Sunday, September 21, 2008
सुनें रंजना भाटिया की...[बकलमखुद-70]
ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून ,बेजी, अरुण अरोरा , हर्षवर्धन त्रिपाठी , प्रभाकर पाण्डेय अभिषेक ओझा को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के तेरहवें पड़ाव और अढ़सठवें सोपान पर मिलते हैं रंजना भाटिया से । कुछ मेरी कलम से नामक ब्लाग चलाती हैं और लगभग आधा दर्जन ब्लागों पर लिखती हैं। साहित्य इनका व्यसन है। कविता लिखना शौक । इनसे हटकर एक ज़िंदगी जीतीं हैं अमृता प्रीतम के साथ...अपने ब्लाग अमृता प्रीतम की कलम से पर । आइये जानते हैं रंजना जी की कुछ अनकही-
मेरे बारे मे वैसे तो काफ़ी विद कुश मे बहुत कुछ लिखा जा चुका है, पर अजित जी का जब मेल आया तो मैं यह न्योता ठुकरा न सकी , सोचा चलो एक बार फ़िर सही अपने जीवन के यादों के गलियारे मे फ़िर से घूम के आते हैं | बहुत सी यादे बचपन की दिलो दिमाग पर हमेशा स्वर रहती हैं और आज भी बच्चो को सुनाती रहती हूँ |
हरियाणा के एक कस्बे कलानौर जिला रोहतक .पहली संतान के रूप मे मेरा जन्म हुआ १४ अप्रैल १९६३ ....दादा जी का घर .....कच्ची मिटटी की कोठरी...... वही पर हमारा आगमन हुआ माँ पापा ने नाम दिया रंजू | पहली संतान होने के कारण मम्मी पापा की बहुत लाडली थी | और बुआ बताती है कि बहुत शैतान भी | जितना याद आता है कि पापा कि ट्रान्सफर वाली नौकरी थी सो जब कुछ होश आया तो कुछ बहुत धुंधली सी यादे बांदा , झाँसी और तालबेहट की हैं ...मेरे बाद मेरी दो छोटी बहने और हुई और फ़िर पापा जो पहले रेलवे में थे उन्होंने ने मिलट्री इंजनियर सर्विस ज्वाइन कर ली | वह शायद उस वक्त हिंडन मे जॉब करते थे और मम्मी आगे जॉब करना चाहती थी सो वह नाना नानी के पास रह कर बी एड की तैयारी मे लग गई | दोनों छोटी बहने तो दादी जी के पास रही पर मैं मम्मी पापा से कभी अलग नही रही|
सख्त माहौल में शरारतों की गुंजाईश...
घर मे पढ़ाई का बहुत सख्त माहौल था | होना ही था जहाँ नाना , नानी प्रिंसिपल दादा जी गणित के सख्त अध्यापक हो वहां गर्मी की छुट्टियों मे भी पढ़ाई से मोहलत नही मिलती थी| साथ ही दोनों तरफ़ आर्य समाज माहोल होने के कारण उठते ही हवन और गायत्री मन्त्र बोलना हर बच्चे के लिए जरुरी था | सारे कजन मिल कर गर्मी की छुट्टियों मे मिल कर खूब धामा चोकडी मचाते और नित्य नए शरारत के ढंग सोचते जिस मे पतंग उडाने से ले कर नानी की रसोई मे नमकीन बिस्किट चोरी करना और दादा जी के घर मे वहां पर बाग़ से फल चोरी करना शामिल होता| शुरू की पढ़ाई वहीँ रोहतक मे हुई पर मम्मी की पढ़ाई पुरी होते ही हमारा तीन जगह बिखरा परिवार पापा के पास हिंडन आ गया | यहाँ आर्मी स्कूल मे पढ़ाई शुरू की| बहुत सख्त था यहाँ स्कूल का माहौल| पर घर आते ही वहां के खुले घर मे जो शरारत शुरू होती वह पापा के आफिस के वापस आने के बाद ही बंद होती |
एक चिड़िया की अंत्येष्टि...
