ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
Sunday, March 7, 2010
आलू कचालू बेटे कहां गए थे…
खान-पान की दुनिया की कल्पना आलू के बिना नहीं की जा सकती। दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय पदार्थों में आलू से बने व्यंजनों को निश्चित ही की जगह यकीनन सर्वोच्च दस स्थानो में है क्योंकि यह हर खासो-आम की पसंद में शुमार है। आलू एक ऐसा कंद है जिससे रोजमर्रा के आहार से लेकर विशिष्ट खाद्यपदार्थ तक बनते हैं। तीते-चरपरे से लेकर मीठे स्वाद वाली चीज़े तक इससे बनती हैं जो नाश्ते से लेकर दावतों तक की शोभा बढ़ाती हैं। सांस्कृतिक विविधता वाले देश में अनगिनत आहार शैलियों में आलू का दर्जा बहुत खास है। शकरकंद को भी आलू के अंतर्गत ही गिना जाता है जिसे स्वीट पोटैटो भी कहते हैं। कुछ हिन्दीभाषी क्षेत्रों में इसे रतालू भी कहते हैं और यह व्रत उपवास के आहार में प्रयुक्त होता है। हालांकि रतालू कंद की अलग किस्म का नाम है।
आलू का जन्मस्थान दक्षिण अमेरिकी देश पेरु में माना जाता है जहां एंडीज़ पर्वत के तराई क्षेत्रों में आठ हजार साल पहले से इसकी भरपूर पैदावार होती रही है। पूरी दुनिया से इसे परिचित कराने का श्रेय स्पेनियों को जाता है। अंग्रेजी में इसे पोटेटो कहा जाता है जबकि भारत की ज्यादातर भाषाओं में इसे आलू ही कहते हैं। कोंकणी, मराठी समेत दक्षिण की कुछ भाषाओं में इसे बटाटा भी कहा जाता है। पूरी दुनिया में इसका सबसे लोकप्रिय नाम पोटेटो ही है जो मूल रूप से स्पेनिश शब्द पटाटा से आया है। 14 वी-15वी सदी में जब स्पेनी जहाजियों के दल भारत को खोजते हुए अमेरिका के पूर्वी द्वीप समूहो तक जा पहुंचे जिसे कैरेबियन कहा गया। इन्हीं द्वीपों में बहुतायत से पाए जाने वाले मीठे कंदमूल से वे परिचित हुए जिसे स्थानीय कैरिबियन भाषा में जो मूलतः इंका परिवार की है, में पताता या बताता कहा जाता था। स्पेनी कारोबारी अपने साथ इसे लेकर आए और स्पेन में इसकी खेती शुरू हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार यूरोपीय खोजियों के दस्ते जब पंद्रहवी सदी में दक्षिण अमेरिका के पेरु, अर्जेंटीना के भीतरी तक पहुंचे तब वे एक अन्य कंद से परिचित हुए जिसे स्थानीय भाषा में पापा कहा जाता था। पोटेटो शब्द में पेरू के पापा और कैरेबियन बताता के मेल से बना है।
ऐसा माना जाता है कि यूरोप में सर्वप्रथम सर फांसिस ड्रेक उत्तरी अमेरिकी द्वीपों से आलू लेकर आए। सर वाल्टर रेले ने इसका बहुत प्रचार किया और जल्दी यह यूरोप से अफ्रीका और एशिया तक फैल गया। यह स्पेनिश भाषा में समा गया। स्पेनी उच्चारण के चलते यह पटाटा हुआ जबकि पुर्तगाली ज़बान में यह बटाटा ही बना रहा। पताता जब अंग्रेजी में पहुंचा तब वहां त वर्ण ट में बदला क्योंकि इतालवी, फ्रैंच,
