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Thursday, December 31, 2009
मित्र-चर्चा के साथ नए साल का स्वागत
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 23 कमेंट्स पर 3:37 AM लेबल: ब्लागिंग
Wednesday, December 30, 2009
मगजपच्ची से भेजा-फ्राई तक
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 12 कमेंट्स पर 3:56 AM लेबल: food drink, व्यवहार
Tuesday, December 29, 2009
कँवर साब का कुँआरापन
कम् धातु में निहित स्नेह और अनुराग जैसे भावों के बावजूद इन्सान अपनी ही संतान यानी कुमार/कुमारी में फर्क करने लगा |
संबंधित कड़ी-जवानी दीवानी से युवा-तुर्क तक
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 15 कमेंट्स पर 3:40 AM लेबल: रहन-सहन, व्यवहार, सम्बोधन
Monday, December 28, 2009
कैंची, सीजर और क़ैसर
कतरनी के अर्थ में कैंची शब्द की व्याप्ति हिन्दी की कई शैलियों में है। कैंची की व्युत्पत्ति तुर्की भाषा से मानी जाती है मगर इस शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर भाषाविज्ञानी मौन हैं और संदर्भ भी कम हैं। अनुमान है कि इसका रिश्ता अरबी शब्द कस्र से है, जिसका अर्थ है काटना, छीलना, तराशना। इस धातु से जुड़ी मूल सेमिटिक धातु क-स-र q-s-r में भी यही भाव हैं। यूरोपीय और अरबी भाषाविदों में इस धातु पर विवाद है कि मूलतः कस्र का जन्म ग्रीक या लैटिन मूल से हुआ है अथवा यह सेमिटिक धातु ही है। अरबी शब्द अल-कस्र का अर्थ है महल। कस्र धातु में निहित भावों पर गौर करें तो इसका अर्थ हुआ पत्थरों, चट्टानों, पहाड़ों को काटकर, तराश कर बनाया गया आश्रय। इससे मिलता-जुलता शब्द अंग्रेजी का कैसल भी है। दिलचस्प यह भी कि इस शब्द परिवार का रिश्ता कैसर से भी है जो जर्मनी के सम्राटों की उपाधि थी। कैसर का प्रयोग अरबी, फारसी और उर्दू में भी प्रभावशाली व्यक्तियों की उपाधि के तौर पर होता रहा है जैसे कैसर ए हिन्द यानी हिन्दुस्तान का बादशाह। इसका ताल्लुक प्रसिद्ध रोमन सम्राट जूलियस सीजर से भी है। दरअसल लैटिन के castrare और Caedere एक ही मूल के हैं और दोनों में ही काटने, तराशने का भाव है जिससे सीजर और कैसल जैसे शब्द बने। कैसल यानी महल, प्रासाद, किला और कैसर यानी सम्राट। शासक के रूप में इनकी व्याख्या यही है कि राजा हमेशा विशाल भवन में ही रहता है। कैंची समेत कतरनी के अर्थ वाले सीजर और जूलियस सीजर से जुड़े सीजर शब्द पर गौर करने से पहले कुछ अन्य शब्दों पर भी गौर कर लें। अंग्रेजी में कैंची को कहते हैं सीज़र । हिन्दी की कतरनी और अंग्रेजी की सीज़र आपस में मौसेरी बहने हैं। प्राचीन भारोपीय धातु ker का ओल्ड जर्मनिक में रूप हुआ sker जिसका मतलब होता है काटना, बांटना, विभाजन करना। संस्कृत में इसका रूप है कृ। कर्तन यानी काटना जैसा शब्द इससे ही बना है। कर्तनी यानी जिससे काटा जाए। कतरना, कतरनी यानी कैंची जैसे देशज शब्द इसके ही रूप हैं। अंग्रेजी के शेयर share यानी अंश, टुकड़ा, हिस्सा। आज की बाजार-संस्कृति में शेयर का रिश्ता पू्जी से जुड़ता है। शेयर-बाजार, शेयर-मार्केट जैसे शब्द बोलचाल में इस्तेमाल होते है। शीअर shear यानी काटना इससे ही बने हैं और इसका ही बदला हुआ रूप है सीज़र scissors यानी कैंची। शिअर में निहित काटने के भाव का विस्तार होता है लैटिन के Caedere शब्द में, जिससे बने सीजेरियन Caesarian का अभिप्राय है प्रसव के संदर्भ में पेट में चीरा लगाना। ऐसा कहा जाता है कि जूलियस सीजर Julius Caesar को उसकी मां का पेट चीर कर बाहर निकाला गया था। क्योंकि लैटिन के Caedere का मतलब होता है काटना या विभाजित करना, जिससे बने सीजेरियन शब्द का मतलब होता था पेट में चीरा लगा कर प्रसव कराना। आज भी