Monday, September 22, 2008

बालटी किसकी ? हिन्दी या पुर्तगाली की .[बरतन-1]..

BALDE आज जिस आकार की बालटियां भारत में प्रचलित हैं उस आकार के बरतनों का अतीत में संदर्भ नहीं मिलता जबकि बटलोई या घड़ेनुमा बरतन ही भारत में जल संग्रहण के लिए प्रचलित रहे हैं। पुर्तगाली बाल्डे का आकार वैसा ही होता है जैसी आमतौर पर बालटी होती है।
रोज़मर्रा के कामकाम में कई तरह के उपकरणों का हम प्रयोग करते हैं जिनके नामों के बारे में हम कभी इस नज़रिये से नहीं सोचते कि कौन सा शब्द देशी है या कौन सा विदेशी। यहां तक कि विदेशी मूल के शब्द की ध्वनि और उच्चारण से यह तक आभास नहीं होता कि वह कितनी दूर का सफर तय कर के हिन्दीभवन में दाखिल हुआ है। सीधी सी बात है , जो एक बार हिन्दी का हो गया , हमेशा के लिए हो गया।
बाल्टी भी एक ऐसा ही शब्द है । बाल्टी या बालटी का मतलब होता है पीतल, लोहे या अन्य किसी धातु की बनी डोलची या डोल जिसमें पानी भरा जाता है । बालटी रसोई घर और स्नानगृह दोनों ही स्थानों पर ज़रूरी है। रसोई की बालटी आमतौर पर स्टील की होती है। पुराने ज़माने में तांबे और पीतल की बालटियों का चलन था । नहाने का पानी रखने के लिए आमतौर पर लोहे की बालटियां काम में ली जाती हैं । यूं साफ-सुथरी लोहे की बालटियों में भी पीने का पानी रखा जाता है। बालटी शब्द मूलतः हिन्दी का नहीं बल्कि पुर्तगाली ज़बान का है। इसकी आमद भारत में तब हुई जब सोलहवीं सदी के उत्तरार्ध में बंगाल के तटवर्ती इलाकों में पुर्तगालियों ने कोठियां बनाई। पुर्तगाली भाषा में बकेट के लिए बाल्डे [balde] शब्द है । बांग्ला में इसका उच्चारण बालटी हुआ । वहीं से यह हिन्दी में भी चला आया । कुछ संदर्भो में इसे बाटी अर्थात कटोरी से उत्पन्न भी बताया जाता हैं। गौरतलब है कि मालवा, राजस्थान और उप्र के कुछ हिस्सों में देगची या घड़े के लिए बटलोई शब्द भी बोला जाता है। बटलोई का विकासक्रम यूं रहा है- वर्त+लोहिका > वट्टलोईआ > बटलोई । वर्त यानी गोल और लोहिका यनी लोहे का पात्र । पंजाब में भी कटोरी या देग के लिए बट्टी या बाटी शब्द का प्रयोग किया जाता है। इन बरतनों के पेंदे भारी होते हैं ताकि पकाते समय पदार्थ जल न जाए।  संभव है कि बाल्टी शब्द का जन्म इससे ही हुआ हो। मगर पानी भरने वाली बालटी के अर्थ में तो पुर्तगाली बाल्डे से ही व्युत्पत्ति ज्यादा सही लग रही है। मराठी में भी कटोरी के लिए वाटी शब्द का प्रचलन है। दूसरी बात यह कि आज जिस आकार की बालटियां भारत में प्रचलित हैं उस आकार baltiके बरतनों का अतीत में संदर्भ नहीं मिलता जबकि बटलोई या घड़ेनुमा बरतन ही भारत में जल संग्रहण या खाना बनाने के लिए प्रचलित रहे हैं। पुर्तगाली बाल्डे का आकार वैसा ही होता है जैसी आमतौर पर बालटी होती है।
रहदी इलाकों, जम्मू-कश्मीर पंजाब और पाकिस्तान में बाल्टी चिकन और बाल्टी मीट भी  खास किस्म के ज़ायके हैं जिनका रिश्ता बाल्टिस्तान से है। बाल्टीस्तान अब पाक अधिकृत कश्मीर का हिस्सा है । किसी ज़माने में यह जम्मू-कश्मीर के तहत आता था । मीट पकाने की यहां की जो तरकीबें हैं वे चीन और तिब्बती रसोई से मिलती-जुलती हैं और इनका ज़ायका भी कुछ अलग है। अंगरेजों ने इसे बाल्टी मीट , बाल्टी गोश्त , बाल्टी मुर्ग़ जैसे नाम दिये। पंजाब में यही चीज़ें कड़ाही मीट के नाम से जानी जाती हैं जबकि बाल्टिस्तान में कुछ मिलते जुलते अंदाज़ वाली भारी पेंदे वाली कड़ाही में यह मीट पकाया जाता हैं। अंगरेजों ने इसे बाल्टीपैन नाम दिया जिसे गोश्त पकाने वाली बाल्टी के तौर पर लिया जाने लगा। यूं बाल्टिस्तान का पुर्तगालियों के लाए इस शब्द से कोई लेना देना नहीं है। संभव है तवे या कड़ाही के लिए प्रचलित बाल्टी शब्द की व्युत्पत्ति वर्तलोहिका वाली बटलोई , बाटी, बट्टी शब्द श्रंखला से हुई हो।

