सुयश सुप्रभ दिल्ली में रहते हैं और अनुवादक हैं। उनका एक ब्लाग है-अनुवाद की दुनिया, जिसके बारे में वे लिखते हैं... हिंदी को सही अर्थ में जनभाषा और राजभाषा बनाने के लिए सामूहिक प्रयत्न की आवश्यकता है। इस ब्लॉग में मैंने हिंदी पर अंग्रेज़ी के अनुचित दबाव, हिंदी वर्तनी के मानकीकरण आदि पर भी चर्चा की है... यह आलेख उन्होंने हिन्दी भाषा समूह पर सदस्यों की राय के लिए डाला था। उनसे पूछ कर हम इसे यहां प्रकाशित कर रहे हैं।
अं ग्रेज़ी के संपर्क में आकर हिंदी सालों से बदलती आई है और अब सवाल यह उठता है कि क्या इस बदलाव से हिंदी हमेशा समृद्ध होती है या इसके कुछ\ नकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। संसार की हर भाषा दूसरी भाषाओं से प्रभावित होती है और हिंदी कोई अपवाद नहीं है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि आर्थिक रूप से कमज़ोर भाषाएँ अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं से प्रभावित होने के बदले आतंकित होने लगती हैं। संसार की हर भाषा के व्याकरण में एक बात बिल्कुल स्पष्ट होती है कि बहुवचन बनाने के लिए दूसरी भाषा के व्याकरण का पालन नहीं किया जाता है। लेकिन हिंदी में ऐसा नहीं हो पाता है। हिंदी व्याकरण के अनुसार स्कूल के दो बहुवचन बन सकते हैं - स्कूल या स्कूलों। आज लोग 'स्कूल्स' जैसा बहुवचन बनाते हैं। यही बात ब्लॉग, वेबसाइट, चैनल आदि शब्दों पर लागू होती है। लोग यह भूल जाते हैं कि ये शब्द हिंदी में विदेशज शब्दों के उदाहरण हैं और विदेशज शब्दों पर भी हिंदी का व्याकरण लागू होता है क्योंकि इन विदेशज शब्दों का मूल भले ही किसी विदेशी भाषा में हो लेकिन हिंदी के शब्द बनने के बाद ये शब्द विदेशी नहीं रहते हैं। मैंने रेडियो-टीवी पर कुछ हिंदी समाचारवाचकों के मुँह से 'जपैन' जैसा उच्चारण सुना है। क्या हिंदी का जापान शब्द उन्हें देहाती-सा लगता है?
अंग्रेज़ी के समृद्ध होने की एक बहुत बड़ी वजह यह है कि इसने संसार की अनेक भाषाओं से शब्द लेने में कभी कंजूसी नहीं की। हिंदी को भी ऐसा ही करना चाहिए। लेकिन उदार होने का मतलब रीढ़विहीन होना नहीं होता है। हमें कुछ मूलभूत सिद्धांतों का पालन अवश्य करना चाहिए। अंग्रेज़ी में जब भारतीय भाषा का jungle शब्द लिया गया तो इसका बहुवचन बनाने के लिए हिंदी व्याकरण का प्रयोग नहीं किया गया। अंग्रेज़ी में jungle का बहुवचन Jungle या junglon (हिंदी के जंगल या जंगलों की तरह) नहीं होता है। हिंदी में कुछ लोग ब्लॉग (कृपया ध्यान दें, मैं अभी हिंदी के ब्लॉग शब्द का उल्लेख कर रहा हूँ।) का बहुवचन ब्लॉग्स बनाते हैं। जब 'ब्लॉग' हिंदी शब्द बन चुका है तो इसका बहुवचन अंग्रेज़ी व्याकरण के अनुसार क्यों बनाया जाता है? यहाँ मैं मौखिक और लिखित भाषा में अंतर को भी स्पष्ट करना चाहूँगा। मौखिक हिंदी में अंग्रेज़ी के कई शब्दों का प्रयोग होता है। हम बोलचाल में ब्लॉग्स, चैनल्स, वेबसाइट्स जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, लेकिन क्या इन प्रयोगों को लिखित भाषा में सही कहा जाना चाहिए? हर भाषा अपने लिखित और मौखिक रूपों में भिन्न दिखती है और हिंदी इसका अपवाद नहीं है।
