Thursday, September 11, 2008
ताव न खाएं, तपाक से मिलें .[चमक-प्रकाश-ऊष्मा-1]..
तपस्वी के शाप में तबाही
तप तीन प्रकार के होते हैं 1. शारीरिक 2.वाचिक 3.मानसिक । ईश्वर, माता-पिता, गुरू आदि की भक्ति-सेवा शारीरिक तप हैं। वेदपाठ, मीठी वाणी बोलना वाचिक तप और प्रसन्नमन रहना मानसिक तप है।
गुस्सैल व्यक्ति को हमेशा ताव आता है यानी वह जल्दी आवेश में आ जाता है। गुस्सा न करनेवाले को अक्सर साधु कहते हैं मगर यह भी सुनते रहे हैं कि अक्सर तपस्या में बाधा पड़ने पर तपस्वी भी ताव खा जाते थे और तबाही लाने वाले शाप दे दिया करते थे।
दरअसल तपस्या, तबाही और ताव में रिश्तेदारी है। चमक, तेज रोशनी, गर्मी , अग्नि, जलाना, दग्ध करना, पीड़ा सहन करना आदि के लिए संस्कृत में तप् शब्द है। तप का एक अर्थ होता है यंत्रणा देना, पीड़ा देना, जला कर समाप्त करना आदि। एक अन्य भाव है शरीर को कृश करना, सुखा देना। तपस्या शब्द तप से ही बना है जिसका अर्थ है साधना, कड़ा अभ्यास करना । दरअसल तपस्या में इन्द्रियदमन, आत्मनियंत्रण का भाव प्रमुख है। मनीषियों नें ब्रह्मप्राप्ति का जो मार्ग खोजा वह कठिन मगर कारगर था। ध्यान, चिंतन-मनन की ऐसी प्रणाली उन्होंने बताई जिसके जरिये मन को एकाग्र कर ज्ञान की दिव्य ज्योति में विषय वासनाओं को जलाना, नष्ट करना होता था। यही तपस्या या तपश्चरण है। इसी ताप से आत्माशुद्धि मिलती और तपस्वी सिद्ध कहलाता।
शरीर और मन को लगातार समाधि की अवस्था में स्थिर रखना ही तप है। तंत्रमार्ग में तप का अर्थ ब्रह्मचर्य है। तप तीन प्रकार के होते हैं 1. शारीरिक 2.वाचिक 3.मानसिक । ईश्वर, माता-पिता, गुरू आदि की भक्ति-सेवा शारीरिक तप हैं। वेदपाठ, मीठी वाणी बोलना वाचिक तप और प्रसन्नमन रहना मानसिक तप है। तप से ही बने है ताप, तापना, तपन जैसे शब्द। तपस्वी जहां वास करते है उसे कहा गया तपोवन या तपोभूमि। जिसे गर्म किया जाए वह हुआ तप्त। सूर्य का एक नाम तपसः भी है। भक्त, सन्यासी या ऋषि को तापस भी कहते हैं।
राजस्थानी , मालवी में तेज धूप को तावड़ा कहते हैं जो इसी ताप से बना है। पूर्वी बोली में यह तावरा है। तैश में आना, गरमी दिखाना, तेजमिज़ाजी और ऐंठना आदि भावों को ही ताव कहते हैं जो स्वभाव की गर्मी से जुड़े हैं और इसका रिश्ता तप या ताप से ही है। फारसी का एक शब्द है तबाही यानी बर्बादी। तबाह भी इसका ही रूप है। दरअसल यह मध्यकालीन फारसी के तपाह से बना है । विनष्ट, जर्जर, ध्वस्त , निर्जन, वीरान आदि जैसे भाव तबाही में शामिल हैं । आजकल हरतरह की विपदा को तबाही कह जाता है मगर किसी ज़माने में अग्नि से जुड़ी विभीषिका को ही तबाही कहा जाता रहा होगा। गौरतलब है संस्कृत की बहन ईरान की अवेस्ता में भी तप का ताप रूप है। आधुनिक फारसी के ताब लफ्ज़ का रिश्ता भी इससे है जिसका अर्थ भी ज्योति, आभा, चमक, प्रकाश, गर्मी आदि ही है। हिन्दी तप की तरह ही फारसी-उर्दू में भी इन्ही अर्थों मे तप शब्द है। गर्मजोशी से मुलाकात के लिए फारसी का तपाक शब्द भी इसी कड़ी में आता है। निरंतर बुखार रहने को फारसी में तपेदिक कहा गया। बाद में इसका टीबी नाम प्रचलित हुआ। बुखार को हिन्दी,मालवी, मराठी व अन्य भारतीय भाषाओं में ताप आना ही कहा जाता है। रोटी सेंकने वाली लोहे के मोटे पतरे के लिए तवा शब्द तापकः से बना है अर्थात जिसे तपाया जाए अथवा जिस पर तपाया जाए। इसी तरह बड़ी कड़ाही या चौड़ी रकाबी जो तेज़ आंच पर चढ़ाई जा सके उर्दू फारसी में तबाक़ या तबक़ कहलाती है। इसका हिन्दी या देशी रूप तबकड़ी भी हैं । ताप या तपाने से इस शब्द की रिश्तेदारी छुपी नहीं है।
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प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:16 AM लेबल: god and saints
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18 कमेंट्स:
बहुत खूब.. वैसे तो तप कोई भी हो कठिन होता है. लेकिन तब भी मुझे लगता है कि तप के तीन प्रकारों में वाचिक तप सबसे कठिन है :)
यदि ताब से अलग है तो क्या ताव भी कुछ-कुछ इसी भाव से संबंधित नहीं ...
