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Sunday, March 21, 2010
[नामपुराण-1] नाम में क्या रखा है…
आश्रय का निर्माण होने के बाद उसका नामकरण करने की परिपाटी भी प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। यह आश्रय चाहे राष्ट्र हो प्रांत हो, नगर हो अथवा ग्राम, हर आश्रय का एक नाम ज़रूर होता है। हर काल में लोगों ने अपने निवास-ठिकाने बदले हैं और नई स्थिति में उनका नया नाम भी रख दिया गया। यह प्रक्रिया राष्ट्रों के नाम बदलने से लेकर मकानों के नाम बदलने तक जारी रहती है। नामकरण के पीछे जो सहज प्रवृत्ति काम करती है वह होती है स्व अर्थात निजता की स्थापना। विभिन्न परिस्थितियों में इस निजता के आयाम भी अलग अलग होते हैं। जैसे जाति, धर्म, रंग, क्षेत्र, बोली अथवा अन्य कोई विशिष्ट पहचान चिह्न जो समूह या व्यक्ति की निजता से जुड़ता हो। जाति-धर्म के आधार पर मानव-समूहों की पहचान सरनेम या उपनाम के जरिये सामने आती है।
दुनियाभर की विभिन्न संस्कृतियों में स्थान के नाम से अपनी पहचान को जोड़ कर चलने की परम्परा रही है। इसे शायरों के नाम से आसानी से समझा जा सकता है। शायर अक्सर एक तख़ल्लुस लगाते हैं जैसे फिराक़ गोरखपुरी साहब का असली नाम रघुपतिसहाय था। इसी तरह प्रसिद्ध शायर शीन काफ़ निज़ाम का असली असली नाम है शिवकिशन कल्ला और उनका ताल्लुक राजस्थान के प्रसिद्ध पुष्करणा ब्राह्मण समुदाय से है। एक शायर का नज़रिया जाति या सम्प्रदाय से ऊपर होता है। तख़ल्लुस के साथ एक खास बात उस शायर के मिजाज़ को समझने की भी होती है। शायर का स्वभाव, जीवन-दर्शन जैसा होगा, वह उसी किस्म का तख़ल्लुस रखेगा।
प्रसिद्ध रूसी जनकवि रसूल हमजातोव के पिता का नाम था हमज़ात त्सादासा। गौरतलब है रसूल पूर्वी सोवियत संघ से अलग हुए के दागिस्तान गणतंत्र के निवासी थे। उनके गांव का नाम था त्सादा इसीलिए उनके पिता हमज़ात त्सादासा कहलाए। दुनियाभर में पिता का नाम पुत्र के नाम से जोड़ने की परम्परा है सो हमज़ात के बेटे रसूल का नाम हुआ रसूल हमज़ातोव यानी हमज़ात का बेटा रसूल। असदुल्ला खां गालिब, मीर तकी मीर, मोमिन, शेख इब्राहीम ज़ौक़, मिर्जा हादी रुस्वा जैसे नामों के पीछे जुड़ी पहचान ही उनका तख़ल्लुस रहा है। तख़ल्लुस दरअसल शायर अपने मिजाज की पहचान करते हुए रखते थे। इससे अलग अधिकांश शायरों में तखल्लुस के साथ मूलस्थान का नाम जोड़ने की परम्परा ज्यादा रही है जैसे अदम गोंडवी, वसीम बरेलवी, हसरत जयपुरी, क़ैफ़ भोपाली, राहत इंदौरी, शकील बदायूंनी आदि। इस परम्परा का उत्कर्ष वाराणसी के पास मछली शहर से जुड़े शायर सलाम साहब के पूरे नाम में नजर आता है। वे फख्र से अपना नाम सलाम मछलीशहरी लिखते थे। शायराना तबीयत का कोई व्यक्ति शायद अटपटा सा मछलीशहरी उपनाम न रखना चाहे।-जारी
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18 कमेंट्स:
सुंदर व्याख्या , आभार .
पसंद आया। शीन काफ निजाम और रसूल हम्जातोव का उल्लेख अच्छा लगा। उन का सही उच्चारण रसूल ग़म्जातोव है। उन की रचना मेरा दागिस्तान अदभुत रचना है।
शायद उपनाम ज्यादा प्रसिद्ध हो जाता है . युसूफ खान जब दिलीप कुमार बन जाते है तभी हिट होते है. वैसे नाम में ही सब कुछ है
बहुत ही सुंदर। जारी रखें....सादर आभार।।
अच्छा आलेख! आभार!
अजित वडनेरकर "भोपाली" को आदाब । यह पोस्ट पढ़कर मज़ा आ गया । कभी हमें भी ऐसा ही शौक था और खुद को शरद " भंडारवी " कहते थे .. भैया टिप्पणी में यह कविता चलेगी .......
