हिन्दी में नाल शब्द का अर्थ है पोला संकरा स्थान। राजस्थानी में दर्रा के अर्थ में नाल शब्द भी चलता है। जलवहन प्रणाली का प्राचीन रूप नाली है। आमतौर पर घरेलु जलनिकास मार्ग को नाली कहते हैं। नाली का बड़ा रूप नाल या नाला होता है। नाला अपने आप में राह या रास्ता भी है। हाड़ौती, मेवाड़ और मारवाड़ के बीच ऐसे कई नाल मौजूद हैं जैसे देसुरी की नाल, हाथी गुड़ा की नाल, भानपुरा की नाल आदि। नाल का एक रूप नाड़, नाड़ा या नड़ भी है। जोधपुर के एक मौहल्ले का नाम है रातानाड़ा। नाल दरअसल नहर ही है। आबादी के साथ नहर शब्द तो नहीं जुड़ा मगर कश्मीर का एक पंडित परिवार की पहचान नहर के किनारे रहने की वजह से नेहरू हो गई। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पुरखों का नेहरू उपनाम इसी वजह से पड़ा था। हिन्दी का अपना सा हो गया नहर शब्द मूल रूप से सेमिटिक भाषा परिवार का शब्द है और मूलतः हिब्रू भाषा का शब्द है जहां से यह अरबी में गया और फिर फारसी से होते हुए भारतीय भाषाओं में दाखिल हुआ। हिब्रू व अरबी में नहर की धातु है नह्र यानी n-h-r जिसमें धारा, प्रवाह, चमक, दिन जैसे कई भाव समाए हैं। हिब्रू में नहर के मायने होते हैं नदी, प्रवाह, उजाला। गौरतलब है प्रवाह, गतिवाचक शब्द है। रफ्तार में निमिष भर देखने का जो भाव है वह चमक से जुड़ रहा है। अरबी में भी नहर का अर्थ नदी, जलस्रोत, जलप्रवाह है। अरब, इराक में नहर का रिश्ता नदी से ही जोड़ा जाता है। वहां की नदियों के साथ नहर शब्द आमतौर पर जुड़ता है जैसे नहरुल अलमास या नहरुल सलाम यानी दजला नदी।
पहाड़ों के निचले हिस्सों में उच्चतम उभारों वाले मैदानी क्षेत्रों को पठार कहते हैं। पठार ऐसे मैदानी क्षेत्र होते हैं जो मध्य में उभार लिए होते हैं और किन्हीं दिशाओं में ढलुआं आकार होता है। ऐसे पठारी क्षेत्र उपजाऊ और बंजर दोनों ही तरह के होते हैं। देश का दक्षिणी हिस्सा दक्षिण का पठार कहलाता है। मालवा का पठार भी प्रसिद्ध है। इसी तरह तिब्बत और मंगोलिया के पठार भी मशहूर हैं। उत्तरी भारत में पठारी विशेषण वाले कई गांव हैं जैसे पठारी मोहल्ला, पठारी खुर्द, पठारी कलां, पठारी ददरिया और पठारी आदि। वृहत हिन्दी कोश में पठार की व्युत्पत्ति पृष्ठाधार (पृष्ठ + आधार) बताई गई है जबकि हिन्दी शब्दसागर में इसकी व्युत्पत्ति पाषाण से बताई गई है। गौरतलब है कि कोट का अर्थ किला, पहाड़, पर्वत, परिधि, घिरा हुआ स्थान आदि होता है। कोट बना है कुटः से जिसमें छप्पर, पहाड़ (कंदरा), जैसे अर्थ समाहित हो गए । इसके अन्य कई रूप भी हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे कुटीर, कुटिया, कुटिरम्। विशाल वृक्षों के तने में बने खोखले कक्ष के लिए कोटरम् शब्द भी इससे ही बना है जो हिन्दी में कोटर के रूप में प्रचलित है। बाद में भवनों, संस्थाओं के नाम के साथ कुटीर, कुटी जैसे शब्द जोड़ने की परम्परा विकसित हुई जैसे रामकुटी, शिवकुटी, पर्णकुटी, रामदासी कुटिया, चेतनदेव कुटिया, प्रेम कुटीर आदि। किलों के लिए कोट शब्द इसलिए प्रचिलित हुआ क्योंकि इन्हें पहाड़ों पर बनाया जाता था ताकि शत्रु वहां तक आसानी से न पहुंच सके। बाद में मैदानों में भी किले बनें और इन्हें पहाड़ की तरह दुर्भेध्य बनाने के लिए इनकी दीवारों को बहुत ऊंचा और मज़बूत बनाया जाता था। स्पष्ट है कि कोट शब्द में पहाड़ की मजबूती निहित है। आज के कई प्रसिद्ध शहरों मसलन राजकोट, सियालकोट, पठानकोट, कोटा, कोट्टायम आदि शहरों में यही कोट झांक रहा है। कहने की ज़रूरत नहीं कि इन शहरों के नामकरण के पीछे किसी न किसी दुर्ग अथवा किले की उपस्थिति बोल रही है। इसी से बना है परकोटा शब्द जिसका मतलब आमतौर पर चहारदीवारी या किले की प्राचीर होता है।
