Monday, May 31, 2010

आलूबड़ा और बड़ का पेड़…

VADA
भा रतीय शैली के व्यंजनों में एक बेहद आम शब्द है-बड़ा। उत्तर भारत में यह बड़ा के रूप में प्रचलित है तो दक्षिण भारत में यह वड़ा कहलाता है। इसके वडा और वड़ी रूप भी प्रचलित हैं। इस नाम वाले कितने ही खाद्य पदार्थ प्रचलित हैं मसलन मिर्चीबड़ा, भाजीबड़ा, पालकबड़ा, मूंगबडी, मिर्चबड़ा या बटाटा वड़ा वगैरह । इसी तरह दक्षिण भारत में वड़ासांभर, दालवड़ा या वड़ापाव मशहूर हैं। गौरतलब है कि इस बड़ा या वड़ा में न सिर्फ रिश्तेदारी है बल्कि बाटी और सिलबट्टा जैसे शब्द भी इनके संबंधी हैं। संस्कृत का एक शब्द है वट् जिसके मायने हैं घेरना, गोल बनाना, या बांटना-टुकड़े करना। गौर करें वटवृक्ष के आकारपर। इसकी शाखाओं का फैलाव काफी अधिक होता है और दीर्घकाय तने के आसपास की परिधि में काफी बड़ा क्षेत्र इसकी शाखाएं घेरे रहती हैं इसीलिए इसका नाम वट् पड़ा जिसे हिन्दी में बड़ भी कहा जाता है।

वट् से बने वटक: या वटिका शब्द के मायने होते हैं गोल आकार का एक किस्म का खाद्य-पिण्ड जिसे हिन्दी में बाटी bajji-2कहा जाता है। इसे रोटी का ही एक प्रकार भी माना जाता है। वटिका शब्द से ही बना टिकिया शब्द। संस्कृत वटक: से बड़ा का विकासक्रम कुछ यूं रहा वटक> वटकअ > बड़अ > वड़ा या बड़ा। का अपभ्रंश रूप हुआ वड़अ जिसने हिन्दी  मे बड़ा और दक्षिण भारतीय भाषाओं में वड़ा का रूप लिया। वट् से ही विशाल के अर्थ में हिन्दी में बड़ा शब्द भी प्रचलित हुआ। अब आते हैं खलबत्ता या सिलबट्टा पर। ये दोनों शब्द भी वट् से ही बने हैं। औषधियों, अनाज अथवा मसालों को कूटने - पीसने के उपकरणों के तौर पर प्राचीनकाल से आजतक खलबत्ता या सिलबट्टा का घरों में आमतौर पर प्रयोग होता है। हिन्दी में खासतौर पर मराठी में खलबत्ता शब्द चलता है्। यह बना है खल्ल: और वट् से मिलकर। हालाँकि मराठी का बत्ता वट से कम और अरबी के बत्तः से बना ज्यादा तार्किक लगता है। हिन्दी का बट्टा ज़रूर वटक से बनता नज़र आ रहा है।  संस्कृत में खल्ल: का मतलब है चक्की, गढ़ा। हिन्दी का खरल शब्द भी इससे ही बना है। वट् का अर्थ यहां ऐसे पिण्ड से है जिससे पीसा जाए। यही अर्थ सिलबट्टे का है। सिल शब्द बना है शिला से जिसका अर्थ पत्थर, चट्टान या चक्की होता है। जाहिर है पत्थर की छोटी सिल्ली पर बट्टे से पिसाई करने के चलते सिलबट्टा शब्द बन गया। [संशोधित पुनर्प्रस्तुति]
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7 कमेंट्स:

Shekhar Kumawat said...

बबुत खूब जानकारी

Udan Tashtari said...

बढ़िया जानकारी!

उम्मतें said...

ज़ुबान का खेल था...दिमाग कभी लगाया ही नही ! आज अन्दर बहुत खोजा...घिसाई का मामला था निशान तक नही मिले ! आपसे अनुमति की प्रत्याशा मे कापी पेस्ट कर मेमोरी मे डाल लिया है!

चंद्रभूषण said...

वड़े के बारे में मेरी मां एक बुझौनी बुझाती है-

पहले था वह मर्द-मर्द
मर्द से नारि कहाया
घाव बर्छी का खाया
सात समुंदर तैर आया
मर्द का मर्द कहाया।

Mansoor ali Hashmi said...

सुबह की बानगी , शाम को खाई, प्रेरणात्मक जानकारी.

इसको 'बड़ा' बना दिया इन्सान की भूख ने,
'आलू' वगरना ज़ेरे ज़मीं खाकसार था.
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# छोटा नही पसंद, 'बड़ा' खा रहे है हम,
खाके, पचाके 'छोटा' ही बतला रहे है हम

...देखिये और भी अशआर.........http://aatm-mnthan.com पर

दिनेशराय द्विवेदी said...

वड़ा से वटिका की रिश्तेदारी खूब है। सुबह पेट गड़बड़ था, और सिर दर्द भी वटिका का प्रयोग किया। इसलिए इस आलेख पर निगाह गई भी तो आलूबड़ा पढ़ कर छोड़ दिया। अब दिन भर निराहार रहने पर लगी भूख में इसे पढ़ रहा हूँ। सिलबट्टा और खरल विजया का स्मरण करा रहे हैं।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत अच्छा - वडा- बड़ा.

मूल वट चारो तरफ विधमान है.

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