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फ़ा रसी ज़बान से हिन्दी में आए अनेक शब्दों में तजुर्बा का भी शुमार है जिनका बोलचाल में रोज़ाना खूब इस्तेमाल होता है । तजुर्बा यानी अनुभव । अनुभव को भोगा हुआ यथार्थ भी कहा जाता है । आसान भाषा में समझना चाहें तो हमारे आसपास की वह सचाई जिसे इन्द्रियों के ज़रिए हमने जाना, परखा और फिर उसके बारे में अपनी राय कायम की, तजुर्बा बनती है । तजुर्बा मूलतः अरबी भाषा का शब्द है और हिन्दी में इसे अलग अलग ढंग से लिखा जाता है । हिन्दी के नामीगिरामी लेखकों के यहाँ इस शब्द की वर्तनी का बर्ताव अलग अलग मिलता है मसलन प्रेमचंद ने तजुर्बा भी लिखा है, तजरबा भी लिखा है और तजुरबा भी । इससे ज्यादा और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है । हिन्दी शब्दसागर तजरबा शब्द को तरजीह देता है जबकि ज्यादातर हिन्दी वाले तजुर्बा लिखना पसंद करते हैं । इसका शुद्ध अरबी रूप है तज्रिबह् या तज्रिबा । तजुर्बा में मूलतः अनुभव, प्रमाण, परीक्षण, सबूत, परीवीक्षण, जाँचना, कसौटी जैसे निहितार्थ है ।
अरबी का तज्रिबा सेमिटिक धातु ज-र-ब ( j-r-b ) से बना है । हेन्स व्हेर, जे मिल्टन कोवेन, एन्थनी सेल्मॉन के अरबी कोश और बेवर्ली ई क्लैरिटी के इराकी अरेबिक कोशों को देखने के बाद यह स्पष्ट होता है कि इसमें मूलतः खुजली, खँरोंच और सूखी, पपड़ाई त्वचा जैसे मूल भाव हैं । विकास के दौर में मनुष्य ने काफ़ी वक्त उघाड़े बदन प्रकृति के सामीप्य में गुज़ारा है । खरोंच, ज़ख़्म, फोड़ा, फुंसी आदि को उसने सबसे पहले महसूस किया । ज-र-ब में इसी अर्थ में परीक्षण का भाव समाहित हुआ । किसी सतह को छू कर, स्पर्ष कर, कुरेद कर उसके बारे में जानना ही शुरुआती परीक्षण के दायरे में था । मद्दाह के कोश के मुताबिक ज-र-ब से जरब बनता है जिसका अर्थ है खुजली, ख़ारिश आदि । इससे ही जराब या जर्राब आते हैं जिसमें परीक्षण, आज़माईश, प्रयोग जैसे भाव हैं । इसी कड़ी में तज्रिबा बना जिसमें अनुभव वाली बात आती है । हिन्दी शब्दसागर के मुताबिक वह ज्ञान जो परीक्षण द्वारा पाया जाए, तजुर्बा कहलता है । वह परीक्षा जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए दी जाए, यह भी तजुर्बा कहलाती है । अनुभवी के लिए तजुर्बेकार शब्द हिन्दी में खूब प्रचलित है । अनाड़ी को नातजुर्बाकार और अनाड़ीपन, अनुभवहीनता को नातजुर्बाकारी ( नातज्रुबाकारी ) कहते हैं ।
ज-र-ब का उल्लेख जुराब की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में हो चुका है । जुराब के सन्दर्भ में इसमें निकटता, सामिप्य जैसे भाव इसे खाल या त्वचा से जोड़ते हैं । जुराब मूलतः चमड़े से बना एक आवरण होता है । तजुर्बा के सन्दर्भ में भी ज-र-ब धातु सामने आती है । अनुभूति दो तरह की होती है । भौतिक और मानसिक । अनुभव का दायरा व्यापक है और हमारे अनुभव में वही यथार्थ सामने आते हैं जो मानसिक प्रक्रिया से गुज़रने के बाद सच के