मैंने कुछ लोगों को अपने आलेखों में चैनलों (बहुवचन में) और चैनल्स का प्रयोग करते देखा है। कभी आप यह वाक्य पढेंगे - "भारत में विदेशी चैनलों के आगमन से दूरदर्शन के दर्शकों की संख्या में कमी आई।" उसी आलेख में आपको यह प्रयोग भी देखने को मिलेगा - "विदेशी चैनल्स के कारण दूरदर्शन को कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है।" मैंने हिंदी के कई विद्वानों से ऐसे प्रयोग के औचित्य के बारे में पूछा है। अधिकतर विद्वान इसे गलत मानते हैं। मुझे मीडिया में भी ऐसे लोग मिले हैं जो ऐसे प्रयोगों को गलत मानते हैं। कुछ लोगों को भाषा के नियमों से संबंधित जानकारी नहीं होती है, लेकिन वे सही नियम जान लेने के बाद अंग्रेज़ी के अंधानुकरण को गलत बताते हैं। ऐसे लोगों की संख्या भी कम नही है जो 'सब कुछ चलता है' का सिद्धांत अपना चुके हैं।
मैं आप सबसे यह जानना चाहता हूँ कि दूसरी भाषाओं से हमारी भाषा में आने वाले शब्दों पर हमें अपनी भाषा का व्याकरण लागू करना चाहिए या नहीं। इस सवाल से जुड़ा एक दूसरा सवाल भी महत्वपूर्ण है : क्या हमें अंग्रेज़ी की विशेष स्थिति को ध्यान में रखते हुए बहुवचन बनाने के लिए अंग्रेज़ी व्याकरण का पालन करना चाहिए?
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37 कमेंट्स:
अंग्रेजी या अन्य भाषा के शब्दों को हिन्दी में लेना अच्छी बात है पर उनका बहुवचन हिन्दी के ही व्याकरण से होना चाहिये।
आज आवश्यकता है कि एक बाबू श्यामसुन्दरदास की।
जो विदेशी शब्दों का हिन्दीकरण कर सकें!
शास्त्री जी से सहमत हूँ...
-विदेशज शब्दों पर भी हिंदी का व्याकरण लागू होता है क्योंकि इन विदेशज शब्दों का मूल भले ही किसी विदेशी भाषा में हो लेकिन हिंदी के शब्द बनने के बाद ये शब्द विदेशी नहीं रहते हैं।
---मैं इस विचार से पूर्णतः सहमत हूँ। यह लेख ब्लाग जगत में विदेशज शब्दों पर सार्थक चिंतन है और अत्यंत उपयोगी है। इसके लिए सुयश सुप्रभ बधाई के पात्र हैं। हमें इस अनुसार अपने लेखन में सुधार करना चाहिए।
शब्द किसी भी भाषा से आए हों जिस भाषा में उन्हें प्रवेश मिलता है उन्हें उसी भाषा के व्याकरण का पालन करना होता है। स्कूल को स्कूल्स कोई अंग्रेजी दां ही कह सकता है। हिन्दी में तो वह सकूल और सकूलों हो जाता है। ब्लाग भी ब्लागों हो जाएगा। ब्लागिंग भी ब्लागरी या ब्लागीरी हो जाएगी।
बहुत ही बढ़ियां पोस्ट । चाहे शब्द किसी भी भाषा से हो, उसका हिंदीकरण होने के बाद व्याकरण भी हिन्दी का ही पालन होना चाहिये । आभार
स्पष्ट बात है. सहमत हूँ. भाषा सुधार और इसका प्रचार सभी हिंदी भाषियों को जरुर करना चाहिए.
