Thursday, July 22, 2010

डॉटर यानी दूध दुहनेवाली बिटिया…

Milking
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हि न्दी की लगभग सभी ज़बानों में बच्चों के लिए छोरा-छोरी का सम्बोधन भी बड़ा लोकप्रिय है। हिन्दी के मध्यकालीन साहित्य खासतौर पर ब्रज भाषा में छोरा शब्द का प्रयोग खूब हुआ है। छोरा शब्द प्रायः शैशवकाल में जी रहे बच्चे के लिए ही इस्तेमाल होता है। यूं शैशव से लेकर कैशोर्य पार हो जाने तक छोरा या छोरी शब्द का प्रयोग खूब होता है। यह बना है संस्कृत धातु शाव से जिसमें किसी भी प्राणी के शिशु का भाव है। आपटेकोश में इसका विन्यास कुछ यूं दिया है- शाव+र+कः। इस शावरकः का वर्णविपर्यय के जरिये प्राकृत रूप होता है छावड़ओ और फिर ब्रज भाषा और खड़ी बोली में इसका दाखिला छोरा के रूप में होता है। छोरा-छोरी के बीच आमतौर पर क शब्द का प्रयोग भी किया जाता है जैसे छोकरा-छोकरी। इसे मध्यस्वरागम के तहत भी समझा जा सकता है। मगर शावरकः पर विचार करें तो यह वर्णविपर्यय का उदाहरण भी है। जिन बोलियों में छोकरा शब्द का इस्तेमाल होता है वहां शावरकः से छाकड़ओ रूप बन कर छोकरा और छोरा जैसे दो रूप संभावित हैं। शावक आमतौर पर चौपाए के सद्यजात शिशु के लिए प्रयोग किया जाता है। हिन्दी का छौना शब्द भी शावक से ही बना है। गौर करें कि मृगशावक अर्थात हिरण के बच्चे के लिए ही हिन्दी मे छौना शब्द का प्रयोग होता है। बच्चों के लिए चुन्नू, चुन्नी, चुनिया, छुन्नी जैसे नामों के मूल में संभवतः शैशव और शावक से संबंध रखनेवाला यह छौना शब्द ही है। हिन्दी में आमतौर पर छोकरा-छोकरी शब्द भी प्रचलित हैं पर इसकी अर्थवत्ता में बदलाव आ जाता है। छोरा-छोरी जहां सामान्य बच्चों के लिए प्रयोग होता है वहीं छोकरा में दास या नौकर का भाव भी है।
हिन्दी में बेटी के लिए पुत्री शब्द ज्यादा प्रचलित हैं किन्तु किन्हीं बोलियों में धी, धिया जैसे शब्द भी इस्तेमाल होते हैं। धी, धिया आदि शब्द दुहिता से बने हैं। डॉ रामविलास शर्मा पश्चिमोत्तर क्षेत्रों खासतौर पर सुविस्तृत ईरान के संदर्भ में संस्कृत परिवार के पूर्ववैदिक स्वरूप की चर्चा करते हुए बताते हैं कि खोवार भाषा में झ़ऊ का अर्थ बच्चा या पुत्र है। लड़की के लिए झ़ूर शब्द है। वे लिखते हैं कि भाषाविद मोर्गेन्स्टीन ने कल्पना की है की झ़ूर का मूलरूप जुहता था। दुहिता के ग्रीक प्रतिरूप थुगातेर में आदिस्थानीय थ् मूलरूप के ध् की ओर संकेत करता है। धूता, धूतर जैसे रूपों से दुहिता बनना संभव है। धी (लड़की) के समान धू, धउ (लड़का) रूप प्रचलित थे और इनके साथ धूत या धूर जैसे रूप थे जिनसे खोवार झ़ूर, कलश का झूर्, ब्रज का छोरा-छोरी जैसे शब्द बने हैं। भ्राता का बहुचन खोवार में ब्रारगिनि है। रामविलास