आलू-कचालू नाम की एक चाट भी उत्तर भारत में प्रसिद्ध है। इसमें उबले आलू और कचालू को मसालों के साथ पेश किया जाता है। यह देशज शब्द माना जाता है। कचालू की व्युत्पत्ति कच्चा+आलू से बताई जाती है। मूलतः यह वराहीकंद है जिसे हिन्दी में अरवी या अरबी भी कहते हैं। मराठी में यह डुकरकंद भी कहलाता है। आलू की कुछ किस्में मीठी भी होती हैं जिसे स्वीट पोटेटो कहते आलू से मिलती-जुलती किस्म के तरह भारत में बतौर कंद, रतालू, जिमिकंद, शकरकंद जैसे कंदमूल प्राचीनकाल से लोकप्रिय रहे हैं। कंद और आलुकः संस्कृत में प्राचीनकाल से प्रचलित नाम हैं। भारोपीय भाषाओं में कंद की व्याप्ति जबर्दस्त है। कंद का ही एक रूप अंग्रेजी के कैंडी में नज़र आता है। संस्कृत के कंद का अर्थ है पिंड। इस समष्टि-समूहवाची संज्ञा का एक अर्थ आश्रय के रूप में कई नामों से जुड़ कर उभरता है जैसे समरकंद, ताशकंद। कंद का ही एक रूप है खंड अर्थात पिण्ड, भाग, प्रभाग। उपसर्ग के रूप में इससे भी स्थानवाची शब्द बनते हैं जैसे उत्तराखण्ड, बघेलखण्ड, मलाजखण्ड या रूहेलखण्ड आदि।
इन्हें भी देखें-1.खंड कंद कैंडी 2.उत्तराखंड से समरकंद तक 3.कारवां में वैन की तलाश 4.आगे खंदक, पीछे खाई 5. मिठास का कानून 6.कानून का डण्डा या डण्डे का कानून
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 12:12 AM लेबल: food drink, nature, रहन-सहन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
22 कमेंट्स:
आलू कचालू बेटा कहां गये थे, डॉगी की झोपडी में सो रहे थे.....क्या खूब विश्लेषण दिया है....धन्यवाद.
बहुत बेहतरीन जानकारी..
एसा पढ़ने सुनने में आया है कि 'बताता' जो बाद में 'पटेटो'potato बना, का इसकी असली भाषा में अर्थ 'स्वीट पटेटो'sweet potato अर्थात शकरकंदी है, और यह शकरकंदी(sweet potato) युरप में आलू से पहले पहुँची. जब आलू युरप में पहुंचा तो लोगों ने इसे भी 'पटेटो' कहना शुरू कर दिया. बाद में जो असली 'पटेटो' था उसको 'स्वीट पटेटो' और आलू को 'पटेटो' कहा जाने लगा.
एसा देखा गया है कि जो चीज प्राचीन काल से न चली आ रही हो उसके ज्यादा मुहावरे नहीं मिलते. एक मुहावरा है "आलू शोरे का भाव चेते आना"
जो आदमी अवसरवादी या सब जगह फिट हो जाये उसके बारे में कहा जाता है कि 'वह तो आलू है'
पतरकारों ने कुछ मुहावरे बनाए हैं: 'यह मूंह और आलू के भाव', 'राजा आलू और मंत्री प्याज' जो बहुत टीवी देखता हो उसे अंग्रेजी में 'काऊच पटेटो' couch potato बोलते हैं. पंजाबी के प्रसिद्ध कवी शिव कुमार को पूछा गया तुम कविता कैसे लिख लेते हो, वो बोला 'बस जैसे आलू उबाल लेते हैं' मतलब उसके लिए यह एक बहुत आसान काम था.
एक गाने की पेरोडी चली थी:
'आलू मटर इक कुकर में बंद हों,
और सीटी बज जाए'
१८७५ की शकायत है कि लाहौर के आलू गोलियां जितने छोटे थे, आज तो आलू तोप के गोले से भी बड़े मिल जाते हैं!
जीवन भर 'आलू' चाव से खाये अब छोडने की उम्र में आ कर आलू का रहस्य जान पाए....! अपने आस-पास की चीजों के बारे में भी जानना कितना शेष रह जाता है न!
आज आलू को पहचान गए खाते तो रोज़ है
रतालू शकर कंद है ? मेरी जानकारी के मुताबिक़ तो वाराही कंद को रतालू बोलते हैं .कृपया चेक कर लें !
आलू कथा अच्छी लगी । आलू कचालू की चाट खाने में तो बड़ा मज़ा आता है , लेकिन इसे खाकर आदमी भी आलू जैसा ही बन जाता है। देवेन्द्र जी ने सही कहा , अब तो आलू छोड़ने की उम्र आ गई।
साबूदाना जिस कन्द से बनाया जाता है उसे टैपियोका कहते है । इस शब्द का सम्बन्ध कहाँ से हो सकता है ?
