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किसी स्त्री के आशिक के अर्थ में जारः शब्द की अर्थवत्ता फारसी के यार में भी कायम है। प्राचीनकाल के किसी भी समाज में बिना विवाह हुए किसी महिला का पुरुष से मैत्रीपूर्ण संबंध उचित नहीं माना जाता था। |
हि न्दी के सर्वाधिक प्रयुक्त दस संज्ञासूचक शब्दों की अगर सूची बनाई जाए तो यार yaar शब्द उसमें निश्चित ही नज़र आएगा। यार शब्द का इस्तेमाल किए बिना कोई बातचीत पूरी नहीं होती। हर खासो-आम तक इस शब्द की पहुंच है और इसका समान रूप से प्रयोग किया जाता है। किसी ज़माने में यार शब्द का प्रयोग पुरुषों के संवादों तक सीमित था, महिलाओं के लिए इसके प्रयोग पर अघोषित वर्जना लागू थी, मगर अब अर्से से इसका इस्तेमाल महिलाएं भी ठाठ से करती हैं। सामान्य शिष्टाचार के संवादों की शुरुआत तक इस शब्द से होती है जैसे और यार, आओ यार, क्या हाल हैं यार , छोड़ो यार, चलो यार, क्या बताएं यार, अरे यार वगैरह वगैरह। यार शब्द से बने कुछ अन्य शब्द भी प्रचलित हैं जैसे यारी, याराना, यार-दोस्त, यारी-दोस्ती, यारबाज या यारबाश आदि।
यार शब्द का अर्थ है मित्र, दोस्त, बंधु, सखा, साथी आदि। यार शब्द की अर्थवत्ता में प्रेमी, आशिक , माशूक भी समाए हैं। इसके अलावा यह शब्द मददगार, सहायक का भाव भी रखता है। यार इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है। यार शब्द हिन्दी में फारसी से आया है। जॉन प्लैट्स के उर्दू इंग्लिश हिन्दुस्तानी कोश के मुताबिक यार शब्द की संभावित व्युत्पत्ति जारः से बताई गई है। संस्कृत के जारः शब्द में मूलतः प्रेमी, आशिक, उपपति का भाव है। किसी स्त्री के आशिक के अर्थ में जारः शब्द की अर्थवत्ता फारसी के यार में भी कायम है। प्राचीनकाल के किसी भी समाज में महिला का पुरुष से मैत्रीपूर्ण संबंध उचित नहीं माना जाता था। ऐसे में किसी पुरुष से मित्रवत या प्रेमी का रिश्ता अवैध और अनैतिक माना जाता था। इसीलिए जारः शब्द में मूलतः स्त्री के सखा, मित्र या आशिक का ही भाव है। विवाहिता या अविवाहिता स्त्री के सखा को समाज मान्यता नहीं देता था। ऐसे पुरुष से उत्पन्न संतान को जारजः कहा जाता था। हिन्दी में अवैध संतान के लिए जारज शब्द खूब बोला समझा जाता है। संस्कृत के जारः शब्द की अर्थवत्ता स्त्री के प्रेमी, आशिक या सखा तक सीमित है मगर जब यह फारसी में दाखिल हुआ तब इसमें शामिल सखाभाव ने स्त्री के दायरे से मुक्ति पाई और विशुद्ध साथी, संगी, मित्र, दोस्त के अर्थ में यह स्थापित हुआ। इसके बावजूद इसमें आशिक, प्रेमी आदि भाव भी सुरक्षित रहे। ईरानी संस्कृति में भी किसी महिला के मित्र के लिए असम्मान का भाव था और धिक्कार अथवा उलाहने के तौर पर यार शब्द का इस्तेमाल होता है। दिलचस्प है कि किसी स्त्री के संदर्भ में यार शब्द की तुलना में आशिक का दर्जा काफी ऊंचा है। स्पष्ट है कि किसी पुरुष का मित्र सगर्व खुद को यार कह सकता है मगर किसी स्त्री का यार होना समाज में स्त्री और पुरुष दोनों के लिए निंदनीय है। मित्रता के लिए यार से यारी अथवा याराना जैसे शब्द बने हैं। बहुतों से मित्रता रखनेवाला अथवा मैत्रीपूर्ण संबंधों में भरोसा रखनेवाले व्यक्ति के लिए यारबाश या यारबाज शब्द हैं।
यार की तरह ही मित्र के लिए दोस्त dost शब्द भी हिन्दी के बहुप्रचलित शब्दों में शुमार है। दोस्त की अर्थवत्ता भी करीब करीब यार जैसी ही है यानी मित्र, सखा, साथी, संगी के साथ इसमें भी प्रेमी या आशिक का भाव है, अलबत्ता स्त्री के संदर्भ में यार की तरह दोस्त शब्द में नकारात्मक भाव नहीं है। दोस्त भी इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है। संस्कृत में जुष्ट शब्द है जिसका अर्थ है प्रसन्न, संतुष्ट रहनेवाला। साथी, समर्थ, मददगार आदि। जुष्ट बना है जुष् धातु से जिसमें अनुकूल, मंगलकारी, प्रसन्न रहने का भाव है। खुश करना, चाहना, प्रसन्न रहना, भक्त, अनुरक्त होना और संतुष्ट करना जैसे भाव भी इसमें हैं जो मैत्री और सखी भाव से जुड़ते हैं। अवेस्ता में इसका रूप जुस्त just हुआ जो पह्लवी के दोस्त में तब्दील हुआ। यारी, याराना की तरह दोस्त से भी दोस्ती, दोस्ताना जैसे शब्द बने हैं। अपना काम साधने के लिए किसी को भी सखा या बंधु बना लेने वाले व्यक्तियों के संदर्भ में यार पालना या दोस्त पालना जैसे मुहावरे कहे जाते हैं। अभिप्राय यही है
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11 कमेंट्स:
यारी, याराना, यार-दोस्त, यारी-दोस्ती, यारबाज या यारबाश ... पढ़ने-सुनने में ये शब्द बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन क्या यह हकीकत नहीं कि इन शब्दों के वास्तविक अर्थ अब कहीं खो से गए हैं। न अच्छे और सच्चे यार मिलते हैं न यारबाज... लगता है कि बाघों की तरह यह भी एक लुप्तप्राय प्रजाति बन गई है। आपने यहां इनका जिक्र किया तो पढ़कर अच्छा लगा।
शब्द ज्ञान पुष्ट हुआ.