इसका यही अर्थ है। सीजर के युग में सीजेरियन के जरिये सिर्फ नवजात का जन्म ही होता था। दरअसल यह विधि भी तभी आजमाई जाति थी जब प्रसव पीड़ा से मां की मौत हो जाती थी ऐसे में पेट चीर कर बच्चे को बाहर निकालना जरूरी होता था, वर्ना उसकी मौत भी तय होती, इसलिए ऐसे शिशु को सीजेरियन कहा जाता था। हालांकि यह सिर्फ एक कल्पना मात्र है। ऐतिहासिक प्रमाण कहते हैं कि जूलियस के शासन के दौरान उसकी मां जीवित थी और उसकी आयु का ब्योरा भी उपलब्ध है। जाहिर है यहां सीजर नाम का अर्थ वह नहीं है। दरअसल रोमन में सीजर शब्द का जो अंग्रेजी उच्चारण है वह रोमन में नहीं था। रोमन में c को k उच्चारित किया जाता है। इस तरह Julius Caesar रोमन में भी कैसर ही था जो एक उपाधि थी। जर्मन का कैसर kaiser, रूस का ज़ार tszar, zar, czar और अरबी कै़सर qaiser दरअसल एक ही मूल के हैं और इन सभी भाषाओं में इसका अर्थ एक ही है। यहां स्पष्ट है कि जिस तरह से जर्मनिक और रोमन में उच्चारण कैसर हुआ, अंग्रेजी में सीजर हुआ जबकि रूसी में यह जार हुआ। ध्यान दें कि लैटिन या अंग्रेजी का स रूसी में जाकर ज में बदल रहा है। अरबी कस्र ने जब रूस के दक्षिणी हि्स्से में बोली जाने वाली तुर्की भाषा में प्रवेश किया तो बहुत मुमकिन है क़-स-र की स ध्वनि का च में रूपांतर हुआ हो। स ध्वनि पहले ज में बदली हो और फिर च में रूपांतरित हुई होगी। अक्सर च और ज में रूपांतर होता है। यहां र ध्वनि का लोप हुआ है। इस तरह कस्र से ही कैंची शब्द बना हो हालांकि कैंची में जो अनुनासिकता है उसका आधार इस व्युत्पत्ति से नहीं मिलता है। वैसे रूप परिवर्तन के दौरान अनुनासिकता अपने आप आ जाती है जैसे उच्च के देशज रूप ऊंचा में यह नजर आती है। वैसे संस्कृत के कर्तन का रूपांतर कच्चन संभव है। मुमकिन है वर्ण विपर्यय से इसका अगला रूप कैंची बना है। इंडो-ईरानी मूल के शब्दों की आवाजाही तुर्की परिवार में हुई निश्चित ही हुई होगी। इस बारे में बहुत ज्यादा शोध नहीं हुआ है। लैटिन-जर्मनिक का कैसर शब्द शासक-सम्राट की उपाधि के रूप में ईसा पूर्व ही मशहूर हो गया था और इसी उच्चारण के साथ अरबी में पहुंचा था। प्रायः हर भाषा विदेशज शब्द को उनकी अर्थवत्ता और ध्वन्यात्मकता के साथ अपनाने की परिपाटी रही है। अरबों में ऐसा करते हुए उससे मिलती-जुलती धातु से शब्द-निर्माण की परम्परा रही है। भारतीय अंक शून्य की खोज का जब अरबों को पता चला तो उन्होंने अरबी भाषा में इसके मायने तलाशे। उन्हें मिला सिफ्र (sifr) जिसका मतलब भी रिक्त ही होता है। इसी तरह सम्राट के अर्थ में कैसर को अपनाने से पहले अरबों ने यही प्रक्रिया अपनाई। खुशकिस्मती से उन्हें q-s-r धातु मिली जिसमें काटने, विभाजित करने का भाव था। जर्मन K की जगह अरबी में Q का प्रयोग हुआ और इसका रूप हुआ Qaisar क़ैसर यानी शासक, सम्राट, जो अरबी फारसी के जरिये हिन्दी में भी चला आया। अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 14 कमेंट्स पर 2:56 AM लेबल: government, रहन-सहन, सम्बोधन
Saturday, December 26, 2009
चोरी और हमले के शुभ-मुहूर्त
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 11 कमेंट्स पर 3:36 AM लेबल: रहन-सहन, व्यवहार
Friday, December 25, 2009
मामा शकुनी, सुगनचंद और शकुन्तला
क्रिसमस पर मंगलकामनाएं
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 15 कमेंट्स पर 4:34 AM लेबल: व्यवहार, सम्बोधन
Thursday, December 24, 2009
लंगर में लंगूर की छलांग
…लंगर चाहे खुद हिलता-डुलता हो, पर जिससे वह बंधा रहता है, उसे ज़रूर स्थिरता प्रदान करता है…लंगर के दीगर मायने खूंटा, बिल्ला, चिह्न भी हैं…
... गुरु की ओर से प्रसाद के बतौर लंगर यानी सदाव्रत चलता है।...