... भारोपीय संदर्भों में मातृ-मादर-मदर, पितृ-पिदर-पिसर-फादर, भ्रातृ-बिरादर-ब्रदर की कड़ी में जैसे ही डॉटर शब्द के तुलनीय फारसी या संस्कृत की चर्चा होती थी तब उक्त पारिवारिक शब्दों के समान किसी अन्य शब्द की कल्पना इसलिए सामान्य व्यक्ति नहीं कर पाता क्योंकि दुहिता शब्द बोलचाल की हिन्दी में नहीं है और संस्कृत में पुत्री शब्द अधिक प्रचलित है। जैसे ही दुहिता-दुख्तर सामने आते हैं, डॉटर शब्द पहेली नहीं रह जाता ...OLYMPUS DIGITAL CAMERA          

शर्मा यहां दिलचस्प बात कहते है कि गिनि, गण का रूपान्तर है। जाहिर है यह ठीक वैसे ही है जैसे फारसी में बिरादर से बने बिरादरी में गणवाची  समूह का भाव उभरता  है। यही तमिल का गळ है। खोवार में पत्नी के लिए बोको शब्द है जो मराठी बाइको से तुलनीय है जिसका अर्थ भी पत्नी है। बाइको का बाई, अंग्रेजी वाइफ के बाई से तुलनीय है और बाई का नारीवाचक आधुनिक आर्य प्रतिरूप बाई है। मज़े की बात यह कि संस्कृत का भगिनी या बहन हिन्दी में बहिनी हो जाता है। बाई शब्द चाहे उत्तर भारत में हीन समझा जाता हो मगर मालवी में बाई बड़ी बहन को भी कहते हैं और सम्भ्रान्त स्त्री को भी।   बहिन, बहिना, बहीनी जैसे शब्द भगिनी के प्रतिरूप हैं। मराठी में भी बाई शब्द सम्मानसूचक है। मराठी में भाभी को वहिनी कहते हैं। यह भी भगिनी से ही बना है। भाई की पत्नी के साथ भी बहन जैसे रिश्ते की कल्पना मराठी समाज का विशिष्ट सांस्कृतिक आधार है।
दुहिता भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है। फारसी का दुख्तर, पश्तो का दोख्तर और अंग्रेजी का डॉटर शब्द इसी कड़ी का हिस्सा है। अवेस्ता में इसका रूप दुहितर होता है। यह समझा जा सकता है कि पूर्ववैदिक काल के गण समाज में पशुओं को दूहने का काम बेटियां या पुत्रियों की जिम्मेदारी थी। दुहिता अर्थात जो दूहने का काम करे। फारसी में कहावत है दुख़्तर नेक अख़्तर यानी बेटी आंख का तारा होती है। फारसी में अख़्तर का अर्थ सितारा या नक्षत्र होता है। दुख्तर नेक अख़्तर में दुख़्तर यानी पुत्री के अच्छा सितारा या नक्षत्र होने की तुलना में आंख का तारा होने का भाव ही प्रमुख है। रामविलास जी जो राह दिखा रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांतों में बोली जाने वाली कलश या खोवार भाषाओं में वैदिक का में रूपांतर नज़र आ रहा है। यह रूपांतर अपवादस्वरूप है या सामान्य, यह भाषाविज्ञानियों के अध्ययन का विषय है। हालांकि पूर्व वैदिक धूर ध्वनि से खोवार का झूर और फिर छोरा से इसका साम्य तार्किक है। धू, धऊ और धी (पुत्री) के रूप में वैदिक परिवार की दुह् धातु से भी इसका साम्य तो बैठता है किन्तु दुहिता के पुत्री होने की तार्किक व्युत्पत्ति दुह् धातु की तुलना में इस धारणा से अधिक स्पष्ट होती है कि दुहने का काम पुत्रियां करती थीं। संस्कृत की दुह् धातु में निचोड़ने, किसी वस्तु से कोई अन्य दूसरी वस्तु निकालने का भाव है। दोहन या दोहना का प्रयोग हिन्दी में मुहावरे के तौर पर भी होता किसी को डरा कर अपना काम निकलवालने के अर्थ में है। भयादोहन शब्द का प्रयोग आम है। प्रायः दुनियाभर की भाषाओं पर प्राचीन पशुपालन संस्कृति का ही प्रभाव रहा है और पशुओं के साहचर्य के दैनंदिन अवसरों ने ही भाषाओं को समृद्ध किया है। पशुओं का दूध दुहनेवाली के रूप में बेटी की जो व्यंजना दुहिता में उभर रही है, वह अद्भुत है। हिन्दी में नाती के लिए जो दौहितृ शब्द है वह इसी दुहिता से आ रहा है। दुहिता का पुत्र अर्थात दौहितृ। संस्कृत में दुहितृ का अर्थ दामाद भी है।