इसी सन्दर्भ में एक पंक्ति अर्ज करता हूँ -
एक से दो भलें दो से भले बहुवचन
बहुवचन के हित में बोलो सत्यवचन
- सुलभ
अपनाये गए शब्दों को को उसी भाषा के व्याकरण में प्रयोग करना चाहिए जिस भाषा में उन शब्दों का प्रयोग हो रहा है ।
लेकिन बोलचाल की हिन्दी में अंग्रेजी का प्रयोग इतना अधिक होता है कि अपनाये गए शब्दों का निर्धारण मुश्किल है । बोलचाल में लोग लेडी का बहुवचन लेडियों नहीं बल्कि लेडीजों का प्रयोग करते हैं ।
एक बात और हिंदी में भी बात करते समय लोग राम को बिगाडकर रामा कहते हैं । राम कहेंगे तो पिछडे मोने जाऍंगे आदि आदि ।
सच है। जो शब्द जैसे अपनाये गये हैं उन पर व्याकरण उसी भाषा का लागु हो तो बेहतर लगता है सुनने में भी, लिखने में भी और बोलने में भी। इस पोस्ट पर नजर नहीं पड़ती शायद जो यहां न देख पाता...शुक्रिया वडनेरकर जी सुयश जी की इस पोस्ट को यहां लगाने के लिये।
व्याकरण के नियम उसी भाषा मे हों जिसमे वो लिया गया है वर्ना अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है.
रामराम.
अजित जी, सब तरह के प्रयोग्स (?) हों। जो टिकेगा सो चलेगा! अन्यथा देखें तो तुलसी की भाखा के सामने हम लोगों के लेख की भाषा तो गरीब सी नजर आती हैं!
और मेरा स्वप्न है कि मैं तुलसी का १/१००० भी हो पाता!
मैं आपके आलेख में व्यक्त किये गए विचारों से सहमत हूं। कोई विवाद नहीं, एक विचार रखना चाहता हूं। विनम्रता के साथ। मैं व्याकरण का विशेषज्ञ भी नहीं हूं। पर राजभाषा के क्रियान्वयन से जुड़ा हूँ। मैं पहले फिर से स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैं भी यह मानता हूं कि हिन्दी का ही व्याकरण अपनाया जाना चाहिए।
पर यहों जो उदाहरण दिए गये हैं, हो सकता है कि उन्हें राजभाषा के वैयाकरणवेत्ताओं ने अभी तक राजभाषा की शब्दावली में जगह न दिया हो। तब तक की स्थिति के लिए राजभाषा में नियम है कि उन शब्दों को आप वैसा ही बोलें जैसा अंग्रेजी में बोलते हैं और लिखने वक़्त वैसे ही देवनागरी में लिखें। इसलिए शायद Channelsचैनेल्स Blogsब्लॉग्स को देवनागरी में वैसा चैनेल्स ब्लॉग्स लिखा जाता है।
व्याकरण क्या है ............. एक विषय जो रो रो कर पास करना है
हमे तो अब याद भी नहीं व्याकरण क्या होता है । धन्यवाद इस आलेख के लिये
@मनोज कुमार
राजभाषा के वैयाकरणवेत्ताओं ने अभी तक राजभाषा की शब्दावली में जगह न दिया हो। ('.... जगह न दी हो|' सही प्रयोग होगा.)
राजभाषा क्रियान्वयन से जुड़े लोगों से भाषा में इतनी शुद्धता की उम्मीद तो की ही जा सकती है.
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व्याकरण के नियम अनऔपचारिक और जनमानस में रूढ़ होते हैं. इन्हें सरकार की किसी नियम पुस्तिका के चश्मे से ही नहीं देखा जा सकता, और देखा भी नहीं जाना चाहिए. जहाँ तक शुद्धता सम्बन्धी मुद्दे का प्रश्न है, यह मुद्दे भाषा के जानकारों, विद्वानों और बोलने वालों पर छोड़ दिए जाने चाहिए. सरकार और बाज़ार ही भाषा को नष्ट-भ्रष्ट करने के सबसे बड़े अपराधी हैं.