जिसके मुताबिक पैरों को एकबारगी दूर तक आगे फेंक कर कूद कर वेग से आगे बढ़ने की क्रिया है, जबकि जॉन प्लैट्स के मुताबिक छलांग बना है उद्+शल्+ लङ्घ=छलांग होता है। संस्कृत मे उद् धातु का अर्थ है ऊपर उठना, शल् का अर्थ है गति, हिलाना, हरकत करना आदि और लङ्घ का अर्थ है सीमा पार करना। अर्थात छलांग में सिर्फ कूदने की क्रिया नहीं है बल्कि सीमोल्लंघन का भाव भी है। सामान्य से ऊंची कूद को छलांग कहा जा सकता है। छलांग में सामान्य तौर पर क्षैतिज गति का भाव है मगर मुहावरे में ऊंची छलांग भी होती है। फलांग भी इसी कतार में खड़ा नजर आता है। ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 19 कमेंट्स पर 4:10 AM लेबल: food drink, shelter, रहन-सहन
Wednesday, December 23, 2009
कसूर किसका, कसूरवार कौन? [आश्रय-26]
ताजा कड़ियां- सब ठाठ धरा रह जाएगा…[आश्रय-25] पिट्सबर्ग से रामू का पुरवा तक…[आश्रय-24] शहर का सपना और शहर में खेत रहना [आश्रय-23] क़स्बे का कसाई और क़स्साब [आश्रय-22] मोहल्ले में हल्ला [आश्रय-21] कारवां में वैन और सराय की तलाश[आश्रय-20] सराए-फ़ानी का मुकाम [आश्रय-19] जड़ता है मन्दिर में [आश्रय-18] मंडी, महिमामंडन और महामंडलेश्वर [आश्रय-17] गंज-नामा और गंजहे [आश्रय-16]
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 14 कमेंट्स पर 4:14 AM लेबल: shelter
Monday, December 21, 2009
लिफाफेबाजी और उधार की रिकवरी
संबंधित कड़ी-जल्लाद और जिल्दसाजी
लिफाफा से जुड़े कई मुहावरे प्रचलित हैं जैसे बंद लिफाफा। आमतौर पर गूढ़ और अबूझ व्यक्ति के लिए यह उपमा है… |
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अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 16 कमेंट्स पर 3:36 AM लेबल: रहन-सहन, व्यवहार, सम्बोधन
Saturday, December 19, 2009
भेड-चाल से भेड़िया-धसान तक
संबंधित पोस्ट-1.कुलीनों की गोष्ठी में ग्वाले. 2.गवेषणा के लिए गाय ज़रूरी है.3.गोस्वामी, गोसाँईं, गुसैयां
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 18 कमेंट्स पर 3:32 AM लेबल: nature, भाषा, व्यवहार
Friday, December 18, 2009
जल्लाद, जल्दबाजी और जिल्दसाजी
गौर करें कि बांधने के लिए गठान लगाना जरूरी होता है। जलादा में निहित बंधन के भाव का थोड़ा विस्तार से देखना होगा। हिन्दी में शीघ्रता के लिए एक शब्द है जिसे जल्द या जल्दी कहते हैं। इससे जल्दबाजी जैसा शब्द भी बनता है जिसका मतलब है शीघ्रता करना। उतावले शख्स को जल्दबाज कहते हैं। यह इसी धातु निकला शब्द है। जल्द का मतलब होता है कसावट, दृढ़ता, ठोस, पुख्ता आदि।
ध्यान देने की बात है कि जल्दी यानी शीघ्रता में काल के विस्तार को कम करने का भाव है। अर्थात दो बिंदुओं के बीच का अंतर कम करना ताकि फासला कम हो। नजदीकी का ही दूसरा अर्थ घनिष्ठता, प्रगाढ़ता और प्रकारांतर से मजबूती है। हालांकि व्यावहारिक तौर पर देखें तो जल्दबाजी का काम पुख्ता नहीं होता। जाहिर है किसी जमाने में जल्द या जल्दी का अर्थ पुख्तगी और पक्केपन के साथ शीघ्र काम करना था। कालांतर में इसमें शीघ्रता का भाव प्रमुख हो गया।
