Monday, October 12, 2009

रेखा का लेखा-जोखा (लकीर-2)

geometry संबंधित कड़िया-1.चार दिन की चांदनी 2.लीक छोड तीनों चलै, सायर, सिंह , सपूत[लकीर-1] 3.ईंट की आराधना [भगवान-4]

कीर और रेखा का अर्थ एक ही है। इन दोनों का मूल भी एक है। लिख् और रिष् धातुओं से इनका विकास हुआ है। इनसे बने लेख, लेखनी, लेखक, लीक, लकीर, रेखा जैसे शब्द तो हिन्दी में खूब प्रचलित हैं। मगर एक खास बात है रेखा की गणित और हिसाब-किताब में मौजूदगी। लेखा, लेखा परीक्षक, लेखाकार, लेखापाल और लेखा-जोखा जैसे शब्दों का प्रयोग करते वक्त यह अहसास नहीं रहता कि इनका रिश्ता भी लिख-रिष्-राईट की परम्परा से ही जुड़ता है।
लेखा-जोखा एक लोकप्रिय समास है जो हिसाब-किताब, परीक्षण और अंकेक्षण के संदर्भ में हिन्दी में इस्तेमाल होता है। यह दो शब्दों लेखा+जोखा से मिल कर बना है। लेखा का अर्थ हुआ, लिखा हुआ, चिह्नित, सूचीबद्ध, लिपिबद्ध, चित्रित, लिखावट, रेखांकन, धारीय आदि। प्राचीनकाल में कलम के आविष्कार से पहले किन्हीं बातों को याद रखने के लिए मनुष्य ने पहले मिट्टी, फिर वृक्षों और फिर चट्टानों पर चिह्नांकन करने की युक्ति सीखी। इन्हीं चिह्नों के जरिये विभिन्न समूदाय इकाई-दहाई के रास्ते पर आगे बढ़े और इस तरह गणित का जन्म हुआ। स्पष्ट है कि कलम से बनाए अक्षरों के जरिए नहीं, मनुष्य ने पत्थरों से बनाई लकीर के जरिए ही गणित सीखा। इस तरह रेखा का गणित से रिश्ता हजारों साल पुराना है। यह साफ है की लेखा-जोखा शब्द का यहां क्या अर्थ होगा। यूं रेखा या लेखा शब्द का प्रयोग ज्योतिष में भाग्यरेखा या भाग्य का लेखा के लिए भी होता है। लेखा-जोखा शब्द में जो जोखा है वह बना है जोख नाम की क्रिया से जिसका मतलब भी पैमाइश और तौल ही होता है। नाप-जोख में यह नज़र आ रहा है। इसमें वस्तु का वज़न, लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई आदि का हिसाब शामिल है। इससे ही जोखना शब्द भी बना है। यह बना है जुष् धातु से जिसमें परीक्षण, चिंतन-मनन, जांच-पड़ताल के अलावा सुखी और प्रसन्न होना जैसे भाव भी शामिल है। जुष् का अगला रूप हुआ जुख और फिर बना जोख। इस तरह लेखा-जोखा का अर्थ हुआ लिखे हुए की पड़ताल करना अर्थात हिसाब-किताब मिलाना।
रेखागणित यानी ज्यामिति का प्रयोग गणित में इनसान ने अंक गणित के आविष्कार के बाद ही किया। विद्वानों का मानना है कि रेखागणित की शुरुआत भारत में वैदिक युग में ही हो गई थी। वैदिक संहिताओं में यज्ञ के लिए बननेवाली वेदिकाओं के चौरस आकार में रेखीय गणनाएं हैं। इसी तरह उसके निर्माण में प्रयुक्त इष्टिका अर्थात ईंटों का आकार भी निश्चित होता था जो रेखागणित के दायरे में आता है। ज्यामेट्री को हिन्दी में ज्यामिति कहा जाता है।
geometrywars भारतीय परम्परा में मा धातु की अर्थवत्ता भी व्यापक है। मा धातु में चमक, प्रकाश का भाव है जो स्पष्ट होता है चन्द्रमा से।
ज्यामिति में मूलतः भूक्षेत्र की माप का भाव है। यह शब्द भारोपीय भाषा परिवार का है। अंग्रेजी का ज्यामेट्री ग्रीक ज्यामेट्रिया से बना है। ग्रीक भाषा के जिओ यानी geo का अर्थ होता है पृथ्वी, धरती, वसुधा, धरा आदि। आश्चर्यजनक रूप से संस्कृत में भी इन्ही अर्थो में ज्या शब्द है जिसका अर्थ है धरती, धनुष की प्रत्यंचा, दो चाप को मिलाने वाली रेखा आदि। मेट्रिक्स का अर्थ होता है मापना। यह बना है भारोपीय धातु मे me से जिसके लिए संस्कृत मे मा धातु है। इन दोनों मूल धातुओं में नाप, माप, गणना आदि भाव हैं। अंग्रेजी के मेट्रिक्स का रिश्ता अंतरिक्ष की परिमाप और उसके विस्तार से भी जुड़ता है। यानी बात खगोलपिंडों तक पहुंचती है। भारतीय परम्परा में मा धातु की अर्थवत्ता भी व्यापक है।
मा धातु में चमक, प्रकाश का भाव है जो स्पष्ट होता है चन्द्रमा से। प्राचीन मानव चांद की घटती-बढ़ती कलाओं में आकर्षित हुआ तो उसने इनमें दिलचस्पी लेनी शुरू की। स्पष्ट तो नहीं, मगर अनुमान लगाया जा सकता है कि पूर्ववैदिक काल में कभी चन्द्रमा के लिए मा शब्द रहा होगा। मा के अंदर चन्द्रमा की कलाओं के लिए घटने-बढ़ने का भाव भी अर्थात उसकी परिमाप भी शामिल है। यूं चंद् धातु में भी चमक का भाव है और इससे ही चन्द्रमा शब्द बना है किन्तु चन्द् शब्द को विद्वानों ने बाद का विकास माना है। गौर करे कि फारसी का माह, माहताब, मेहताब, महिना शब्दों में मा ही झांक रहा है जो चमक और माप दोनों से संबंधित है क्योंकि उसका रिश्ता मूलतः चान्द से जुड़ रहा है जो घटता बढ़ता रहता है। और इसकी गतियों से ही काल यानी माह का निर्धारण होता है। अंग्रेजी के मंथ के पीछे भी यही मा है और इस मंथ के पीछे अंग्रेजी का मून moon है। रिश्तेदारी साफ है। माप-जोख सबसे पहले अगर हमने सीखी तो धरती और चांद से ही।

