सबसे पहले ‘उपन्यास’ की बात। बांग्ला भाषा में अंग्रेजी के प्रभाव मे उन्नीसवीं सदी के मध्य से ही नॉवेल के कलेवर वाला कथा साहित्य रचा जाने लगा था। बांग्ला मध्यमवर्ग, बाबू समाज, औपनिवेशिक काल के परिवर्तनों को आधार बना कर कथानक लिखे जा रहे थे। अधिकांश विद्वान बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय लिखित ‘दुर्गेशनन्दिनी’ (1865) से बांग्ला उपन्यास की शुरुआत मानते हैं। बंकिमबाबू ने अपनी रचनाओं को उपन्यास कहा तो इस विधा के लिए यह नाम लोकप्रिय हो गया। हालाँकि आज भी कई लोग इस तथ्य को जान कर कसमसाते हैं कि ‘उपन्यास’ शब्द हिन्दी का अपना नहीं है। उपन्यास बना है उप+न्यास से। संस्कृत - हिन्दी का ‘न्यास’ बना है संस्कृत के न्यासः से जिसकी व्युत्पत्ति आप्टे कोश के मुताबिक नि+अस् में घञ् प्रत्यय लगने से हुई है। न्यास का अर्थ है रखना, आरोपण करना, स्थापित करना आदि। इसमें ‘उप’ उपसर्ग लगने से बनता है उपन्यास जिसका अर्थ निकट रखना, अगल-बगल रखना, वक्तव्य, सुझाव, प्रस्ताव, भूमिका या प्रस्तावना आदि है। अमरकोश में तमाम अर्थों का सार बताते हुए उपन्यास का अर्थ बातचीत प्रारम्भ करना बताया गया है जिसका अर्थ है भूमिका या प्रस्तावना। इस अर्थ में अमरकोश में उपन्यास के अतिरिक्त ‘वाङ्मुखम’ शब्द भी है जिसमें इसी अर्थ का द्योतन होता है। बाणभट्ट रचित ‘कादम्बरी’ को कई विद्वान उपन्यास विधा का प्रथम ग्रन्थ मानते हैं। कादम्बरी को चम्पू-ग्रन्थ कहा जाता है अर्थात गद्यपद्य का मिश्रित रूप। इसके बावजूद यह संस्कृत की काव्यकृति के तौर पर ही साहित्य जगत में स्थापित है। इतना ज़रूर है कि प्रचलित काव्य प्रवृत्तियों से हट कर इसमें विवरणात्मकता अधिक है और इसीलिए इसे गद्य प्रभाव माना गया।
मराठीभाषियों का स्वभाव है कि वे अन्य भाषाओं के तकनीकी शब्दों को जस का तस स्वीकार नहीं करते। इसलिए उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में जब नॉवेल के लिए बांग्ला में ‘उपन्यास’ शब्द सामने आया तो मराठी में इसे क्या नाम दिया जाए, इस सवाल पर मराठी विद्वानों में विचार-मन्थन चल रहा था। शुरुआत में कल्पना के घोड़े अंग्रेजी के नॉवेल के आस-पास ही दौड़ रहे थे। इस आधार पर घड़े गए कुछ दिलचस्प नाम देखिए-नाव्हेल, नॉवल, नावेल, नाविल, नांवलु, नवलम्, नावले वगैरह वगैरह। इनमें से एक दो शब्दों को अन्य भाषाओं में अपनाया भी गया जैसे गुजराती में नवल-कथा। नवल, नवलम् में सुंदरता होने के बावजूद इसमें साहित्य सम्बन्धी अर्थ-बोध नहीं था। ऐसे में विद्वज्जनों को संस्कृत के उद्भट विद्वान की बाणभट्ट द्वारा सातवीं सदी में रची प्रसिद्ध ... आप्टे और मोनियर विलियम्स कोश में कादम्बरी का एक अर्थ सरस्वती भी मिलता है। दरअसल यह विद्या की देवी की एक उपाधि है। कदम्ब के वृक्ष के नीचे प्राचीन काल में ऋषि-मुनि विद्यादान किया करते थे। पुरानी तस्वीरों में सरस्वती की वीणावादिनी मुद्रा की पृष्ठभूमि में एक वृक्ष दिखाया जाता रहा है, शायद यह कदम्ब वृक्ष ही है। ...
