Wednesday, August 8, 2007

मोहन्जोदडो मे समाये अमृत और मर्डर


मृत शब्द संस्कृत के मूल शब्द या धातु मृ से बना है। इसी में उपसर्ग लग जाने से बना अमृत । प्राचीन इंडो यूरोपीय भाषा में भी इसके लिए मूल शब्द म्र-तो खोजा गया है। इस शब्द से न सिर्फ हिन्दी समेत अधिकांश भारतीय भाषाओं में जीवन के अंत संबंधी शब्द बने हैं बल्कि कई यूरोपीय भाषाओं में भी इसी अर्थ में शब्द बने हैं। यही नहीं , अंग्रेजी का मर्डर शब्द भी मृ से ही निकला है ये अलग बात है कि अर्थ जीवन के अंत से जुड़ा होते हुए भी थोड़ा बदल गया है।
मृ धातु से ही हिन्दी में मृत्यु, मृत , मरण, मरना , मारामारी, मुआ जैसे अनेक शब्द बने हैं। मृत में ही उपसर्ग लगने से बना है अमृत यानी एक ऐसा पदार्थ जो धरा रूपी गौ से दूहा गया दुग्ध है जिसे पीने से अमरत्व प्राप्त होता है। कहने की ज़रूरत नही कि अमर शब्द भी यहीं से निकला है। संस्कृत से ही यह शब्द अवेस्ता यानी प्राचीन फारसी में भी मिर्येति के रूप में है। इसी तरह फ़ारसी में भी मौत या मृत्यु के लिए मर्ग शब्द है जो उर्दू में भी शामिल हो गया। अदालती और पुलिस कार्रवाई में अक्सर इस लफ्ज का इस्तेमाल होता है। ये आया है फ़ारसी के मर्ग से जिसके मायने हैं मृत्यु, मरण, मौत। दुर्घटना में मौत पर पुलिस वाले जो विवरण दर्ज़ करते हैं उसे मर्ग - कायमी ही कहते हैं।
मृ से ही हिन्दी मे मृतक शब्द बना और फारसी में जाकर यह मुर्द: हो गया। बाद में चलताऊ उर्दू और हिन्दी में मुर्दा के तौर पर इसका प्रयोग होने लगा। बलूची जबान में मृत्यु के लिए जहां मिघ शब्द है वहीं पश्तू में म्रेल शब्द है। सिन्धी -हिन्दी-पंजाबी में मुआ शब्द भी मृत के अर्थ में ही मिलता है। इन भाषाओं में आमतौर पर किसी को कोसने, उलाहना देने या गाली देने के लिये खासतौर पर महिलायें मुआ लफ़्ज़ इस्तेमाल करती हैं मसलन - मुआ काम नही करता ! मोहन्जोदडो दरअसल मुअन-जो-दड़ो है जिसका अर्थ हुआ मृतकों का टीला। यहां मुआ में अ प्रत्यय लगने से बना मुअन यानी मृतकों का।
स्लोवानिक भाषा (दक्षिण यूरोपीय क्षेत्रों में बोली जाने वाली ) में तो हूबहू मृत्यु शब्द ही मिलता है। इसी तरह जर्मन का Mord शब्द भी मर्डर के अर्थ में कहीं न कहीं मृत्यु से ही जुड़ता है। प्राचीन जर्मन में इसके लिए murthran शब्द है। पुरानी फ़्रेंच मे morth शब्द इसी मूल का है। अंग्रेज़ी का मर्डर बना मध्य लैटिन के murdrum से।
जाहिर है संस्कृत की मृ धातु का पूर्व वैदिक काल में ही काफी प्रसार हुआ और इसने यूरोप और एशिया की भाषाओं को प्रभावित किया। गौरतलब है कि दक्षिणी यूरोप के स्लाव समाज में मृत्यु की देवी की कल्पना की गई है जिसका नाम मारा है । जाहिर है इसका उद्गम भी मृ से ही हुआ होगा।

4 कमेंट्स:

अनुराग श्रीवास्तव said...

क्या इस विषय पर कुछ प्रकाश डाल सकते हैं कि नगर को "मोहनजोदाड़ो" या मुर्दों का टीला क्यों कहा गया?

लेख बहुत अच्छा लगा. अब आपके चिट्ठे के सारे लेख पढ़ने पड़ेंगे.

Shastri JC Philip said...

आपके अनुसंधान-आधारित लेखों से मुझे बह्त मदद मिलती है -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

Anonymous said...

मुझे लगता है 'मुआ' एकवचन में 'अन' प्रत्यय लगाने से बहुवचन बना 'मुअन' , 'जो' का अर्थ है 'का' और 'दड़ा'या 'दड़ो' का अर्थ है 'टीला'. राजस्थानी और सिंधी में संज्ञा शब्द का बोलते-लिखते समय ओकार हो जाना एक व्याकरणिक तथ्य है . अतः 'मुअन-जो-दड़ो' हुआ 'मुर्दों का टीला' .

अजित वडनेरकर said...

आप सभी महानुभाव मेरे ब्लाग पर पधारे, देखा , सराहा इसके लिए आभारी हूं।

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