किस किस बात पर और कब तक हम सरकार के भरोसे रहेंगे, क्या सरकार में बैठे लोग ईश्वर हैं?
सरकारी कामों की गति सब जानते ही हैं, जब तक ब्लॉग जैसे शब्दों पर इनकी नज़रे इनायत होगी. ब्लॉग पुराने ज़माने की बात हो चुका होगा और इसके आगे की तकनीक आ चुकी होगी.
भारत में विभिन्न प्रकार के टीवी चैनल आए उन्नीस वर्ष बीत गए, पर आज भी चैनल शब्द 'राजभाषा की शब्दावली' की प्रतीक्षा सूची में ही टंगा है.
इस ब्लाग की "पोस्टों' को बहुत ध्यान से पढ़ता हूँ।
सही कहा भाई
वैयाकरंणवेत्ता और अनऔपचारिक के स्थान पर वैयाकरण/व्याकरणवेत्ता,अनौपचारिक चलेंगे।
लडकी किसी भी भाषा, जाति ,धर्म या देश की हो, विवाह के बाद उसे ससुराल के ही नियमों का पालन करना होता है. तब शब्द वे चाहे जिस देश या भाषा के हों, यदि उन्हें हिन्दी ने अपनाया है तो उन पर हिन्दी व्याकरण के ही नियम चलने चाहिये.अमूमन लोग चलाते भी हैं.अर्कजेश जी आपकी बात सही है लेकिन ज़रा गौर करें की लेडीज़ कहने वाले लेडीज़ का भी बहुवचन बनाते हुए ’लेडीज़ों का काम’ या ’लेडीज़ें खडी हैं’ जैसे भाषाई प्रयोग करते हैं.
**राजभाषा क्रियान्वयन से जुड़े लोगों से भाषा में इतनी शुद्धता की उम्मीद तो की ही जा सकती है.
-- अशुद्धि से अवगत कराने के लिए थैंक्स।
**किस किस बात पर और कब तक हम सरकार के भरोसे रहेंगे, क्या सरकार में बैठे लोग ईश्वर हैं?
-- नहीं, नहीं। मेरे अनुसार।
** सरकार और बाज़ार ही भाषा को नष्ट-भ्रष्ट करने के सबसे बड़े अपराधी हैं.
--- जी।
**भारत में विभिन्न प्रकार के टीवी चैनल आए उन्नीस वर्ष बीत गए, पर आज भी चैनल शब्द 'राजभाषा की शब्दावली' की प्रतीक्षा सूची में ही टंगा है.
-- जो चैनल केन्द्रीय सरकार के अधीन नहीं हैं उन पर राजभाषा के नियमों को मानने की बाध्यता नहीं है।
** हिंदी को सही अर्थ में जनभाषा और राजभाषा बनाने के लिए सामूहिक प्रयत्न की आवश्यकता है।
--- मैंने तो यह पढ़कर थोड़ी सी बात रखी थी यह कहते हुए कि मैं आपकी बातों से सहमत हूं। क्या पता था कि सर मुड़ते ही ओले पड़ेंगे।
मैं इससे भी सहमत हूं--
**व्याकरण के नियम अनऔपचारिक और जनमानस में रूढ़ होते हैं. इन्हें सरकार की किसी नियम पुस्तिका के चश्मे से ही नहीं देखा जा सकता, और देखा भी नहीं जाना चाहिए. जहाँ तक शुद्धता सम्बन्धी मुद्दे का प्रश्न है, यह मुद्दे भाषा के जानकारों, विद्वानों और बोलने वालों पर छोड़ दिए जाने चाहिए.