रचना ‘कादम्बरी’ ने राह दिखाई। चर्चा चल पड़ी कि इस नई विधा को क्यों न कादम्बरी कहा जाए। यह बात भी सामने आई कि कादम्बरी तो इस आख्यान की नायिका है, उससे अभिप्राय कैसे सिद्ध होगा? पर ऐसा माना गया कि यह सर्वमान्य नहीं तो भी बहुमान्य अंग्रेजी के नॉवेल की तर्ज़ वाली कृति है, इसीलिए इसे नॉवेल का पर्याय बनाया जा सकता है। संस्कृत का कादम्बरी शब्द कदम्ब से निकला है जो एक प्रसिद्ध वृक्ष का नाम है। कदम्ब का पेड़ यूँ तो समूचे भारत में है मगर दक्षिण भारत में बहुतायत में है। अक्सर नदियों के कछारों और नम इलाकों में यह होता है। संस्कृत में ‘अम्ब’ का अर्थ पानी होता है। ‘कदम्ब’ में निहित ‘अम्ब’ भी इस पेड़ के नामकरण के साथ इसी वजह से चस्पा है। ‘कादम्ब’ का अर्थ भी कदम्ब ही है और साथ ही इसका एक अर्थ है ‘बाण’। अब भला बाणभट्ट की प्रिय कृति का नाम तो कादम्बरी क्यों नहीं होना था? कादम्बरी का एक अन्य अर्थ है कदम्ब के फूलों से निर्मित शराब। मगर यह अर्थ उपन्यास के आशय से मेल नहीं खाता। मोनियर विलियम्स के अनुसार कादम्बरी पौराणिक पात्र चित्ररथ की पुत्री का नाम भी है। महामहोपाध्याय सिद्धेश्वरशास्त्री चित्राव के कोश के मुताबिक वैदिक युग से लेकर महाभारत काल तक चित्ररथ नाम के 15 पौराणिक पात्र मिलते हैं। कादम्बरी का एक अर्थ कोयल भी है। बहरहाल, कादम्बरी नाम का सही सन्दर्भ इससे भी पता नहीं चलता। आप्टे और मोनियर विलियम्स कोश में कादम्बरी का एक अर्थ सरस्वती भी मिलता है। दरअसल यह विद्या की देवी की एक उपाधि है। कदम्ब के वृक्ष के नीचे प्राचीन काल में ऋषि-मुनि विद्यादान किया करते थे। पुरानी तस्वीरों में सरस्वती की वीणावादिनी मुद्रा की पृष्ठभूमि में एक वृक्ष दिखाया जाता रहा है, शायद यह कदम्ब वृक्ष ही है। जो भी हो, कादम्बरी शब्द में विद्या, सरस्वती की अर्थस्थापना से नॉवेल का कादम्बरी नामान्तरण तार्किक लगता है। मराठी में और भारतीय भाषाओं में पहले उपन्यास का श्रेय भी विधवाओं के जीवन की दुर्दशा पर आधारित मराठी उपन्यास यमुना पर्यटन को दिया जाता है जिसे 1857 में बाबा पद्मजी ने लिखा था।
गुजराती में उपन्यास के लिए नवलकथा शब्द प्रचलित है। यह शब्द उन्हीं दिनों गुजराती में अपना लिया गया था, जब सवा सौ साल पहले मराठी में उपन्यास का पर्याय खोजने की बौद्धिक कवायद चल रही थी। दरअसल इस नवलकथा में नई कहानी का भाव न होकर नई गद्य विधा का भाव था। साथ ही यह उसी मूल से बनाया गया था जिस मूल से खुद नॉवेल शब्द उपजा है। नॉवल भारोपीय भाषा का शब्द है और अंग्रेजी में लैटिन के novella से आया जिसमें नया, नवल का ही भाव था। इस नवल और नॉवेल के बीच जो रिश्तेदारी है वह नएपन की ही है। इससे पहले यूरोप में उपन्यास के लिए रॉमाँ शब्द का प्रचलन था और अब भी है। यह फ्रैंच भाषा में पहले से परिचित है। उपन्यास की रंजकता, रुमानियत जैसे गुणों की वजह से एक विशिष्ट कथाशैली के लिए यह नाम रूढ़ हुआ। जर्मन में यह रोमान है और रूसी में रॉमान। आज यूरोपीय भाषाओं में इतालवी में उपन्यास के लिए रोमान्ज़ो, स्पैनी में नोविला, फ्रैंच में रॉमाँ, जर्मन् में रोमान, बास्क में एल्बेरी-नोबेला, वैनिशियन में रोमेन्सो और वेल्श में नोफेल है। आज हर विषय पर उपन्यास लिखे जा रहे हैं। उपन्यास नाम की विधा के मूल में चाहे रुमानियत भरी शुरुआत रही हो, मगर नॉवेल में जो नएपन की खुश्बू है, उसी वजह से देखते देखते सिर्फ़ डेढ़सौ बरसों में उपन्यास-लेखन साहित्य की सबसे पसंदीदा विधा बन गई है।
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8 कमेंट्स:
कादम्बरी का अर्थ 'एक काले रंग का पक्षी जिसकी आवाज सुरीली होती है', 'विद्या और वाणी की अधिष्ठात्री देवी' और 'काले रंग की एक एशियाई चिड़िया जो मनुष्य की-सी बोली बोल लेती है' भी मिला। कोयल, मैना भी। …उपन्यास शब्द रवीन्द्रनाथ ठाकुर के माध्यम से हिन्दी में आया, ऐसा सुनने को मिला है, सच है यह? लेकिन आपके अनुसार 150 साल से …उनका जन्म 1861 यानी पूरा 150 साल हो गया…
न्यास, व्यास, आस के चारों ओर घूमती हमारी स्थापित संरचना।
उपन्यास विधा के आसपास का बहुत कुछ जानने को मिला। नॉवेल, नवलकथा दोनों सही लेकिन हिन्दी ने उपन्यास को इतने गहरे से अपना लिया है कि यही रहना है।
काफी अच्छा लिखा हे
उपयोगी। 'उपन्यास' की पूरी कहानी बता दी है आपने।
बहुत रुचिकर रहा आज का सफर। उपन्यास शब्द का मूल भी पता चला, धन्यवाद।
उपयोगी एवं रुचिकर , धन्यवाद।
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