Friday, June 26, 2009

सफ़र चालू आहेत …

फर से लौट आया हूं। दो साल में पहली बार इतना लंबा अंतराल आया है इस शब्दयात्रा में। हमें तो इसकी कमी बहुत खली, आपको भी कुछ खालीपन तो महसूस हुआ होगा। आज से फिर नियमित रूप से हम चलेंगे शब्दों का सफर पर। फिलहाल एक हलकी-फुलकी पोस्ट। दैनिक भास्कर ने हाल ही में अपने कलेवर में बदलाव किया है। बदली हुई सज्जा में साप्ताहिक कॉलम शब्दों का सफर के स्वरूप में भी हलकी सी तब्दीली हुई है। सफर के जो साथी दैनिक भास्कर नहीं देख पाते हैं उनके लिए इसकी दो सप्ताह पूर्व प्रकाशित कड़ी यहां दे रहा हूं।
पपप

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26 कमेंट्स:

रंजन said...

कलेवर अच्छा रहा.. ढ़ाक के पात मजेदार है..

Udan Tashtari said...

ये बढ़िया रहा. न बड़ा करने की जरुरत और स्कैन एकदम साफ

Vinay said...

ढाक के तीन पात तो बहुत ख़ूब रहा।

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मिलिए अखरोट खाने वाले डायनासोर से

रंजना said...

इसे आप हल्की कह रहे हैं अजीत भाई ????

मैं भी इसमें बहुत विशवास करती हूँ....एक बार पतिदेव ने किसी बात पर अत्यधिक क्रोधित होकर भोजन की थाल को फेंक दिया था और माता अन्नपूर्णा के इस अपमान के प्रायश्चित के लिए मैंने भी एक दिवसीय अनशन रखा था...

किरण राजपुरोहित नितिला said...

bhut dino bad aaj post padh pai hu.isliye
KHAMMA GAHNI AJIT SA
chuttiyo me hamne to chutti manai hi aap bhi chutte rahe ye jankar achambha hua .
naya rup badhiya hai.
Kiran

Unknown said...

पुनः: स्वागत है आपका ..
चलो फिर से शुरू करें सिलसिला..................

अविनाश वाचस्पति said...

तभी हम सोचते रहे हैं हमेशा से
ढाक के तीन पात ही क्‍यों रहे
चार या छह काहे न हुए।

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ said...

अशनम्‌- अशनाया या बुभुक्षा, अन+अशनम्‌-भूख रहित होजाना। प्रायश्चित स्वरूप तथा रोगों के निदान हेतु भी अनशन किया जाता था। सुंदर एवं सटीक व्याख्या। कलेवर भी सुंदर।

ravindra vyas said...

ajeetbhai! aapkees column ka puranaaashiq hoon. yah pahle bhi padhata tha aur naye kalever men bhi padh raha hoon.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की वापसी का स्वागत है। कोटा के भास्कर में आप का यह कॉलम नजर नहीं आता।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अनशन में ताकत बहुत होती है अजमाई हुई बात है

Ashok Pandey said...

शब्‍दों के सफर में आए अंतराल को ब्‍लॉगजगत, फेसबुक हर जगह महसूस किया जा रहा था। सूरज की पहली किरण के साथ इस शब्‍दयात्रा में शामिल होने की लोगों को आदत पड़ गयी है।

ढाक और ढाका का संबंध बताने के लिए धन्‍यवाद।

Anonymous said...

awesome..!!! ...i wish this safer go to millions of miles...

Abhishek Ojha said...

बीच में मैं सोच रहा था कि कहीं फीड की प्रॉब्लम तो नहीं है... पर एक दिन इधर आया तो कोई अपडेट नहीं मिला. सफ़र से 'सफ़र' में वापसी पर स्वागत है.

शरद कोकास said...

अजित भाई रायपुर के भास्कर में भी यह कालम नहीं है ऐसा क्यों? भास्कर वालों को चिट्ठी लिखता हूँ

डॉ. मनोज मिश्र said...

बढ़िया जानकारी .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दैनिक भास्कर का कलेवर अच्छा लगा।
धन्यवाद।
3 दिन से मेरा भी नेट कनेक्शन गड़बड़ था।

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी जानकारी,
आभार ।

Sanjeet Tripathi said...

कमी तो हमें भी खली भाई साहब।
अनशन का पराक्रम तो जाना लेकिन उससे भी दिलचस्प रहा जानना कि ढाक के तीन पात और ढाका का रिश्ता।
मुझे रायपुर भास्कर से सदा ही शिकायत रही है कि उसमें ब्लॉग कोना जैसा कुछ रहता नहीं है।
अब नए कलेवर में संपादकीय पेज पर जरुर हफ्ते में एक दिन भास्कर कर्मियों के ब्लॉग से कुछ न कुछ दिया जाता जरुर है। लेकिन वह इतने कोने में जा उतरता है कि लोगों की नजर ही नहीं पड़ती।
और आपका यह छपा हुआ तो रायपुर भास्कर में आया ही नहीं।

Mansoor ali Hashmi said...

शब्दो के अन्न-जल से वन्चित हमे भी रक्खा,
अनशन पे चल रहे थे,अनशन करा रहे थे!

Gyan Dutt Pandey said...

स्वागत!

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

असल में इसे राजनीतिक चोला भी पापों के प्रायश्चित के लिए ही पहनाया गया था.

!!अक्षय-मन!! said...

बहुत ही खूब

Rajeev (राजीव) said...

नया कलेवर सुन्दर है। ढाका, ढाक और उसके तीन पात की भी उत्पत्ति रुचिकर है।

Dhananjay Mirashi said...

अजिताराव, ढाक म्हणजे तेरडा का?

Dhananjay Mirashi said...

अजिताराव, ढाक म्हणजे तेरडा का? का पळस?

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