15 कमेंट्स:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

अजित भाई,
अरे वाह !
आज तो स्नान घर से रसोई घर का रिश्ता भी पता चल गया ~~
और पुर्तगाली शब्द अब पूरी तरह भारतीय हो गया है !

Udan Tashtari said...

क्या बात है..कैसी कैसी जानकारी देते हैं.

विजय गौड़ said...

भाषा विग्यान पर आपकी मौलिक व्याख्यायें अनूठी हैं। निश्चित ही आपका यह ब्लाग भविष्य में भाषायी सवालों के लिए नेट पर संदर्भ के लिए पाठकों को एक आयाम देगा। मेरी शुभकामना।

संगीता पुरी said...

भाषा से संबंधित इतिहास पर जानकारी देने के लिए , नई नई बातों की ओर हमारा ध्यानाकर्षण कराने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

दिनेशराय द्विवेदी said...

बाल्टी के बारे में बहुत जानकारी मिली। है बहुत काम की चीज। एक दिन भी इस के बिना गुजारा नहीं।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

इतनी सीधी बात की बाल्टी भर
सौगात के लिए आभार.

अजित जी,
शब्द संसार के वैभव को आप कितना
श्रम पूर्वक...सजा संवार कर साझा
कर रहे हैं निरंतर ! मैं जनता हूँ कि
सफ़र की तारीफ़ की कोई दरकार नहीं है,
लेकिन, मैं प्रशंसा नहीं शुभाशंसा के भावों
पर नियंत्रण नहीं कर पाता हूँ....जो कुछ
श्रेष्ठ... उत्तम ... महत् और प्रभावशाली है उससे
पृथक रहना सम्भव कैसे हो सकता है ?...आख़िर
प्रभावित होना भी तो जीवंतता का लक्षण है न ?
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साभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

...और वह सीधी बात है
आपका यह कथन...

सीधी सी बात है ,जो एक बार हिन्दी का हो गया ,हमेशा के लिए हो गया।
=================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया बात बतायी आपने इस लेख में .. अच्छा लगा बालटी के विषय में जानना

mamta said...

बाल्टी ज्ञान अच्छा लगा ।
शुक्रिया ।

रंजन (Ranjan) said...

हमें पता ही नहीं था.. कि बाल्टी की भी कहानी है..

धन्यवाद

रंजना said...

आप तो स्कूल हैं... आज की हाजरी में एक और नया ज्ञानवर्धक शब्द व्युत्पत्ति बोध मिला.aabhaar.

रजनी भार्गव said...

दिलच्स्प जानकारी।

Abhishek Ojha said...

हमारे पास चन्द्रजी की तरह लेखन कला तो नहीं... पर इतना जरूर कहेंगे की कमाल की जानकारी देते हैं आप. शीर्षक से लेकर आखिरी लाइन तक...

दीपा पाठक said...

शब्दों का सफर ऐसी जगह जहां हर बार आ कर लगता है कि दिमाग की एक और खिङकी खुली। इस श्रमसाध्य कार्य के लिए हार्दिक धन्यवाद। बने रहें।

Anonymous said...

आज के सफर में लोहे की बालटी की याद दिला दी जो आजकल घरों से गायब ही हो गयी है ,साथ ही साथ पीतल की बालटी भी .. ,इनका स्थान ले लिया है रंग बिरंगी प्लास्टिक व स्टील की बालटियों ने . । मराठी में बादली भी कहते हैं इसे..।

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