Monday, November 16, 2009

भरी जवानी, मांझा ढीला [मध्यस्थ-4]

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ती र्थंकर, ऋषि या सन्त के अर्थ में मुनि शब्द हिन्दी के प्रचलित शब्दों में शुमार है। मुनि का अर्थ होता है महात्मा, सन्त, महर्षि, सन्यासी आदि। मुनि शब्द बना है मन् धातु से जिसकी व्यापक अर्थवत्ता है और इसका प्रसार भारोपीय परिवार की कई भाषाओं में हुआ है। उसकी चर्चा फिर कभी, फिलहाल मुनि की बात जिसमें धर्मपुरुष, चिन्तक, विचारक के भाव भी निहित हैं। मन् का अर्थ होता है सोच-विचार करना, पूजा-आराधना करना, विश्वास, कामना, चिन्तन, देखना, आदर आदि करना। चित्त, हृदय के अर्थ में हिन्दी का मन शब्द भी इसी मूल का है। इस तरह प्रकारांतर से मुनि शब्द में विचारक, चिन्तक, दार्शनिक, ध्यानी, तपस्वी जैसे अर्थ भी स्थापित हुए। यह भी समझा जाता है कि मुनि का रिश्ता मौन शब्द से है। यह इसी मूल का शब्द है। मन् में निहित विचार, चिन्तन जैसे भावों से स्पष्ट है कि व्यक्ति जब चुप रहता है तभी सोचता है, सो मौन से मुनि का रिश्ता सही है। मुनि अपनी तपश्चर्या करते हुए अधिकांश समय मौन-साधना में ही व्यतीत करते है। संस्कृत में मौनिन् शब्द है जिसका अर्थ हुआ चुप रहने की साधना पर अडिग सन्यासी। मुनि अथवा साधु। आप्टेकोश में मौन की व्युत्पत्ति मुनेर्भावः बताई गई है। मुनि से बने शब्दों में मुनिवर, मुनीश, मुनीश्वर जैसे शब्द भी हैं।
alhbdblog 019न् धातु से ही बना है मध्य शब्द जिसका प्रचलित अर्थ है बीच का। यह बीच दरअसल किन्ही दो बिन्दुओं के दरमियान होता है इसलिए इसमें अंदर वाला भाव भी शामिल है। मन अर्थात चित्त की स्थिति शरीर के भीतर समझी जाती है। वैसे भी मन की सत्ता भौतिक कम, आध्यात्मिक अधिक है। जो कुछ भी गूढ़, अबूझ है वह सब आभ्यंतर का विषय है। स्थूल, दृष्यमान और ज्ञात की स्थिति बाह्य मानी जाती है। सो मन, अंदर का विषय है इसलिए इससे बने मध्य में भीतर का भाव भी निहित है। संस्कृत के मध्य का अर्थ बीच का, मध्यवर्ती होता है। मध्यस्थ का अर्थ हुआ जो मध्य में स्थित हो। व्यक्ति या पदनाम के अर्थ में मध्यस्थ निश्चित तौर पर न्यायकर्ता, पंच या प्रधान की जगह पर विराजमान नज़र आता है। तराजू पर गौर करें। उसका संतुलन भी मध्य में ही स्थित होता है। शरीर का आधार मुख्यत पैर हैं, पर संतुलन कमर से ही कायम होता है। इसीलिए उसे मांझा कहा जाता है। मध्यस्थ बिचौलिया भी है। दलाल भी है और ब्रोकर भी। नाविक भी नाव का मुखिया होता है, इसलिए उसे मांझी कहा जाता है।
प्राकृत में मध्य (मध्यम) से मज्झम, मज्झियम, मज्झिम जैसे रूप बनते हैं जिनसे हिन्दी में माँझा, मँझा जैसे शब्द बने। नदी के कछार, तटवर्ती या दोआब का रेतीला इलाका। पंजाब के एक क्षेत्र को माझा कहा जाता है। पंजाब नाम से जाहिर है, Punjabdoabs यह पज+आब अर्थात पांच नदियों रावी, चनाब, सतलुज, व्यास और झेलम का क्षेत्र है, इसीलिए इसे प्राचीन काल में पंचनद कहा जाता था। नदियों के बीच पड़नेवाले क्षेत्र को मांझा (माझा) कहा जाता है। पंजाब में  व्यास और सतलज के बीच का क्षेत्र माझा कहलाता है। मध्य में कटिप्रदेश यानी कमर का हिस्सा, पेट, नितंब, कूल्हा आदि भी होता है। मांझा शब्द में कटि प्रदेश का अर्थ भरी जवानी, ढीला मांझा वाली कहावत से स्पष्ट होता है। यहां मांझा का अर्थ पतली कमर से है। गौरतलब है पतली कमर पर अक्सर वस्त्र ढीले ही रह जाते हैं मांझा ढीला रहता है। बीच की संतान को मंझला या मंझली कहा जाता है। माध्यमिक यानी मध्यम दर्जे का, किसी विकल्प या जरिया के लिए माध्यम, बीच की उंगली के लिए मध्यमा जैसे शब्द इसी मूल से उपजे हैं। दोपहर को सूर्य ठीक सिर के ऊपर यानी आसमान के बीचोंबीच होता है इसलिए परिनिष्ठित हिन्दी में दोपहर के लिए मध्याह्न शब्द चलता है।