एक शब्द है पश्चाताप, पश्च का मतलब पीछे का, पूर्व आगे होता है जहाँ से सूर्य उगता है, पश्च पीछे, यानी अतीत का ताप, पिछली करनी का अपराध बोध, ग्लानि में जलने का भाव.
आग और गर्मी पर आप पूरी सिरीज़ चला सकते हैं, आग, दाह, दहन, धाह, दग्ध, दहक, धधक...धू धू, धुआँ
अग्नि से ही इग्निशन बनता है जिसके बारे में सोचे बिना भारत में हर रोज़ इग्निशन ऑन करके लाखों स्कूटर स्टार्ट होते हैं.
@अनामदास
शुक्रिया साहेब, हमेशा की तरह कुछ खास लेकर आए हैं आप। अलबत्ता पश्चाताप समेत बहुत सारे उपसर्गों और प्रत्ययों के साथ और भी शब्द समेटने थे मगर फिर वहीं समय का राग अलापना चाहूंगा कि वक्त नहीं था...कोशिश यही कि विषय विमोचन हो जाए और कामचलाऊ विवेचन हो जाए...संतोषजनक काम तो अभी तक किया ही नहीं है। आप जैसे सुबुद्ध लोग आते हैं , ये गर्व की बात है हमारे लिए मगर रोज़ ही खुद का लिखा पढ़ कर शर्मिंदा होता हूं ....क्या करूं ....इससे ज्यादा वक्त दे नहीं सकता ...
हम तो तपाक से ही पहुंचते हैं हमेशा आपकी पोस्ट पर अजीत जी। अब यह कहूं कि आप बहुत तप कर रहे हैं तो कहीं तावडे तावडे कही गयी बात न हो जाए। ताव न खाएं, तपे हुए तवे पर आप खूबसूरत टिकडों को सेंक रहे हैं। जारी रहें। शुभकामनाएं।
त से तप और त से ही तर, दोनों एक दूसरे के विपरीत मगर।
Tapah poot deh, Tapaswi ki ,
Tapti nadee, ( Tapti Surya putri thee )
tapish , Santaap,
bahut sare shabd,
aur
Dadhichee jaise Param Tapaswee
sakar ho gaye !
Fir ek baar, interesting Sub.
rgds,
- Lavanya
बहुत अच्छा लिखा है .....जानकारी भी है ...
पोस्ट को बहुत खूब, टिप्पणियाँ सुभान अल्लाह. बहुत जानकारी बढ़ी इस एक पोस्ट और टिप्पणियों से - जारी रखें.
अजित जी,
आज की पोस्ट कुछ ज़्यादा
मन को भा गई.
एक बात बताइए -
आजकल लोगों से 'तपाक' से
मिलने पर अगर वो तवज़्ज़ो न दें
और बरबस 'ताव' आ जाए तब भी
'तापस' बने रहना कैसे सम्भव है ?
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बहरहाल आपके 'अक्षर-तप' का फल
हम सब को मिल रहा है...आभार.
आपकी एकाग्रता ओर निरंतरता को प्रणाम .......सच में आप बधाई के पात्र है.......
बहुत ही बढिया पोस्ट है आज की.तप के तीन प्रकार पता चले.बहुत खूब दादा,हमेशा की तरह.
ज्ञानवर्धक जानकारी।
तप से याद आया सोना भी आग मे तप कर ही खरा होता है।
तीन तरह के तप,
हम इनमे से एक भी तप भली-भांति नही कर पाते, अफसोस!
तपाक शब्द भी तप से ही बना है...ये जानकर आश्चर्य हुआ. इसके पहले कभी इस तरह से नहीं सोचा था!धन्यवाद इतनी अच्छी जानकारी के लिए....
aaj ke daur me mansik tup kitna kathin!!! post sadaa kii bhaanti adhbhut
देर रात शायद सबसे पहले यह पोस्ट मैने ही पढ़ी ..सोचा कल करूंगी टिप्पणी..आज देखा तो ढेर सारी टिप्पणियां..वाह..वाह..। बहुत सारी जानकारी है । ताव न खाया जाए सोचा तो बहुत बार जाता है लेकिन क्या करें आ जाता है।
तप के तीन प्रकार जो आपने बताये हैं उसमें 'शरीर को कृश करना, सुखा देना' वाला अर्थ समाहित नहीं मिला.. साधारणतया तप से यही मतलब निकाला जाता है. धन्यवाद जानकारी के लिए.
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