Wednesday, November 25, 2009

बेअक्ल, बेवक़ूफ़, बावला, अहमक़!!!!

feldstein

बुद्धिहीन व्यक्ति के लिए हिन्दी में कई तरह की व्यंजनाएं हैं। मूढ़, मूढ़मति, मूर्ख, बुद्धू जैसे शब्दों के साथ ही अरबी-फारसी मूल के भी कई शब्द इसमें शामिल हैं जैसे बेवकूफ़, नादान, कमअक्ल, अहमक़ वगैरह। मूर्ख के अर्थ में ही पागल शब्द प्रयोग भी कर लिया जाता है हालांकि इसकी अर्थवत्ता भिन्न है और इसका मतलब होता है विक्षिप्त या बावला। हालांकि बारहा मूर्ख के लक्षण भी बावलों जैसे ही होते हैं, किन्तु कई दफा मूर्खता चेहरे से झलकती है और कई दफा बोली-बर्ताव से। कई मूर्ख अगर मुंह न खोलें तो बेहद ज़हीन और अक्लमंद नज़र आते हैं। मूर्ख जैसे दिखनेवाले लोग जब बोलते हैं तब  एहसास होता है कि इन्हें समझने में भूल हुई है। बैजूबावरा अपने ज़माने में संगीत के जीनियस थे, मगर संगीत की लगन के चलते वे ज़माने को बौराए से लगते थे। बावरा, बावला, बउरा या बाऊल (बांग्ला लोकशैली) का रिश्ता संस्कृत के वातुल शब्द से है। वातुल बना है वात् धातु से जिसका मतलब है वायु, हवा। गौरतलब है कि शरीर के तीन प्रमुख दोषों में एक वायुदोष भी माना जाता है। बाहरी वायु और भीतरी वायु शरीर और मस्तिष्क पर विभिन्न तरह के विकार उत्पन्न करती है। आयुर्वेद में इस किस्म के बहुत से रोगों का उल्लेख है। प्रसंगवश, बुद्ध से ही मूर्ख के अर्थ में बुद्धू शब्द का जन्म हुआ क्योंकि मंदमति व्यक्ति बुद्धमुद्रा में जड़ होकर एक ही स्थान पर बैठा रहता है। हालांकि इसकी शुरुआत ध्यानस्थ व्यक्ति को बुद्ध कहने से हुई होगी,बाद में समाज ने पाया कि जड़बुद्धि व्युक्ति भी लोंदे की तरह ही बैठा रहता है, सो उसे बुद्धू कीउपाधि से नवाज़ा जाने लगा।
तिमंद या विक्षिप्त के अर्थ में ही अरबी का अहमक़ शब्द भी हिन्दी में प्रयोग किया जाता है। यह बना है सेमिटिक धातु हम्क h-u-m-q से, जिसमें विक्षिप्तता, पागलपन, मंदता का भाव है। इसकी अर्थवत्ता में कुंद-ज़हनी या उद्धतता का भाव भी है। यह उद्धतता या उद्दण्डता नशे से उपजे क्रोध की ओर संकेत करती है। नशा मस्तिष्क पर कब्जा कर लेता है और मनुष्य की सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित हो जाती है। यही भाव है इसमें। इसी मूल से बना है हिमाक़त शब्द जिसका अर्थ है उद्दण्डता या मूर्खतापूर्ण कृत्य। अरबी में एक शब्द है वुक़ूफ़ जिसका अर्थ है स्थिर होना, खड़ा होना। इस शब्द का उल्लेख कुरआन में हुआ है। हज को जानेवाले जायरीन रेगिस्तान में वुक़ूफ़ की रस्म अदा करते हैं। बताया जाता है कि पैगम्बर हज़रत मोहम्मद साहब ने अराफ़ात के मैदान में खड़े अपने अनुयायियों को  संदेश दिया था। वुक़ूफ़ में खड़े रहने का भाव दरअसल किसी पैगम्बर से मार्गदर्शन प्राप्त करना ही है। जो व्यक्ति खड़ा है, स्थिर है, जाहिर है, वह सम्यक रूप से परिस्थिति के साथ तादात्म्य बैठा रहा है। परिस्थिति से तादात्म्यता से भाव चीज़ों को समझने-बूझने या ज्ञान हासिल करने से है। वुक़ूफ़ का अर्थ बाद में ज्ञान, समझ, जानकारी होने के अर्थ में समझा जाने लगा। इससे ही बना है वाकिफ़ जिसका अर्थ है जानकार, ज्ञानी, समझदार और अनुभवी आदि। बुद्धिमान व्यक्ति के लिए भी इसका प्रयोग होता है। जान-पहचान वाले को हम वाकिफ़कार कहते हैं। वाक़फियत का मतलब होता है जानकारी buddhaहोना, परिचित होना, अवगत होना। वुक़ूफ़ में फारसी का बे उपसर्ग लगने से बनता है बेवुक़ूफ़ अर्थात अज्ञानी, मूर्ख या बुद्धिहीन। हिन्दी में आमतौर पर इसका बेवक़ूफ़ रूप ही प्रचलित है। अज्ञानी बेकूफ़ भी बोलते हैं।