यार की अर्थवत्ता तो संकीरण से विशालतर होती जा रही है. पहले ज़माने में स्त्री-मर्द , विवाहित या अविवाहत, के आश्काना संबंधों को समाजक मानता नहीं थी. पंजाबी में तो एक शब्द युग्म 'चोरी यारी' बना अर्थात ऐसे संबंधों को चोरी के बराबर समझा जाता था. "मां/ भैन/ दा यार" गन्दी गालियाँ भी हैं.
आज की पीडी ने इस शब्द को उन्नत किया. आज यह शब्द एक संबोधक के रूप में खूब इस्तेमाल होता है. "दोस्त/मित्र चलो चलें" तो शायद ही कोई कहता होगा, 'यार चलोचलें' आम है. और लड़का हो या लडकी अपने मां, पिता, बहन, भाई कोई भी हो, किसी भी आयु का हो, यार कह कर पुकारा जाना आम सी बात बन गई है खास तौ पर "ओ यार"
बहुत से मुहावरों में से तीन :
"यारी है कि छोलियाँ दा वढ" अर्थात दोस्ती ऐसी वैसी चीज़ नहीं
"यारी ऊठां वालियां नाल ते दरवाज़े नीवें" बड़े लोगों से यारी लेकिन साधन बराबर के नहीं.
"यारां नाल बहारां" दोस्तों के साथ ज़िन्दगी का आनंद है.
जुष् धातु का लेटिन रूप है gusta(स्वाद) जिसे disgusted शब्द बना.
choose और gusto(आनंद) भी इसके सुजाति हैं .
बहुत आभार हमेशा की तरह!
निम्न ४ लाईना पढ़ने से पहले मन में ये वजीफा [मंत्रोच्चार] ११ मर्तबा अवश्य करले:-
''चल अलग हट यार!''
बाज़ार वाद ने सरे बाज़ार कर दिया,
बीवी की दोस्त को भी मैरा यार कर दिया,
दूरी मिटाते दौर में इतने हुए करीब,
यारी का ज़ायका बढ़ा गद्दार* कर दिया.
*गद्दार= बेवफा
रोचक लगा ये अंक भी धन्यवाद्
यार, अब तो तकिया कलाम हो चला है। मैं ने किशोर होने के पहले की उम्र में बच्चों को यार मम्मी! और यार पापा! कहते सुना है।
इश्किया में खालू नसीरुद्दीन शाह अरशद को उलाहना देते हैं- "यारबाज़ अम्मी का ****बाज़ बेटा. "
यार की उत्पत्ति और नाना अर्थों के बारे बडी अच्छी जानकारी मिली. धन्यवाद.
सर, यह बताएं कि जैसे मामा के साथ भांजा होता है, वैसे मौसी और मौसा के साथ क्या होना चाहिए, भांजा या भतीजा?
सदैव की भाँति अच्छी विवेचना!
कुछ ऐसा उपाय करें कि आपका ब्लॉग
जल्दी से खुल जाये!
खुलने में तो यह हमारे 12 बजा देता है!
अथर्व में (पत्नी के?) जार से निपटने के नुस्खे सुझाए गए हैं।
कभी कभी संस्कार बहुत तकलीफ देते हैं । महाराष्ट्र में यार शब्द नहीं चलता है । वहाँ इसका बहुत अच्छा अर्थ भी नहीं लिया जाता । विवाह के बाद जब मैने जबल्पुर मे देखा कि वहाँ हर कोई इस शब्द का इस्तेमाल करता है जैसे पिता पुत्री से कहेगा , पुत्री पिता से "अरे यार पापा ", भाई बहन से ..मुझे बहुत अजीब सा लगा लेकिन फिर मैने धीरे धीरे इसका अर्थ जाना कि यह एक सामान्य सा सम्बोधन है । नई नवेली श्रीमति जी से शेयर किया तो उन्होने कहा " अरे छोड़ो ना यार ..आप भी क्या क्या सोचते हो.."
फिलहाल तो मै यह सोच रहा हूँ कि " यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी " यह कव्वाली पुरुष अभिनेताओं पर न फिल्माकर स्त्रियों पर फिल्माई जाते तो कैसा दृश्य होता ?
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