हिन्दी का चरण शब्द बना है संस्कृत के चरणः से जिसका जन्म हुआ है चर् धातु से । इसका अर्थ है चलना, भ्रमण करना, अभ्यास करनाआदि। एक अन्य अर्थ भी है – सृष्टि की समस्त रचना। इसी से बना है चरण जिसका मतलब है पैर यानी जो चलते-फिरते हैं, भ्रमण करते हैं। गौरतलब है कि प्राचीनकाल में ज्ञानार्जन का बड़ा ज़रिया देशाटन भी था। चूंकि घूमें-फिरे बिना दुनिया की जानकारी हासिल करना असंभव था इसलिए जो जितना बड़ा घुमक्कड़, उतना बड़ा ज्ञानी। चूंकि पैरों से चलकर ही मनुष्य ने ज्ञानार्जन किया है इसीलिए प्रतीकस्वरूप उन्हे स्पर्श कर उस व्यक्ति के अनुभवों को मान्यता प्रदान करने का भाव महत्वपूर्ण है।
घूमने फिरने पुराने जमाने में राजाओं के संदेश लाने ले जाने का काम करनेवाले दूतों को भी चर या चारण कहते थे । राजस्थान की एक जाति का नाम भी इसी आधार पर पड़ा है। जीवनी , इतिहास और साहस कथाओं के लिए चरित शब्द भी इसी मूल से निकला है जैसे दशकुमारचरित, रामचरितमानस आदि। चर् धातु के घूमने फिरने के अर्थों से ही बना है एक मुहावरा चाल-चलन जिसे किसी व्यक्ति के मूल्यांकन का आधार माना जाता है। दरअसल यही चरित्र है।
चर में वि उपसर्ग और अण् प्रत्यय लगने से बन गया विचरण यानी घूमना-फिरना। इसी तरह बना परिचर या परिचारिका यानी जो घूम-फिर कर देखभाल करे। अब देखभाल करना तो इलाज की प्रक्रिया का ही हिस्सा है इसलिए उपचार का अर्थ हुआ इलाज करना।इसीलिए फारसी में भी उपाय, दवा, इलाज के लिए एक शब्द है चारा और डाक्टर के लिए चारागर शब्द है। इलाज करने के लिए चारागरी लफ्ज भी है।
जब किसी समस्या का कोई हल या इलाज न निकले तब क्या होता है सिवाय इसके कि आप असहाय महसूस करें सो चारा में ला उपसर्ग लगने से बन गया लाचार। इसी तरह बने बेचारा , बेचारगी, लाचारी आदि शब्द। हिन्दी में तो बिचारा, बिचारी जैसे रूप भी प्रचलित है।
चर् यानी चलने-फिरने, घूमने से जैसे अर्थ से कोई ताज्जुब नहीं कि चरिः जैसा शब्द भी बना जिसका मतलब हुआ पशु और फिर चारा अर्थात घास शब्द भी बना यानी वह चीज़ जिसे घूम-घूम कर खाया जाए। इस क्रिया का नाम हुआ चरना और चरानेवाले को कहा गया चरवाहा। फारसी में भी जानवरों के लिए परिंदा की तरह चरिंदा लफ्ज और चरागाह जैसे लफ्ज भी बने ।
9 कमेंट्स:
शब्दों के नये प्रयोग भी हो सकते हैं - जैसे अजित वडनेरकर = शब्दों के चारागर! :)
अच्छा विश्लेषण किया है चरण स्पर्श करके हम बडों को आदर और सम्मान देते है।
बहुत उम्दा विष्लेषण. जारी रखेंगे. आभार.
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने...एसे ही देते रहियेगा आपकी अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा...
सुनीता(शानू)
शानदार विचरण..
बहुत बढिया विश्लेष्ण किया है।
कमाल है, बेहतरीन है. यह वाला बहुत सुंदर बना है.
बचपन में याद आता है कि डाँट सुनते समय एक शब्द जिससे सुभाषित किया जाता था , बनच्चर अर्थात वन चर माने जंगल में चरने वाला = जंगली ।
आप सबका आभारी हूं कि ये लेख पसंद आया और प्रतिक्रिया दी। आपकी हौसलाअफजाई सफर के चलते रहने में बहुत काम आती है। शुक्रिया एक बार फिर।
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