दोपहर में जब बड़े सो जाते तो हम बच्चो को टोली चुपके से बाहर निकल आती और फ़िर शुरू होता तितली पकड़ना चिडिया के घोंसले में झांकना ....यूँ ही एक बार हमारे घर की परछती पर रहने वाली एक चिडिया पंखे से टकरा मर गई उसको हमारी पूरी टोली ने बाकयदा एक कापी के गत्ते कोपूरी सजा धजा के साथ घर के बगीचे में उसका अन्तिम संस्कार किया था और मन्त्र के नाम पर जिसको जो बाल कविता आती थी वह बोली थी बारी बारी ..:)मैंने बोली थी..चूँ चूँ करती आई चिडिया स्वाहा ..दाल का दाना लायी चिडिया स्वाहा.:) सब विषय मे पढ़ाई मे अच्छी थी सिर्फ़ गणित को छोड़ कर .पापा से इस के लिए मार खा जाती थी पर मम्मी से मैं कभी नही पिटी... हाँ दोनी बहने कई बार पीट जाती थी ..| मम्मी को सरस्वती शिशु बाल मन्दिर मे स्कूल मे नौकरी मिल गई और पापा भी पालम आ गए और हम सब नारायणा मे रहने लगे |
जिंदगी की कुछ हकीक़तें...
कुछ कुछ याद आता है तब लड़ाई के दिन थे शायद ब्लेक आउट होता था और हम सब खेलते खेलते घर के पास बने खड्डों मे छिप जाते थे | या घर की तरफ़ भागते थे | फ़िर जनकपुरी पंखा रोड पर हमने अपना घर लिया | शिफ्ट करते ही हम अमृतसर और माता के दर्शन के लिए गए थे पहली बार | मम्मी तब तक स्कूल की प्रिसिपल बन चुकी थी और पढ़ाई का माहौल घर मे हर वक्त रहता था | अभी घर अच्छे से सेट भी नही होने पाया था की एक दिन मम्मी के पेट मे अचानक दर्द उठा और देखते ही देखते वह हमें छोड़ कर चली गई | जिंदगी उस वक्त कैसे एक शून्य पर आ कर खड़ी हो गई थी वह लम्हा मैं आज भी नही भूल पाती हूँ | जिंदगी धीरे धीरे चलने लगी .हम तीनों बहने ही बहुत छोटी थी .और पापा की जॉब सख्त ..| कुछ समय बीता और हमारी नई माँ आ गई | वह आई तो घर कुछ संभला और गाड़ी जिंदगी की चलनी शुरू हुई | छोटा सा प्यारा भाई मिला और साथ ही आ गई पापा की जम्मू मे ट्रान्सफर ...पर कुछ एडमिशन की गडबडी होने के कारण मुझे अपने चाचा जी के पास दो साल रहना पड़ा और बाकी सब जम्मू चले गए ..और जिंदगी का नया अध्याय शुरू हुआ ... [जारी]
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41 कमेंट्स:
अंतिम पाराग्राफ पढकर यही लगा कि कठिन पथ से गुजरी हैं..
चिडिया की अंत्येष्टि...सो क्यूट.अच्छा लगा आपके बचपन के बारे में जानकर, वहीं आपकी माँ के बारे में जानकर बहुत दुःख हुआ!आपकी जिंदगी के बारे में जानने की उत्सुकता है....
अच्छा लगा आपके बारे में और अधिक जान कर । जनकपुरी, पंखा रोड कुछ जाना पहचाना सा पता है । हुं कभी यहीं तो कपार्ट का अफिस हुआ करता था, बाद में चाहे इंडिया हेबिटाट सेंटर में चला गया हो ।
आपके बचपन में खोया था कि आखिरी पैराग्राफ पढ़कर... !
बहुत अच्छा लग रहा है आपके बारे में और जानकर.
अजितजी को पुनः धन्यवाद.
अरे वाह!! आनन्द आ गया रंजना जी को यहाँ देखकर-उन्हें जानकर उनकी ही कलम से. बहुत आभार आपका..जारी रहिये.
शुरुआती बचपन तो आपको अच्छा मिला, शिक्षा के अच्छे संस्कार पड़ने ही थे। ...लेकिन माँ की असमय विदाई दुखी कर गयी। हमारी उत्सुकता बढ़ रही है। जारी रखें।
अजीत जी को साधुवाद...।
अच्छा लगा आपकी जिंदगी से जुड़ी बातों को पढ़ना..
aap sae mera parichay kewal bloging sae hua par aaj ham dono ek dusre sae "keh sun " laetey haen . aap jitin strong haen ander sae us ko smajhnae kae liyae samay lagtaa haen
aap kae ander ek aag haen jo nirantar ja rahee haen , usko jalaye rakhey
हूँ ! कुछ तो मेरे बचपन से भी मिलता है -आश्चर्यजनक ,हम बच्चों ने भी मिलकर एक नहीं कई बार चिडियों का अन्तिम संस्कार किया -कारण यह था कि मेरा पैत्रिक मकान जब १९६५ के आसपास बना तो अगल बगल के मकानों से उंचा था -तोते अकसर टकराकर गिर पड़ते थे मैं अपने बाबा जी से मकान की ऊपरी मंजिल को गिरवाने की जिद करता और तोतों का संस्कार !
