हि न्दी का कुठाराघात ऐसा शब्द है जो तत्सम शब्दों के मेल से बना होने के बावजूद लिखत-पढ़त और बोलचाल की हिन्दी में बना हुआ है। लिखत-पढ़त में ज्यादा, बोलचाल में कम। मगर शब्दों के जीवन्तता को आँकने के यही पैमाने हैं। पहला, वर्तमान लिखत-पढ़त में कोई शब्द कितना इस्तेमाल हो रहा है। दूसरा, यह शब्द कितना बोला जा रहा है। कोई शब्द अगर साहित्य की भाषा में बना हुआ है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में वह बोली-भाषा में शामिल हो जाएगा। शायद शिष्ट-कुलीन समाज में उसका व्यवहार होता भी हो। सो कुठाराघात शब्द से हिन्दी समाज का सामान्य पढ़ा लिखा व्यक्ति अपरिचित नहीं है। बहुत बड़े नुकसान के तौर पर इसका आशय सहज बोधगम्य है क्योंकि लगातार कुठाराघात के चलते पेड़ तो छोड़िए, जंगल के जंगल मनुष्य ने पहले कुल्हाड़ों, फिर आरामशीनों से खत्म कर दिए। ऐसे में अब जो भी कुठाराघात होना है, वह मुहावरे के आईने में ही होगा।
कुठाराघात शब्द का एक प्रयोग देखिए-'”हिन्दू समाज की कई कुरीतियों के खिलाफ़ कबीरबानी एक तरह से कुठाराघात थी।” संस्कृत के कुठार में आघात शब्द जोड़ने से बना है कुठाराघात जिसका अर्थ होता है कुल्हाड़ी द्वारा किया गया आघात। कुठार शब्द बना है कुठ् धातु से जिसका अर्थ होता है पेड़, वृक्ष। कुठार शब्द में कुठ के साथ जो आर् नज़र आ रहा है वह दरअसल आरी वाला आर् है। हिन्दी में आरी उस दाँतेदार यन्त्र को कहते हैं जिससे कठोर सतह को काटा जाता है। आमतौर पर इससे लकड़ी ही काटी जाती है। कुठ + आर = कुठार। यह जो आर् है इसे समझने के लिए किसी गरारी लगे यंत्र के चक्कों में बनें दाँतों पर गौर करें। संस्कृत में इसके लिए ही अरः शब्द है जिसके मूल में ऋ धातु है। ऋ में मूलतः गति का भाव है। जाना, पाना, घूमना, भ्रमण करना, परिधि पर चक्कर लगाना आदि। ऋतु का अर्थ है चक्कर क्योंकि नियतकाल के बाद मौसम परिवर्तन होता है। यहाँ चक्र गति है। गरारी के दाँतों में फँसी शृंखला घूमते हुए यन्त्र के चक्के लगातार घूमते रहते हैं। गरारी की व्युत्पत्ति देखें- अरघट्ट> गरह्ट्ट> गरट्ट> गरारी। इसी तरह लोहे या लकड़ी को काटनेवाले दांतेदार यंत्र के लिए आरी नाम भी इसी अरः से आ रहा है। हिन्दी का आरा और अंग्रेजी की मशीन को जोड़ कर आरामशीन एक नया शब्द हिन्दी को मिल गया। भाषा ऐसे ही विकसित होती है। स्पष्ट है कि कुठार में यही आर् है। अर्थात कुठार उस दाँतेदार या तीखे यन्त्र का नाम है जिससे पेड़ काटा जाए। कुठार से ही हिन्दी के ... वृक्ष के तने पर कुल्हाड़ी का वार उस वृक्ष की प्रगति को रोक देता है। तने पर कुठाराघात होने से वृक्ष के विकास की कोई सम्भावना बाकी नहीं रहती क्योंकि इसे पोषण देने वाले इसके विभिन्न अंग इससे काट दिए जाते हैं। ...