1996/208
नाम
गोद में रखे गये नामों को
बरकरार रखने की कोशिश में
युद्ध लड़े गये जवानी में
वंश परम्परा जारी रखने की चाह में
माँओं की गोद सूनी की गई
नाम में क्या रखा है कहते हुए
नाम के लिये लड़ते गये
मरते गये लोग
नाम के लिये खुदवाये गये कुएँ
धर्मशालाएँ बनवाई गईं
खोले गये प्याऊ और अस्पताल
नाम में बट्टा लगने के डर से
निर्धारित किये गये जीने के नियम
ज़िन्दगी को क़ैद किया गया
आचार सन्हिता की कोठरी में
जिनके बस में नहीं था
अपना नाम खुद कर लेना
उन्होने जोड़ तोड किये
अपना नाम सार्थक करने के लिये
नाम गूंजता हुआ देखकर वे खुश हुए
खुश हुए छपा हुआ नाम देखकर
अनदेखा कर गए
नाम के साथ जुड़े विशेषणों को
जिनका नाम नहीं था
उन्हे नाम की चिंता नहीं रही
नाम ज़रा सा भी हुआ जिनका
उनके सुख हवस में बदल गये
नाम का क्या हुआ
यह देखने के लिये जीवित नहीं रहे
वे तमाम लोग ।
--- शरद कोकास
कमाल है साहब.
अब तो नाम के मिजाज़ के
अतल तक पहुँचने की राह आसन कर दी आपने.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
@दिनेशराय द्विवेदी
रुसी गणराज्यों में हमज़ातोव का उच्चारण ग़म्ज़ातोव भी है। याद रहे, अगर हम ग़मज़ातोव शब्द का इस्तेमाल करेंगे तो, ग़मज़ातोव के असली रूप, हमजातोव से वंचित रह जाएगे। इस तरह हमजातोव से जुड़े हमज़ात शब्द को भी नहीं पकड़ पाएंगे जिससे हम भारतीय भी परिचित हैं। हमज़ात का अर्थ है सजातीय, अपना, सबका आदि।
यूं भी रसूल की सभी पुस्तकों में उनका नाम में हमज़ातोव ही लिखा है। उच्चारण रूसियों के लिए महत्वपूर्ण है। भारतीयों के लिए अर्थवत्ता ज़रूरी है। सो पहले हमजा़तोव सही है....फिर गम्जा़तोव ...
शरद भाई,
टिप्पणी में आपकी कविता दौड़ रही है साहब।
कुछ अपनी तरफ से जोड़ रहा हूं। इसे अपनी कविता पर टिप्पणी समझें-सादर
गुम-नाम
गुम जाते हैं नाम
खो जाती है शख्सीयतें
ये दोनों होते हैं कभी एक साथ
गुमशुदा तवारीखी
दस्तावेजों में
हमें नहीं आता
जिन्हें संभालना
दीमकों के हवाले कर जिन्हें
हम लिख रहे होते हैं
नई इबारतें
पोस्ट भी बढ़िया .
टिप्पणिया भी बढ़िया .
और कविता भी बढ़िया .
नाम में क्या रखा है .---------- शेक्स्पीअर ने कहा.
शीन काफ निजाम साहब से मिलने का सोभाग्य मिल चुका है . बहुत बढ़िया इंसान है .
अजित भाई को सुरमा भोपाली नाम दिया जा सकता है.
पारिवारिक गूगल ग्रुप पर मैं पहले से ही भाई भोपाली हूं अमितजी :)
आज के आपके सवाल की पड़ताल कुछ यूँ की है:-
पड्ताल/INVESTIGATION
नाम मे रखा क्या है!
कौन तू बता क्या है?
’मन’ है तू सही लेकिन,
’सुर’ मे ये छुपा क्या है.
कौन है तेरा मालिक?
सब का वो खुदा क्या है!
त्रिशूल, चान्द या क्रास,
हाथ पे गुदा क्या है?
फ़िर से तू विचार ले,
नाम से बुरा क्या है.
धर्म से भला है कुछ,
धर्म से बुरा क्या है?
-मन सुर अली हाशमी
नामकरण भेड़चाल का दूसरा नाम है! संजय गांधी/मेनका गांधी के जमाने में कितने संजय और मेनका उगे?! :-)
फलाने की शादी हो रही है जूली से। बाभन की बेटी जूली? पता चला कि जब वह जन्मी थी तो जूली फिल्म रिलीज हुई थी! :-)
पोस्ट और टिप्पणिया पड़ताल करते हुए सही दिशा में बढ़ रहे हैं...
शुक्रिया सभी का.
रसूल हमजातोव रूसी नहीं अवार कवी थे.
एक कविता याद आ गई शीर्षक से ...
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