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14 कमेंट्स:

Babban K Singh said...

लाजवाब!
आपकी रेखा का लेखा जोखा करने की दिल से तबियत हो रही है... आपके शब्दों का सफ़र वाकई दिलचस्प मोड़ पर आ गया है. ज्योतिष के अध्ययन और मनन के बाद आप जैसे लोगों को और सिद्दत से समझाना चाहता हूँ, अजित भाई.

दिनेशराय द्विवेदी said...

आज के लेखा-जोखा में बहुत बातें जानी। शब्दों का सफर वास्तव में अनोखा है जो अपने अंदर इतिहास छुपाए है।

Himanshu Pandey said...

"माप-जोख सबसे पहले अगर हमने सीखी तो धरती और चांद से ही।"- फाइनल रिजल्ट !

गजब की बुनावट करते हैं । बस चमत्कृत हुआ जा सकता है । आभार ।

हेमन्त कुमार said...

अपेक्षित परिणाम सकारात्मक हो
आनंद ही आनंद है
आभार ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

इस लेखा जोखा में कई शब्दों का खाता मिला . गणित का मास्टर भी शायद नहीं जानता होगा अलजेब्रा को अलजेब्रा क्यों कहा गया .

निर्मला कपिला said...

ग्यान वर्द्धक के लिये धhन्यवाद्

Mansoor ali Hashmi said...

# धरती को माप चाँद पे रक्खा है अब क़दम,
शब्दों के जादूगर जो बने अपने हमसफ़र.
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# 'रेखा' गणित में उलझे तो पाते रहे सिफर,
त्रिकोण आ गया तो विकल था दिलो-जिगर,
सीधी, सरल रही तो न बदला है लेख-जोख,
ज़ीरों पे ही रहा है अभी तक तो वों फिगर.**
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**नोट:- ज्या [धरती] और रेखा दोनों साथ आ गए थे तो यह लिखने में आ गया है, किसी और सन्दर्भ में न ले.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रेखा का गणित बढ़िया रहा।
सुन्दर विश्लेषण!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपकी हर पोस्ट पढ़कर बहुत नया सोचने लगती हूँ - इसी तरह लिखा करें अजित भाई
स्नेह,
- लावण्या

प्रकाश पाखी said...

शुक्रिया!
कई शब्दों के उद्गम के बारे में पता चला.

Abhishek Ojha said...

तीसरे पैराग्राफ की बातें पहले से आती थी. आपकी पोस्ट में पहले से अगर कुछ आता हो तो सहज ही हर्ष की अनुभूति होती है. :)

Baljit Basi said...

१. अजित भाई लगता है आप ने कुछ ज्यादा गड़बड़ कर दी. आप ने लिखा है 'रेखागणित यानी अलजेब्रा'. रेखागणित और अलजेब्रा गणित की दो अलग अलग शाखाएँ हैं. ज्यामेट्री (geometry) यानि रेखाओं वाली शाखा हमारे 'रेखागणित' कहलाती है, लेकिन अलजेब्रा का रेखाओं से कोई संबंध नहीं, इसमें तो हम किसी संखिया को अक्षर के रूप में मान कर चलते हैं और इसको हम ने 'बीजगणित' का नाम दिया है. ये अरबी भाषी शब्द है और इसमें 'जबर' का भाव है 'टूटे हुए अंगों को संयुक्त करना'. आखरी से पहला पैरा आपको दुबारा खोज करके लिखना होगा.
२.चारपाई बुनने से पहले जो दो आड़े सूत्रों का आधार बनाया जाता है उनको पंजाबी में 'जी' कहा जाता है और यह 'ज्या' का ही पंजाबी रूप है.

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
शुक्रिया साहेब,
यहां गड़बड़ी क्लबिंग में हुई है।
थोड़ा संपादन चाहिए। अलजब्र वाला संदर्भ भी इसी के साथ देना
चाहता था। इस हिस्से को फिर संयोजन-संपादन
की जरूररत है।

चंदन कुमार मिश्र said...

लिख् और रिष् पर। रिष् से लिखना कैसे बना ? संस्कृत में तो लिख् धातु है ही। शिलालेख, अभिलेख तो हैं ही। लेखनी भी है।

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