आपकी हर पोस्ट बड़े ही ध्यान से पढ़ते हैं पर कभी अपने को इतना समर्थ नहीं समझा कि टिप्पणी दे पाते.
आज हिंदी व्याकरण की बात दिखी तो खुद को रोक नहीं सके. हिंदी भाषा के साथ खुद हिंदी वालों ने ही अत्याचार सा किया है.
अब देखिये हाइजैक को यदि हाइजैक ही कहा जाये तो हर किसी के लिए समझना आसन है और यदि हिंदी में ही बोलना है तो विमान अपहरण भी कह सकते हैं पर नहीं हिंदी में शब्द बनाया गया - अपचालन- कौन याद रखे और कौन पुकारे? बस रह गया ये शब्द हिंदी शब्दकोशों में बंद.
हिंदी को सरल करने की जरूरत है.
सच्चाई तो यह है कि अंग्रेज़ी शब्दों का हिन्दीकृत रूप प्रयुक्त करने में मूढ लोग डरते हैं । उनका अहं रोकता है । अज्ञानता न लगे और देहातीपन सिद्ध न हो जाये यही सब रुकावटें हैं । ऐसे लोग अंग्रेज़ी शब्दों का हिन्दी अनुवाद करते समय भी अकसर खिल्ली के मिज़ाज़ में आ जाते हैं । यह एक सामान्य मानसिक विकृति है जो अहंजन्य है । टी वी के उद् घोषकों का "जपैन" बनाकर बोलना यही दर्शाता है । कुछ तथाकथित पंडितों के दुराग्रह के चलते हिन्दी के सरल सहज शब्द चलन में नही आ पा रहे हैं जिससे व्याकरण दुष्प्रभावित होती है। अपनी सामान्य बुद्धि अनुसार मेरा तो यही मत है ।
भाऊ, ऐसे ही चेताते रहें, हम आगे सतर्क रहेंगे।
बेरोजगारी के जमाने में हम एक सरदारन को ट्यूसन पढ़ाया करते थे। भोजपुरी और हिन्दी संस्कार के कारण 'पोर्तुगल' नहीं 'पुर्तगाल' बोला करते थे। बेचारी सरदारन हँसी रोकते रोकते लाल हो जाती। एक दिन पूछे तो पता चला। उस दिन जाति और वर्ग पर पढ़ाना था। ऐसी जटिल अंग्रेजी झाड़े कि वह आँख फाड़ देखती ही रह गई। :)
हिन्दी में महिला के लिए लेडी प्रयोग पर मुझे लेंड़ी शब्द याद आता है। बहुवचन होगा - लेंड़ियों। पश्चिमी उत्तर प्रदेश या हरियाणा में कहीं देखा भी था - घोर अनर्थ। ऐसे 'प्रयोग्स' न किए जाँय तो ही बेहतर।
अच्छी बहस, कठिन काव्य के प्रेत प्रेतनियों द्वारा -हा हा !
व्याकरण अभिव्यक्ति के सहज प्रवाह को बाधित भी करता है !
तब चयन किसका हो -सहज अभिव्यक्ति का या व्याकरणीय बोझ से कुढती कराहती भाषा का !
स्कूलों ,ब्लागों और लेडीज के बीच कौन भाषा पैठ /घुसपैठ बना रही है और क्यूं ?
भैया बस वर्तनी का दोष जरूर ध्यान में रखे -बाकी सब कुछ चलेला !
क्यों ,अजित ओह सारी ,अजीत भाई !
अच्छी बहस, कठिन काव्य के प्रेत प्रेतनियों द्वारा -हा हा !
व्याकरण अभिव्यक्ति के सहज प्रवाह को बाधित भी करता है !
तब चयन किसका हो -सहज अभिव्यक्ति का या व्याकरणीय बोझ से कुढती कराहती भाषा का !
स्कूलों ,ब्लागों और लेडीज के बीच कौन भाषा पैठ /घुसपैठ बना रही है और क्यूं ?