वे बातें याद आ गयीं -और दुखी भीकर गयीं !
मां का इतना असमय में छोड़ जाना लेखिका के लिए जरूर त्रासद अनुभव रहा होगा ! आगामी कड़ियों का इंतज़ार !मगर थोडा और बड़ा करें बहुत छोटी पोस्ट थी यह ...और हाँ लेखिका चूंकि एक ख्यात लब्ध साहित्यकार है -वर्तनी की त्रुटियों को जांच परख कर पोस्ट जारी करें बैसे यह जिम्मेदारी ब्लॉग ओनर की है .
बहुधा इंसान के व्यक्तित्व पर बचपन की कुछ घटनाओं की छाप उम्र भर अंकित रहती है. रंजना जी को पढ़कर लगा कि उनका संवेदनशील संसार भी ऐसी ही कठिनाइयों से जूझते हुए आकार पाया है.
अच्छा लगा उनको पढ़ना. अजित जी का भी आभार.
अच्छा लगा रन्जू जी को जानने का मौका मिला,किसी के बारे मे जानकारी देनेवाला ये प्रयास बहुत अच्छ है,अजित जी आपको बहुत-बहुत बधाई
अच्छा लिखा है।हर जीवन के अलग-अलग रंग होते हैं।अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
रंजना जी के बारे मैं काफी पता है सखी हैं मेरी . उनकी साहित्य के प्रति लगन और निष्ट नमन करने लायक है.
रंजना जी को मैंने अमृता प्रीतम की
उनकी प्रस्तुति के धरातल से जाना है.
दरअसल उनमें सोच का वह दार्शनिक
अंदाज़ साफ़ झलकता है जो दुनिया की
सारी चीजों, बातों और घटनाओं से
सहज रूप से जुड़ा ही नहीं रहता
बल्कि उसे शिद्दत से जीता भी है.
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चिड़िया की अंत्येष्टि, बचपन की एक घटना मात्र
नहीं बल्कि चहक के पक्ष में
एक संवेदनशील ह्रदय की
जीवंत अभिव्यक्ति है.
शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
रंजना जी को पढ़ना/जानना वाकई अच्छा लगा। अजित जी को बधाई। सचमुच, आपने एक सार्थक ब्लॉग की कल्पना को साकार किया है।
आज एहसास हो रहा है कि आप को जान कर भी कितना कुछ जानना बाकी था, इस श्रंखला में भाग लेने के लिए आभार और अजीत जी को बधाई। बहुत अच्छा लगा रंजना जी के बारे में जानना और और जानने की इच्छा जोर पकड़ रही
-अनिताकुमार
aap kahiye/hum bahut mun se padh rahey hain RANJU DI, agli kadi ka intzaar
हम आगे की कड़ियों के इंतजार में हैं।
मै अजित जी का धन्यवाद करती हूँ जिन्होंने हमे आप से गहरे से रु ब रु कराया है......रंजू . तुम तो जानती हो की में तुमारा लेखन और तुम्हें ...दोनों को पसंद करती हूँ..... अगली कड़ी का इन्तजार रहेगा
अच्छा लग रहा है रंजनाजी को पढ़ना। अगली कडियों का इंतजार रहेगा।
लोग कहते हैं कि मनुष्य के भावी जीवन के सूत्र बचपन में जरूर मौजूद रहते हैं। घर में पढ़ाई का सख्त माहौल और चिडि़या की अंत्येष्टि वैसे ही सूत्र हैं, जिनसे रंजना जी की लेखनधर्मिता और संवेदनशीलता को समझा जा सकता है। मेरा अनुमान है कि रंजना जी के जीवन में एक दौर ऐसा भी आया होगा, जब वे अंतर्मुखी हो गयी होंगी। उनके लेखन में विद्यमान भावनाओं की सघनता मुझे इस दिशा में सोचने को प्रेरित कर रही है।
बहुत अच्छा लग रहा है अपनी प्रिय लेखिका-ब्लॉगर के जीवन से उनका ही साक्षात्कार। अजित जी को इसके लिए धन्यवाद।
जिंदगी कितने पड़ाव से गुजरती है, कभी एक नजर पीछे डाले तो अचंबा होता है कि क्या यही रस्ते मैंने पार किये है?
