कुछ हद तक इस नजरिये को सही भी साबित करती हैं। दगड़ी चाल जैसी बसाहट अब माफिया सरगना के नाम से जानी जाती हैं।
विशाल प्रकोष्ठ के अर्थ में अंग्रेजी का हॉल शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित है। बल्कि यह हिन्दी का ही हो गया है। अंग्रेजी का हॉल hall, सेल cell, होल hole और हॉलो hollow जैसे शब्द शाल् की कड़ी में आते हैं। इन सभी शब्दों के मूल में प्राचीन भारोपीय धातु केल kel है जिसमें आश्रय, घिरा हुआ और निर्माण के ही भाव हैं। शाल शब्द के देसी रूप जैसे राजस्थानी का साल अर्थात टकसाल, घुड़साल से सेल cell की रिश्तेदारी पर गौर करें। शाल में जो आश्रय का भाव है वही अंग्रेजी के सेल में भी है। शाल का देशी रूप साल अंग्रेजी के सेल को और करीब ले आता है। हॉल के मूल में भी सेल ही है। सेल बना है पोस्ट जर्मनिक धातु khallo से जिसका अर्थ होता है घिरा हुआ, ढका हुआ, विस्तारित, बड़ा प्रकोष्ठ, खाली स्थान आदि। भारोपीय परिवार की भाषा पोस्ट जर्मनिक के khallo और सेमिटिक परिवार की अरबी के ख़ल्क़ khalq या ख़ला khala की समानता पर गौर करें। ख़ल्क का अर्थ भी निम्राण, सृजन, घेरा हुआ, विशाल, विस्तारित, अंतरिक्ष आदि ही होता है। हालांकि ख़ल्क़ शब्द का दायरा काफी व्यापक है जो सृष्टिरचना से संबंधित है। मगर अंततः सृष्टि है तो आश्रय ही।
अंग्रेजी के सेल cell का मतलब होता है कमरा, प्रकोष्ठ। यहां कमरे के अर्थ में भी सेल शब्द का प्रयोग होता है और किसी संगठन के विभाग की तरह भी। जेल के कतारबद्ध कमरों को भी सेल कहा जाता है। अंदमान की सेल्युलर जेल का नामकरण इसी सेल की वजह से हुआ है। खास बात यह कि संस्कृत के शाला और अंग्रेजी के हॉल में जहां विशाल प्रकोष्ठ का भाव है वहीं अंग्रेजी के ही सेल शब्द में छोटे कक्ष या कोठरी का भाव है। सेल कितना छोटा हो सकता है इसका अंदाज़ा मनुष्य के शरीर की सबसे छोटी इकाई कोशिका के लिए प्रचलित सेल शब्द से होता है। गौर करें कि सेल का हिन्दी अनुवाद कोशिका के मूल में कष् धातु है जिससे जिसमें कुरेदने, घिसने, तराशने का भाव है जिससे आश्रय अर्थात कोष्ठ का निर्माण होता है। कोष एक घिरा हुआ स्थान है। इससे ही कोशिका शब्द बनाया गया। हिन्दी में बैटरी के लिए सेल शब्द ज्यादा प्रचलित है। विद्युत सेल भी एक छोटा सा कक्ष ही होता है। हॉलो का अर्थ है खाली, खोखला। इसी तरह अंग्रेजी का होल शब्द भी हिन्दी

Mudmen-halo-2mask-smallMonument-death-smallAntelope_and_indian-small-mask2इस फ्रेम के सभी चित्र डिफरेंट व्यू से साभार

में बहुधा प्रयोग होता है जिसका अर्थ है छिद्र, विवर, छेद आदि। सुऱाख के अर्थ में होल शब्द का इस्तेमाल हिन्दी में आम है।
र्क के अर्थ में अंग्रेजी का हेल hell शब्द भी भारोपीय धातु kel से ही निकला है जिससे संस्कृत का शल् बना है। गौरतलब है कि संस्कृत में भी नर्क का एक नाम शाल्मली है। यह शब्द शल्, शालः से ही बना है दिलचस्प यह कि इसी मूल से अंग्रेजी का हेल भी है।  नर्क की कल्पना दुनिया की सभी संस्कृतियों में है। अतृप्त आत्माओं, प्रेतों-पिशाचों का आवास। स्वर्ग से पहले का पड़ाव जहां से आगे सिर्फ पुण्यात्माएं ही जा सकती हैं। ये तमाम बातें तो दार्शनिक हैं, मूल रूप से हेल शब्द कब्र के लिए बना होगा। वह संकरा, छोटा कक्ष जहां शवों को दफनाया जाता होगा। बाद में मृतात्माओं के ठिकाने के तौर पर इसका अर्थ विस्तार होता चला गया और नर्क की कल्पना के साथ यह शब्द जुड़ गया। वैसे आज भी बेहद छोटी, तंग जगह की रिहाइश को नर्क की संज्ञा ही दी जाती है। इस अर्थ में झोपड़पट्टी की चालें तो यकीनन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नर्क की ख्याति अर्जित कर चुकी हैं।
[ चाल पर तीन हिस्सों में यह दीर्घ आलेख समाप्त। आश्रय श्रंखला जारी है ]
पिछली कड़ियां-