भैया बस वर्तनी का दोष जरूर ध्यान में रखे -बाकी सब कुछ चलेला !
क्यों ,अजित ओह सारी ,अजीत भाई !
मुझे लगता है कि आमतौर पर हिंदी व्याकरण के नियम अंगरेजी शब्दों के इस्तेमाल पर लागू नहीं किए जा सकते। लेकिन यदि अंगरेजी का शब्द हिंदी में लिया जा चुका है तो उसे बहुवचन में कहना भी सही होगा। नियम कायदे की बात तो नहीं पता पर स्कूलों, जजों, बैंकों, चैनलों आदि शायद सही हैं। चैनल के लिए हिंदी का कोई शब्द है क्या?
रही बात विदेशी शब्द के उच्चारण या लिखित स्वरूप की तो Canada वाले अपने देश को कैनेडा कहते हैं तो हमें भी यही कहना होगा न कि उसके हिज्जों को देखकर उसका हिंदीकरण कर देना चाहिए ..यानी कनाडा ....नियम पता नहीं लेकिन मैं इसे गलत मानता हूं। मैंने बरसों खेल के पेज पर शीर्षकों में कैनेडा ही लिखा और किसी ने आपत्ति नहीं की। हिंदी को जैसे बोलते हैं वैसे ही लिखते हैं तो जब दूसरी भाषा के शब्द को हिंदी में लिखा जाए तो वैसा ही क्यों न लिखा जाए जैसा उसे बोला जाता है। असल बात तो संवाद की है न। बहरहाल यह भी सच है कि हिंदी व्याकरण के अनेक नियम आज आप्रासंगिक हो चुके हैं और उन्हें बदल दिया जाना चाहिए।
सुयश सुप्रभ के ब्लाग अनुवाद की दुनिया का लिंक तो दे देते बड़े भाई ...
आदरणीय अजित भैया....
सादर नमस्कार....
आपकी यह पोस्ट बहुत ज्ञानवर्धक और अच्छी लगी... मैंने आपकी हर पोस्ट का प्रिंट आउट निकाल के फाइलिंग कर ली है.... रात में सोये वक़्त हर पोस्ट को ज़रूर पढ़ता हूँ एक एक कर के....
पूर्णतः सहमत हूँ आपसे... हिन्दी में घुल मिल चुके विदेशज शब्दों पर हिन्दी व्याकरण नियम ही लागू होने चाहिए....
मानक हिन्दी का कब तक रोना रोते रहेंगे ? कदम कदम पर जहाँ भाषा बदलती हो वहाँ न केवल हिन्दी बल्कि सभी भाषाओं के शब्द एक दूसरे मे मिक्स होने ही है । अब शुद्ध मराठी मे कहेंगे ..दारा ला कुलूप लावून किल्ली खिश्यात ठेवून घे । हिन्दी प्रदेश मे रहने वाला मराठीभाषी कहेगा " दरवाज्या ला ताला लावून चाबी जेबात ठेवून घे ।" या " मेरे लिये एक कप चहा मंडाना " ऐसे सैकड़ों उदाहरण है ..सो इसे चलने क्यो न दें ..।
भाई, ब्लॉग या चैनल शब्द अगर हिन्दी में प्रयोग करते है तो यह हिन्दी का शब्द तो हो नही जाएगा। फ़िर इसका बहुवचन हिन्दी में कैसे खोजा जा सकता है।
इसी तरह अगर स्कूल की बात कहें तो इसका अनुवाद तो है -विद्यालय । जिसका बहुवचन भी है।
मेरे विचार से तो आम बोल चाल की भाषा जितनी सरल रहेगी, उतना ही अच्छा रहेगा।
आवशक यह नही है की आप कितनी शुद्ध हिन्दी बोलते हैं, बल्कि हिन्दी बोलते हैं या नही।
