Thursday, March 25, 2010

[नामपुराण-3] हरिद्वार, दिल्लीगेट और हाथीपोल

पिछली कड़ियां-A.[नामपुराण-1]B.[नामपुराण-2]DSCN0514
र्वत भी मनुष्य का प्रिय आश्रय रहे हैं। पहाड़ी कंदराओं में सुरक्षित निवास तलाशने के बाद मनुष्य ने पर्वतीय घाटियों, उपत्यकाओं में बस्तियां बसाईं। पर्वत की तलहटी में स्थित समतल स्थान को उपत्यका कहते हैं जहां तक पहुंचने के रास्तों के नामों में भी पर्याप्त विविधता है जैसे-घाट, घाटी, दर्रा, नाल, फाटा, द्वार, पोल, पास आदि। इनमें पोल या फाटा जैसे शब्दों का प्रयोग मैदानी क्षेत्रों में भी द्वार के अर्थ में होता रहा है। राजस्थान में पोल शब्द खूब प्रचलित है। मूलतः इसमें द्वार का संकेत है मगर सघन बसाहट के बाद अब किसी विशेष आबादी के लिए ये नाम प्रसिद्ध हो गए हैं जैसे चांदपोल, रामपोल, हाथीपोल, बागबानों की पोल, जयपोल, लोहापोल, इमरतिया पोल, मनोहर पोल आदि। पोल का अर्थ खाली स्थान होता है। इसमें मूलतः खोखलापन या पोलापन का भाव है। शब्दकोशों के मुताबिक पोला शब्द संस्कृत की पुल् धातु से बना है जिसमें विस्तार, रिक्तता जैसे भाव हैं। पुल से ही पोला या पोल जैसे शब्द बने हैं। द्वार के साथ मार्ग के अर्थ में इसका रिश्ता संस्कृत के प्रतोली से भी जोड़ा जाता है जिसका अर्थ है नगर की मुख्य सड़क, मुख्य मार्ग आदि। हिन्दी तथा मराठी में इसका रूप होता है पावली या पओली। मराठी में जहां पावली में दहलीज, राहदरी या कदम उठाने, चलने का भाव है वहीं राजस्थानी हिन्दी में पावली (पओली) में बड़ा दरवाजा, फाटक, घर का आंगन, सहन जैसे भाव है। मुख्यरूप से द्वार चहारदीवारी से घिरा वह खाली या रिक्त स्थान होता है जहां से भीतर या बाहर को आवागमन होता है।