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23 कमेंट्स:

Baljit Basi said...
This comment has been removed by the author.
प्रवीण त्रिवेदी said...

ज्ञान वर्धक जानकारी !!
आभार!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आप जबरदस्त शोध करते जा रहे हैं। मन्त्रमुग्ध होकर पढ़ता रहा हूँ। कई बार तो टिप्पणी करना भी भूल गया। वाह। यह दस्तावेज एक मील का पत्थर साबित होगा- शब्द संपदा के बटोहियों के लिए।

Udan Tashtari said...

नई तरह की जानकारी!

Baljit Basi said...

The region in between any two rivers of the Punjab is not called 'Manjha', only the one between Ravi and Beas has this name and that too is written and prononced accordingly as 'Majha'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भरी जवानी, मांझा ढीला।
कंगाली में, आटा गीला।।

व्याख्या सुन्दर ढंग से की है।

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
आपका कहना ठीक है। पंजाबी में जाकर मांझा की अनुनासिकता गायब हो जाती है। मगर हिन्दी शब्दकोशों में इसका मांझा रूप ही दिया है। मंझधार भी सही होता है और मझधार भी। मांझा शब्द का अर्थ सिर्फ पंजाबी के संदर्भ में उल्लेखित नहीं है बल्कि भौगोलिक शब्दावली के तौर पर इसे देखा जाना चाहिए। विभिन्न शब्दकोशों में मांझा शब्द को दोआब यानी दो नदियों के बीच का उपजाऊ, समतल क्षेत्र ही बताया गया है और इसी रूप में यहां भी उसका उल्लेख है।

आप जब रावी और व्यास के बीच के क्षेत्र को माझा कहते हैं तब आपके ज़ेहन में सिर्फ भारतीय पंजाब होता है जबकि ऐतिहासिक रूप से अखंड पंजाब, जिसमें सिंध समेत छह नदियां थीं, वह समूचा क्षेत्र जिसे मध्य पंजाब कहा जा सकता है, माझा कहलाता था। इन पांचों नदियों के बीच का क्षेत्र अलग अलग दोआब के नाम से जाना जाता रहा है जैसे सतलज और रावी के बीच का इलाका विभाजन से पूर्व बड़ी दोआब कहलाता था। इसका अधिकांश हिस्सा अब पाकिस्तान में है।

Mansoor ali Hashmi said...

मन- तो में भी था मुनि बन न सका,
-सुर था बे-ताल कवि बन न सका,
हो के बातूनी गुणी बन न सका,
मंझा ढीला था खली* बन न सका.

*पहलवान

-मन-सुर अली हाशमी

अजित वडनेरकर said...

@मंसूर अली हाशमी
क्या बात है हाशमी साब, मज़ा आ गया।
शब्दों के सफर में दरअसल आप ही शब्दों से खेलते हैं।
बहुत खूब...

Himanshu Pandey said...

सब कुछ विस्मित करने वाला होता है यहाँ । खुलते हैं अनगिनत दरवाजे शब्दों के । आभार ।

अर्कजेश said...

बेहतरीन विश्लेषण ! साथ ही भरी जवानी, ढीला मांझा का अर्थ स्पष्ट हुआ और हाशमी जी की टिपण्णी के तो क्या कहने !