1.किले की कलई खुल गई.2.कोठी में समाएगा कुटुम्ब!3.कक्षा, कोख और मुसाफिरखाना.4.किलेबंदी से खेमेबंदी तक.5.उत्तराखण्ड से समरकंद तक.6.बस्ती थी बाजार हो गई.7.किस्सा चावड़ी बाजार का.8.मुंबईया चाल का जायज़ा.9.अंडरवर्ल्ड की धर्मशाला बनी चाल.

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9 कमेंट्स:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चाल का सफर अच्छा रहा है।
बड़ी शालीनता से आपने इसको शाल्मली तक पहुँचा दिया है।
चलो अच्छा ही हुआ।
जहन्नुम के बाद तो जन्नत मिल ही जायेगी।
हम और भी आशावान हैं।
आगे किस-किस की तह में जाकर बखिया उधेड़ने का
विचार बना रहें है।
प्रतीक्षा में-

RDS said...

कोष के बिखेरे हुए रिश्तेदारों को आपने बखूबी एकत्र कर दिया | जीव मात्र की समूची काया असंख्य कोशाओं का समुच्चय है | विशेषता यह कि इस कोष मात्र में समस्त जीवनी शक्ति छुपी हुई है | निश्चय ही कोष से कोष्ठ , प्रकोष्ठ , कोठा आदि बने होंगे | जीवन विज्ञान की एक शाखा में कोशाओं की रचना और उसकी सामग्रियों, उत्पाद आदि की उपादेयता का ही अध्ययन किया जाता है | इधर पोस्ट जर्मनिक धातु khallo से बम्बइया ' खोली ' का ख्याल आया |

इतनी आवास व्यवस्था के वावजूद एकाकी मनुष्य कितना खाली खाली सा है | सच लिखा आपने कि अक्सर अपने प्रकोष्ठ में सीमित रहने वाला ' घरघुस्सू' मनुष्य शालीन माना जाता है; शाब्दिक तौर से भी और सामाजिक तौर से भी; शायद अपने 'अ-हानिकर' आचरण के कारण !

बड़ी विचित्र और नयी रिश्तेदारियों का ज्ञान मिला | जैसे 'hell' 'kel' 'cell' आदि | अचम्भा तो तब बहुत हुआ जब जाना कि हेल और कुछ नहीं मृत देह की कब्र के सिवा |

सफ़र दिलचस्प ही नहीं दार्शनिकता से ओतप्रोत भी है | मन के कपाटों पर दस्तक देता सा |

अनंत शुभकामनाएं और साधुवाद !

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

जो बेचारे बेघर है क्या वह शालीन नहीं ?

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुन्दर कड़ी!

Dr. Chandra Kumar Jain said...

हेल...हाल...होल
शाल...शाला...शालीन !
============================
जो अपने घर में हो वह शालीन
इससे
जो दूसरों के बेघरबार कर दे
वह असभ्य...बर्बर क्यों होता है,
आसानी से समझा जा सकता है
============================
आभार अजित जी
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

डॉ .अनुराग said...

चित्रों ने इस बार अलग रंग बिखेरे है.....

आशीष कुमार 'अंशु' said...

यहाँ तो बड़ी जानकारी है भाई... आभार

रंजना said...

वाह !! अति रोचक रहा यह सफ़र भी...कितना सही कहा आपने.....एक ही शब्द के लिए संस्कृत भाषा में विराटता आभाषित करता है,वहीँ अंग्रेजी में संकीर्णता का...

आपका शब्दों का यह सफ़र दीर्घजीवी हो.

Neelima said...

निश्चय ही बेहद काम की जानकारी ! आपका बहुत शुक्रिया !

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