बहुप्रचलित कुल्हाड़ा या कुल्हाड़ी शब्द बने हैं। हिन्दी शब्दसागर के मुताबिक कुल्हाड़े का मानक माप बारह चौदह अंगुल लंबा और चार छह अंगुल चौड़ा लोहे का होता है। इसके एक सिर पर, जो तीन चार अंगुल मोटा होता है, एक लंबा, गोला छेद, इंच सवा इंच व्यास का होता है जिसमें लकड़ी का दस्ता लगाया जाता है, और दूसरा सिरा पतला, लंबा और धारदार होता है। कुठारा या कुठारी का प्रयोग क्रमशः नाश करने वाला या नाश करने वाली भी होता है। कुठाराघात का अगला पद है आघात जो बना है घात में आ उपसर्ग लगने से। घात भारोपीय मूल का शब्द है। प्रोटो इंडो-यूरोपियन भाषा का एक मूल शब्द है ग्वेन। इससे ही भाषाविज्ञानी संस्कृत के हन् या हत् का रिश्ता जोड़ते हैं। इस हन् का ही एक रूप घन् है। इस हन् की व्यापकता इतनी हुई कि अरबी समेत यह यूरोप की कई भाषाओं में जा पहुँचा और चोट पहुँचाना या मार डालना जैसे अर्थों में तो अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई ही साथ ही इसके विपरीत अर्थ वाले शब्द जैसे डिफेन्स (रक्षा या बचाव) के जन्म में भी अपना योगदान दिया। यही नहीं हत्या के प्रमुख उपकरण- अंग्रेजी भाषा के गन की रिश्तेदारी भी इसी हन् से है। हन् न सिर्फ हत्या - हनन आदि शब्दों से बल्कि आहत, हताहत, हतभाग जैसे शब्दों से भी झाँक रहा है। यही नहीं, निराशा को उजागर करनेवाले हताशा और हतोत्साह जैसे शब्दों का जन्म भी इससे ही हुआ है। कहावत है कि बेइज्जती मौत से भी बढ़कर है। हन् जब अरबी में पहुँचा तब तक संस्कृत में ही इसका हत् रूप विकसित हो चुका था। अरबी में इसका रूप हुआ हत्क जिसका मतलब है बेइज्जती, अपमान या तिरस्कार। इसी तरह हत्फ़ यानी मृत्यु। यही हत्क जब हिन्दी में आया तो हतक बन गया जिसका अर्थ भी मानहानि है। हन् से हत् बना और इसके प्रतिरूप घन् से घात बना। घात यानी प्रहार, आघात, चोट, पहुँचाना। घातिन हत्यारे को कहते हैं। आघात का अर्थ भी चोट पहुँचाना, मारना, हिंसक प्रहार होता है। आप्टे कोश के मुताबिक इसका एक अर्थ कसाई खाना भी होता है।
स्पष्ट है कि कुठाराघात में निहित स्थूल भाव तो पेड़ काटने का है मगर इसकी मुहावरेदार अर्तवत्ता में किसी को भरपूर नुकसान पहुँचाने का भाव है। जब हम कहते हैं कि फलाँ बात, फलाँ योजना पर कुठाराघात हुआ तो उसे समझने के लिए हमेशा इस शब्द के मूलार्थ को पकड़ना चाहिए। जिस तरह किसी वृक्ष के तने पर कुल्हाड़ी का वार उस वृक्ष की प्रगति को रोक देता है। तने पर कुठाराघात होने से वृक्ष के विकास की कोई सम्भावना बाकी नहीं रहती क्योंकि इसे पोषण देने वाले इसके विभिन्न अंग इससे काट दिए जाते हैं। इसी तरह किसी योजना या निर्माण पर इसी तरह कोई मुश्किल पैदा करने वाली परिस्थिति निर्मित होने पर उसे भी कुठाराघात की संज्ञा दी जाती है। जब से रिवल्वर, पिस्तौल जैसे हथियार सामने आए हैं, धीरे धीरे मनुष्यों पर कुठाराघात नहीं, गोलियाँ चलने लगीं।
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10 कमेंट्स:
कुठाराघात को हमने आज के चर्चा मंच पर भी लगा दिया है!
कुठाराघात को अच्छे से जाना...आभार आपका।
हरर हरर खुल गये अरर में गति भी है, नाद भी है, ऋ प्रत्यय।
मेरी ही शाख से हत्था बनाया जाता है,
वजूद मेरा उसी से मिटाया जाता है,
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निहित हो स्वार्थ तो खुद को हराया जाता है,
कि जश्ने फ़तहे अदू भी मनाया जाता है.
m.hashmi
आघात...
शब्दों की व्युत्पत्ति के विषय में आपके ब्लॉग ने जिस तरह ज्ञान प्रसार किया है वो अद्भुत है..... जल्दी ही ये पुस्तक खरीदता हूँ. शानदार जानकारी का ह्रदय से आभार
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एक बेहतरीन पोस्ट, शब्द का ज़र्रा ज़र्रा आप ने छान मारा है, वधाई.
गोया, रिवाल्वरों/पिस्तोलों ने कुठारघात पर कुठाराघात कर दिया।
रोचक और ज्ञानवर्ध्दक पोस्ट।
वड्नेरकर जी, इस शब्द की नस-नस खोल कर दिखा देने के लिये धन्यवाद, साधुवाद ! आघात आरी से ही नही शब्दों से भी होता है और बडा प्रबल होता है । किसी की जीभ आरी की तरह चलती है तो कोई अपने शब्द बाणों से सीधे हृदय पर या व्यवस्था पर आघात करते हैं । महान हैं वे जीव क्योंकि वे बिना रक्तपात के उत्पात मचा सकने की सामर्थ्य रखते हैं ।
एक और शब्द 'हंता' ( हत्यारा ) भी समझ में आया जो हनन से उपजा प्रतीत होता है । अब, जब गन से हनन होने लगा है तब भी शब्दों की घातक-शक्ति का महत्व कमतर तो नही हो गया ।
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