क अन्य हिन्दी शब्द है बेअकल जो मूर्ख या बुद्धिहीन के अर्थ में खूब इस्तेमाल होता है। इसका शुद्ध रूप है बेअक्ल जो अरबी के अक़्ल में फ़ारसी के बे उपसर्ग के मेल से बना है। अक्ल बना है सेमिटिक धातु अ-क़-ल a-q-l से। इस धातु का रिश्ता अरबी के अक़ाला से है जिसका मतलब होता है ऊंट का लंगड़ाकर चलना, उसे बांध कर रखना या रस्सी से जकड़ना। अकाला से बनी अ-क़-ल a-q-l धातु में मूलतः बांध कर रखने का भाव स्थिर हुआ। ध्यान दें बांधने की क्रिया पर। बांधने से किन्हीं पृथक वस्तुओं को एक रखा जाता है। इससे एकजुटता आती है। इसमें केन्द्रित करने का भाव उभर रहा है। इससे बना है अक्ल यानी बुद्धि, मेधा, प्रतिभा, चातुरी, प्रवीणता आदि। गौर करें ये सभी गुण मस्तिष्क से जुड़े हुए हैं जहां से समूचे शरीर का कार्यव्यापार संचालित होता है। मस्तिष्क का केन्द्रीय अंग होना ही उसे महत्वपूर्ण बनाता है। मस्तिष्क जब एकाग्र होता है तभी बुद्धि सक्रिय होती है, इसलिए अ-क़-ल a-q-l धातु में निहित बंधन का भाव, जिसमें एकाग्रता की अर्थवत्ता है, से अक्ल जैसा शब्द बना। अक़्ल जब फारसी में दाखिल हुआ तो इसमें बे उपसर्ग लगा कर मूर्ख, मूढ़ या मंदबुद्धि व्यक्ति के लिए बेअक़्ल शब्द बना लिया गया जो हिन्दी में भी खूब प्रचलित है।
ब आएं संस्कृत के विक्षिप्त शब्द पर। अक्ल में बुद्धि के केन्द्रित होने की बात उजागर हो रही है, उसका विलोम नज़र आता है विक्षिप्त शब्द में। संस्कृत के क्षिप्त शब्द में वि उपसर्ग लगने से बना है विक्षिप्त। क्षिप्त बना है क्षिप धातु से जिसमें मूल भाव है बिखेरना, अलग-अलग करना। इस तरह क्षिप्त का अर्थ हुआ बिखरा हुआ, टूटा हुआ, अस्त-व्यस्त। इसका एक अर्थ पागल, भ्रमित, भान्त व्यक्ति भी है। स्पष्ट है कि जिस व्यक्ति की बुद्धि ठिकाने पर न हो, उसका चित्त ही डावांडोल रहता है। भ्रमित व्यक्ति को क्षिप्तचित्त भी कहते हैं। अस्थिर-चित्त भी इनका एक विशेषण है। बौराना शब्द का अर्थ है पागलपन, विक्षिप्तता, वातरोगी या सनकी। मंदबुद्धि शब्द बना है मंद+बुद्धि के मेल से। संस्कृत की मंद धातु की व्यापक अर्थवत्ता है। मूलतः मंद में जड़ता का भाव है। मंद यानी कुंद बुद्धि, जड़मति, धीमा, स्थिर आदि। मन्द का प्रयोग आमतौर पर मूर्ख या बुद्धू व्यक्तियों के लिए भी किया जाता है। मन्द एक विशेषण है जिसमें सुस्ती, जड़ता, ढिलाई, धीमापन, मूर्खता जैसे भाव हैं। इसके साथ ही मन्द में नशेड़ी, बीमार, आलसी, दुर्बल, कमजोर या शिथिल की अर्थवत्ता भी है। बुद्धि बना है संस्कृत धातु है बुद् से जिसका अर्थ है किसी बात का ज्ञान होना, जागना । इससे बने बुद्ध, बुध, बुद्धि, और बोधि जैसे शब्द जिनके भीतर भी समझना, जानना, प्रकाशमान और जागा हुआ जैसे भावार्थ छुपे हैं। अब इस बुद्धि के आगे अगर मंद की अर्थवत्ता समा जाए तो अर्थ निकलता है कम बुद्धिवाला अर्थात मूर्ख या मूढ़।