मालवा में आलू और शकरकन्द को क्रमशः आलू और रतालू हे कहा जाता रहा है । इसी तरह का एक और कन्द मालवा के चरवाहे वर्षा काल में खोजते खाते दीख जाते हैं जिसे वे खलालू या खलूला कहते हैं । परंतु इस नाम से भावप्रकाश निघंटुः में कहीं कोई ज़िक्र नहीं मिलता ।
@ शरद कोकस को
साबूदाना टैपियोका से नहीं बल्कि सेगो (Sago) पेड़ जो ताड़ की तरह का होता है, के सार से बनाया जाता है. टैपियोका(Tapioca) आपने तौर पर कोई कंद नहीं है बलिक साबूदाना की तरह ही एक दानेदार स्टार्च होता है जो कसावा(cassava) नाम के कंद से बनता है. साबूदाना (सगूदाना भी) और टैपियोका दोनों का चीनी की तरह कारखानों में उत्पादन होता है. दोनों एक जैसे लगते हैं, इस लिए गलती लगी रहती है.
साबूदाना निऊ गिनी और टैपियोका दक्षिणी अमरीका में पाया जाता है.
अजित भाई
पर्सियन में आलू का मतलब आलूबुखारा भी है !
अरबी को संभवतः घुइयां / कोचई भी कहते हैं !
'शकरकंद को भी आलू के अंतर्गत ही गिना जाता है जिसे स्वीट पोटैटो भी कहते हैं।" शकरकंद अंग्रेजी में स्वीट पोटैटो तो है मगर आलू के साथ इसका दूर का ही सम्बन्ध है. दोनों के परिवार अलग हैं. हाँ दोनों कंद ही हैं लेकिन शकरकंद किसी भी तरह मीठा आलू नहीं है. आलू की कुछ किस्में मीठी होंगी लेकिन तकनीकी तौर पर इन्हें स्वीट पोटैटो कहना गलत होगा, मीठे आलू शायद कहा जा सकता है.
बलजीत भाई, स्वीट पटेटो विशेषण ही बताता है कि उससे पहले कोई सादा पटेटो था। शकरकंद जैसे कंद से की अफ्रीकी, एशियाई किस्मों से यूरोपीय पहले से परिचित थे। अमेरिका से जब पताता आया तब उसके रंगरूप की साम्यता शकरकंद से भी देखी गई और शकरकंद के लिए स्वीट पोटेटो जैसा नाम भी प्रचलित हुआ। जाहिर है कैरेबियन या दक्षिण अमेरिका से शकरकंद नहीं बल्कि आलू ही आया था। वैसे इस विषय में कई तरह की धारणाएं हैं। विभिन्न संदर्भों में एकरूपता नहीं है, पर सभी में आलू यानी पोटेटो का मूलस्थान दक्षिण अमेरिका ही माना है।
अली भाई,
आलूबुखारा शब्द का प्रयोग पश्चिमोत्तर सीमा क्षेत्रों की भाषाओं में एक फल विशेष के लिए प्रयुक्त हुआ जिसका संबंध बुखारा से है।
हमने तो आलू ,रतालू और शकरकंद अलग अलग देखे है . शकरकंद और रतालू एक ही है कुछ जमा नहीं .
बस इतना कहना चाहूँगा कि 'स्वीट पटेटो' शब्द अंग्रेजी में अब शकरकंदी के लिए रूढ़ हो गया है.
किरणजी,
देश के मध्यक्षेत्र में जिसे ककड़ी कहते हैं उसे उत्तर भारत में खीरा कहते हैं। यूं खीरा, ककड़ी अलग अलग हैं। इसी तरह मूली की फली को कहीं सोगरी कहा जाता है और कहीं मोगरी। शकरकंद और रतालू चाहे अलग अलग हों, किन्तु किन्हीं क्षेत्रों में शकरकंद शब्द भी प्रचलित है और रतालू उसका ही वैकल्पिक शब्द है। यह अज्ञान या अशुद्धि का उदाहरण नहीं है बल्कि समाज व्यवहार के दायरे में आता है।
अजित भाई
मेरा आशय भी वही है ! पर्सियन में आलूबुखारा(फल) को आलू भी कहते हैं ! यानि आलू शब्द फल और कंद दोनों के लिए प्रयुक्त है !
कैडी,कंद और खंड की इंटरनेशनल सिम्फनी के लिए धन्यवाद।
ये बैगन उर्फ बताऊं क्या बला है। इसका बटाटा पताता से तो कोई संबंध नहीं।
aadarniy mahanubhav ajit ji
yah jaankari bahut badhiya lagi
aapki jankari uoabdh karaane ke dhang ka javaab nahiin
mai vakai iska bahut prashansak hu
meri jankari me badhottari karne ke liye sadhuvaad
ज्ञान वर्धक जानकारी के लिए आभार अजित सर..
और रतालू ?
Post a Comment