कोतवाल शब्द बना है कोटपाल से। संस्कृत में कोट का अर्थ होता है दुर्ग, किला या फोर्ट। प्राचीनकाल में किसी भी राज्य का प्रमुख सामरिक-प्रशासनिक केंद्र पहाडी टीले पर ऊंची दीवारों से घिरे स्थान पर होता था। अमूमन यह स्थान राजधानी के भीतर या बाहर होता था। मुख्य आबादी की बसाहट इसके आसपास होती थी। किले के प्रभारी अधिकारी के लिए कोटपाल शब्द प्रचलित हुआ फारसी में इसके समकक्ष किलेदार शब्द है। कोटपाल के जिम्मे किले की रक्षा के साथ-साथ वहां रहनेवाले सरकारी अमले और अन्य लोगों देखरेख का काम भी होता था। किले या शहर की चहारदीवारी के लिए परकोटा शब्द भी इसी मूल का है जो कोट में परि उपसर्ग लगाने से बना है। परि का अर्थ होता है चारों ओर से। इस तरह अर्थ भी घिरा हुआ या सुरक्षित स्थान हुआ। सर राल्फ लिली टर्नर के शब्दकोश में भी कोटपाल (कोतवाल) शब्द का अर्थ किलेदार यानी commander of a fort ही बताया गया है। कोटपाल का प्राकृत रूप कोट्टवाल हुआ जिससे कोटवार और कोतवाल जैसे रूप बने। किसी ज़माने में कोतवाल के पास पुलिस के साथ साथ मजिस्ट्रेट के अधिकार भी होते थे। दिलचस्प बात यह है कि एक ही मूल से बने कोतवाल और कोटवार जैसे शब्दों में कोटपाल से कोतवाल बनने के बावजूद इस नाम के साथ रसूख बना रहा जबकि कोटवार की इतनी अवनति हुई कि यह पुलिस-प्रशासनिक व्यवस्था के सबसे निचले पायदान का कर्मचारी बनकर रह गया। ग्रामीण क्षेत्र में वनवासी क्षत्रिय जातियों में पुश्तैनी रूप से ग्रामरक्षा की जिम्मेदारी संभालने के चलते कोटवार पद अब कोटवार जाति में तब्दील हो गया है। उधर कोतवाल की जगह कोतवाली का अस्तित्व तो अब भी कायम है मगर कोतवाल पद, पुलिस अधीक्षक के भारीभरकम ओहदे में बदल गया है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी ब्राह्मण वर्ग में कोतवाल उपनाम होता है। पहले यह शासकों द्वारा दी जानेवाली उपाधि थी जो बाद में उनकी पहचान बन गई। कोतवाल शब्द अपने संस्कृत मूल से उठ कर फारसी में भी दाखिल हुआ।
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
17 कमेंट्स:
हमेशा की तरह एक और ज्ञानवर्धक जानकारी.. आप इतने सूत्र जुटाटे कहा से अजित जी?
ऐसे शौक तो हमेशा पाले जाने चाहिये..
बहुत शानदार लेख.........."
आपकी मेहनत के आगे तो सिर्फ नत ही हुआ जा सकता है। खूब सुंदर, उपयोगी और सार्थक पोस्ट।
तस्वीर देख साँस थम गई..बकिया तो पोस्ट हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक और झमाझम!!
चलिए आज कोटा का भी उल्लेख हुआ।
सही है. राजस्थान में तालाब किनारे के गाँवों के नाम में "सर" लगाने की प्रथा रही है. यथा "बिदासर".
बढ़िया पोस्ट .
राजस्थान में बीकानेर चुरू (थली) में सर नाम से गावो की भरमार है --
देसलसर, भामटसर ,राजलदेसर ,भीनासर,धीरदेसर ,उदासर,रासेसर ,तोलियासर , कल्यानसर,कानासर, रानधिसर,हियादेसर ,आडसर, आबसर ,कोलासर,बिदासर ,दून्ग्रासर आदि आदि .
badiya post aaj kal USA me hoon time nahin nikal pati net ke liye. ise anyatha naa len dhanyavaad aur shubhakamanayen
शुक्रिया किरण जी, आपने तो "सर"नामधारी आबादियों का सोता ही बहा दिया है।
विस्तृत वर्णन किया आपने.
पूरी जानकारी बाँध दी ।
बीकानेर में 'सर' नाम के आबादी की अधिकता ये बताती है कि मरुस्थल में पानी के संग्रह की व्यवस्था बहुत थी.
भोपाल शब्द की क्या उत्पत्ति है भाई भोपाली जी? मैं इस गफ़लत में था कि ये भूपाल से हो सकती है, फ़ारसी में भूपाल और भोपाल एक सा ही लिखा जाएगा। सर से भोपाल का कैसे ताल्लुक बन रहा है?
क्षमा चाहूंगा अभय भाई,
खूब ध्यान दिलाया। गफ़लत में यह शब्द चला गया। तलैया के चक्कर में भोपाल का नाम दिमाग में था। व्यस्तता के चलते दुबारा-तिबारा पढ़ने का अवसर भी नहीं मिला। भोपाल की व्युत्पत्ति राजा भोज के नाम पर भोज + पाल से मानी जाती है। दरअसल करीब दस सदी पहले राजा भोज द्वारा बनाए गए विशाल तालाब की पाल इस जगह बांधी गई थी, इसी वजह से इसे भोजपाल कहा जाता था। बाद में यहां बस्ती हुई। पहले यह क्षेत्र गौंड राजाओं के अधीन था। अलबत्ता भूपाल से भोपाल की व्युत्पत्ति सही तो है पर इसका ऐतिहासिक रिश्ता भोज से ही जुड़ता है और इतिहासकार-भाषाविद् इसे भोजपाल से ही जोड़ते हैं।
शब्दों का सफ़र है या शब्दों का सरोवर है,
ये ताल-तलैया भी भोपाली धरोहर है,
घाटी से मरुस्थल और नालो से नहर तक के,
शब्दों की लहर लेकर आता ये ब्लोगर है.
क्या बात कही है मंसूर साहेब...
बहुत शुक्रिया
dahiya.uma
Post a Comment