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22 कमेंट्स:

Smart Indian said...

लेख अच्छा लगा हालांकि बुद्ध से बुद्धू की व्युत्पत्ति थोड़ी दूर की कौड़ी लगी.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बुद्ध से ही मूर्ख के अर्थ में बुद्धू शब्द का जन्म हुआ क्योंकि मंदमति व्यक्ति बुद्धमुद्रा में जड़ होकर एक ही स्थान पर बैठा रहता है। हालांकि इसकी शुरुआत ध्यानस्थ व्यक्ति को बुद्ध कहने से हुई होगी,बाद में समाज ने पाया कि जड़बुद्धि व्युक्ति भी लोंदे की तरह ही बैठा रहता है, सो उसे बुद्धू कू उपाधि से नवाज़ा जाने लगा।

यही विवेचना सही है!
बढ़िया लेख!

Udan Tashtari said...

आपके इस आलेख से हम उल्टी राह पर हैं बाकी आलेखों की तरह-बुद्धु से बुद्ध की दिशा में... :)

मनोज कुमार said...

लेख अच्छा लगा। कालीदास ...

Khushdeep Sehgal said...

आजकल जो दूसरों को बेवकूफ़ बना सके, वही सबसे बड़ा समझदार...

जय हिंद...

Dr. Shreesh K. Pathak said...

बेहद रोचक और सारगर्भित जानकारी..!

बेवक़ूफ़ शब्द के बारे में तो जानकारी अभीष्ट थी, पापाजी बचपन में जब बेवक़ूफ़ बोलते थे, तो गुस्सा सारा मेरा इसी शब्द पर उतरता था, इसकी चीर फाड़ करता था तो बे-वकूफ मिलता था, ...तो इस वकूफ के बारे में आज जान पाया हूँ..!!

अजित वडनेरकर said...

@स्मार्ट इंडियन
बुद्ध से बुद्धू की व्युत्पत्ति दूर की कौड़ी नहीं है भाई। यह प्रामाणिक है। भोलानाथ तिवारी से लेकर रामविलास शर्मा तक के भाषा संबंधी ग्रंथों में इसका हवाला मिलेगा। सफ़र की अनेक पोस्टों में इसका उल्लेख हुआ है, इसीलिए यहां विस्तार से न बताते हुए सरसरी तौर पर उल्लेख भर किया है। ऊपर सर्च विजेट में बुद्धू लिख कर आप खोजें और जितनी भी पोस्ट मिलती हैं उन पर नज़र डालें।
टिप्पणी के लिए शुक्रिया...

Satish Saxena said...

सुबह सुबह ब्लाग देख कर चौंक गया कि आज अचानक अजीत भाई, हम सभी को कैसे पहचान गए ? मगर सोचा कि एक दिन तो यह होना ही था ..

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

बुद्ध तो नही बन सकुंगा बुद्धू तो हू ही

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

यह आलेख सारगर्भित है.

एक शेर याद आ रा हा है -

बे-मजा, बे-रौनक, बे-कार है सफ़र बगैर किसी किताब के
अक्ल बे-अक्ल की बात बेमानी है बगैर किसी उस्ताद के

- सुलभ

दिनेशराय द्विवेदी said...