घाटियों तक पहुंचने का जरिया दो पहाड़ों के बीच का वह संकुचित स्थान होता है जिसे दर्रा कहते हैं। जाहिर है यह द्वार का ही  फारसी रूप है। दर्रों पर ही व्यापारिक चुंगियां भी होती थीं। हिन्दी के द्वार, अग्रेजी के डोर और फारसी के दर शब्द मूलतः एक ही परिवार के सदस्य हैं। इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार में द्वार शब्द के लिए मूल धातु dhwer या dhwor है। अब संस्कृत के द्वार (dwaar) शब्द से इसकी समानता पर गौर करें। प्राचीन ईरान की भाषा अवेस्ता और वेदों के भाषा मे काफी समानता है। अवेस्ता में भी द्वारम् शब्द ही चलन में था जिसने पुरानी फारसी में द्वाराया की शक्ल ले ली और फारसी तक आते आते बन गया दरः जिसका मतलब है दो पहाड़ों के बीच का रास्ता। फारसी के दरगाह या दरबान और हिन्दी के द्वारपाल, द्वारनायक अथवा द्वाराधीश, द्वारकाधीश जैसे शब्द इससे ही बने हैं। इन तमाम शब्दों के लिए a432_Stelvioसंस्कृत का शब्द है द्वार्। इसका अर्थ है फाटक, दरवाजा, उपाय या तरकीब। हिन्दी में आमतौर पर बोले जाने वाले द्वारा शब्द (इसके द्वारा, उसके द्वारा) में भी उपाय वाला भाव ही है।
गुजरात के पश्चिमी छोर पर स्थित कृष्ण की राजधानी के द्वारवती, द्वारावती या द्वारका जैसे नाम भी समुद्री रास्ते से भारत में प्रवेश वाले भाव की वजह से ही ऱखे गए है। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार इस नगर में प्रवेश के भी कई द्वार थे इसलिए इसे द्वारवती कहा गया। कोटा झालावाड़ के बीच एक छोटा कस्बा है दरा। मूलरूप में इसका नाम दर्रा ही रहा होगा क्योंकि राजस्थान के हाड़ौती अंचल को मालवा से जोड़नेवाले एक पहाड़ी रास्ता यहीं से होकर गुजरता है। पहाड़ी बसाहटों के साथ भी द्वार शब्द जुड़ा हुआ मिलता है जैसे उत्तराखण्ड का प्रमुख कारोबारी शहर और देश का अन्यतम तीर्थ हरिद्वार। दरअसल इसके दो रूप प्रचलित हैं। उत्तराखंड में बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम हैं। बद्रीतीर्थ में भगवान विष्णु विराजते हैं जबकि केदारखंड में शिव का वास है। अब शैव इसे हर अर्थात शिव से जोड़ते हुए हरद्वार कहते हैं जिसका अर्थ है केदारखण्ड जाने का रास्ता। इसी तरह वैष्णव लोग इसे विष्णुधाम बद्रीनाथ के लिए जाने का मार्ग मानते हुए हरिद्वार कहते हैं अर्थात हरि के घर का द्वार। उत्तराखण्ड का ही एक अन्य नगर है कोटद्वार। इसी तरह द्वारकोट भी एक जगह है। व्यक्तिनाम के तौर पर हरद्वार निवासी को ठाठ से हरद्वारीलाल कहा जाता है और इस नाम के हजारों लोग होंगे, मगर कोटद्वारीलाल शायद ही कोई मिले।
द्वार के लिए अंग्रेजी में गेट gate शब्द भी प्रचलित है और हिन्दी में भी इसका खूब इस्तेमाल होता है। अंग्रेजी के डोर शब्द की तुलना में गेट शब्द का उतना ही इस्तेमाल होता है जितना कि दरवाज़ा या फाटक शब्द का होता है। अंग्रेजी के gate शब्द की व्युत्पत्ति संदिग्ध है मगर भाषा विज्ञानी इसे भारोपीय भाषा परिवार का ही मानते हैं और इसकी व्युत्पत्ति पोस्ट जर्मनिक धातु गातां gatan से मानते हैं जिसमें खुले रास्ते, मार्ग या दर्रे का भाव है। इसी तरह प्राचीन नॉर्डिक, फ्रिशियन, और ड्यूश भाषाओं में gat धातु खोजी गई है जिसमें मौद्रिक लेनदेन के अर्थ में खुलने का भाव है यानी टिकटों की बिक्री से होने वाली आय का संग्रहण करना। इस तरह फाटक और गेट शब्द में अंतर्निहित मौद्रिक संदर्भ एक ही हैं। अंग्रेजों के आने से पूर्व द्वार के अर्थ वाले स्थानों के नाम के पीछे जुड़े गेट शब्द की जगह प्रत्यय के रूप में पोल या फाटक शब्द लगाया जाता था। महू में हरी फाटक और दतिया के रिछरा फाटक का नाम लिया जा सकता है। इस फाटक का ही एक रूप फाटा में नजर आता है। महाराष्ट्र में आमतौर पर ऐसे द्वारों को फाटा कहते हैं जैसे झुरली फाटा, पुरार फाटा। फाटा दक्षिण से सुदूर उत्तर तक नज़र आते हैं। उत्तराखण्ड में भी फाटा है और पाक अधिकृत कश्मीर की स्वात घाटी में भी भी फाटा है।
संस्कृत की स्फ ध्वनि में विभाजन, कंपन, आघात, फैलाव जैसे भाव जुड़ते हैं। इससे संबंधित धातु  स्फुट् में निहित विभाजन का अर्थ जुड़ता है दरवाजे के अर्थ में प्रचलित फाटक शब्द से। जॉन प्लैट्स के हिन्दुस्तानी-उर्दू-इंग्लिश कोश के अनुसार इसका संस्कृत रूप है स्फाटः+कः से जिसका अर्थ हुआ द्वार, गेट, आगम, दर्रा, दरवाज़ा आदि। जाहिर है जहां से प्रवेश होता है वह स्थान चौड़ा, फैला हुआ होता है। सामान्य दो पल्लों वाले द्वार की कल्पना करें तो सहज ही समझ में आता है कि स्फुट्  में निहित विभाजन या बांटने वाले अर्थ का फाटक के संदर्भ में क्या महत्व है। हालांकि ख्यात भाषाविद् रामचंद्र वर्मा अपनी कोशकला पुस्तक मे इसकी व्युत्पत्ति संस्कृत के कपाट शब्द से बताते हैं। उनका कहना है कि कपाट का रूपांतर कपाटकः में हुआ फिर इसमें से लुप्त हुआ और पाटकः बचा जो बाद में फाटक बना। कपाट से फाटक शब्द की व्युत्पत्ति कहीं अधिक तार्किक लगती है। मध्यकाल के राजपूत राजाओं नें अपनी राजधानियों और अन्य ठिकानों पर जो किले बनवाए उनमें विभिन्न दिशाओं में खुलनेवाले रास्तों का नाम उन दिशाओं में स्थित नगरों के नाम पर रखा। जयपुर के परकोटे में कई विशिष्ट द्वार हैं जैसे-अजमेरी गेट, सांगानेरी गेट, घाटगेट आदि। आगरा के किले में दिल्लीगेट, लाहौरी गेट हैं। राजस्थान, दिल्ली, मेरठ और दर्जनों अन्य शहरों-कस्बों में ऐसे गेट हैं जिनके पीछे इतिहास और भूगोल झांक रहा है।
 -जारी
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9 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

गहन ज्ञानवर्धन का आभार.

Randhir Singh Suman said...

nice

डॉ. मनोज मिश्र said...

इस पोस्ट नें कुछ नई जानकारियाँ दी,आभार.

दिनेशराय द्विवेदी said...

जिन नामों को हम लोग बिना जाने प्रयोग करते रहते हैं उन की सार्थकता का अहसास करा रही हैं ये कड़ियाँ।

RAJ SINH said...

भाऊ,
आपको लगातार पढता हूँ .और हर बार मेरी टिप्पणी होगी वही जो कई बार कह चुका हूँ .
शानदार !

तो मेरी टिप्पणी न भी मिले तो वही समझें .

सफ़र का हमसफ़र -राज सिंह

किरण राजपुरोहित नितिला said...

मनभावन पोस्ट .

वन्दना अवस्थी दुबे said...

एक साथ बहुत्द सी जानकारियां! धन्यवाद.

संजय भास्‍कर said...

मनभावन पोस्ट

Anonymous said...

हरिद्वार या हरद्वार नाम को लेकर अंग्रेज़ी न्यायालय का पुराना कोई फैसला भी है क्या?

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