बंधन होता ही इसलिए ताकि उससे मजबूती और पक्कापन आए। शरीर की खाल या त्वचा के लिए उर्दू, फारसी और अरबी में एक शब्द है जिल्द। हिन्दी में जिल्द का मतलब सिर्फ कवर या आवरण होता है। किताबों के आवरण या कवर को भी जिल्द कहते हैं। नई पुस्तकों को मजबूत और टिकाऊ बनाने के लिए उन पर जिल्द चढ़ाई जाती है। जिल्द चढ़ानेवाले को जिल्दसाज कहते हैं। अरबी में इसके शब्द भी है। पुस्तक की प्रतियों या कॉपियों को भी जिल्द कहा जाता है जैसे– किताब की चार जिल्दें आई थीं, सब बिक गईं।
उर्दू में त्वचा के लिए जिल्द शब्द का ही प्रयोग होता है। प्रकृत्ति ने शरीर के नाजुक अंगों का निर्माण करने के बाद उन पर अस्थि-मज्जा का पिंजर बनाया और फिर हर मौसम से उसे बचाने के लिए उसक पर जिल्द चढ़ाई। जाहिर है इस जिल्द की वजह से ही शरीर में कसावट आती है। ज़रा सी जिल्द फटी नहीं और सबसे पहले खून निकलता है। ज्यादा नुकसान होने पर पसलियां-अंतड़ियां तक बाहर आ जाती हैं। जाहिर है जिल्द यानी त्वचा एक बंधन है। दार्शनिक अर्थों में तो समूची काया को ही बंधन माना गया है, जिसमें आत्मा कैद रहती है।
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 24 कमेंट्स पर 4:40 AM लेबल: सम्बोधन
Thursday, December 17, 2009
शराबी की शामत, कबाबी की नहीं
टिक्का कबाब विशुद्ध भारतीय नाम है। टिकिया शब्द बना है संस्कृत शब्द वटिका के वर्णविपर्यय से जिसका अर्थ है गोल चपटी लिट्टी या लोई। इसका रूपांतर ही टिक्का के रूप में हुआ। समझदार गृहिणिया शाकाहारियों के लिए कटहल, सोयाबीन, जिमीकंद के कबाब बनाती हैं जो किसी मायने में असली कबाब से कमतर नहीं होते।
रूप इसने लिए। मध्यकाल में ईरान में तब्हाजिया नाम की एक नॉनवेज डिश बड़ी मशहूर थी, जिसमें मीट के बहुत बारीक कतरों को मसालों में लपेट कर रखा जाता, बाद में उन्हें तला जाता, फिर तरह तरह की चटनियों के साथ खाया जाता था। याद रखें, मसालों का इस्तेमाल करने में फारस के लोग अरबो की तुलना में बढ़े-चढ़े थे। आठवीं नवीं सदी के बाद, ईरान में जब अरबी प्रभाव बढ़ा, तो ईरानी में कबाब शब्द का प्रवेश हुआ। बाद के दौर के शाही खानसामों नें तब्हाजिया को जायकेदार बनाने की नई तरकीबें ढूंढी और मीट के बारीक कतरों को पीस कर बनाए कीमे को मसालों में लपेट कर पकौड़ियों की तरह तलना शुरु किया। खास बात ये हुई कि तब्हाजिया नाम की जगह कबाब लोगों की जबान पर चढ़ गया। दरअसल आज के कबाब का सही मायने में रूप तभी सामने आया। ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें |
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर 28 कमेंट्स पर 3:58 AM लेबल: food drink, रहन-सहन