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सार्थक और शोधपरक विश्लेषण करते हैं आप. धन्यवाद आपका.

गौतम राजऋषि said...

अहा! माझा के नये रंग-रूप ने मोहित किया...

RDS said...

वडनेरकर जी, इसी सन्दर्भ से जुडा एक शब्द मांझी भी है । मझधार से तो धारा के मध्य होने का आशय समझ में आता है परंतु क्या मांझी ( नाविक / खेवट या केवट ) की भी उत्पत्ति धारा के मध्य से हुई है ? या फिर कोई और आदि शब्द है ?

- सादर

- rds

अजित वडनेरकर said...

आरडी भाई,
मांझी का उल्लेख है। मंझधार में होने से तो मांझी स्पष्ट है किंतु उसका अंतर्निहित अर्थ यह भी है-

"नाविक भी नाव का मुखिया होता है, इसलिए उसे मांझी कहा जाता है।"

साभार

मनोज कुमार said...

दिलचस्प

निर्मला कपिला said...

बहुत बडिया जानकारी धन्यवाद्

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

पतंग भी उड़ाने वाले धागे को हमारे यहाँ मांझा कहते है और हमारे बरेली का मांझा विश्व प्रसिद्ध है

शरद कोकास said...

एक शब्द मज्झिम निकाय भी है । यहाँ भी आशय मध्यमार्ग से ही है । अब एक शंका रह गई है पतंग उड़ाने मे जो मांझा उपयोग किया जाता है वह कहीं इससे सम्बन्धित है कया ?

Abhishek Ojha said...

पतंग वाली बात मेरे भी ध्यान में आई. 'शरतचंद्र का बचपन' में पढ़ा था... शरतचंद्र का 'मांझा' विश्वविजयी था.

Asha Joglekar said...

मौन रह ही कहां पाते हैं मुनि बनना तो दूर चुप रहना भी मुश्किल है । अपनी बात वक्त बेवक्त कहना ही हमारी फितरत है ।
मन से ही मध्य मध्यम मांझा माझा आदि निकले हैं नई जानकारी ।

Baljit Basi said...

I have to offer two suggestions/ corrections:1.I dont know from where you have picked up 'Bari'(in the sense of large)Doab.If it is from some Hindi writing, it is wrongly spelt there, if it is from some English source may be you have misunderstood it.The actual word can be written in English as "BAAREE" where 'R' is prononced as in 'Road'. So 'Bari' can be rhymed with 'Yari'(friendship).The word 'bari'is made from the names of two rivers Beas and Ravi, B from beas and R from Ravi.Similarly we have words for other Doabs like Bist(Beas+Sutluj) doab;Rachna(Ravi+Chenab)doab,Jech(Jhelum+chenab) doab.Anyway all these terms are now better undestood with reference to river-canal irrigation system introduced by Britishers and are originally said to be coined by Raja Todar Mal.These words are combination of the first letters, in the Persian alphabet, of the names of the rivers that bound the Doab.2.The word Sutlej( from Sanskrit 'Sutudri' meaning hundred currents)is written both as 'Sutlej' as well as 'Sutluj'but always pronounced as 'Sutluj'rhyming to 'Satyug'!The British people spelet our place names wrongly.
We have scores of occurrences of the word 'Manjh'in Guru Granth Sahib almost always meaning 'in' e.g."tīd lavai manjh bāre"(Guru Nanak)meaning 'The crickets are chirping in the wastland/forest.'
The word 'Majheru' in Punjabi refers to axle of the spinning wheel.'Manjhli' is sheet covering the lower body.

अजित वडनेरकर said...

@ बलजीत बासी
बड़ी दोआब पर आपकी बात से सहमत हूं। मैं इसे समझ नहीं पाया था, अलबत्ता मांझा शब्द दोआब के लिए ही है, इसकी पुष्टि कई शब्दकोश करते हैं। आज के पंजाब का माझा का विस्तार भी अतीत में बहुत ज्यादा था।
सतलुज या सतलज का संस्कृत रूप शतद्रु है, इसका एकाधिक बार उल्लेख शब्दों का सफर में हो चुका है। अभी दो कड़ियां याद आ रही हैं। कृपया देखे-
http://shabdavali.blogspot.com/2009/08/blog-post_23.html
http://shabdavali.blogspot.com/2009/10/3_15.html

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