पिछली कड़ी- 1.क़यामत से क़यामत तक से आगे
दिलचस्प है कि q-w-m में निहित स्थिरता के भाव ही इसे आश्रय से भी जोड़ते हैं। इस धातु की रिश्तेदारी संभव है किसी काल में प्रोटो इंडो-यूरोपीय धातु k-a-m से भी रही होगी जिससे ही कमरा, कैमेरा, कमान, कमानी जैसे शब्द बने हैं। क़याम में जो q की ध्वनि है अर्थात नुक्ते का प्रयोग वह इसे देवनागरी वर्ण ख के करीब पहुंचाता है। क़ाम में स्थिरता के भाव से ही बनता है अरबी का क़ाइम शब्द जिसका हिन्दी रूप कायम है और यह खूब इस्तेमाल होता है। कायम का अर्थ भी स्थिर होना, मज़बूती से डटे रहना, दृढ़ रहना आदि। किसी भी भवन को स्तम्भ ही आधार प्रदान करते है। स्तम्भ का एक अन्य रूप संस्कृत में स्कम्भ होता है। खम्भा इससे ही बना है अर्थात पाया। गौरतलब है कि पाया अर्थात पैर ही स्थिरता प्रदान करते हैं।
आश्रय के सदर्भ में भी सेमिटिक धातु क़ाफ़-वाव-मीम क-व-म धातु से कुछ शब्द बने हैं जो हिन्दी में भी प्रचलित हैं। निवास, रहना या रुकने के संदर्भ में मक़ाम शब्द है। यह मुक़ाम के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता है। मराठी में इसका उच्चारण कुछ और गाढ़ेपन के साथ मुक्काम हो जाता है। इस्लाम में मक़ाम के दार्शनक मायने भी हैं जिसके मुताबिक घर या निवास से हटकर इसका मतलब लक्ष्य, मंजिल और गंतव्य हो जाता है। एक सूफी संत के लिए मक़ाम मस्जिद नहीं बल्कि ईश्वर प्राप्ति है। वैसे मक़ाम का अर्थ मकान, निवास, गृह, आवास, स्थान आदि भी होता है मगर इसका प्रयोग दार्शनिक अर्थों में अधिक व्यापक है। मकान भी इसी मूल से निकला है जिसका बहुवचन मकानात अर्थात घरों का संकुल होता है। इसी तरह मक़ाम का बहुवचन मक़ामात होता है। पश्चिम एशिया देशों खासतौर पर अरब मुल्कों के अलावा सीरिया, तुर्की और इराक की एक खास संगीत शैली भी मक़ाम कहलाती है। इन्द्रियातीत अनुभूति और अनिवर्चनीय आनंद की सृष्टि करने की वजह से ही इस संगीत को मक़ाम नाम मिला है। जाहिर है हर कला का उद्धेश्य परमानंद की प्राप्ति ही है। वह श्रोता जो संगीत के जरिये बेखुदी के आलम में पहुंच जाए, समझो अपने मक़ाम पर पहुंच गया। सूफी शब्दावली में जिसे हाल यानी परमानंद कहते है, वही है असली मक़ाम यानी मक़ाम की संगीत शैली। मक़ाम से एक शब्द मक़ामी भी बनता है जिसका मतलब होता है रहनवाला, निवासी या स्थायी। सूफियों के दो खास रूप हैं एक मक़ामी जो किसी भी जगह पर डेरा डाल लेते हैं। दूसरे दरवेश जो कभी टिक कर नहीं बैठते।
सूफी दर्शन के मुताबिक ईश्वर के स्वरूप से साक्षात्कार इतना आसान नहीं है। उस दिव्यता को देख पान असंभव है इसलिए उस तक पहुंचने के सात मक़ाम बताए गए हैं। सूफी विचारक ग़ज़ाली के मुताबिक अल्लाह सत्तर हजार पर्दो के पीछे है। ईश्वर की दिव्यता से यकायक सामना करने की क्षमता इन्सान में नहीं है इसीलिए ये मक़ाम बनाए गए हैं। सात मकाम यानी सात मंज़िलें। हर एक में दस हजार पर्दे। ये मंजिले हैं -पश्चाताप, भय, त्याग, अभाव, धैर्य, समर्पण और संतोष। इन सात मंजिलों से होकर गुज़रने और इन पर्दों के हटते ही मनुष्य की आत्मा भी दिव्य हो जाती है तभी वह प्रभु की आभा को देख पाती है। एक सूफी का जीवन दरअसल आध्यात्मिक सफर होता है। इस यात्रा पर आगे बढ़ना तरीका यानी रास्ता या मार्ग कहते हैं। परम लक्ष्य होता है फ़ना और इसके दर्म्यान जो कुछ है वह है मक़ामात। वैस ज्यादातर सूफी सात की जगह दस मक़ाम गिनाते हैं- 1.तौबा यानी पश्चाताप 2.वारा यानी संयम 3.ज़ुहद यानी विरक्ति 4.फक्र यानी अभाव 5.सब्र यानी धैर्य 6.शुक्र यानी कृतज्ञता 7.ख़ौफ़ यानी भय 8. रज़ा यानी आशा 9.तवक्कुल यानी भरोसा और 10.रिज़ा यानी संतोष। एक सच्चा सूफी इन तमाम मक़ामात से गुज़रने के बाद सचमुच आखिरी मक़ाम यानी फ़ना के परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। फ़ना का अर्थ यूं तो मृत्यु या गायब होना है मगर आध्यात्मिक अर्थों में इसके मायने वही हैं जो हिन्दू दर्शन में निर्वाण या मोक्ष के हैं।
इन्हें भी ज़रूर देखे- 1.कुछ न कहो, कुछ भी न कहो 2.दरवेश चलेंगे अपनी राह
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11 कमेंट्स:
अच्छी सूफ़ियाना बातें पता चली, और मूल धातुओं के बारे में लेखन तो जबरदस्त है। बहुत कुछ सीखने को मिला।
अल्लाह ही अल्लाह.....
जानदार और शानदार चिट्ठी।
राहों में भटकते रहे लोग, मकाम की तलाश में
मकाम तक पहुंचने वाला, अब तक मिला नहीं
ज़बरदस्त पोस्ट
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पढ़िए: सबसे दूर स्थित सुपरनोवा खोजा गया
ये भी कमाल है भाई.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने।
वैसे विशनोई जाति के मुख्य धार्मिक स्थल जो नागौर के पास है उसे भी मुकाम ही कहते हैं मक्का की भांति।
अच्छी जानकारी दी आपने।
आभार!
अच्छी जानकारी दी आपने... बहुत कुछ सीखने को मिला...धन्यवाद
Nice Post.
Wishing "Happy Icecream Day"...See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"
अगर आधे मकाम पर ही खरे उतर जाए तो फ़ना भी शान से ही होंगे
बहुत अच्छा लगा पढ़ करके . धन्यवाद
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