मुझे लगता है कि जिन विदेशज शब्दों का आमेलन पूरी तरह हिन्दी में किया जा चुका है उनपर शुरू से ही हिन्दी व्याकरण भी लागू हो चुका है। जैसे रेलों, स्टेशनों, कापियों, जजों, ड्राइवरों, बालरों, हालों, बसों, ट्रकों, साइकिलों, स्कूटरों, आदि के प्रयोग से सिद्ध है। जो शब्द अभी ताजे हैं और संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं उनको लेकर कुछ असमंजस हो सकता है। यह भी इनके नियमित प्रयोग के बढ़ने पर अपने आप ठीक हो जाएगा।
कुछ संस्कृतवादियों द्वारा जरूर हिन्दी भाषा को ‘फिरंगी जुबान से बचाकर’ पोंछिटाधारियों की भाषा बनाये रखने का दुराग्रह किया जाता रहेगा। उनके लिए ‘आंग्ल-भाषा’ के शब्दों का आमेलन तो कठिन होगा ही।
वैसे ‘लेडीज एण्ड जेन्ट्स’ को ‘देवियों और सज्जनों’ कहना मुझे भी अच्छा लगता है। लेडी के लिए महिला, औरत, नारी, कन्या, बालिका, प्रमदा, और न जाने कितने शब्द हिन्दी में हैं तो ‘लेडीज’ का हिन्दी भाषा में आमेलन और फिर इसका ‘लेडीजों’ तक का भोंडा प्रयोग कत्तई उचित नहीं है। यह हमारी नकलची प्रवृत्ति और मूर्खता को ही परिलक्षित करता है।
@डॉ. अरविन्द मिश्र: “व्याकरण अभिव्यक्ति के सहज प्रवाह को बाधित भी करता है !
तब चयन किसका हो -सहज अभिव्यक्ति का या व्याकरणीय बोझ से कुढती कराहती भाषा का !”
मैं यह नहीं मानता कि भाषा का व्याकरण उसकी अभिव्यक्ति के लिए बोझ होता है और वह उससे कुढ़ती और कराहती ही है। यह भी नहीं कि भाषा के सहज प्रवाह के लिए व्याकरण का अनुशासन तोड़ देना जरूरी ही है।
आप बढ़िया इश्तरी किए हुए क्रीज लगे फॉर्मल ड्रेस में असहज महसूस करते हों तो कैजुअल पहनिए, लेकिन उसे भी साफ सुथरा रखेंगे तभी अच्छा लगेगा। मैला-कुचैला, गंधाता और फटा हुआ सा कपड़ा भी कुछ लोग मजे से पहनते ही हैं। यह उनका फैशन हो सकता है, लेकिन किस वस्त्र की क्या इज्जत है और देश-काल-परिस्थिति के अनुसार कैसी स्वीकार्यता है यह सहज ही जाना जा सकता है। भाषा का स्वरूप भी कुछ ऐसे ही लक्षण दिखाता है।
@सिद्धार्थ जी , स्वीकार प्रभु ! वैसा न लिखा होता तो किसी सरोकारी का ऐसा वक्तव्य काहे कू आता ?
हिंदी में जो विदेशी शब्द स्वीकार कर लिए गए हैं, उनपर हिंदी व्याकरण के नियम लागू होंगे, अगर ऐसा नहीं होता है तो भाषा में अराजकता फैल जाएगी. कुछ लोग जान-बूझकर हिंदी को जटिल बनाकर पेश करते हैं बेमतलब का नुक्ता आदि का प्रयोग करते हैं जबकि उन्हें मालूम है कि हिंदी में नुक्ता की जरूरत नहीं होती है.
लोग तर्क देते हैं कि राज और राज़ को नुक्ता से नहीं लिखे तो अर्थभेद कैसे होगा-
उनके लिए-
प्लांट- कारखाना
प्लांट - पौधा का अर्थ पूछिए. क्या अंग्रेज दोनों के अर्थभेद में चक्कर खा खाकर घनचक्कर बन जाते हैं.
कृपया नही और नहीं का भेद बताएं।
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