Monday, October 15, 2007

पठान की ऊंचाई, बुलंदी और मज़बूती यूं ही नहीं.....

ठान यानी खालिस अफगानिस्तानी लोग। काबुलीवाला के तौर पर जो तस्वीर जेहन मे उभरती है वह दरअसल एक पठान की होती है। भारत के मुस्लिम समाज में बहुत से लोग पठान उपनाम का इस्तेमाल करते है। आज पठान शब्द से एक धर्म या जाति-विशेष का हो कर रह गया है मगर किसी वक्त ऐसा नहीं था। बल्कि पश्चिमोत्तर भारत के एक खास इलाके में रहनेवाले सभी लोग पठान कहलाते थे ठीक वैसे ही जैसे पंजाब निवासी पंजाबी, महाराष्ट्र के लोग मराठी और गुजरातवासी गुजराती ।
दरअसल इस्लाम के जन्म से भी सदियों पहले वैदिककाल में जब अलग-अलग गण हुआ करते थे भारत के उत्तर-पश्चिमी इलाके में पक्थ नाम का एक गण था। इसका क्षेत्र आज के रावलपिंडी से लेकर अफगानिस्तान के दक्षिण-पूर्वी इलाके तक थे। इसमें उत्तर में आज के पेशावर-काबुल से लेकर दक्षिण मे क्वेटा जैसे इलाके आते हैं। खास बात ये कि ये समूचा क्षेत्र पहाड़ी है। पख्त शब्द मूल रूप से पष् धातु से बना है जिसमें ऊंचाई, बुलंदी और मजबूती जैसे अर्थ निहित हैं। समझा जा सकता है कि ये सब विशेषताएं पहाड़ में ही होती है और पहाड़ी क्षेत्र होने से ही इसे पक्थ नाम मिला होगा। इससे बने पठार(हिन्दी ), पुख्ता (फारसी) और पाषाण् ( संस्कृत) जैसे शब्द भी इसी तथ्य को साबित करते हैं। जाहिर है पक्थ गण का एक रूप पहले पश्त या पष्त रहा होगा। क्योंकि आज भी इस इलाके के लोग खुद को पश्तून कहते हैं । इनकी बोली भी पश्तो कहलाती है। पक्थ गणवासी ही पख्तून कहलाए। इन लोगों का इलाका पख्तूनिस्तान कहलाया और पख्तून से ही बना पठान। अविभाजित भारत में पेशावर, सियालकोट, रावलपिंडी के हिन्दू भी पठान ही थे और मुस्लिम भी। भारत में मुस्लिम आक्रमण के वक्त तक इस पूरे क्षेत्र में हिन्दू राजा जयपाल का शासन था पठानकोट जैसे कई रिहायशी इलाकों के नाम के साथ पठान शब्द भी किसी ज़माने में वहां पठानों की बहुतायत होने का संकेत करता है।

3 कमेंट्स:

अनामदास said...

बिल्कुल सही और सुंदर विश्लेषण. पख्तिया, पख्तिका नाम के दो प्रांत आज भी हैं अफ़ग़ानिस्तान में. पश्तून या पख़्तून तो वे ख़ुद को कहते ही हैं. असल में जहाँ तक समुंदर बीच में नहीं आता, बंगाल से लेकर ईरान तक, सांस्कृतिक रूप से यह पूरा इलाक़ा सदियों से जुड़ा रहा है.

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया!! आपके ब्लॉग मे आता हूं इसके सिवा मुझे और कोई शब्द ही नही मिलता कहने के लिए!!

बोधिसत्व said...

गुरुदेव कुछ ज्ञान हम बच्चों को देते रहा करें.....बल मिलता है...

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