bahut hi sahi hai par aakhiri baat ki jindgi
ruk gai thoda man ko jhakjhorne wala tha,,,
duniya ko bhagwaan ki di hui sabse achchi nemat ma hi hai aur use khone ke baad to
har jagah sannate cha hi jate hain,, koi gusse me sambhalne wala hi nahi rahta fir,,
kahte hain na''
khuda ne diya sab par ek kami rah gai
maa ke bina aankh me namee rah gai,, ajit
इस पोस्ट से रंजू जी की जिदंगी की एक एल्बम मिली देखने को जिसमें उनकी बीते सुखमय और दुखमय क्षणों की तस्वीरें देखने को मिली। उनसे इनके कुछ पहलू को जानने का मौका मिला। और इस बात का दुख भी हुआ कि छोटी उम्र में माँ जी का निधन हो गया। साथ ही दूसरी एल्बम का इंतजार हैं।
रंजना जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा. जिस माहौल में वे पलकर बड़ी हुई हैं, उसकी छाप उनके लेखन में और विचारों में दिखाई देती है. आगे की कड़ी का इन्तजार है.
Ranjana ji ko itne samay se pachaanne ke baad bhi unko jana bhaut kam hai
unko unki hi kalam se padhna bhaut achha lagega
good ranju ji, achha laga aapke baare men adhik jaankar
एक बेहतरीन आरम्भ....जीवन के अनछुए पहलु को जानना अच्छा लगा
चिड़िया की अंत्येष्टि padhkar अपना बचपन सजीव हो उठा..........
रंजना जी का अमृता प्रीतम जी के साथ जुड़ाव दो जिस्म एक जान की तरह महसूस करता हूँ। एक व्यक्ति अपनी एक मुकम्मल जिन्दगी की तलाश में कहॉं-कहॉं से गुजरकर आता है, इस आत्मकथा में वह तस्वीर उभरती नजर आती है। अगली कड़ी का इंतजार रहेगा।
बेचैनी की पहली झलक ही इसमें दिख रही है।
अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।
जीवन की कठोरताएँ शीघ्र परिपक्वता लाती हैं।
रँजू जी,
पँजाब की पाँचोँ नदीयाँ आपकी लेखनी की रवानी मेँ समा गयीँ हैँ ..
बहुत अच्छा लगा आपका "बकलमखुद " पढकर ..
अजित भाई,
ये स्तँभ वाकई, अपनोँ से मिलवा रहा है .
स्नेह ,
- लावण्या
आपकी लेखनी के तेवर तो देखने को मिलता ही रहता है। इस बहाने आपकी जिंदगी के अनछुए पहलुओं के बारे में भी जानने को मिला।
अजीत जी आपका बहुत बहुत आभार,जो आपने पुनीत यह अभियान छेड़ा है.इसके मार्फ़त हम रचनाकाओं के व्यक्तिगत जीवन की उस पृष्ठभूमि से रूबरू हो पाते हैं,जिसमे वह संवेदनशील मन श्रिजित और परिपुष्ट होता है.रचनाकारों की जीवनियाँ उन्ही की कलम से पढ़ पाना अपने आप में एक सम्पूर्ण रचना पढने से कमतर नही होता.रचनाकारों के कलम से निकलने के बाद उनके जीवन की ये घटनाएँ महज घटनाये नही रह जाती,उसमे वह दर्शन भी निहित होता है जो रचयिता के व्यक्तित्व और कृतित्व में समाहित उसके सोच की प्रतिबिम्ब होती हैं.
अगली कड़ी का बेसब्री से इन्तजार रहेगा.
ओह ....चलिए इस बहाने अमृता की इस लम्बी दीवानी को भी जानेगे ...
आपकी ये पंक्ति की ज़िंदगी का नया अध्याय शुरू हुआ.. आपकी परिपक्व सोच दर्शाती है.. वाकई ज़िंदगी अध्यायो में ही तो मिलती है.. सफ़र की अगली कड़ी का इंतेज़ार रहेगा..
मुझे हमेशा से लगता रहा कि मैं आपको बहुत हद जानता हूँ पर आज लगा कि बहुत कुछ रह गया था,जो आज पुरा हो गया.
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत अच्छा लगा यहाँ आना और एक और
पहलू को जानना
aaj aai hu.n to sara ka saara ek sath padhu.ngi lekin pahali kishta ne ye bata diya ki samnedanao.n ne janma kah.n se liya...!
maa ho ya pita...inme se koi ek jab achanak chala jaata hai, to man aisa bhigta hai ki ta-umra shushki nahi aati
बहुत अच्छा लगा यहाँ आना
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