ज्ञान का इतना विस्तार है कि किसी न किसी क्षेत्र में व्यक्ति बुद्धू साबित हो ही जाता है। इस आलेख में वर्णित सभी शब्दों का विश्लेषण सुंदर और ज्ञान वर्द्धक है।

Mohammed Umar Kairanvi said...

आपकी दी जानकारी मैंने कई बार पढी, लाजवाब, वुकूफ बारे में आपने उचित समय पर जानकारी दी या यह मात्र संयोग है कि पूरे वर्ष में आज ही वह दिन है जब हर हाजी को दिन की रौशनी में यहाँ आकर ठहरना होता है, यही वह स्‍थान है जहाँ जन्‍नत से निकाले जाने के बाद आदम-हव्‍वा की पहली मुलाकात होती है,

ghughutibasuti said...

बहुत बढ़िया जानकारी।
घुघूती बासूती

सोनू said...
This comment has been removed by the author.
अजित वडनेरकर said...

@सोनू
नुक़तों का जहां तक सवाल है, हिन्दी में नहीं लगते हैं। अब कुछ शब्द हैं जिनके साथ ये लगाने की आदत हो गई है। अक़्ल में तो लगाया, पर वगै़रा या वग़ैरह में नहीं लगाया। न लगाना तो ठीक है, पर ग़लत जगह पर लगाना सही नहीं है। कोशिश करनी चाहिए कि सही स्थान पर तो लग जाएं, ताकि अर्थ का अनर्थ न हो जाए। बाकी नुक़ताचीनी जैसी कोई बात न हो:)

Arvind Mishra said...

बौद्धिक !

शरद कोकास said...

अब तक तो हम" बेवकूफ़" ही थे ,बेवुकुफ़ से वाकिफ़ होने से पहले मन्दबुद्धि का अर्थ जड-मति तो समझ मे आया लेकिन अक्लमन्द का अर्थ अक्ल मन्द होना नहीं है यह भी पता है .. इस पर कुछ लाइट थ्रो करेंगे अजित भाई ?

Baljit Basi said...

It looks like you are needlessly bringing in Ayurvedic 'dosha' while discussing the Sanskrit word Vatula.It is simply windy, inflated with wind. Compare English word fool from Latin follis (bellows,leather bag) The sense later developed to wind bag,empty headed person.Incidently you missed to mention the head of all such words that is 'Murkh' from Vedic 'mura' Stupefied, bewildered; Foolish, silly, stupid.

Rajeysha said...

मूढ़, मूढ़मति, मूर्ख, बुद्धू इनकी कथा भी हरि‍ की तरह ही अनन्‍त है, पता नहीं आपने कैसे छोटी सी पोस्‍ट में समेटने की कोशि‍श की है।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

भाई !
अक्ल ठिकाने लगाने वाली पोस्ट है यह.
अब हम इन महानुभावों से बेवज़ह खपा नहीं होंगे.
वादा रहा....!

सच अजित भाई,
आपकी लगन और परिश्रम से कोई भी
अभिभूत हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं.
=================================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Sanjay Kareer said...

अब चिंता नहीं है... इस पोस्‍ट को जो पढ़ लेगा वो कम से कम इन संबोधनों का हकदार तो नहीं रहेगा... जैसे कि मैं। मजा आया बड़े भाई।

अजित वडनेरकर said...

@बलजीत बासी
भाई, मूर्ख से मूढ़ की रिश्तेदारी बताने वाली पोस्ट सफर में काफी पहले लिखी जा चुकी है। कृपया सर्च विजेट का प्रयोग करें। बावला का उल्लेख भी यहां प्रसंगवश किया है। इस पर विस्तृत पोस्ट लिखी जा चुकी है।
मैं आपसे कई बार अनुरोध कर चुका हूं कि अपना पर्सनल ईमेल आईडी मुझे उपलब्ध कराएं। पर आपको मेरा यह विनम्र अनुरोध स्वीकार नहीं है, ऐसा क्यों ? कृपया अपनी टिप्पणी हिन्दी में लिखें तो और भी अच्छा लगेगा। आपके रुझान से लगता है कि आप हिन्दी प्रेमी हैं।

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