रूप में प्रतिष्ठित होते हैं । मगर आदिकाल में मनुष्य अपने अनुभवों के दायरे में भौतिक अनुभूतियाँ ज्यादा थीं । ज-र-ब का एक अर्थ होता है सूखी, मोटी, खुरदुरी, रूखी त्वचा या पपड़ाई हुई सतह । ध्यान रहे शरीर से अलग की गई खाल का यही रूप होता है । शरीर की त्वचा इसलिए होती है क्योंकि उसकी ऊपरी कोशिकाएँ मरने लगती हैं । यह परत अपने आप अलग हो जाती है । रूखी त्वचा का आभास हमें खुजली के रूप में होता है । ज-र-ब धातु में खुजली का भाव भी है । ध्यान रहे त्वचा, हमारा रक्षा कवच है और इसका दूसरा महत्वपूर्ण गुण है अनुभूति होना । त्वचा बना है त्वच् धातु से जिसका मूलार्थ है स्पर्श । स्पष्ट है कि ज-र-ब का मूलार्थ भी स्पर्श के ज़रिये अनुभूति तक सीमित था किसी ज़माने में । सेमिटिक भाषा परिवार में ग और ज वर्ण आपस में बदलते हैं । ज-र-ब की समानधर्मा धातु है ज-र-र ( j-r-r ) जिसमें खींचने, कुरेदने का भाव है । शल्य चिकित्सक या सर्जन के लिए अरबी में जर्राह शब्द है जो चीरफ़ाड़ करके ज़ख्मों का इलाज करता है । यह शब्द पहले हिन्दुस्तानी में भी प्रचलित था, अब इसका प्रयोग कम हुआ है । जर्राह वाली चीरफ़ाड़ को खंरोंचना, कुरेदना वाले अर्थों में परखा जाए तो यह भी उसी मूल का शब्द निकलता है । इसी कड़ी में जरीब का परीक्षण भी कर लिया जाए । पुराने ज़माने में ज़मीन की नाप-जोख करने वाले व्यक्ति को जरीबकश कहते थे । मूलतः जरीब वह साँकलनुमा औज़ार होता था जिससे ज़मीन की पैमाईश होती थी । एक तरह से वह इंचटेप था । इसके दोनों छोरों पर लकड़ी या धातु का कीला होता था । एक सिरे पर इस कीले को गाड़ कर बाकी जंजीर को खींच कर दूसरे छोर तक ले जाया जाता था । ज़मीन पर लगातार रगड़ने की वजह से उसे धातु का बनाया जाता था । जरीब में उपजाऊ ज़मीन का आशय भी है और भूमि का नापने की एक इकाई भी जरीब कहलाती थी ।
गौर करें कि उपजाऊ ज़मीन ही जोती जाती है । जोतने की क्रिया को ही कृषि कहते हैं । संस्कृत में कृष् का अर्थ खींचना, खरोचना ही होता है । जोतने की क्रिया में हल का खींचना, उसके फाल से भूमि को कुरेदने, खरोचने की क्रिया स्पष्ट है । जरीब के जर्र में खींचने का निहितार्थ पैमाने के अर्थ में भी है और जोतने योग्य भूमि के अर्थ में भी । हिन्दी शब्दसागर में जरीब की माप 55 गज की और अग्रेजी जरीब 60 गज की होती है । एक जरीब में 20 कट्ठे होते हैं । जॉन प्लैट्स के मुताबिक एक जरीब भूमि का वर्गाकार टुकड़ा एक बीघा ज़मीन होती थी । इसी तरह पाँच जरीब का टुकड़ा एक हेक्टेयर के बराबर होता है ।
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2 कमेंट्स:
एक और त्वचा का बोध होता है जुराब में।
चोट गहरी थी कोई 'फुंसी' या 'फोड़ा' सा न था,
'तजरबा' ख़ूब उसे था कि वह 'जर्राह' भी था.
नज़रे तेज़ 'जरीबी' से मुझे नाप लिया,
मेरा दुश्मन तो था लेकिन मेरा मद्दाह भी था !
http://aatm-manthan.com
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