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12 कमेंट्स:

संगीता पुरी said...

अद्भुत होता है सफर शब्‍दों का !!

प्रवीण पाण्डेय said...

छोरा फारसी मूल का लगता था। दुहिता सारी संस्कृतियों में एक ही मूल से उत्पन्न शब्द है।

Farid Khan said...
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Farid Khan said...

बहुत ख़ूब। बिहार में, ख़ास कर भोजपुरी में 'छौंड़ा (छोकरा), छौंड़ी (छोकरी) कहते हैं।

Asha Joglekar said...

राजस्थान में लड़का लड़की को टाबुर कज टाबरी कहा जाता है. यह भी आप के शावरक से ही निकला लगता है. हमेशा की तरह रोचक यात्रा.

शोभना चौरे said...

बहुत ही अद्भुत शब्द यात्रा |मालवी में माँ को "बई,"निमाड़ी में माँ को "बाई "और राजस्थान में माँ को "बाईजी "कहा जाता है |ये बात अलग है की अब सब लोग ज्यादातर मम्मी ही कहने लगे है |
निमाड़ में छोरा को " पोरया "और छोरी को "पोरई "कहते है |
आपकी शब्द यात्रा इतनी विराट है उसमे और कोई गुंजाईश ही नहीं है फिर भी कुछ प्रचलित और निमाड़ मालवा से सम्बन्ध है तो लिख दिए है |
आभार

Mansoor ali Hashmi said...

अजित जी, शब्दों को मठ कर घी निकालना कोई आपसे सीखे!

'छेड़ा-छेड़ी' करते हमने 'छोरा-छोरी' देखे,
'दुग्ध वाहिनी' का 'दोहन' कर 'जोड़ा-जोड़ी' देखे,
'झुऊ-झूर' की व्युत्पत्ति से पोरया-पोरी देखे,
'घी' कि ख़ातिर इस जग की सब दौड़ा-दौड़ी देखे.

'दुख्तर' को 'अख्तर' कह कर हम 'ऊपर' भी पहुंचाते,
और 'बिरादर' कह पुत्तर को सर पे है बिठलाते.

-mansoorali hashmi

hem pandey said...

दूध दुहने वाली डॉटर आज अंतरिक्ष में उड़ान भरने लगी है.

कविता रावत said...

मराठी में भी बाई शब्द सम्मानसूचक है। मराठी में भाभी को वहिनी कहते हैं। यह भी भगिनी से ही बना है। भाई की पत्नी के साथ भी बहन जैसे रिश्ते की कल्पना मराठी समाज का विशिष्ट सांस्कृतिक आधार है।... यह तो बहुत अछि बात है लेकिन
... उत्तरप्रदेश में बाई शब्द बेहद अपमानजनक समझा जाता है...
... ...अद्भुत है आपका शब्दों का सफ़र, दैनिक भास्कर में भी आपके लेख आते है, रोमांचित करते हैं आपकी शब्द शैली और शब्द की पकड़ प्रभावपूर्ण होती है,
हार्दिक शुभ कामना

Vinay said...

Nice Post
क्या कहूँ आपकी सभी पोस्टें बेहतरीन होती हैं


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तख़लीक़-ए-नज़र
तकनीक-दृष्टा
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
The Vinay Prajapati

shikha varshney said...

हम्म ...रोचक जानकारी.

आशुतोष कुमार said...

एक सम्पूर्ण सुन्दर पोस्ट .

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